Union Budget 2022-23: इस बज़ट में एक सुदूरवर्ती दवा रूपी ‘अमृत’ की तलाश
इससे पहले कभी भी अगले 25 वर्षों की योजनाओं के साथ केंद्रीय बज़ट पेश नहीं किया गया था लेकिन इस साल ऐसा हुआ है. भारतीय स्वतंत्रता की शताब्दी वर्ष के रूप में “अमृत काल” की गढ़ी हुई शब्दावली को देखते हुए, वित्त मंत्री (एफएम) ने भारत@100 के लिए एक भव्य दृष्टिकोण का जिक्र अपने बज़टीय भाषण में किया. इस शानदार कोशिश की किसी और वक़्त में पर्याप्त सराहना की जा सकती थी लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति किसी भी स्वतंत्र पर्यवेक्षक को आशंकाओं से भर देता है. इसमें दो राय नहीं है कि दुनिया अभी भी एक युगांतकारी महामारी की चपेट में है, विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं अभी भी इसके प्रभाव में हैं और भारत इस स्थिति में अपवाद नहीं है. ऐसे में कम से कम इस तरह की भव्य परियोजनाओं की घोषणा का यह वक़्त थोड़ा असामयिक लगता है.
दुनिया अभी भी एक युगांतकारी महामारी की चपेट में है, विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं अभी भी इसके प्रभाव में हैं और भारत इस स्थिति में अपवाद नहीं है. ऐसे में कम से कम इस तरह की भव्य परियोजनाओं की घोषणा का यह वक़्त थोड़ा असामयिक लगता है.
इन परिस्थितियों में, जॉन मेनार्ड कीन्स, जो 20 वीं सदी के सबसे महान अर्थशास्त्रियों में से एक थे, उनकी बार-बार दोहराई जाने वाली बात को याद करने से रोका नहीं जा सकता कि – “लेकिन यह लंबा दौर मौजूदा मामलों के लिए भ्रामक है. लंबे समय में, हम सब मर चुके होते हैं. अर्थशास्त्री अगर तूफ़ान के मौसम में सिर्फ़ यह बताते हैं कि जब तूफ़ान बहुत लंबा हो जाता है तो समुद्र फिर से सपाट होता है तो यह बेहद आसान है.” कीन्स ने यह बातें 1923 में प्रकाशित “ए ट्रैक्ट ऑन मॉनेटरी रिफ़ॉर्म” में लिखी थी.
बज़ट में शामिल किए गए 25 साल के वक़्त के लिए विज़न स्टेटमेंट दरअसल यह मानता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था विकास की पटरी पर फिर से दौड़ने लगी है. केंद्र सरकार की राजस्व प्राप्तियां, कर और गैर-कर दोनों, पिछले साल के बज़ट अनुमानों से अधिक हो गई हैं – जो इस साल के जीएसटी संग्रह में सुधार की वजह से है (तालिका 1). इसलिए इस वित्तीय वर्ष में बज़ट राजस्व अनुमानों (बीई) को पीछे छोड़ना, अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने का एक मज़बूत संकेत माना जा रहा है.
TABLE 1: Budget at a glance (in INR crore and % of GDP) |
|
2021-22
Budget Estimates
|
2021-22
Revised Estimates
|
2022-23
Budget Estimates
|
Revenue Receipts |
1788424 |
2078936 |
2204422 |
(a) Tax Revenue (net to centre) |
1545396 |
1765145 |
1934771 |
(b) Non-tax Revenue |
243028 |
313791 |
269651 |
Capital Receipts |
1694812 |
1691064 |
1740487 |
Total Receipts |
3483236 |
3770000 |
3944909 |
Total Expenditure |
3483236 |
3770000 |
3944909 |
(a) On Revenue Account |
2929000 |
3167289 |
3194663 |
of which – |
|
|
|
Interest Payments |
809701 |
813791 |
940651 |
Grants in Aid for creation of capital assets |
219112 |
237685 |
317643 |
(b) On Capital Account |
554236 |
602711 |
750246 |
Revenue Deficit |
1140576
(5.1)
|
1088352
(4.7)
|
990241
(3.8)
|
Fiscal Deficit |
1506812
(6.8)
|
1591089
(6.9)
|
1661196
(6.4)
|
* Deficit figures in parenthesis are as a percentage to GDP.
Source: Budget documents, 2022-23
|
सरकारी राजस्व में वृद्धि से उत्साहित, राजस्व घाटा अब संशोधित अनुमानों में सकल घरेलू उत्पाद का 4.7 प्रतिशत है जबकि 2021-22 के बज़ट दस्तावेज़ में राजस्व घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 5.1 प्रतिशत होने का अनुमान है. कुल व्यय अब 2021-22 में कुल प्राप्तियों से 37.7 लाख करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान (आरई) से मेल खाता है, लेकिन इस वित्तीय वर्ष में ब्याज़ भुगतान में वृद्धि हुई है लेकिन पूंजीगत व्यय में भी वृद्धि दर्ज़ की गई है. बज़ट भाषण में पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी को साल 2047 में समृद्ध भारत की दिशा में पहला कदम बताया गया है. साल 2021-22 के संशोधित अनुमान (तालिका 1) में पूंजीगत व्यय 602,711 करोड़ रुपये है. हालांकि, इस आंकड़े में पिछली देनदारियों को कम करने के लिए एयर इंडिया को दिए गए ऋण भी शामिल हैं, जो परिसंपत्तियों द्वारा देय नहीं हैं, जिसका आंकड़ा 51,971 करोड़ रुपए है. इसे छोड़कर संशोधित अनुमान में पूंजीगत व्यय भी 550,740 करोड़ रुपये अनुमानित है जो बज़ट अनुमान से 554,236 करोड़ रुपये कम है.
राजस्व प्राप्ति में वृद्धि का इस्तेमाल आवंटन के आनुपातिक बढ़ोतरी में किया जा सकता था, ख़ास तौर पर स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे सामाजिक क्षेत्र को लेकर ख़र्च में इसका इस्तेमाल किया जा सकता था लेकिन बजाए इसके, इस फायदे की स्थिति का उपयोग राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 6.9 प्रतिशत के बीई लक्ष्य के आसपास रखने के लिए किया गया.
राजस्व प्राप्ति में वृद्धि का इस्तेमाल आवंटन के आनुपातिक बढ़ोतरी में किया जा सकता था, ख़ास तौर पर स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे सामाजिक क्षेत्र को लेकर ख़र्च में इसका इस्तेमाल किया जा सकता था लेकिन बजाए इसके, इस फायदे की स्थिति का उपयोग राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 6.9 प्रतिशत के बीई लक्ष्य के आसपास रखने के लिए किया गया. साल 2022-23 में बीई का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 6.4 प्रतिशत पर अनुमानित है – जो साल 2025 – 26 तक राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.5 फ़ीसदी तक रखने के व्यापक लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ रहा है.
संक्षेप में, बज़ट में कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था संकट के दौर से बाहर निकल चुका है भले ही कोरोना महामारी अभी पूरी तरह ख़त्म नहीं हुआ है. राजस्व में बढ़ोतरी को ही इसका सबूत माना जा रहा है और घाटे को कम रखना वैकल्पिक घाटे के वित्तपोषण की धारणा के मुक़ाबले ज़्यादा समर्थन दिया जा रहा है.
क्या भारतीय अर्थव्यवस्था पूरी तरह से महामारी के झटके से उबर चुकी है?
बज़ट भाषण की व्याख्या “महामारी से पहले के स्तर पर वापस आने” के इर्द-गिर्द घूमती रही है लेकिन यहां यह जानना ज़रूरी है कि आख़िर कोरोना महामारी से पहले का स्तर क्या है? हाल के संशोधित अनुमान ने साल 2019-20 में जीडीपी विकास दर को घटाकर 3.7 प्रतिशत कर दिया है. जबकि साल 2015-16 से जीडीपी विकास दर गिरती रही है और यह 2019-20 में सबसे कम थी और यही “कोरोना महामारी से पहले का स्तर” है.
TABLE 2: Share in GDP and growth rates of 2021-22 GDP components with respect to 2019-20 components (in %) |
|
2021-22 Growth Rate with respect to 2019-20 (%) |
Share in GDP (%) |
2019-20 |
2021-22 |
Private Final Consumption Expenditure (PFCE) |
-2.9 |
57.1 |
54.8 |
Government Final Consumption Expenditure (GFCE) |
10.7 |
10.6 |
11.6 |
Gross Fixed Capital Formation (GFCF) |
2.6 |
32.5 |
32.9 |
Exports |
11.1 |
19.4 |
21.3 |
Imports |
11.8 |
22.8 |
25.1 |
GDP |
1.3 |
100.0 |
100.0 |
* 2019-20 figures are actuals; 2021-22 figures are First Advance Estimates.
Data source: Ministry of Statistics and Programme Implementation (MoSPI)
|
अगर 2021-22 (प्रथम अग्रिम अनुमान) के आंकड़ों की तुलना 2019-20 के “महामारी के पहले के स्तर” के आंकड़ों से की जाए तो दो साल में जीडीपी की वृद्धि दर 1.3 प्रतिशत ही रह जाती है. निवेश (जीएफसीएफ) बमुश्किल 2.6 प्रतिशत बढ़ता हुआ नज़र आता है, जबकि सरकारी व्यय (जीएफसीई) जीडीपी के स्तर को सम्मानजनक बनाए रखने की पूरी कोशिश की है लेकिन निर्यात वृद्धि दर स्थिर रही है – हालांकि अनपेक्षित रूप से ही सही लेकिन आयात बढ़ा है (तालिका 2). इस साल के बज़ट में निर्यात पर ज़्यादा फ़ोकस किसी ढाई दशक की अर्थव्यवस्था की धारणा से ज़्यादा फ़ायदेमंद हो सकता था. तेल की क़ीमतों में वृद्धि के कारण वैश्विक मुद्रास्फीति दबाव अभी भी आयात बिलों पर जोख़िम का संकेत दे रहा है.
साल 2021-22 के सकल घरेलू उत्पाद में पीएफसीई का हिस्सा 54.8 प्रतिशत है, जो 2019-20 में 57.1 प्रतिशत की तुलना में कम है और इस तथ्य की पुष्टि करता है. यह अर्थव्यवस्था में घटती मांग और कम होती क्रय शक्ति की ओर इशारा करता है.
हालांकि, सबसे महत्वपूर्ण चीज उपभोग (पीएफसीई) है. विकास दर अभी भी -2.9 प्रतिशत पर नकारात्मक स्तर पर ही है जो इस बात का प्रमाण है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अभी भी पटरी पर वापस नहीं लौटी है और एक सतत विकास के रास्ते पर अभी इसे पहुंचना बाकी है. साल 2021-22 के सकल घरेलू उत्पाद में पीएफसीई का हिस्सा 54.8 प्रतिशत है, जो 2019-20 में 57.1 प्रतिशत की तुलना में कम है और इस तथ्य की पुष्टि करता है. यह अर्थव्यवस्था में घटती मांग और कम होती क्रय शक्ति की ओर इशारा करता है. उदाहरण के लिए, दोपहिया वाहनों की निरंतर कमज़ोर होती मांग, इसका एक और संकेत है.
मनरेगा के लिए आवंटन को साल 2021-22 के संशोधित अनुमान में 98,000 करोड़ रुपये से घटाकर 2022-23 बज़ट अनुमान में 73,000 करोड़ रुपये करना सरकार की उस धारणा को बताता है कि, अर्थव्यवस्था वापस पटरी पर लौटने लगी है लेकिन असलियत यही है कि अर्थव्यवस्था में संकट, अमीर-ग़रीब और औपचारिक-अनौपचारिक के बीच बढ़ती दरार के साथ, कल्याणकारी योजनाओं की मदद से आम लोगों को कुछ राहत सुनिश्चित की जा सकती है लेकिन दुर्भाग्य है कि सरकार ने 25 साल बाद आने वाले भविष्य पर अपनी नज़रें गड़ाने का फ़ैसला किया है.
ओआरएफ हिन्दी के साथ अब आप Facebook, Twitter के माध्यम से भी जुड़ सकते हैं. नए अपडेट के लिए ट्विटर और फेसबुक पर हमें फॉलो करें और हमारे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें. हमारी आधिकारिक मेल आईडी [email protected] के माध्यम से आप संपर्क कर सकते हैं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.