Published on Feb 02, 2024 Updated 0 Hours ago

सोमालीलैंड और इथियोपिया के बीच हालिया समझौते ने इस साल पहले ही हॉर्न ऑफ अफ्रीका में उतार-चढ़ाव वाले अंतरराज्यीय संबंधों की रूपरेखा गढ़ दी है.

सोमालीलैंड के साथ इथियोपिया के बंदरगाह समझौते और उसके भू-राजनीतिक प्रभावों की पड़ताल

हॉर्न ऑफ अफ्रीका में साल 2024 की शुरुआत सियासी उथल-पुथल के साथ हुई. नए साल के पहले ही दिन इथियोपिया के प्रधानमंत्री अबी अहमद ने सोमालिया से अलग हुए क्षेत्र सोमालीलैंड के राष्ट्रपति मूसे बिही आब्दी के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया. ये सौदा चारों ओर से ज़मीन से घिरे इथियोपिया को लाल सागर के साथ सीधा वाणिज्यिक और सैन्य पहुंच उपलब्ध कराएगा. समझौते के मुताबिक, सोमालीलैंड अदन की खाड़ी में एक सैन्य बंदरगाह और अपनी 20 किमी तटरेखा को 50 वर्षों के लिए इथियोपिया को पट्टे पर देने पर राज़ी हुआ है. बदले में सोमालीलैंड को इथियोपिया द्वारा एक संप्रभु राज्यसत्ता के रूप में मान्यता दी जाएगी और उसे इथियोपिया के प्रमुख वाहक इथियोपियन एयरलाइंस में शेयरों का एक हिस्सा हासिल होगा. इस तरह सोमालीलैंड को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता देने वाला इथियोपिया अफ्रीका का पहला देश बन गया है. अंतरराष्ट्रीय मान्यता से वंचित एक और स्वशासित क्षेत्र ताइवान दुनिया का पहला देश था जिसने सोमालीलैंड को मान्यता दी थी.  

सोमालीलैंड को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता देने वाला इथियोपिया अफ्रीका का पहला देश बन गया है. अंतरराष्ट्रीय मान्यता से वंचित एक और स्वशासित क्षेत्र ताइवान दुनिया का पहला देश था जिसने सोमालीलैंड को मान्यता दी थी.  

लाल सागर तक पहुंच को लेकर इथियोपिया की जद्दोजहद

समुद्र तक तत्काल पहुंच से जुड़ी इथियोपिया की दीर्घकालिक ज़रूरत को पूरा करता ये सौदा पहली नज़र में एक कूटनीतिक कामयाबी लगती है. इरिट्रिया की स्वतंत्रता के बाद से लाल सागर पर स्थित जिबूती बंदरगाह इथियोपिया के सबसे अहम व्यापार मार्ग के रूप में कार्य करता रहा है. हालांकि जिबूती, बंदरगाह शुल्क के रूप में इथियोपिया से सालाना 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर की रकम वसूलता है, जिसके चलते इथियोपिया पड़ोसी इरिट्रिया, सूडान, सोमालीलैंड और केन्या में अन्य विकल्पों की तलाश के लिए प्रेरित हुआ है. इरिट्रियाई बंदरगाहों पर दोबारा शुल्क-मुक्त पहुंच हासिल करने को लेकर इरिट्रिया के साथ 2018 में हुए शांति समझौते का इथियोपिया में उम्मीदों के साथ स्वागत किया गया. सोमालिया के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद अब्दुल्लाही मोहम्मद के साथ सोमालिया के चार बंदरगाहों पर इथियोपिया के साथ साझा निवेश की भी घोषणाएं हुई थीं. अगस्त 2023 में इथियोपिया के परिवहन और रसद मंत्री अलेमु सिमे ने केन्या के लामु बंदरगाह का दौरा भी किया था. हालांकि इनमें से किसी भी बंदरगाह का इस्तेमाल करने की इथियोपिया की योजना अब तक सिरे नहीं चढ़ पाई है.  

तथ्य ये है कि इथियोपिया 2005 से ही बर्बेरा और पोर्ट सूडान पर नज़रें जमाए हुए है. हालांकि इथियोपिया अनेक चुनौतियों के चलते जिबूती से पूरी तरह से मुंह मोड़ने में नाकाम रहा, जिनमें रसद संबंधी समस्याएं और सोमालिया के साथ टकराव की आशंका प्रमुख हैं. संयुक्त अरब अमीरात की रसद प्रबंधन कंपनी डीपी वर्ल्ड के साथ एक क़रार के तहत इथियोपिया ने 2018 में बर्बेरा बंदरगाह में 19 प्रतिशत हिस्सेदारी अर्जित की. उस समय सोमालिया ने इस सौदे को अवैध ठहराया था. हालांकि, इथियोपिया अपने दायित्वों को पूरा करने में नाकाम रहा और आख़िरकार उसे अपना हिस्सा छोड़ना पड़ा. 

2023 में तब सब कुछ बदल गया जब इथियोपिया के प्रधानमंत्री ने ये घोषणा की कि चारों ओर से भूमि से घिरे उनके देश को तक़रीबन 12 करोड़ इथियोपियाई लोगों के ‘भौगोलिक कारागार’ को तोड़ना होगा. उन्होंने आगे बताया कि लाल सागर तक पहुंच ‘अस्तित्व से जुड़ा मसला’ है. उन्होंने इसे जनसांख्यिकीय संबंधों से जोड़ा जो तीसरी सदी के अक्सुम साम्राज्य तक जाते हैं. हालांकि अबी अहमद ने अपने भाषण में युद्ध के ज़िक्र से परहेज़ किया, लेकिन लाल सागर में इरिट्रिया के बंदरगाहों पर इथियोपिया के भू-क्षेत्रीय दावों का समर्थन करने वाले उनके सम्मिलनवादी बयानों ने आगे टकरावों की संभावना के बारे में चिंताएं बढ़ा दीं. अब जबकि इथियोपिया कूटनीतिक रूप से अपना लक्ष्य हासिल करने में कामयाब रहा है, तो अल्प अवधि में इथियोपिया और इरिट्रिया के बीच एक और युद्ध की संभावना को ख़ारिज किया जा सकता है.  

सोमालिया के राष्ट्रपति ने इथियोपिया और सोमालीलैंड से समझौते को वापस लेने का अनुरोध भी किया. हालांकि, ना तो सोमालीलैंड और ना इथियोपिया ही उस समझौते से हाथ खींचने को तैयार है जिसे ऐतिहासिक कहा गया है. 

फिर भी, ये समझौता किसी भी तरह से इलाक़े में अमन-चैन का उत्प्रेरक नहीं है. इसकी बजाए, इस क़रार ने पहले से ही इस अस्थिर क्षेत्र में अनिश्चितता के स्तर को और बढ़ा दिया है. सोमालिया ने इसे अपनी संप्रभुता का खुला उल्लंघन बताते हुए इथियोपिया से अपने राजदूत को वापस बुला लिया है. इतना ही नहीं, 6 जनवरी को सोमालिया के राष्ट्रपति हसन शेख महमूद ने समझौते को रद्द करने वाले विधेयक पर हस्ताक्षर कर दिए. सोमालिया के राष्ट्रपति ने इथियोपिया और सोमालीलैंड से समझौते को वापस लेने का अनुरोध भी किया. हालांकि, ना तो सोमालीलैंड और ना इथियोपिया ही उस समझौते से हाथ खींचने को तैयार है जिसे ऐतिहासिक कहा गया है. 

समझौते के संभावित निहितार्थ

सोमालीलैंड हॉर्न ऑफ अफ्रीका के विस्तृत क्षेत्र में सोमालिया के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में स्थित है. हज़ारों लोगों की जान लेने वाले ख़ूनी अलगाववादी संघर्ष के बाद 1991 में सोमालीलैंड को वास्तविक आज़ादी हासिल हुई थी. निरंतर गृह युद्ध में उलझे पड़ोसी सोमालिया के विपरीत सोमालीलैंड में तुलनात्मक स्थिरता बनी रही और इसने 30 से भी ज़्यादा वर्षों से अपनी अलग पहचान बनाए रखी है. फ्रीडम हाउस के मुताबिक केन्या और सोमालीलैंड पूर्वी अफ्रीका के दो ऐसे देश हैं जो राजनीतिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रताओं के मामले में आज़ाद हैं. फिर भी, सोमालीलैंड को किसी देश द्वारा आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी गई है.

सच्चाई ये है कि हॉर्न ऑफ अफ्रीका में अक्सर नज़रअंदाज़ किए जाने वाले इस क्षेत्र ने तब अंतरराष्ट्रीय जगत का ध्यान खींचा जब ताइवान ने आश्चर्यजनक रूप से 2020 में सोमालीलैंड के साथ अपने औपचारिक रिश्तों का एलान किया. बेशक़, इथियोपिया के लिए सोमालीलैंड एक महत्वपूर्ण रणनीतिक परिसंपत्ति है, क्योंकि इसके पास 850 किमी लंबी तटरेखा है जो अदन की खाड़ी में रणनीतिक रूप से स्थित है. ये समुद्री डाकुओं की समस्याओं से मुक्त है और बाब अल-मंडेब का प्रवेश स्थान भी इसके दायरे में आता है, जो वैश्विक व्यापार के एक तिहाई हिस्से द्वारा उपयोग किया जाना वाला चोकप्वॉइंट है.

ये समझौता पारस्परिक रूप से फ़ायदेमंद दिखाई देता है. इस क़रार के तहत, इथियोपिया एक सैन्य अड्डा और एक वाणिज्यिक समुद्री क्षेत्र स्थापित करेगा और बदले में सोमालीलैंड के साथ सैन्य और ख़ुफ़िया जानकारी साझा करेगा. आतंकवाद और समुद्री डाकुओं के प्रसार ने इस क्षेत्र को असुरक्षित बना दिया है. इतना ही नहीं, गाज़ा पट्टी में इज़रायल के आक्रामक तेवर के जवाब में हूती विद्रोहियों ने हाल ही में लाल सागर में जहाज़ों पर हमलों को अंजाम दिया. बाब अल-मंदेब जलसंधि (स्ट्रेट) के रणनीतिक महत्व को देखते हुए इस सौदे से लाल सागर के क्षेत्र में सुरक्षा बढ़ने का नतीजा भी सामने आ सकता है. 

लाल सागर पर भू-राजनीतिक खींचतान

निश्चित रूप से इस समझौते से लाल सागर क्षेत्र के प्रमुख किरदार संयुक्त अरब अमीरात (UAE) को लाभ होगा, जिसके इथियोपिया और सोमालीलैंड, दोनों के साथ दोस्ताना रिश्ते हैं. 2016 में, सोमालीलैंड की सरकार ने बर्बेरा बंदरगाह के विस्तार और आधुनिकीकरण के लिए दुबई स्थित बंदरगाह संचालक डीपी वर्ल्ड के साथ 30 साल का रियायत क़रार किया. इसके अलावा, अबू धाबी फंड फॉर डेवलपमेंट (ADFD) सोमालीलैंड को इथियोपिया के भीतरी इलाक़ों के साथ जोड़ने वाले बर्बेरा गलियारे के प्रधान कोषदाताओं में से एक है. बर्बेरा गलियारे का एक आर्थिक केंद्र के रूप में कायापलट हुआ है. एक प्रमुख आर्थिक मोड़ बताकर इस घटनाक्रम की सराहना की गई है. शायद UAE इस क़रार के पक्ष में एक प्रभावशाली किरदार था.

हालांकि भू-राजनीतिक नज़रिए से ये समझौता विस्फोटक मालूम होता है, जिसके चलते अनेक स्टेकहोल्डर्स में असंतोष पैदा हो रहा है. सर्वप्रथम, अपने तट के पास तैनात इथियोपियाई बेड़े का विचार इरिट्रिया के लिए भारी चिंता का सबब होगा. जिबूती भी संतुष्ट नहीं होगा, क्योंकि इस सौदे के चलते उसे राजस्व का भारी नुक़सान होगा. इस समझौते से शायद सऊदी अरब और मिस्र के भी नाराज़ होने की आशंका है क्योंकि ये लाल सागर पर नियंत्रण की जंग में UAE को उनसे आगे कर सकता है.

चीन ने पहले ही श्यू बिंग को हॉर्न ऑफ अफ्रीका में अपना विशेष दूत नियुक्त कर दिया है और चीन द्वारा इस समझौते के ख़िलाफ़ कूटनीतिक दबाव बढ़ाने की उम्मीद है. 

चीन पहले से ही इस इलाक़े की घटनाओं, ख़ासतौर से ताइवान और सोमालीलैंड की नज़दीकियों से चिढ़ा हुआ था. ताइवान ने अगस्त 2020 में सोमालीलैंड की राजधानी हरगेईसा में अपना वास्तविक दूतावास स्थापित किया, और जवाब में सोमालीलैंड ने सितंबर 2020 में ताइपे में अपना प्रतिनिधि कार्यालय खोला. अमेरिकन एंटरप्राइज़ इंस्टीट्यूट के एक हालिया अध्ययन के मुताबिक सोमालीलैंड के लास एनोड इलाक़े में हाल में भड़की अशांति अफ्रीका में चीन का पहला छद्म युद्ध है. चीन ने पहले ही श्यू बिंग को हॉर्न ऑफ अफ्रीका में अपना विशेष दूत नियुक्त कर दिया है और चीन द्वारा इस समझौते के ख़िलाफ़ कूटनीतिक दबाव बढ़ाने की उम्मीद है. 

आख़िरकार, ये सौदा दुश्मनी और सैन्य टकराव के लंबे इतिहास वाले दो देशों इथियोपिया और सोमालिया के बीच राजनयिक रिश्तों को ख़तरे में डालता है. इथियोपिया का सोमाली क्षेत्र ओग्डेन, 1960 में सोमालिया की स्वतंत्रता से लेकर शीत युद्ध के ख़ात्मे तक दोनों देशों के बीच ख़ूनी टकराव का केंद्र था. हालांकि इस वक़्त सैन्य हस्तक्षेप की संभावना दिखाई नहीं देती, लेकिन सोमालिया ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) और व्यापक अंतरराष्ट्रीय समुदाय से हस्तक्षेप की गुहार लगाई है.   

हक़ीक़त ये है कि इस क़रार के मद्देनज़र अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम (UK), यूरोपीय संघ (EU), इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC), और अरब लीग, सब ने इथियोपिया से इस समझौते से हटने का अनुरोध किया है और सभी पक्षों से मतभेदों को सुलझाने के लिए रचनात्मक वार्ता में शामिल होने का आग्रह किया गया है. इसके बावजूद, इथियोपिया और सोमालीलैंड आलोचना से अप्रभावित नज़र आते हैं और समझौते पर क़ायम रहने की ठान चुके हैं.  

क्षेत्र के लिए अनिश्चितता से भरा 2024

चारों ओर से ज़मीन से घिरे इथियोपिया की लाल सागर वाली समस्या इरिट्रिया के साथ उसके 20 साल के सीमा युद्ध वाले काल से चली आ रही है. 2000 में संघर्ष विराम के बावजूद, दोनों देशों की दुश्मनी जस की तस रही और इथियोपिया फिर कभी मसावा और असाब बंदरगाहों का इस्तेमाल नहीं कर सका. इस समझौते के साथ इथियोपिया समुद्र तक पहुंच सुरक्षित करने और बंदरगाहों तक अपनी पहुंच में विविधता लाने में कामयाब रहा है. हालांकि समझौते के ब्योरों को आने वाले दिनों में पूरक बैठकों में अंतिम रूप दिया जाएगा, लेकिन इस घोषणा ने इस साल पहले ही हॉर्न ऑफ अफ्रीका में उतार-चढ़ाव भरे अंतरराज्यीय संबंधों की रूपरेखा गढ़ दी है.

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