Published on Feb 03, 2021 Updated 0 Hours ago

वित्तमंत्री ने 20,000 करोड़ रुपये की पूंजी से नये विकास वित्तीय संस्थान (डीएफआई) की स्थापना के लिए विधेयक पेश किया. ये संस्थान 5 लाख करोड़ तक का कर्ज़ दे सकता है.

बजट 2021 को समझिए: इंफ्रास्ट्रक्चर, इनोवेशन और स्वच्छ ऊर्जा की तरफ़

कोविड के बाद भारत के पहले वित्तीय रोडमैप के तौर पर केंद्रीय बजट 2021-22 में स्वास्थ्य देखभाल पर अनिवार्य ज़ोर के अलावा आर्थिक रिकवरी, विकास और नौकरी के सृजन पर ध्यान देने की उम्मीद की जा रही थी. बजट की घोषणाएं उन उम्मीदों के मुताबिक़ ही थीं. इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च में ज़ोरदार बढ़ोतरी की गई, घरेलू उत्पादन और नौकरी के सृजन पर ध्यान दिया गया और आत्मनिर्भरता पर ज़ोर को चालू रखा गया. सरकार ने स्वच्छ ऊर्जा की तरफ़ परिवर्तन को प्राथमिकता देना जारी रखा. इसके लिए नवीकरणीय ऊर्जा पर ज़्यादा आवंटन किया गया, ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश किया गया और घरेलू सौर और बैटरी उत्पादन को समर्थन दिया गया.

इंफ्रास्ट्रक्चर और इनोवेशन के लिए फंडिंग का नया तरीक़ा

वित्तमंत्री ने 20,000 करोड़ रुपये की पूंजी से नये विकास वित्तीय संस्थान (डीएफआई) की स्थापना के लिए विधेयक पेश किया. ये संस्थान 5 लाख करोड़ तक का कर्ज़ दे सकता है. इसके अलावा नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन का विस्तार करने की भी योजना है. साथ ही इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट और डेट फंड की सीमा और उपयोग का विस्तार करने की भी योजना है. सरकार ये योजना भी बना रही है कि मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर संपत्ति के ज़रिए भी फंड इकट्ठा किया जाए. 50,000 करोड़ रुपये की पूंजी से नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ) की स्थापना की जाएगी ताकि रिसर्च के इकोसिस्टम को मज़बूत बनाया जा सके. डीएफआई और एनआरएफ की संरचना अभी विस्तार से नहीं बताई गई है लेकिन अगर इन नये संस्थानों की प्राथमिकता को देश के पर्यावरणीय विकास के एजेंडा से जोड़ दिया जाए तो भारत को बहुत फ़ायदा होगा. जलवायु के लक्ष्य को हासिल करने में समर्थन के अलावा इससे सरकार को दोनों पहल के लिए वैश्विक तौर पर टिकाऊ वित्त जुटाने में भी मदद मिलेगी जैसा कि हम हाल के रिसर्च में दिखाते हैं.

स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन पर काफ़ी ज़ोर

नवीकरणीय ऊर्जा पर ध्यान बना हुआ है. वित्तमंत्री सीतारमण ने सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एसईसीआई) में 1,000 करोड़ रुपये और इंडियन रिन्यूएबल एनर्जी डेवपलमेंट एजेंसी (आईआरईडीए) में 1,500 करोड़ रुपये की अतिरिक्त पूंजी डालने का ऐलान किया है. उन्होंने पर्यावरण के अनुकूल स्रोतों से हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए ‘हाइड्रोजन एनर्जी मिशन’ की शुरुआत करने का भी ऐलान किया. इसका औद्योगिक उत्सर्जन के लिए महत्वपूर्ण मतलब है, ख़ासतौर पर स्टील, सीमेंट और फर्टिलाइज़र सेक्टर में जिसका भारत के कार्बन उत्सर्जन में 11 प्रतिशत योगदान है. ये परिवहन, ख़ासतौर पर लंबी दूरी के परिवहन, के लिए स्वच्छ विकल्प मुहैया कराता है. विस्तृत जानकारी अभी नहीं आई है लेकिन बजट घोषणाओं से लगता है कि भारत कई तरह के इस्तेमाल में स्वच्छ एनर्जी विकल्प की तलाश कर रहा है.

ऊर्जा ट्रांसमिशन में निवेश

बजट की घोषणाओं में भारत के ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर को सुधारने पर भी ज़ोर दिया गया जो नवीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्य को पूरा करने में पिछड़ रहा है. पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (पीजीसीआईएल) इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट के ज़रिए पैसा जुटाने वाली पहली भारतीय सार्वजनिक कंपनी है जो 1.1 अरब अमेरिकी डॉलर का आईपीओ लेकर आ रही है. इसमें 7,000 करोड़ रुपये की मौजूदा संपत्ति का मुद्रीकरण भी शामिल है. आईईईएफए का विश्लेषण बताता है कि नवीकरणीय ऊर्जा की अवशोषण क्षमता को सुनिश्चित करने के लिए ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर में भारत को 60-80 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश करने की ज़रूरत है. भारत की महत्वाकांक्षा अंतर्राष्ट्रीय ग्रिड कनेक्टिविटी की भी है. इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले साल एक दुनिया, एक सूर्य, एक ग्रिड परियोजना का ऐलान किया था. बजट में वितरण इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे स्मार्ट मीटर फीडर सुधार पर भी ध्यान दिया गया जिससे छत की सौर ऊर्जा और सौर सिंचाई पंप से ऊर्जा उत्पादन के वितरण में बढ़ोतरी होगी.

ऊर्जा सुरक्षा के लिए घरेलू उत्पादन

आत्मनिर्भरता पर महत्व को जारी रखते हुए सरकार सोलर पीवी कंपोनेंट और बैटरी के घरेलू उत्पादकों का भी समर्थन कर रही है. भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए स्थानीय क्षमता का निर्माण महत्वपूर्ण है क्योंकि वर्तमान में हम 92%[1] सोलर पैनल कंपोनेंट का आयात कर रहे हैं और लिथियम आयन बैटरी के लिए पूरी तरह आयात पर निर्भर हैं. वैसे तो भारत हमेशा से ऊर्जा के आयात पर निर्भर रहा है लेकिन वो तेल और प्राकृतिक गैस के लिए समुचित रूप से अलग-अलग सप्लाई चेन बनाए रखने में कामयाब रहा है. हालांकि स्वच्छ ऊर्जा की तरफ़ बदलाव से चीन पर निर्भरता बढ़ेगी क्योंकि 2019 में इस सेक्टर के लिए आयात के मामले में चीन की भागीदारी 70% रही. 

सोलर पीवी और बैटरी- दोनों को सरकार की उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना के ज़रिए सब्सिडी मिलेगी जिसका एलान पिछले साल नवंबर में किया गया था और निवेशक पहले से ही सौर ऊर्जा के उत्पादन का विस्तार करने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. वित्तमंत्री ने इसका ज़िक्र भी किया कि सोलर सेल और मॉड्यूल के लिए चरणबद्ध तरीक़े से उत्पादन की योजना का जल्द ऐलान किया जाएगा. घरेलू उत्पादकों को समर्थन की एक गुमराह करने वाली कोशिश है इस बजट में सोलर लालटेन, इन्वर्टर और लिथियम आयन बैटरी पर ज़्यादा आयात शुल्क लगाना. इससे ना सिर्फ़ घरेलू उत्पादकों के लिए प्रतिस्पर्धा कम होगी बल्कि स्थानीय स्तर पर पर्याप्त उत्पादन क्षमता बनाने से पहले शुल्क लगाने से नवीकरणीय ऊर्जा के सेक्टर पर नकारात्मक असर भी पड़ सकता है.

हवा की क्वालिटी और शहरी आवागमन पर ज़्यादा ध्यान

10 लाख से ज़्यादा की आबादी वाले 42 शहरों में हवा की क्वॉलिटी सुधारने के लिए 2,217 करोड़ रुपये आवंटित किए गए. ग्रामीण भारत के लिए वित्तमंत्री ने उज्ज्वला योजना के तहत 100 ज़िलों और एक करोड़ लाभार्थियों को जोड़ने का ऐलान किया. इससे मुफ़्त और सब्सिडी वाले एलपीजी कनेक्शन के ज़रिए स्वच्छ ईंधन को बढ़ावा मिलेगा.

शहरी क्षेत्रों में आवागमन से जुड़े उत्सर्जन को लक्ष्य बनाते हुए वित्तमंत्री ने पुरानी और ज़्यादा ईंधन की खपत वाली गाड़ियों की स्वैच्छिक स्क्रैपिंग का प्रस्ताव दिया. अगर इस प्रस्ताव के साथ ऐसी योजना भी शामिल हो जो ग्राहकों को पुरानी गाड़ियों के बदले इलेक्ट्रिक गाड़ी ख़रीदने के लिए अतिरिक्त प्रोत्साहन देती हो तो इससे इलेक्ट्रिक गाड़ियों की मांग बढ़ सकती है. सार्वजनिक परिवहन, शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर और कूड़ा प्रबंधन को दुरुस्त करने के उपायों के साथ मिलकर ये क़दम ऊर्जा, आवागमन और शहरी बदलाव में सामंजस्य के ज़रिए हरे-भरे शहर बनाने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं.

वैसे तो बजट में स्वच्छ ऊर्जा की तरफ़ ले जाने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर और मैन्युफैक्चरिंग- दोनों पहलुओं पर ज़ोर दिया गया है लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाक़ी है. नये इंफ्रास्ट्रक्चर डीएफआई और रिसर्च फंड की विस्तृत जानकारी अभी नहीं आई है लेकिन उम्मीद की जा रही है कि दोनों मामलों में सरकार का झुकाव पर्यावरण की तरफ़ होगा. इस साल एक नई औद्योगिक नीति की घोषणा होनी है जिसमें कम कार्बन, पर्यावरण के मामले में टिकाऊ उद्योग के लिए रणनीति शामिल होनी चाहिए. भारत के कृषि मज़दूर जलवायु परिवर्तन को लेकर बेहद असुरक्षित बने हुए हैं और जलवायु के मामले में कई तरह के स्मार्ट दखल को अपनाया जा सकता है. भारत के शहरों में बदलाव के लिए हवा की क्वॉलिटी को बेहतर बनाने में सरकार की तरफ़ से आवंटन के आगे भी योजना बनाने की ज़रूरत है. इस साल का मुद्दा स्वाभाविक रूप से सेहत के जोख़िम को काबू में करना था. लेकिन जलवायु का जोख़िम आकाश में मंडरा रहा है और इस पर काबू पाने के लिए ये आख़िरी दशक है.


[1]Lok Sabha Unstarred Question No. 397, dated 19.07.2018

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Authors

Annapurna Mitra

Annapurna Mitra

Annapurna Mitra was Fellow at ORF. She led the Green Transitions Initiative at ORFs Centre for New Economic Diplomacy.

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Tanushree Chandra

Tanushree Chandra

Tanushree Chandra was a Junior Fellow with ORFs Economy and Growth Programme. She works at the intersection of economic research project management and policy implementation. ...

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