Published on Sep 28, 2021 Updated 0 Hours ago

भारत को यमन के साथ अपने दशकों पुराने रिश्तों और लोगों से लोगों के बीच के जुड़ावों को और आगे बढ़ाना चाहिए.

यमन के साथ भारत के रिश्तों की पड़ताल

मध्य पूर्व के क्षेत्र में भारतीय विदेश नीति से जुड़े रिसर्च में अक्सर इस इलाक़े की बड़ी ताक़तों पर ही ध्यान दिया जाता है. इनमें खाड़ी के देशों के अलावा इज़राइल, ईरान और तुर्की शामिल हैं. इस दायरे में अपेक्षाकृत छोटे देशों के साथ भारत के द्विपक्षीय रिश्तों को अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है.

इस लेख में इसी कमी को पूरा करने की कोशिश करते हुए भारत और यमन के रिश्तों का संक्षिप्त परिचय देने का प्रयास किया गया है. यमन फ़िलहाल गृह युद्ध की चपेट में है. संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और सऊदी अरब द्वारा समर्थित मौजूदा अब्दुर राबी सरकार और ईरान द्वारा समर्थित ज़ायदी शिया कबीले हूती के बीच 2014 से गृह युद्ध के हालात बने हुए हैं. इस लेख में भारत और यमन के बीच के संबंधों के इतिहास, भारत में यमन के सरोकारों और भविष्य में सहयोग के अवसरों की पड़ताल कर दोनों देशों के रिश्तों के बारे में संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया गया है. इसके लिए भारतीय विदेश मंत्रालय के आर्काइव, यमन और भारत में रहने वाले यमनियों के बारे में लेखक के निजी अनुभवों, शैक्षणिक निबंधों और समाचार लेखों का सहारा लिया गया है.

यमन फ़िलहाल गृह युद्ध की चपेट में है. संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और सऊदी अरब द्वारा समर्थित मौजूदा अब्दुर राबी सरकार और ईरान द्वारा समर्थित ज़ायदी शिया कबीले हूती के बीच 2014 से गृह युद्ध के हालात बने हुए हैं. 

संक्षिप्त इतिहास

यमन के साथ भारत के रिश्तों का सीधा-सादा मगर गहरा इतिहास रहा है. दोनों देशों के बीच के संबंध 2000 साल से भी ज़्यादा पुराने हैं. भारत के दक्षिणी तटवर्ती इलाक़ों और यमन के दक्षिणी तटों के बीच सदियों पुराना कारबारी संपर्क रहा है. यमन के अरब निवासी भारत से दूसरे सामानों के साथ-साथ मसालों ख़ासतौर से मिर्च, नारियल और मोतियों का आयात करते रहे हैं. सातवीं शताब्दी में इस्लाम के उदय के साथ अदन और मुकल्ला जैसे अहम ठिकानों से आने वाले कई अरब कारोबारियों ने अपने मजहब का प्रचार करते हुए केरल और दक्षिणी कर्नाटक के कई हिस्सों में मस्जिदों की स्थापना की.

उसके बाद हैदराबाद, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे भारत के दूसरे हिस्सों के लोगों ने भी यमन के साथ अपने मज़बूत रिश्ते बनाने शुरू कर दिए. मिसाल के तौर पर कई पारसी कारोबारियों के यमन के साथ बड़े गहरे ताल्लुक़ात रहे थे. इतना ही नहीं अपनी फ़ौजी महारत के लिए मशहूर यमनी सैनिक नाना फडणवीस जैसे मराठा राजाओं के लिए भी काम करते थे. 16वीं सदी में इन सैनिकों ने हैदराबाद के निज़ाम की भी ख़िदमत की थी. आगे चलकर हरीसा जैसे यमनी पकवानों को भी हिंदुस्तानी रंग-रूप में पेश किया जाने लगा. आज इसे हलीम के नाम से जाना जाता है. इससे साफ़ है कि यमन और भारत के बीच खान-पान और संस्कृति का भी आदान-प्रदान हुआ है.

भारत और यमन के बीच के ऐतिहासिक रिश्तों का सबसे बड़ा पड़ाव 1830 के दशक के आख़िर में अदन के बंदरगाह पर ब्रिटेन की फ़तह के बाद आया. उसके बाद कई पारसी व्यापारियों ने कारोबार के लिए यमन का रुख़ करना शुरू कर दिया था. 1950 के दशक के अंत में रिलायंस ग्रुप के संस्थापक धीरूभाई अंबानी ने यमन में कुछ समय बिताने के बाद अपने विशाल कारोबारी साम्राज्य की नींव रखी थी. समय के साथ-साथ 3 लाख से भी अधिक भारतीय यमन में जाकर बस चुके हैं. इसी तरह भारत के विभिन्न हिस्सों में करीब एक लाख यमनी रहते हैं.

1962 में यमन के दक्षिणी और 1967 में यमन के उत्तरी हिस्सों को मान्यता देने वाले शुरुआती देशों में भारत भी शामिल रहा है. आगे चलकर 1990 के दशक में दोनों देशों का एकीकरण हो गया था.  

ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन ने यमनी अवाम में भी ऊर्जा का संचार किया था. महात्मा गांधी, सरोजिनी नायडू जैसे अनेक भारतीय आंदोलनकारियों ने ब्रिटेन जाते हुए रास्ते में यमन की जनता को संबोधित किया था. 1962 में यमन के दक्षिणी और 1967 में यमन के उत्तरी हिस्सों को मान्यता देने वाले शुरुआती देशों में भारत भी शामिल रहा है. आगे चलकर 1990 के दशक में दोनों देशों का एकीकरण हो गया था. हाल के समय की बात करें तो 2010 के मध्य में भारत ने यमन के फ़ार्मास्यूटिकल और तेल और गैस उद्योग में तक़रीबन 3 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश किया था. हालांकि यमन में गृह युद्ध छिड़ जाने के बाद इस निवेश में भारी गिरावट आ गई.

यमन में भारत के हित और सरोकार

बेशक़ यमन भारत की मध्य पूर्व/पश्चिम एशिया नीति के केंद्र में नहीं है, लेकिन इसके बावजूद इस इलाक़े में भारतीय दृष्टिकोण से यमन को एक निश्चित अहमियत हासिल है. ऐतिहासिक तौर पर यमन (दक्षिणी और उत्तरी दोनों) उन देशों में शामिल रहा है जिनकी ओर भारत ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया था. पिछली लगभग आधी सदी में साम्राज्यवादी ताक़तों से आज़ादी पाने वाले पूर्व उपनिवेशों से हिंदुस्तान ने ऐसे दोस्ताना रिश्ते कायम किए थे. इसी कड़ी में भारत ने दोनों यमनी देशों को अक्सर अनेक तरह की मदद मुहैया कराई. इसके अलावा यमनी नागरिकों को सूचना प्रौद्योगिकी, कृषि, विज्ञान, अंग्रेज़ी समेत अन्य क्षेत्रों में स्कॉलरशिप भी प्रदान किए गए. इसी का नतीजा है कि आज यमन के कई छात्र बेंगलुरु और औरंगाबाद के कई हिस्सों में बसे हुए हैं. बदले में यमन अक्सर संयुक्त राष्ट्र जैसे विश्व मंचों में भारत का समर्थन करता रहा है. इतना ही नहीं यमन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की मांग का भी समर्थन किया है.

भारत द्वारा यमन के साथ इस तरह के रिश्तों ने व्यापक अरब और मुस्लिम संसार के साथ जुड़ावों में भी अपना रोल निभाया है. हालांकि शीत युद्ध से पहले के कालखंड में दूसरे अरब/मुस्लिम देशों के साथ भारत के रिश्ते डांवाडोल रहे थे लेकिन उस समय भी यमन के साथ भारत के दोस्ताना संबंध कायम थे. नतीजतन यमन इस्लामिक देशों के संगठन (ओआईसी) में अक्सर भारत का समर्थन किया करता था. ग़ौरतलब है कि कश्मीर के मुद्दे के चलते इस संगठन का रुख़ अक्सर भारत के प्रति पूर्वाग्रह से भरा होता था. हाल के वर्षों में भारत में अरब दुनिया के साथ जुड़ने की इच्छा और मज़बूत हुई है. इसी का नतीजा है कि यमनी गृह युद्ध में हूतियों के ख़िलाफ़ लड़ने वाले 700 से भी ज़्यादा सैनिकों को मेडिकल सहायता पहुंचाने की ज़िम्मेदारी भारत ने स्वीकार की. अब्दुर राबी हुकूमत की ओर से लड़ने वाले इन सैनिकों को मेडिकल मदद देने की ये ज़िम्मेदारी भारत ने यूएई की तरफ़ से उठाई.

भूसामरिक दृष्टिकोण से देखें तो यमन सामरिक रूप से अहम दो प्रमुख नौसैनिक बिंदुओं के क़रीब बसा है. इनमे से एक बिंदु है बाब अल-मंडेब जो हॉर्न ऑफ़ अफ़्रीका और यमन के दक्षिणी छोर के बीच है. इस लिहाज़ से दूसरा प्रमुख केंद्र होर्मुज़ स्ट्रेट है, जिसके क़रीब सोकोट्रा द्वीप मौजूद है. 

भूसामरिक दृष्टिकोण से देखें तो यमन सामरिक रूप से अहम दो प्रमुख नौसैनिक बिंदुओं के क़रीब बसा है. इनमे से एक बिंदु है बाब अल-मंडेब जो हॉर्न ऑफ़ अफ़्रीका और यमन के दक्षिणी छोर के बीच है. इस लिहाज़ से दूसरा प्रमुख केंद्र होर्मुज़ स्ट्रेट है, जिसके क़रीब सोकोट्रा द्वीप मौजूद है. दुनिया में तेल कारोबार के क़रीब 30 फ़ीसदी हिस्से समेत तमाम दूसरी वस्तुओं का सामुद्रिक व्यापार इन्हीं दोनों बिंदुओं से होकर गुज़रता है. कारोबारी नज़रिए से इस पूरे इलाक़े की अहमियत की वजह से यहां की सुरक्षा भारत के लिए बेहद अहम है. यही वजह है कि भारत और यमन दोनों ही समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देने वाले संगठन हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (आईओआरए) के सदस्य हैं.

बेशक़ यमन आर्थिक तौर पर सऊदी अरब या ईरान जैसा बड़ा खिलाड़ी नहीं है लेकिन वहां तेल और गैस के भंडार मौजूद हैं. 2006 से रिलायंस जैसी भारतीय कंपनियों ने यमन के तेल और गैस क्षेत्र में भारी-भरकम निवेश किया है. हालांकि यमन में जारी राजनीतिक हालातों के चलते हाल में ही में इन भारतीय कंपनियों को यमन में अपनी मौजूदगी को त्यागने या निवेश से हाथ वापस खींचने पर मजबूर होना पड़ा है. हालांकि गृह-युद्ध शांत हो जाने के बाद यमन में भारत के लिए मौजूद अपार आर्थिक संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता.

भारत-यमन रिश्तों की भावी संभावनाओं का आकलन

यमन में 2015 के बाद से ही गृह युद्ध भड़क रहा है. ऐसे में यमन के साथ अपने जुड़ावों को लेकर भारत ने एक लंबा नज़रिया अपना रखा है. मध्य पूर्व में टकरावों से जुड़े विभिन्न मसलों में भी भारत ने ज़ाहिर तौर पर ग़ैरतरफ़दारी वाले रुख़ का ही पालन किया है. मोटे तौर पर यमन के संदर्भ में भी आधिकारिक रूप से भारत शांति कायम करने की वक़ालत करता रहा है. हालांकि भारत के रुख़ से ऐसा लगता है कि वो यमन के मामले में उसके मित्र देशों यूएई और सऊदी अरब के रुख़ के साथ जुड़ाव रखता है. भारत द्वरा यूएई समर्थित सैनिकों का इलाज किए जाने से ऐसा प्रतीत होता है कि वो यमन की मौजूदा सरकार के साथ खड़ा है.

यूएई और सऊदी अरब के साथ सहयोग की नीति से भारत को अपनी आतंकवाद विरोधी एजेंडे को आगे बढ़ाने में भी मदद मिली है. अपनी नीतियों के चलते भारत इस मसले पर यमन के साथ जुड़ाव रखते हुए उसे और बाक़ी दोनों देशों को ज़रूरी सलाह दे सकता है. यमन अरब प्रायद्वीप में अल-क़ायदा (एक्यूएपी) का ठिकाना है. ये गुट अल-क़ायदा का सबसे ताक़तवर हिस्सा और इस्लामिक स्टेट का यमनी धड़ा है. एक्यूएपी इससे पहले भारतीय मुसलमानों को भारत सरकार के ख़िलाफ़ बग़ावत के लिए उकसाने की नाकाम कोशिश कर चुका है. ज़ाहिर है भारत में उसकी दाल नहीं गल सकी और उसकी दलीलों की ओर आम तौर पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया. फिर भी भविष्य में अगर ये संगठन यमन में अपनी मौजूदगी बढ़ाने में कामयाब रहता है तो भारत को इसे लेकर सतर्क रहना होगा.

 भारत द्वरा यूएई समर्थित सैनिकों का इलाज किए जाने से ऐसा प्रतीत होता है कि वो यमन की मौजूदा सरकार के साथ खड़ा है.  

बहरहाल बीतते वक़्त के साथ भारत ये उम्मीद करेगा कि यमन में संघर्ष का दौर थम जाए. टकराव-मुक्त यमन भारत के लिए बेहतर है क्योंकि तब भारत वहां अपनी आर्थिक मौजूदगी बढ़ा सकेगा. ख़ासतौर से भारत तेल और गैस के क्षेत्र में अपनी गतिविधियों का विस्तार कर सकेगा. इसके साथ ही कृषि से जुड़े मसलों में भी जुड़ाव बढ़ाए जा सकेंगे. इतना ही नहीं भारत गृह युद्ध के ख़ात्मे के बाद पुनर्निर्माण से जुड़े कार्यों में भी यमन की मदद करने के बारे में सोच सकता है. इससे यमन की जनता के साथ-साथ यूएई और सऊदी अरब के साथ हिंदुस्तान के रिश्तों में गर्मजोशी बढ़ाने में मदद मिलेगी.

इतना ही नहीं जंग के बाद यमनी नागरिकों को स्वास्थ्य सुविधाएं और शिक्षा हासिल करने के मकसद से भारत आने के लिए भी प्रोत्साहित किया जा सकता है. भारत का निजी स्वास्थ्य क्षेत्र बेहद व्यवस्थित और अपेक्षाकृत सस्ता है. दुनिया के कई देशों के लोग इलाज कराने के लिए भारत आते हैं. ऐसे में अरबी बोलने वाले पेशेवरों को इस क्षेत्र में जोड़े जाने से यमनी मरीज़ों के मेज़बान के तौर पर भारत की छवि में और निखार आएगा. इतना ही नहीं यमनी लोगों के बीच भारतीय फ़िल्में बेहद लोकप्रिय हैं. यमन के सैलानियों के लिए हिंदुस्तान एक आकर्षक मुल्क है. ख़ुद लेखक ने भी इन बातों को अनुभव किया है. ऐसे में कोविड महामारी के बाद के कालखंड में पर्यटन के क्षेत्र में और भी ज़्यादा संभावनाएं पैदा होती हैं. ज़ाहिर है कि ऐसे कई क्षेत्र हैं जिनमें यमन के साथ अपने भावी संबंधों में भारत और क़रीबी ला सकता है.

निष्कर्ष

पिछले पांच दशकों से भी ज़्यादा के कालखंड में यमन के साथ भारत के रिश्ते बेहद गहरे और स्थायित्व से भरे रहे हैं. इन संबंधों के पीछे दोनों देशों में मौजूद उपनिवेशवाद-विरोधी भावनाओं, समुद्री सुरक्षा, संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी आकांक्षाओं और आर्थिक विचारों का हाथ रहा है. इतना ही नहीं ख़ासतौर से यूएई और सऊदी अरब के संदर्भ में इन रिश्तों की भूसामरिक नज़रिए से काफ़ी अहमियत है.

मध्य पूर्व के इलाक़े में हिंदुस्तान की ताक़त को आगे बढ़ाने के लिहाज़ से यमन एक अहम कड़ी है. ग़ौरतलब है कि खाड़ी के बाक़ी देशों के साथ भारत के रिश्तों में मजहब की बजाए सामरिक विचारों का महत्व रहा है. यमन के साथ हिंदुस्तान के संबंधों से भी यही बात साबित होती है. बेशक़ विदेश नीति से जुड़े भारत के जुड़ावों में सैन्य शक्ति का कोई स्थान नहीं होता. बहरहाल जंग के बाद यमन की सहायता और पुनर्निर्माण में मदद करने से भारत को मध्य पूर्व में अपनी मज़बूत छवि बनाने में काफ़ी मदद मिलेगी. इन मकसदों को हक़ीक़त में बदलने के लिए भारत को यमन के साथ अपने दशकों पुराने रिश्तों और लोगों से लोगों के बीच के जुड़ावों को और आगे बढ़ाना चाहिए.

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