Published on Dec 14, 2023 Updated 0 Hours ago

सऊदी अरब की भव्य सोच के लिए अफ्रीका एक ठोस वादे का प्रतिनिधित्व करता है. इसलिए उसने इस इलाके में अपना कूटनीतिक और आर्थिक असर बढ़ाना तेज़ कर दिया है. 

सऊदी अरब का अफ्रीका के लिए शानदार नज़रिया; क्या है पीछे की रणनीति- एक पड़ताल!

कुछ साल पहले तक अफ्रीका के लोगों के लिए मुख्य रूप से हज पर ध्यान देने वाले सऊदी अरब की तरफ से अफ्रीका में जुड़ाव की कवायद का पिछले 60 वर्षों में काफी विस्तार हुआ है. इसके तहत आपसी फायदे के कई क्षेत्रों को शामिल किया गया है जिनमें सतत विकास, व्यापार, निवेश, शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल, संस्कृति, खनन और तेल एवं गैस शामिल हैं. इज़रायल के साथ ऐतिहासिक अब्राहम अकॉर्ड करने और ईरान के साथ सुलह के बाद हाल के समय में सऊदी अरब ने अफ्रीका में अपना कूटनीतिक अभियान तेज़ किया है. सऊदी अरब अपनी सीमित आर्थिक भागीदारी को बढ़ाकर अफ्रीका में अपना आर्थिक असर बढ़ाने के लिए काम कर रहा है. 

अफ्रीका के साथ अपने संबंध को अगले स्तर पर ले जाने के लिए सऊदी अरब ने 10 नवंबर 2023 को पहले सऊदी-अफ्रीका शिखर सम्मेलन का आयोजन किया. अपने शुरुआती भाषण में सऊदी अरब के वित्त मंत्री मोहम्मद अल-जदान ने कहा कि सऊदी अरब और अफ्रीका का “साझा इतिहास और भविष्य” है. ये एक दिवसीय सम्मेलन सऊदी साम्राज्य और अफ्रीका के देशों के बीच सामरिक गठबंधन को मज़बूत करने और संबंधों एवं सहयोग को बढ़ाने में निश्चित रूप से अहम योगदान देगा. 

सऊदी अरब-अफ्रीका शिखर सम्मेलन में क्या हुआ? 

पहले सऊदी-अफ्रीका समिट में 50 से ज़्यादा बड़ी हस्तियां शामिल हुईं जिनमें 10 से ज़्यादा राष्ट्र प्रमुख भी शामिल हैं. कोमोरॉस के राष्ट्रपति एवं अफ्रीकन यूनियन के अध्यक्ष अज़ाली असौमानी और अफ्रीकन यूनियन कमीशन के अध्यक्ष मूसा फकी महामत भी शिखर सम्मेलन में शामिल हुए. समिट के दौरान सऊदी अरब ने 2030 तक सऊदी निर्यात के लिए बीमा के रूप में 10 अरब अमेरिकी डॉलर और अफ्रीकी देशों के विकास में वित्तीय मदद के तौर पर अतिरिक्त 5 अरब अमेरिकी डॉलर का आवंटन करने का प्रस्ताव रखा. इस दौरान सऊदी डेवलपमेंट फंड ने अफ्रीका के 12 देशों के साथ 533 मिलियन अमेरिकी डॉलर की कीमत के 50 समझौतों और MoU पर हस्ताक्षर किए. इसके अलावा, अफ्रीका के लिए 1 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा कीमत की किंग सलमान डेवलपमेंट इनिशिएटिव की शुरुआत की गई और इसके 10 वर्षों तक जारी रहने का अनुमान है. सऊदी अरब ने इस महादेश में अपनी कूटनीतिक मौजूदगी बढ़ाने के इरादे का भी एलान किया जिसके तहत नए दूतावास की संख्या लगभग 27 से बढ़ाकर 40 की जाएगी. सामाजिक क्षेत्रों जैसे कि संस्कृति, मानव संसाधन, सामाजिक विकास और खेल में भी कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए.

शिखर सम्मेलन के दौरान सऊदी अरब और नाइजीरिया ने कुछ निवेश समझौतों पर दस्तखत किए. इनमें से एक समझौता नाइजीरिया में चार क्षतिग्रस्त तेल रिफाइनरी की मरम्मत को लेकर है. सऊदी अरब की सरकारी क्षेत्र की तेल कंपनी आरामको दो से तीन साल के भीतर इन सभी चार रिफाइनरी को ठीक करेगी. सऊदी अरब ने नाइजीरिया में तेज़ी से कम हो रहे विदेशी मुद्रा भंडार को फिर से भरने के लिए और सरकार के विदेशी मुद्रा सुधारों को बनाए रखने के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा जमा करने का संकल्प भी लिया. 2019 में प्रस्तावित नाइजीरिया-सऊदी अरब बिज़नेस काउंसिल को नया जीवन मिलने से दोनों देशों के बीच व्यावसायिक सहयोग के एक नए युग की शुरुआत होने की उम्मीद है. 

अफ्रीका में असर के लिए क्षेत्रीय मुकाबला

अफ्रीका तेज़ी से दुनिया की कई ताकतों के बीच बहुत ज़्यादा संघर्ष का केंद्र बनता जा रहा है. अमेरिका, यूरोप, चीन, भारत, रूस और कई अरब देश, जिनमें सऊदी अरब के अलावा संयुक्त अरब अमीरात (UAE), क़तर, तुर्किए शामिल हैं, अफ्रीका में राजनीतिक और आर्थिक पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं. वास्तव में कुवैत पहला अरब देश था जिसने 2013 में अरब-अफ्रीका शिखर सम्मेलन के दौरान अफ्रीका की मेज़बानी की थी. ये देखते हुए कि सऊदी अरब, UAE और ईरान का 2024 में ब्रिक्स का नया सदस्य बनना तय है, ऐसे में अफ्रीका पर ज़्यादा पकड़ के लिए प्रतिस्पर्धा में बढ़ोतरी होगी. 

ईरान दिल खोलकर अफ्रीका में अपने जुड़ाव का विस्तार करने में दिलचस्पी रखता है. ईरान का मुख्य उद्देश्य, जिसे 2014 में राष्ट्रपति हसन रूहानी और मौजूदा राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी के द्वारा व्यक्त किया गया था, अफ्रीका के साथ अपने संपर्क को बेहतर बनाना है.

मौजूदा समय में EU, चीन और अमेरिका के बाद UAE अफ्रीका में चौथा सबसे बड़ा निवेशक है. अबू धाबी फंड फॉर डेवलपमेंट ने सिर्फ 2018 में अफ्रीका के 28 देशों में 66 से ज़्यादा परियोजनाओं के लिए फंड के रूप में 16.6 अरब अमेरिकी डॉलर मुहैया कराया. सरकारी क्षेत्र की बड़ी कंपनी दुबई पोर्ट्स वर्ल्ड (DP वर्ल्ड) बंदरगाह के विस्तार और समुद्री सहयोग के मामले में पहले से एक अग्रणी कंपनी है जो 10 से ज़्यादा अफ्रीकी देशों में परियोजनाओं का संचालन कर रही है. पिछले 10 वर्षों में DP वर्ल्ड ने अफ्रीका में 1.8 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा का निवेश किया है और इसके अलावा 3 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश का भरोसा दिया है.

ईरान दिल खोलकर अफ्रीका में अपने जुड़ाव का विस्तार करने में दिलचस्पी रखता है. ईरान का मुख्य उद्देश्य, जिसे 2014 में राष्ट्रपति हसन रूहानी और मौजूदा राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी के द्वारा व्यक्त किया गया था, अफ्रीका के साथ अपने संपर्क को बेहतर बनाना है. रईसी ने 2023 की शुरुआत में तीन देशों का दौरा किया था और वो 11 वर्षों में अफ्रीका की यात्रा करने वाले पहले ईरानी राष्ट्रपति बन गए. ईरान के नेतृत्व के लिए अफ्रीका महत्वपूर्ण है क्योंकि ईरान अफ्रीका के नेताओं के साथ व्यावसायिक संबंध बनाकर अपनी कमज़ोर अर्थव्यवस्था पर अमेरिका और EU के प्रतिबंधों के ख़राब असर को कम करना चाहता है. 

2005 से तुर्किए एक जैसी अफ्रीका नीति का पालन करके अफ्रीका में एक महत्वपूर्ण किरदार बन गया है. भारत की तरह तुर्किए पहले ही तीन अफ्रीका समिट की मेज़बानी कर चुका है. सॉफ्ट पावर के साधनों जैसे कि संस्कृति और इतिहास के साथ तुर्किए का लक्ष्य कूटनीतिक, व्यावसायिक, निवेश, स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा और सैन्य सहयोग के क्षेत्रों में इस महादेश में अपनी स्थिति को मज़बूत करना है. पिछले 15 वर्षों में राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने अफ्रीका के 30 से ज़्यादा देशों का दौरा किया है और इस तरह तुर्किए के लिए अफ्रीका के महत्व के बारे में बताया है. वास्तव में वो तुर्किए का ज़िक्र अफ्रीका-यूरेशिया के हिस्से के रूप में करते हैं.  

अफ्रीका से जुड़ाव की सऊदी अरब की मौजूदा कवायद

अफ्रीका में निवेश करना सऊदी अरब के लिए कोई नई बात नहीं है लेकिन इस बार ऐसा लगता है कि वो अफ्रीकी महादेश पर पूरी पकड़ बनाने का इरादा बना चुका है. ये सऊदी के द्वारा अफ्रीका की तरफ आक्रामक सॉफ्ट डिप्लोमेसी के झुकाव से पता चलता है. इसलिए शिखर सम्मेलन बदलती विश्व व्यवस्था में एक ज़्यादा केंद्रीय भूमिका निभाने की सऊदी अरब की इच्छा को भी दिखाता है. 

सऊदी फंड फॉर डेवलपमेंट की तरफ से कई तरह की विकास से जुड़ी पहल भी की जा रही है. अभी तक इस रियायती फंडिंग ने 44 अफ्रीकी देशों में परियोजनाओं को विकसित करने में मदद की है. इसके अलावा सऊदी अरब इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक में भी प्रमुख दान देने वाला देश है.

मौजूदा समय में सऊदी की भागीदारी मुख्य रूप से दक्षिण अफ्रीका और मुस्लिम बहुल देशों (हॉर्न ऑफ अफ्रीका, पश्चिम अफ्रीका और मगरेब में) पर केंद्रित है. अफ्रीका में सऊदी के दो मुख्य व्यापारिक साझेदार दक्षिण अफ्रीका और मिस्र हैं. सऊदी जहां अफ्रीका को रबर, रसायन, उपभोक्ता सामान, खनिज, धातु और खाद्य उत्पादन का निर्यात करता है वहीं वो अफ्रीका से मुख्य तौर पर धातु, कच्चा माल, सब्ज़ी, पत्थर और ग्लास उत्पादों का आयात करता है. 2022 में सऊदी और अफ्रीका के बीच द्विपक्षीय व्यापार 45 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया. पिछले पांच वर्षों में ये अहम बढ़ोतरी है, ख़ास तौर पर अफ्रीका को सऊदी के द्वारा गैर-तेल निर्यात में. 2018 से 2022 के बीच द्विपक्षीय व्यापार में सालाना विकास की दर 5.96 प्रतिशत रही है. 

इसके अलावा अफ्रीका के देशों को सऊदी अरब कर्ज़ में कमी और संघर्ष के निपटारे के साथ आकर्षित कर रहा है. इससे पहले 2020 में G20 की अपनी अध्यक्षता के दौरान सऊदी अरब ने अफ्रीका के लिए कर्ज़ चुकाने की बाध्यता को निलंबित करने की वकालत की थी. अफ्रीका शिखर सम्मेलन के दौरान सऊदी के वित्त मंत्री ने खुलासा किया कि उनका देश अपने कर्ज़ को लेकर घाना और अफ्रीका के दूसरे करीबी देशों की मदद करने के लिए अलग-अलग फंडिंग की व्यवस्था पर विचार कर रहा है. 

अफ्रीका के लिए सऊदी की सोच

सऊदी अरब दुनिया की एक उभरती ताकत है जिसका पता ब्रिक्स गठबंधन में उसको शामिल करने से चलता है. 2016 में सऊदी अरब ने अपना विज़न 2030 सामने रखा जो कि एक भू-आर्थिक रणनीति है जिसे तेल पर अपनी निर्भरता कम करने और अपनी अर्थव्यवस्था को अलग-अलग क्षेत्रों जैसे कि नवीकरणीय ऊर्जा, खेल, पर्यटन, साजो-सामान और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में ले जाने के लिए तैयार किया गया है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि सऊदी साम्राज्य को इस ब्लूप्रिंट को वास्तविकता में बदलने के लिए कई साझेदारों की आवश्यकता है. इसलिए सऊदी के लिए ये स्वाभाविक है कि वो एक टिकाऊ साझेदारी, निवेश और आर्थिक सहयोग के लिए अफ्रीका की तरफ रुख करे.   

वास्तव में सऊदी अरब दुनिया में अलग-अलग देशों की बढ़ती ताकत के बीच अफ्रीका को एक ज़रूरी सहयोगी के तौर पर देखता है. वो अपनी वित्तीय ताकत का इस्तेमाल सब-सहारन अफ्रीका (सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में स्थित अफ्रीकी देश) में अपनी सॉफ्ट पावर को बढ़ाने में कर रहा है. किंग सलमान और क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के सत्ता में आने के समय से अफ्रीका के कई देशों के राष्ट्र प्रमुखों ने सऊदी की यात्रा की है. ये सऊदी अरब और अफ्रीका के देशों के बीच बढ़ते सहयोग का संकेत देता है. सऊदी फंड फॉर डेवलपमेंट की तरफ से कई तरह की विकास से जुड़ी पहल भी की जा रही है. अभी तक इस रियायती फंडिंग ने 44 अफ्रीकी देशों में परियोजनाओं को विकसित करने में मदद की है. इसके अलावा सऊदी अरब इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक में भी प्रमुख दान देने वाला देश है. 

पिछले कुछ वर्षों में सऊदी अरब ने महत्वपूर्ण उद्योगों में दुनिया में सबसे अग्रणी विशेषज्ञता और एक दीर्घकालीन विकास की रणनीति विकसित की है ताकि अपने घरेलू उद्योगों को समृद्ध किया जा सके. इस अनुभव को अफ्रीका की अर्थव्यवस्थाओं और संसाधन की बुनियाद में इस्तेमाल करना दोनों पक्षों के लिए एक बेहतरीन अवसर पेश करता है. अफ्रीका महादेश में सऊदी का निवेश, जिसमें पारस्परिक फायदे की बहुत ज़्यादा संभावना है, अपने परंपरागत उद्योगों से हटने और विशेषज्ञता की एक नई, व्यापक निवेश सूची की तरफ बदलाव का एक और मज़बूत संकेत है. 

सुरक्षा विशेषज्ञ कहते हैं कि फरवरी 2022 में यूक्रेन के साथ रूस के युद्ध के बाद दुनिया भर में ऊर्जा के संकट ने सऊदी अरब को अपना प्रभाव मज़बूत करने और अमेरिका पर निर्भरता कम करने के लिए एक और मौका मुहैया कराया है. इससे पहले सऊदी अरब ने सूडान में लड़ रहे जनरल के बीच शांति समझौता कराने की कोशिश की. सामरिक स्वायत्तता के लिए सऊदी अरब की तलाश अफ्रीकन यूनियन से निलंबित किए गए देशों से उसके कूटनीतिक जुड़ाव से भी स्पष्ट होती है. इन देशों, जैसे कि गैबन, नाइजर और सूडान, को सैन्य विद्रोह की वजह से अफ्रीकन यूनियन से निकाला गया था. लेकिन उन्हें न्योता देकर सऊदी अरब ने पश्चिमी देशों को ये मज़बूत संकेत दिया है कि वो उनके सैन्य विद्रोह के ख़िलाफ़ सिद्धांतों की परवाह नहीं करता है. 

आगे का रास्ता

सऊदी अरब के शानदार नज़रिए के लिए अफ्रीका एक ठोस भरोसे का प्रतिनिधित्व करता है. अफ्रीका में जनसंख्या की विकास दर दुनिया में सबसे ज़्यादा है और यहां ऊर्जा संसाधनों की सबसे कम खोज की गई है. सऊदी अरब अफ्रीका में अपने व्यावसायिक और कूटनीतिक संपर्क में एक व्यापक सांस्कृतिक और सामाजिक पहलू को जोड़ते हुए अपने धार्मिक सॉफ्ट पावर को मज़बूत करना चाहता है. वास्तव में कई तरह के अवसर के क्षेत्र हैं जिन्हें सऊदी अरब के विज़न 2030 और अफ्रीकन एजेंडा 2063 को मिलाते समय तलाशा जा सकता है. इस मायने में शिखर सम्मेलन अफ्रीका की तरफ सऊदी की विदेश नीति के लिए एक ऐतिहासिक पल हो सकता है. दूसरी तरफ ये दोस्ती अफ्रीका के विकास और सहयोग के लिए नए रास्ते भी खोल सकती है. ये देखा जाना अभी बाकी है कि सऊदी-अफ्रीका संबंध का विस्तार किस हद तक होता है लेकिन ये साफ है कि सऊदी ऐसे संबंध में बहुत ज़्यादा निवेश कर रहा है जिसके बारे में उसे उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में ये आर्थिक और राजनीतिक हिसाब से महत्वपूर्ण साबित होगा. 


समीर भट्टाचार्य विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन में सीनियर रिसर्च एसोसिएट हैं.

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