Image Source: Getty
पिछले नवंबर में गुवाहाटी शहर प्रशासन को जनता की नाराज़गी झेलनी पड़ी. ऐतिहासिक दिघाली पुखुरी झील के किनारे खड़े सौ साल से ज़्यादा पुराने इक्कीस पेड़ों को काटना शहर में एक प्रस्तावित सड़क निर्माण और फ्लाईओवर परियोजना के लिए ज़रूरी था. इस योजना का विरोध करते हुए लोग सड़कों पर आ गए और रात दिन नागरिक समूह पेड़ो की निगरानी में लगे रहे और जागरूकता फ़ैलाने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग भी किया गया. इस पूरी मुहिम का समर्थन करने के लिए राज्य और देश भर से कई शहर के प्रमुख निवासी और नागरिक आगे आए, जिनमें अभिनेता, गायक, कलाकार और पूर्व राजनेता शामिल थे.
इनमें से कुछ लोगों ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय के मुख़्य न्यायाधीश से इस विषय पर स्वत संज्ञान यानी सुओ मोटो के माध्यम से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया. उनकी दलील थी कि लोक निर्माण विभाग (PWD) के अधिकारियों ने सूचना के अधिकार (RTI) आवेदन के अपने जवाब में स्वीकार किया था कि उन्होंने पेड़ों को गिराने का निर्णय लेने से पहले न तो पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन किया और न ही सार्वजनिक परामर्श किया. उन्होंने अधिकारियों और उच्च न्यायालय को झील और उसके आसपास से जुड़ी ऐतिहासिक प्रासंगिकता और विरासत की याद दिलाई. प्राचीन भारत और महाभारत के साथ-साथ मध्यकाल की बातें आदरणीय न्यायालय के संज्ञान में लाए गए. जब 1671 में मुगलों के ख़िलाफ़ सरायघाट की लड़ाई के दौरान इस स्थान का उपयोग नौसैनिक डॉक के रूप में किया गया था. विरोध प्रदर्शनों की ताकत ने असम के मुख्यमंत्री को इस मामले पर सुलह के लिए बयान देने के लिए मजबूर किया. उन्होंने नागरिकों से अपने प्रदर्शनों को रोकने का आह्वान करते हुए उनसे लोक निर्माण विभाग को वर्तमान योजना के विकल्पों की जांच करने और उनकी व्यवहार्यता के बारे में निर्णय लेने के लिए पर्याप्त समय देने का आग्रह किया. आखिरकार, सरकार द्वारा फ्लाईओवर के रीअलाइनमेन्ट पर निर्णय लेने के बाद उच्च न्यायालय ने इस मामले पर जनहित याचिका (PIL) को बंद किया. इस मामले में नागरिकों की संयुक्त आवाज सरकार पर भारी पड़ी.
गुवाहाटी में हुई घटना को एक छिटपुट अकेला मामला नहीं माना जा सकता. इसी तरह का एक प्रदर्शन 2015 में मुंबई में भी हुआ था जहां नागरिकों ने विकास योजना (DP) के ड्राफ्ट मसौदे के ख़िलाफ़ जोरदार विरोध प्रदर्शन किया था.
गुवाहाटी में हुई घटना को एक छिटपुट अकेला मामला नहीं माना जा सकता. इसी तरह का एक प्रदर्शन 2015 में मुंबई में भी हुआ था जहां नागरिकों ने विकास योजना (DP) के ड्राफ्ट मसौदे के ख़िलाफ़ जोरदार विरोध प्रदर्शन किया था. DP के ड्राफ्ट प्रस्तावों में सार्वजनिक खुले स्थानों (POS) को 4 वर्ग मीटर (m2) से घटाकर 2 वर्ग मीटर (m2) प्रति व्यक्ति करने का सुझाव था. शहर के पर्यावरण प्रेमी समूहों ने यह बात नहीं मानी. पहले से ही ट्रांजिट ओरिएंटेड और अत्यधिक घने क्षेत्रों में ट्रांजिट ओरिएंटेड विकास (TOD) के द्वारा शहरी आबादी का घनत्व बढ़ाने की एक और पहल लागू करने के ख़िलाफ़ नागरिकों की आवाजें बुलंद थी. जेंडर ग्रुप इस बात से असंतुष्ट थे कि जेंडर संबंधी मुद्दों पर अपर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है और हाउसिंग सोसाइटी इस बात से ख़फ़ा थी कि उनकी निजी सड़कों को सार्वजनिक सड़कों में बदलने की कोशिश की जा रही थी. इन विरोधों को देखते हुए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने DP के मसौदे को रद्द करने का फ़ैसला किया. उन्होंने बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) को एक नया DP तैयार करने का आदेश दिया. हाल के समय में, शहर के नागरिक अभियानों ने BMC को कुल 3,000 करोड़ रुपये से अधिक की परियोजनाओं को रद्द करने के लिए मजबूर किया है.
नागरिकों में नाराज़गी
ऐसा लगता है कि बेंगलुरु के निवासियों के बीच भारत में सबसे ज़्यादा असंतोष है. साल 2021 में, पूरे भारत में शहरी स्थानीय निकायों के ख़िलाफ़ 53 मामले दर्ज़ किए गए जिनमें से 18 बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (BBMC) और बेंगलुरु के नगरीय निकायों के ख़िलाफ़ थे. इनमें ख़राब सड़कों, सब-वे में जलभराव और बैंगलोर जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड (BWSSB) से संबंधित काम जैसे ख़राब बुनियादी ढांचे के कारण होने वाली मौतों के मामले शामिल थे. इसके अलावा, नागरिक कार्यकर्ताओं ने एक गैर-सरकारी संगठन नम्मा बेंगलुरु फाउंडेशन (NBF) के साथ मिलकर BBMP को कोरमंगला में "एजीपुरा" से "केंद्रीय सदन" तक एक एलिवेटेड कॉरिडोर बनाने के लिए कई पेड़ों को काटने के अपने प्रस्ताव पर पुनर्विचार करने के लिए याचिका दायर की. उन्होंने इस बात को उठाया कि जब BBMP ने मूल रूप से इस बुनियादी ढांचे का प्रस्ताव दिया था, तो प्रस्तावित पेड़ों की कुल संख्या कम थी जिन्हें काटा जाना थे.
चेन्नई में, नवंबर 2024 में, एक नागरिक संगठन कोरट्टूर एरी पाथू खप्पू मक्कल इयक्कम (KAMPI) जो विशेष रूप से कोरट्टूर झील के संरक्षण से वास्ता रखता है, उसने मोगप्पैर में चेन्नई मेट्रोवाटर कार्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन किया. KAMPI ने प्रदूषण और अंधाधुंध अतिक्रमण के कारण ख़तरे में पड़ी कोरट्टूर झील के सीवेज प्रदूषण के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की. यह संगठन नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देशों का कार्यान्वयन चाहता था, जिसने झील में सीवरेज के बहाव को बंद करने का आदेश दिया था. उस संगठन ने यह भी मांग की कि अतिक्रमणकारी संरचनाओं को सीवर कनेक्शन नहीं दिया जाना चाहिए. इसके अलावा, KAMPI ने अधिकारियों से झील के पास सात सीवेज पंपिंग स्टेशनों को बनाए रखने का आग्रह किया और सीवरेज के पानी को झील में बहने से रोकने के लिए भूमिगत जल निकासी के काम को तेजी से पूरा करने के लिए कहा. प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया और बाद में शाम को उन्हें रिहा कर दिया गया.
सूरत में, शहर के विभिन्न हिस्सों में स्ट्रीट फ़ूड को लेकर नगर निगम के अतिक्रमण के विरोध अभियान में सैकड़ों रेहड़ी-पटरी वालों ने एक रैली निकाली. उन्होंने सूरत नगर निगम आयुक्त को एक ज्ञापन सौंपा जिसमें शहर प्रशासन से आग्रह किया गया कि वे रेहड़ी-पटरी वालों से उनकी रोजमर्रा की रोटी न छीने.
कई मौकों पर, नागरिक समूहों ने परस्पर विरोधी मांगों को भी उठाया है. उदाहरण के लिए, मुंबई के पवई-चांदीवली क्षेत्र आदित्यवर्धन रहेजा विहार रोड के नागरिक फुटपाथ पर अतिक्रमण को लेकर नगर पालिका की निष्क्रियता के ख़िलाफ़ अपनी हताशा व्यक्त करने के लिए सड़कों पर उतर आए. इस बीच, सूरत में, शहर के विभिन्न हिस्सों में स्ट्रीट फ़ूड को लेकर नगर निगम के अतिक्रमण के विरोध अभियान में सैकड़ों रेहड़ी-पटरी वालों ने एक रैली निकाली. उन्होंने सूरत नगर निगम आयुक्त को एक ज्ञापन सौंपा जिसमें शहर प्रशासन से आग्रह किया गया कि वे रेहड़ी-पटरी वालों से उनकी रोजमर्रा की रोटी न छीने.
नगर-निकायों में बदइंतज़ामी
ऊपर बताई गई घटनाएं भारत के शहरों में नागरिकों के असंतोष का केवल एक नमूना है. हालांकि कुछ शहरों को दूसरों की तुलना में कम असंतोष का सामना करना पड़ा है. असंतोष कमोबेश सब जगह है और बढ़ रहा है. ये मुद्दे आमतौर पर पर्यावरण, पानी, सड़कों और परिवहन, बुनियादी ढांचे और नगरपालिका सेवाओं जैसे कचरे के प्रबंधन के साथ-साथ अतिक्रमण और उपद्रव से संबंधित होते हैं. ULBs ज़्यादातर वाकयों में इन चुनौतियों से संतोषजनक रूप से निपटने में असक्षम रहे हैं.
आम तर्क कि निर्वाचित पार्षद अपने राजनीतिक प्रभाव का गलत तरीकों से उपयोग करते हैं और ULB के उचित शासन में बाधा डालते हैं, वह बात असत्य है. स्पष्ट रूप से, नगर निकायों के कुप्रशासन का निदान कुछ और ही है.
स्थिति तब और भी कठिन बन जाती है जब यह तथ्य सामने आता है कि नगर निकायों की आंतरिक हालत बेहद ख़राब है और कर्मचारियों एवं संसाधनों की बढ़ती कमी के कारण वे खुद को मजबूर पाते हैं. हालांकि सलाहकार कुछ नगरपालिका की ज़िम्मेदारियों को संभाल सकते हैं लेकिन ऐसे पेशेवरों को हर काम के लिए नियुक्त नहीं किया जा सकता हैं क्योंकि उन्हें भुगतान करने के लिए पैसों की भी कमी है. इन सब कमियों का कुल प्रभाव यह है कि नगर पालिकाओं द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं की बिगड़ती गुणवत्ता को लेकर नागरिकों का दिन ब दिन असंतोष बढ़ रहा है.
लगभग दो साल पहले कई नगर पालिका के शासन से लोकप्रिय निर्वाचित निकायों को भंग कर दिया गया. इन ULBs में प्रशासक नियुक्त किए गए हैं जिसका मतलब है कि नगर आयुक्त इन जगहों पर अब स्थायी समिति के साथ-साथ नगर निगम की शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं. परिणामस्वरूप, सभी शक्तियां अब एक ही व्यक्ति के हाथों में केंद्रित हैं. हालांकि, ऐसा लगता है कि इससे ULB शासन की गुणवत्ता में कोई ख़ास फ़र्क नहीं आया है और नागरिकों को कोई अतिरिक्त राहत नहीं मिली है. इसलिए आम तर्क कि निर्वाचित पार्षद अपने राजनीतिक प्रभाव का गलत तरीकों से उपयोग करते हैं और ULB के उचित शासन में बाधा डालते हैं, वह बात असत्य है. स्पष्ट रूप से, नगर निकायों के कुप्रशासन का निदान कुछ और ही है.
ULB की ख़राब शासन व्यवस्था की जड़ें बहुत गहरी हैं और जब तक मौलिक सुधार पर विचार नहीं किया जाता है, तब तक यह ठीक नहीं होगा. इन सुधारों में वैधानिक कमजोरियों का उन्मूलन, शासन और योजना में सुधार, अधिक वित्तीय बल और नगरपालिका नेतृत्व के मुद्दे को ठीक करना शामिल है. इस तरह की एक बड़ी कवायद के बगैर नगरपालिका निकाय गिरती व्यवस्था और बढ़ती सार्वजनिक हताशा और आक्रोश के पुतले के रूप में नज़र आते हैं.
(रामनाथ झा ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में एक डिस्टिंगुइशेड/विशिष्ट फेलो है. ऊपर लिखित विचार लेखक (लेखकों) के स्वयं के है. )
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.