बेकाबू लग रहे गाज़ा और यूक्रेन युद्ध, जिसके व्यापक असर की गूंज न सिर्फ क्षेत्रीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सुनाई दे रही है, को लेकर अब ये साफ है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधार का समय आ गया है. वैश्विक असुरक्षा की भावना को बढ़ाने वाले इन संघर्षों ने UNSC को वस्तुत: हाशिये पर धकेल दिया है. UNSC ने पिछले दिनों एक और संस्थागत झटके का अनुभव किया है. हाल के दिनों में गाज़ा युद्ध को लेकर दुश्मनी को घटाने के मक़सद से एक प्रस्ताव को नाकाम कर दिया गया. इसने UNSC के असरदार न होने को उजागर किया है. (इन संघर्षों के शुरू होने के बाद पहली बार परिषद ने दुश्मनी कम करने के उद्देश्य से 15 नवंबर 2023 को एक प्रस्ताव का समर्थन किया)
ये उस वक्त हो रहा है जब दुनिया बहुध्रुवीय अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था बनाने की प्रक्रिया में है; अन्य बदलाव के बीच एक भू-राजनीतिक परिवर्तन तेज़ी से परिषद के मिशन के अनुसार UNSC के P5 (परमानेंट 5) के ज़ोर को रोक रहा है. ये अभी तक का सबसे साफ संकेत भी है कि UNSC को महाशक्तियों की भागीदारी के नतीजतन नुकसान की कीमत चुकाने के लिए खड़ा किया जा रहा है जो कि लगता है डायनासोर की तरह विलुप्त हो गई है.
हाल के दिनों में गाज़ा युद्ध को लेकर दुश्मनी को घटाने के मक़सद से एक प्रस्ताव को नाकाम कर दिया गया. इसने UNSC के असरदार न होने को उजागर किया है.
सुरक्षा परिषद के परंपरागत ठेकेदारों के लिए ये महसूस करने का सही समय है कि संयुक्त राष्ट्र के इस प्रमुख संगठन को भविष्य की तरफ ले जाने के लिए मौजूदा अंतर-सरकारी बातचीत[1] की प्रक्रिया सार्थक रूप से L69 देशों के समूह की प्रमुख मांगों को शामिल करें . L69 ऐसा समूह है जिसमें अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, कैरिबियन, पैसिफिक आइलैंड और एशिया के देश शामिल हैं. ये मांगें निम्नलिखित हैं:
- सदस्यता की दोनों श्रेणियों- स्थायी और अस्थायी- में परिषद का विस्तार क्योंकि इससे UNSC के भौगोलिक प्रतिनिधित्व, वैधता और असर को बढ़ावा मिलेगा. (छोटे द्वीपीय विकासशील देशों यानी SIDS में से एक देश को बदल-बदलकर सदस्यता देने का मामला भी उठाया गया.)
- परिषद में सदस्यता के साथ विकासशील देशों की बड़ी भूमिका जो कि एक समान भौगोलिक प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने से जुड़ा है, ख़ास तौर पर इसलिए क्योंकि ये कम नुमाइंदगी या बिना नुमाइंदगी वाले क्षेत्रों और समूहों से जुड़ा है. (ये परिषद की सदस्यता की दोनों श्रेणियों के संबंध में है.)
दूसरे संदर्भ में बहुप्रतीक्षित सुधार के दृष्टिकोण से ‘छोटे देशों का संरक्षण और सुरक्षा’ शीर्षक वाले UNGA के प्रस्ताव के अनुसार UNSC पर कैरेबियाई देशों का बहुत अधिक भरोसा है.
- सैद्धांतिक तौर पर अंतर-सरकारी बातचीत की प्रक्रिया तय समय सीमा को ध्यान में रखते हुए एक संगठित विषय वस्तु के बारे में विषय वस्तु आधारित वार्ता की सुविधाजनक स्थिति से जुड़ी चर्चा के दृष्टिकोण के साथ देखना चाहिए.
मोटे तौर पर UNSC में सुधार को निम्नलिखित पांच मुद्दों के साथ लिया जाता है:
1. सदस्यता से जुड़ी श्रेणी;
2. P5 सदस्यों को मिला वीटो पावर;
3. क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व;
4. एक विस्तारित सुरक्षा परिषद अपने काम-काज के तौर-तरीकों से नहीं बल्कि आकार के हिसाब से क्या पैदा करती है; और
5. UNSC और UN महासभा (UNGA) के बीच संबंध.
कैरिकॉम समूह के 14 संप्रभु छोटे द्वीपीय विकासशील देशों (SIDS), जिनमें से ज़्यादातर एंग्लोफोन (जहां ज़्यादातर लोगों के द्वारा अंग्रेज़ी बोली जाती है) सदस्य हैं जिन्होंने 1960 से 1980 के बीच स्वतंत्रता हासिल की है और जो एक समान विदेश नीति के हित/चुनौतियां साझा करते हैं, का UNSC में बहुत कुछ दांव पर है. ऐसा इसलिए है क्योंकि सुरक्षा परिषद उनकी सामूहिक सुरक्षा रणनीति के केंद्र में है (इससे भी बढ़कर ऐसे संस्थान की कोई भी नाकामी उनकी अपनी सुरक्षा क्षमताओं को कमज़ोर करती है). इसका एक ताज़ा उदाहरण है अक्टूबर 2023 में UNSC के द्वारा हैती- जो कि कैरिकॉम के दो गैर-एंग्लोफोन सदस्यों में से एक है- के लिए एक ऐतिहासिक अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मिशन को मंज़ूरी देना. इसका उद्देश्य हैती में “बढ़ती गैंग हिंसा को काबू करने और इस अशांत कैरेबियाई देश में सुरक्षा को बहाल करने में पुलिस की मदद” करना था. अक्टूबर 2022 में हैती की सरकार ने पहले अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से सुरक्षा की बहाली के साथ-साथ इस मुश्किल से घिरे देश को अपने चंगुल में लेने वाले मानवीय संकट को ख़त्म करने में मदद की अपील की थी. UNSC की मदद का नतीजा आने में थोड़ा समय लगा और इस बीच में हैती की हालत और भी ख़राब हो गई.
इसके अलावा एक और उदाहरण के ज़रिए कैरिकॉम के सदस्य देश कैरिबिया के शांति का क्षेत्र होने को खोखला करने वाले सैन्य और आर्थिक कदमों को मात देने के मक़सद से UNSC को बेहद महत्वपूर्ण मानते हैं. वेनेज़ुएला की तरफ से गुयाना को लेकर दुस्साहस कैरिबिया की शांति को ख़तरे में डालती है. इस और दूसरे संदर्भ में बहुप्रतीक्षित सुधार के दृष्टिकोण से ‘छोटे देशों का संरक्षण और सुरक्षा’ शीर्षक वाले UNGA के प्रस्ताव के अनुसार UNSC पर कैरेबियाई देशों का बहुत अधिक भरोसा है. ये प्रस्ताव सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र के अन्य ज़रूरी संस्थानों से कहता है कि वो संयुक्त राष्ट्र के काम की पुनर्संरचना और पुनरुद्धार में छोटे देशों के संरक्षण और सुरक्षा पर विशेष ध्यान दें, ख़ास तौर पर संयुक्त राष्ट्र के चार्टर पर विशेष समिति एवं संगठन की भूमिका को मज़बूत करने और “शांति के लिए एक एजेंडा’ शीर्षक वाली 17 जून 1992 की महासचिव की रिपोर्ट की बाद की गतिविधियों के संदर्भ में.
सुरक्षा परिषद में बदलाव का समय
सुरक्षा परिषद में फेरबदल को लेकर सुई घुमाने के मक़सद से प्रक्रियाओं[2] में कैरिकॉम के सदस्य देशों की नज़दीकी भागीदारी के रिकॉर्ड को भी इस UN संस्था के मामलों में उनकी सक्रिय हिस्सेदारी के संदर्भ में देखा जाना चाहिए. इसका एक उदाहरण है सेंट विंसेंट एंड द ग्रेनेडाइंस जो कैरिकॉम के उन मुट्ठी भर सदस्य देशों में से एक है जिन्होंने UNSC के 10 अस्थायी निर्वाचित देशों के तौर पर काम किया है. उसने अपनी छाप छोड़ी है और प्रतिनिधित्व जैसे सुरक्षा परिषद के बड़े सुधार का नेतृत्व किया है. सुरक्षा परिषद के हाल के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम कही जाने वाली व्यवस्था- कूटनीतिक तौर पर इनोवेटिव ‘A3 प्लस वन व्यवस्था’- को लाने और इसके पीछे ख़ुद को मज़बूती से खड़ा करने में सेंट विंसेंट एंड द ग्रेनेडाइंस मददगार था.
अस्तित्व में आने पर इस व्यवस्था ने UNSC पर सेंट विंसेंट एंड द ग्रेनेडाइंस और अफ्रीका के देशों के बीच तालमेल और सहयोग को औपचारिक रूप दिया है. 2024 से गुयाना सुरक्षा परिषद में दो साल के अपने कार्यकाल के साथ इस ज़िम्मेदारी को निभाएगा. (वास्तव में इस पहल की वजह से अफ्रीका को UNSC में एक और सीट मिली है.)
सुरक्षा के संबंध में एक निष्क्रिय UNSC कैरिकॉम के सदस्य देशों के लिए ख़राब संकेत है; संभवत: वो आक्रमण करने वालों को कूटनीतिक और/या राजनीतिक आधार सौंप सकता है.
इस तरह का कूटनीतिक रवैया कैरिकॉम के सदस्य देशों की विदेश नीति को बनाने में एक प्रमुख सिद्धांत के साथ-साथ चलता है: अगर वो भी संबंधित समाधानों को आगे बढ़ाने के मामले में कूटनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण स्थिति में हैं तो सुरक्षा ख़तरों का सामना करने में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेंगे. उदाहरण के तौर पर, इस सोच की वजह से सेंट विंसेंट एंड द ग्रेनेडाइंस ने 2023 की अवधि के लिए कम्युनिटी ऑफ लैटिन अमेरिका एंड द कैरेबियन स्टेट (CELAC) की अस्थायी अध्यक्षता का फायदा इस समय गुयाना-वेनेज़ुएला के बीच सीमा विवाद पर उच्च-स्तरीय कूटनीति में किया है.
गौर करने वाली बात है कि मुख्य रूप से गुयाना और वेनेज़ुएला के अपने समकक्षों को संबोधित 9 दिसंबर की अपनी चिट्ठी में सेंट विंसेंट एंड द ग्रेनेडाइंस के प्रधानमंत्री राल्फ गोंसाल्वेस ने इस बात की तरफ ध्यान दिलाया था कि 14 दिसंबर को उनके देश में राष्ट्रपति स्तर की एक बैठक होगी. ये बैठक CELAC और कैरिकॉम के तत्वावधान में आयोजित की गई थी जिसका उद्देश्य गुयाना और वेनेज़ुएला के बीच सीमा विवाद के परिणामस्वरूप उठे मामलों पर ध्यान देना था.
ये घटनाक्रम उस पृष्ठभूमि में हुआ जिसके तहत वेनेज़ुएला ने इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) के फैसले का सम्मान नहीं किया. 1 दिसंबर के फैसले में ICJ ने कहा था कि इस विवाद से जुड़े दोनों पक्ष कोई भी ऐसी कार्रवाई नहीं करें जिससे विवादित क्षेत्र में यथास्थिति में बदलाव आए. वेनेज़ुएला के द्वारा सैन्य कार्रवाई की धमकी ने गुयाना को ये मामला UNSC में ले जाने के लिए मजबूर कर दिया. सेंट विंसेंट एंड द ग्रेनेडाइंस के प्रधानमंत्री गोंसाल्वेस के शब्दों में कहें तो “सीमा विवाद से जुड़ी हाल की घटनाओं और परिस्थितियों” ने पिछले दिनों आयोजित एक वर्चुअल बैठक के दौरान कैरिकॉम के राष्ट्र प्रमुखों का ध्यान आकर्षित किया.
संक्षेप में कहें तो गुयाना और कैरिकॉम मौजूदा समय में वेनेज़ुएला से अपनी संप्रभुता और प्रादेशिक अखंडता या राजनीतिक स्वतंत्रता पर सुरक्षा से जुड़े एक ख़तरे का सामना कर रहे हैं. एस्सेक्विबो पर अपने दावे को लेकर वेनेज़ुएला अब नए सिरे से ख़तरनाक हो रहा है. गुयाना ने ICJ से तुरंत राहत की मांग की जो कि गुयाना-वेनेज़ुएला सीमा विवाद के मामले को देख रहा है. ये स्थिति तब है जब परंपरागत तौर पर UN इस मामले पर नज़र रख रहा है.
इन सभी बातों को देखते हुए संबंधित कैरिकॉम के देशों के अपेक्षाकृत छोटे आकार- जो बड़े समकक्ष देशों की बराबरी नहीं कर सकते- की वास्तविकता उनकी सामूहिक सुरक्षा रणनीति में एक असरदार UNSC को सबसे बड़ा मुद्दा बनाती है.
निष्कर्ष ये है कि करीब 80 साल पहले UN की स्थापना, जो उस समय के हिसाब से सही फैसला था, करके अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने अराजक वैश्विक व्यवस्था को अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के रास्ते पर लाने का काम किया. वैसे तो UN की स्थापना के इरादे पर कई बार सवाल उठे लेकिन धीरे-धीरे बहुपक्षवाद को लेकर ये ऐतिहासिक प्रयोग “संघर्ष और प्रतिस्पर्धा की तरफ” अलग-अलग देशों की विशेष सोच की परीक्षा से गुज़रा है. अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के विषय में यथार्थवादी विचारधारा के अनुसार इस बर्ताव का अगर कोई एक कारण है तो वो है सुरक्षा के लिए अलग-अलग देशों की तलाश की व्यस्तता. इसे कहने की आवश्यकता है क्योंकि सुरक्षा वो मुद्दा है जिसके ज़रिए छोटे और बड़े देश एक साथ अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को देखते हैं और छोटे देश बड़े देश से कम नहीं हैं.
सुरक्षा के संबंध में एक निष्क्रिय UNSC कैरिकॉम के सदस्य देशों के लिए ख़राब संकेत है; संभवत: वो आक्रमण करने वालों को कूटनीतिक और/या राजनीतिक आधार सौंप सकता है. (संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव दिवंगत कोफी अन्नान के शब्दों में कहें तो इन देशों को अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में कूटनीति से बहुत कम फायदा होने की उम्मीद है, इसे बढ़ाने की कोशिश में UNSC की “दृढ़ता और ताकत” के लिए उचित सहारा मौजूद नहीं है.) कुल मिलाकर ये देश सुरक्षा परिषद की वैधता, असर और अपने फैसलों को लागू करने के प्रति अटूट प्रतिबद्धता को बनाए रखने पर निर्भर हैं.
इतिहास की सबसे बड़ा विडंबनाओं में से एक ये है कि जिस सुरक्षा परिषद को मित्र राष्ट्रों के तत्कालीन राजनेताओं के द्वारा बनाया गया था वो समकालीन अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में कुछ सबसे छोटे देशों के लिए एक जीवन रेखा (लाइफलाइन) है. अपने उद्देश्य को पूरा करने के हिसाब से उपयुक्त सुरक्षा परिषद कैरिकॉम के सुरक्षा हितों के लिए सबसे सक्षम और सही है जिसे उस स्तर पर वास्तव में केवल तीसरे पक्षों के माध्यम से ही बरकरार रखा जा सकता है क्योंकि उसके सदस्य देशों का आकार बहुत छोटा है.
आगे की राह
जहां तक बात UNSC में सुधार की है तो कैरिकॉम सिर्फ एक मॉडल का समर्थन करता है: दोनों श्रेणियों में विस्तार. इस हिसाब से परिषद के स्तर पर बदलाव के लिए प्रतिनिधित्व महत्वपूर्ण है. ये कैरिकॉम जैसे उत्तर-औपनिवेशिक देशों (जो देश दूसरे विश्व युद्ध के बाद आज़ाद हुए) से मेल खाता है. ऐसे देशों के लिए मौजूदा समय के हिसाब से UNSC साम्राज्यवादी अतीत की निशानी और याद है. कुछ लोग कहेंगे कि ये बीते हुए युग का ‘अवशेष’ है. वास्तव में UNSC की संरचना “अब वैश्विक भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को नहीं दिखाती है.”
ऐसे में UNSC सुधार को लेकर दिखावा करना कारगर नहीं है. कैरिकॉम के सदस्य देशों के दृष्टिकोण से उपरोक्त विश्लेषण को ध्यान में रखते हुए ऐसा करना अपने भविष्य पर दांव लगाना है. अंत में, ऐसा करने से इस तथ्य का भी खुलासा होगा कि कुछ ऐसे देश भी हैं जो UNSC के द्वारा UN चार्टर के संरक्षण को गंभीरता से लेने के लिए कम प्रतिबद्ध हैं. अगर इस बात पर विचार किया जाए कि अराजक वैश्विक व्यवस्था की नाकामी की वजह से UN चार्टर को मुख्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लिया जाता है तो ये अपनी ही हार है.
नंद सी. बरदुलई त्रिनिदाद और टोबैगो में यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टइंडीज (UWI) के सेंट ऑगस्टीन कैंपस में इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस (IIR) में डिप्लोमैटिक एकेडमी ऑफ द कैरेबियन में मैनेजर हैं.
[1] i.e. Intergovernmental Negotiations on the question of equitable representation on and increase in the membership of the Security Council and other related matters to the Security Council, or IGN.
[2] For a useful online resource that contextualizes and traces the evolution of the IGN over a 25 year period, please refer to Handbook on Security Council Reform: 25 Years of Deliberations. The L69 is behind this resource document, which was published in 2018.
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