ये लेख 2022 में शासन व्यवस्था के लिए सुझाव श्रृंखला का हिस्सा है.
आने वाले वर्षों और दशकों में भारत की शासन व्यवस्था की गुणवत्ता अधिक-से-अधिक इस बात से निर्धारित होगी कि शहरी स्थानीय निकाय (Urban-Local Governance) अपना संचालन कैसे करते हैं. 1911 और 2011 के बीच भारत में शहरों और कस्बों की जनसंख्या 20.87 प्रतिशत बढ़ी है; 5,572 अतिरिक्त शहरी बस्तियां और कस्बे बन गए हैं. इसके साथ ही इसी अवधि के दौरान 47 और महानगरीय शहरों का भी उदय हुआ है. ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि 2030 तक शहरी जनसंख्या भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में और भी बड़ी भूमिका निभाएगी और राष्ट्रीय जीडीपी में तीन- चौथाई योगदान करेगी. जैसे-जैसे बड़ी संख्या में लोग शहरों की ओर रुख़ करेंगे वैसे-वैसे शहरी स्थानीय निकाय की शासन व्यवस्था देश की बेहतरी के लिए महत्वपूर्ण होगी. इसलिए अच्छी शासन व्यवस्था देने में शहरी स्थानीय निकायों की क्षमता देश के हितों के लिए महत्वपूर्ण होगी. अच्छी शासन व्यवस्था के लिए पारदर्शिता बेहद ज़रूरी है और शहरी स्थानीय निकायों के लिए अच्छा होगा कि वो अपनी पारदर्शिता में उल्लेखनीय ढंग से बढ़ोतरी करें.
स्थानीय जवाबदेही के लिए पारदर्शिता पूंजी है. ये एक ऐसी चाबी है जो लोगों को औज़ार और सूचना देती है जो समाज में प्रभावशाली भूमिका निभाने के लिए ज़रूरी है.
“पारदर्शिता” का मतलब है कि एक संगठन किस ढंग से अपने बारे में और अपने काम-काज के बारे में सूचना देता है. सार्वजनिक प्राधिकरणों की पारदर्शिता को लेकर सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के ज़रिए एक बड़ी छलांग लगाई गई. इस अधिनियम ने मज़बूती के साथ इस धारणा को स्थापित किया कि नागरिकों को जानने का अधिकार है और सरकार के फ़ैसलों की सार्वजनिक समीक्षा हो सकती है. हालांकि आरटीआई अधिनियम में सिर्फ़ इस बात को ज़रूरी किया गया कि सार्वजनिक संगठनों को उसी वक़्त सूचना साझा करना चाहिए जब इसके बारे में जानकारी मांगी जाए. लेकिन एक पारदर्शी संगठन वो होता है जो ख़ुद अपनी मर्ज़ी से सूचना मुहैया कराता है.
स्थानीय जवाबदेही के लिए पारदर्शिता पूंजी है. ये एक ऐसी चाबी है जो लोगों को औज़ार और सूचना देती है जो समाज में प्रभावशाली भूमिका निभाने के लिए ज़रूरी है. जब तक कि किसी सूचना को लेकर ये संतोषजनक ढंग से स्थापित नहीं होता है कि वो संवेदनशील है, तब तक सभी तरह की महत्वपूर्ण जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होनी चाहिए. शहरी स्थानीय निकाय उस तरह के काम में शामिल होते हैं जो हमारे प्रतिदिन के जीवन में मदद करते हैं और ये विदेश नीति या राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों से बहुत दूर होते हैं. इसलिए शहरी स्थानीय निकायों के पास उस तरह की गुप्त जानकारी नहीं होती है जिसे साझा नहीं किया जा सकता है. शहरी स्थानीय निकायों से जुड़ी जानकारी आसानी से समझने योग्य प्रारूप और कम समय में उपलब्ध होनी चाहिए. अच्छी बात ये है कि नई तकनीकों के आधुनिकीकरण ने पारदर्शिता की तरफ़ ऐसे क़दमों को आसानी से हासिल करने योग्य बना दिया है.
नगरपालिका के कार्यालयों में महत्वपूर्ण फ़ैसले लेने में शामिल बड़े विभागों और शहरी स्थानीय निकायों के फ़ैसले लेने वाली विंग के प्रमुखों से जुड़ी जानकारी शहरी स्थानीय निकायों की वेबसाइट पर होनी चाहिए.
प्रक्रियाओं का सीधा प्रसारण
पारदर्शिता के व्यापक तौर-तरीक़े हैं जिन्हें शहरी स्थानीय निकाय इस्तेमाल में ला सकते हैं. पहला तौर-तरीक़ा ये है कि शहरी स्थानीय निकाय अपनी सामान्य सभा और दूसरी समितियों जैसे स्थायी समिति, सुधार समिति और अन्य की प्रक्रियाओं का सीधा प्रसारण करें. ये ध्यान देने योग्य है कि राज्यसभा, लोकसभा और राज्यों की विधायिका की कार्यवाही का सीधा प्रसारण होता है. इसलिए ये उचित होगा कि इस पद्धति को शहरी स्थानीय निकाय भी अपनाएं. कुछ नगर निगमों ने समितियों के विचार-विमर्श की प्रक्रिया के दौरान मीडिया के शामिल होने की परंपरा को अपनाया है. चूंकि इन समितियों में महत्वपूर्ण काम-काज होते हैं, इसलिए ये उचित होगा कि इनकी कार्यवाही और फ़ैसलों के बारे में नागरिकों को जानकारी उपलब्ध कराने को स्वीकार किया जाए.
दूसरा तौर-तरीक़ा ये है कि नगरपालिका के कार्यालयों में महत्वपूर्ण फ़ैसले लेने में शामिल बड़े विभागों और शहरी स्थानीय निकायों के फ़ैसले लेने वाली विंग के प्रमुखों से जुड़ी जानकारी शहरी स्थानीय निकायों की वेबसाइट पर होनी चाहिए. इस जानकारी से शहर के लोगों को ये पता चलेगा कि शहरी स्थानीय निकाय की किस विंग में किसकी तैनाती है, उनका क्या ग्रेड है और उनके पद का क्या नाम है, कितने लंबे समय से वो यहां पर हैं, उनके पास क्या संपत्ति है और उनसे संपर्क करने के तरीक़े समेत उनकी नौकरी के बारे में दूसरी सूचनाएं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि किसी अधिकारी के निजी जीवन से जुड़ी जानकारी के बारे में बताया जाएगा.
तीसरा तौर-तरीक़ा ये है कि किसी इमारत को बनाने की मंज़ूरी, बनाए गए नियमों, तैयार नीतियों और लोगों को प्रभावित करने वाले सर्कुलर को समय-समय पर सार्वजनिक किया जाना चाहिए. इसके अलावा नागरिकों को ये जानने की ज़रूरत है कि शहरी स्थानीय निकाय ने कितना पैसा इकट्ठा किया है, पैसा जमा करने का स्रोत क्या था, किन मदों में रक़म खर्च की गई और जो बचा हुआ पैसा है उसे कैसे रखा जा रहा है. नगरपालिका की ख़रीदारी के बारे में पारदर्शिता महत्वपूर्ण है और एक तय रक़म से ज़्यादा मूल्य के सभी ठेकों के बारे में जानकारी निश्चित रूप से सार्वजनिक होनी चाहिए. जो जानकारी होनी चाहिए उनमें ख़रीदारी करने वाले विभाग का नाम, प्राप्त सामान और सेवा का विवरण, आपूर्तिकर्ता का नाम और ब्यौरा और ठेके का कुल मूल्य शामिल हैं.
दुनिया भर की बात करें तो अलग-अलग संगठन कठिन भाषा को छोड़ रहे हैं और चीज़ों को ज़्यादा-से-ज़्यादा आसान बनाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि साधारण व्यक्ति भी समझ सके और क़ानून, नियम और विनियमन का पालन कर सके.
ग़लत आचरण को रोकने के दृष्टिकोण से ये उचित होगा कि उन नगरपालिका कर्मचारियों के बारे में जानकारी साझा की जाए जिनके ख़िलाफ़ आपराधिक जांच चल रही है, जो अनियमितता के मामले में विभागीय जांच का सामना कर रहे हैं, जिनके ख़िलाफ़ जांच की प्रक्रिया चल रही है, जांच नतीजे पर पहुंच गई है और सज़ा दी जा चुकी है. शहरी स्थानीय निकायों को पारदर्शिता बढ़ाने के लिए क़ानून, नियम और विनियमन को सरल बनाने की तरफ़ भी ध्यान देना चाहिए. दुनिया भर की बात करें तो अलग-अलग संगठन कठिन भाषा को छोड़ रहे हैं और चीज़ों को ज़्यादा-से-ज़्यादा आसान बनाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि साधारण व्यक्ति भी समझ सके और क़ानून, नियम और विनियमन का पालन कर सके.
वेब आधारित नागरिक सेवाएं
सार्वजनिक संस्थानों के द्वारा निर्णय लेने की प्रक्रिया को तेज़ करने और ज़्यादा कार्यकुशल एवं पारदर्शी संरचना के माध्यम से नागरिकों को अच्छी सूचना प्रदान करने में सूचना और संचार तकनीकों (आईसीटी) का इस्तेमाल भी समान रूप से महत्वपूर्ण है. शहरी स्थानीय निकायों के लिए सूचना तकनीक के टूल्स में दूसरी चीज़ों के अलावा वेब आधारित नागरिक सेवाएं जैसे संपत्ति कर भुगतान, जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण और एंटरप्राइज़ मैनेजमेंट टूल जैसे मैनेजमेंट इंफोर्मेशन सिस्टम (एमआईएस), फाइनेंशियल मैनेजमेंट सिस्टम (एफएमएस), और परफॉर्मेंस मैनेजमेंट सिस्टम (पीएमएस) भी शामिल हैं. धीरे-धीरे, कई चरणों में, इस तरह की प्रणाली वितरण के मौजूदा तौर-तरीक़ों की जगह ले लेगी जिसमें उस तरह की गति और पारदर्शिता का अभाव है जो कि लोग चाहते हैं.
ई-गवर्नेंस में मोबाइल-गवर्नेंस भी शामिल है जो सेवाओं को लोगों तक पहुंचाता है. शहरी स्थानीय निकाय सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा, पानी, सफ़ाई, सड़कों पर रोशनी, कूड़ा प्रबंधन, आजीविका, परिवहन, बागीचा और दूसरी ज़रूरी चीज़ों से जुड़ी महत्वपूर्ण सेवाएं देते हैं. डिजिटल प्लैटफॉर्म पर इन सेवाओं को प्रदान करना मौलिक रूप से शहरी स्थानीय निकायों की कार्यकुशलता और नागरिकों की संतुष्टि के स्तर को बदल देगा. इसलिए ये अनुशंसा की जाती है कि सूचना साझा करने और फीडबैक के लिए शहरों के द्वारा डिजिटल प्लैटफॉर्म का लाभ उठाने को प्रोत्साहन दिया जाए.
डिजिटल प्लैटफॉर्म पर इन सेवाओं को प्रदान करना मौलिक रूप से शहरी स्थानीय निकायों की कार्यकुशलता और नागरिकों की संतुष्टि के स्तर को बदल देगा. इसलिए ये अनुशंसा की जाती है कि सूचना साझा करने और फीडबैक के लिए शहरों के द्वारा डिजिटल प्लैटफॉर्म का लाभ उठाने को प्रोत्साहन दिया जाए.
अलग-अलग तरह की पारदर्शिता के तौर-तरीक़ों पर काम करते समय कुछ शहरी स्थानीय निकायों को लग सकता है कि एक बार में पारदर्शिता के सभी उपायों को लागू करना कठिन है. इस तरह के मामलों में उन्हें अलग-अलग चरणों में लागू करना संभव होना चाहिए. लेकिन याद रखने के लिए महत्वपूर्ण बात ये है कि शहरी स्थानीय निकाय लगातार अपने लिए अधिक स्वायत्तता और संविधान के 74वें संशोधन की भावना के अनुरूप स्वयं शासन के अधिकार की मांग कर रहे हैं. स्पष्ट रूप से अगर शहरी स्थानीय निकाय स्वायत्तता चाहते हैं तो पारदर्शिता और जवाबदेही अपरिहार्य परिणाम हैं जो स्वायत्तता से मेल खाएं.
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