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यूक्रेन को अपने सहयोगियों को इस बात के लिए राज़ी करना होगा कि भले ही उनके देशों में सत्ता परिवर्तन हो लेकिन उन्हें यूक्रेन को सैन्य, वित्तीय और अन्य सहयोग जारी रखना चाहिए.
रूस के साथ चल रहे युद्ध का दूसरा साल समाप्त होने के बाद यूक्रेन के सामने चुनौतियां और भी बढ़ गई है. ऐसे में उसका भविष्य अस्पष्ट दिखाई दे रहा है. एक और जहां यूक्रेन का जवाबी हमला विफ़ल साबित हुआ है वहीं दूसरी ओर पश्चिमी देशों का कीव को दिए जाने वाले समर्थन को लेकर संदेह के बदल मंडराने लगे हैं. इस स्थिति ने पुतिन के आत्मविश्वास को बढ़ा दिया है.
पिछले वर्ष युद्ध के दौरान दोनों पक्षों को कुछ ख़ास सफ़लता नहीं मिली. ऐसे में रूस ने ‘वॉर ऑफ एट्रिशन’ की नीति को अपनाया है. यानी वह युद्ध को खींचने की नीति पर काम कर रहा है. उसे उम्मीद है कि यूक्रेन को मिलने वाला पश्चिमी देशों का समर्थन धीरे-धीरे कम हो जाएगा. अर्थात पश्चिमी देश मदद करते-करते थक जाएंगे. पुतिन को पश्चिमी देशों की लोकतांत्रिक व्यवस्था की कमज़ोरियां भली-भांति पता है. वे जानते हैं कि पश्चिमी देश अपने नागरिकों की मांग और इच्छाओं के आगे आसानी से झुक जाते हैं. पश्चिमी देशों में रूस जैसी स्थिति नहीं है, जहां नागरिकों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति की उपेक्षा करने के बावजूद कोई आवाज़ नहीं उठती है. यह नीति कुछ हद तक कारगर दिखाई दे रही है क्योंकि पिछले वर्ष कुछ यूरोपिय देशों में हुए चुनावों में वे लोग सत्ता में आए हैं, जो कीव को सहायता करने का विरोध कर रहे हैं. इसी प्रकार यूक्रेन की सीमा पर पोलैंड के किसानों ने गतिरोध खड़े कर दिए है. उनकी मंशा न केवल कृषि सामग्री, बल्कि अन्य सामग्री का भी यूक्रेन में होने वाले मुक्त आवागमन को रोकना है.
क्रेमलिन के लिए US में हो रहे राष्ट्रपति पद के चुनाव का प्रचार भी अतिरिक्त उत्साह पैदा करने वाला साबित हुआ है. अमेरिकी चुनाव के दौरान यूक्रेन एक मुख्य मुद्दा बनकर उभरा था. ऐसे में अमेरिकी संसद ने यूक्रेन को दी जाने वाली नई वित्त सहायता के पैकेज को रोक दिया.
क्रेमलिन के लिए US में हो रहे राष्ट्रपति पद के चुनाव का प्रचार भी अतिरिक्त उत्साह पैदा करने वाला साबित हुआ है. अमेरिकी चुनाव के दौरान यूक्रेन एक मुख्य मुद्दा बनकर उभरा था. ऐसे में अमेरिकी संसद ने यूक्रेन को दी जाने वाली नई वित्त सहायता के पैकेज को रोक दिया. यह सहायता रोके जाने की वज़ह से यूक्रेन को युद्ध के मोर्चे पर मिल रहे हथियारों की सप्लाई प्रभावित हुई. इसकी वज़ह से पिछले 10 वर्षों से यूक्रेन के कब्ज़े में रहा शहर अवदिव्का उसके हाथ से फ़िसल गया. रूस को पिछले वर्ष स्प्रिंग के मौसम में बखमूत शहर में जो सफ़लता मिली थी उसके बाद उसे अवदिव्का के रूप में सबसे बड़ी सफ़लता मिली है.
डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में वापस आने की संभावना को देखते हुए यह चिंता बढ़ गई है कि अमेरिका यूक्रेन को सहायता देना जारी रखेगा या नहीं. इसके साथ ही इस बात को लेकर के भी चिंता जताई जा रही है कि यूरोप की सुरक्षा को लेकर अमेरिका का रुख़ क्या होगा. फरवरी के अंत में हुई म्युनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस में इस बात को लेकर निराशाजनक माहौल था. यूरोपीय नेताओं ने उस स्थिति पर भी विचार किया था कि उन्हें रूस के ख़िलाफ़ युद्ध अमेरिकी सहायता और समर्थन के बगैर ही आगे लड़ना पड़ेगा. इसके अलावा यूरोपीय देशों की राजधानी में निकट भविष्य में NATO देशों और रूसी महासंघ के बीच युद्ध की संभावना को लेकर भी चिंता का माहौल है. हताशा और निराशा के माहौल को दूर करने के लिए म्युनिख कांफ्रेंस के पश्चात फ्रांस के राष्ट्रपति ने 26 फरवरी को 20 यूरोपीय नेताओं को पेरिस में आमंत्रित किया था. वहां इन नेताओं ने “यूक्रेन को समर्थन” जारी रखने के मसले पर बातचीत की. फ्रांस के राष्ट्रपति ने इस बात से भी “इंकार नहीं किया है कि वह भविष्य में यूक्रेन की सहायता के लिए अपने सैनिकों को युद्ध के मोर्चे” पर भेजेंगे. इसके बावजूद सभी सहयोगी देशों के बीच इस बात को लेकर एकमत नहीं है.
कील इंस्टीट्यूट फॉर द वर्ल्ड इकोनामी से निकलकर आए लेटेस्ट डाटा के अनुसार अमेरिका की ओर से यूक्रेन को दी जाने वाली सहायता के मुकाबले यूरोप कहीं ज़्यादा सहायता यूक्रेन को दे रहा है.
इसराइल और हमास के बीच चल रहा युद्ध, हूती विद्रोहियों द्वारा किए गए हमले और आमतौर पर वैश्विक अस्थिरता के कारण रूस के लिए एक लाभदायक स्थिति पैदा हो गई है. इस स्थिति में विश्व का ध्यान रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध से हटकर विश्व के अन्य संघर्षों पर चला गया है. यूक्रेनी मूल के अमेरिकी इतिहासकार टिमोथी स्नाइडर ने वर्तमान स्थिति को एक ‘फ्रैग्मेंटेड वर्ल्ड वॉर’ यानी बिखरा हुआ विश्व युद्ध करार दिया है. हालांकि वैश्विक मुख्य धारा बड़ी मात्रा में चल रहे संघर्षों के बीच अंतर संबंध देखने को तैयार नहीं है. अधिकांश संघर्ष हाल ही में एक के बाद एक शुरू हुए हैं और अब वैश्विक हाइब्रिड वार का स्वरूप लेते जा रहे हैं.
वर्तमान स्थिति को लेकर यूक्रेन में चिंता का माहौल है. राष्ट्रपति जेलेंस्की इस बात पर बल देते हैं कि अमेरिकी सहयोग का जारी रहना उनके लिए बेहद महत्वपूर्ण है. उनका मानना है कि ऐसा दो बिंदुओं के कारण महत्वपूर्ण है. पहला बिंदु यह है कि अमेरिकी वित्तीय सहायता यूक्रेन को मिलती रहनी चाहिए. और दूसरा बिंदु यह है कि अमेरिकी नेतृत्व भी यूक्रेन के पक्ष में बना रहे. कील इंस्टीट्यूट फॉर द वर्ल्ड इकोनामी से निकलकर आए लेटेस्ट डाटा के अनुसार अमेरिका की ओर से यूक्रेन को दी जाने वाली सहायता के मुकाबले यूरोप कहीं ज़्यादा सहायता यूक्रेन को दे रहा है. ऐसा न केवल सहायता को लेकर की गई प्रतिबद्धता के मामले में है बल्कि यूक्रेन को प्रत्यक्ष भेजी गई सहायता विशेष के बारे में भी यह बात सच है. इसके अलावा EU के यूक्रेन फैसिलिटी प्रोग्राम के तहत वर्ष 2024-2027 के बीच 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता देने की गारंटी भी है. हालांकि EU की ओर से की गई प्रतिबद्धता और यूक्रेन को सहायता देने के लिए किए गए प्रावधान के बीच काफ़ी अंतर दिखाई देता है. (अब तक 144 बिलियन यूरो देने का वादा किया गया था, लेकिन इसके लिए महज 77 बिलियन यूरो का प्रावधान किया गया है). 2024 में अमेरिका की ओर से दी जाने वाली सैन्य सहायता के बराबर पहुंचने के लिए यूरोप को सहायता के अपने वर्तमान स्तर को दुगना करना होगा. इसके अलावा उसे हथियारों से जुड़े सहयोग की गति को भी बढ़ाना होगा.
लेकिन एक समस्या यह भी है कि यूक्रेन को यूरोप उतनी मात्रा में आवश्यक हथियारों की आपूर्ति नहीं कर पाएगा जितने हथियार अमेरिका मुहैया करवाता था. इसका कारण यह है कि एक और जहां रूस 2014 तक अपनी सैन्य क्षमताओं को पुख़्ता करने में जुटा हुआ था वहीं यूरोपीय देशों ने इसी दौरान अपने हथियारों के ख़र्च में कटौती करने और सुरक्षा के लिए अमेरिकी सहयोग पर निर्भर होने की नीति पर काम किया. यहां तक की जब रूस ने क्राइमिया पर कब्जा कर लिया तब भी ये देश शांति का सपना देखते रहे और अपने सैन्य बजट को बढ़ाने में हिचकिचाते रहे. वर्तमान में ये सहयोगी देश अपने यहां सैन्य बजट को बढ़ा कर हथियारों की उत्पादन क्षमता को भी बढ़ा रहे हैं. ताकि वे अपनी सुरक्षा को मज़बूत करने के साथ यूक्रेन को भी हथियारों की आपूर्ति कर सके. वे हथियारों के निर्माण की क्षमता को बढ़ा रहे हैं, ताकि अमेरिका की ओर से आई हथियारों की आपूर्ति की कमी के कारण उपजी ख़ामी से निपटा जा सके. इस स्थिति से निपटने का एक ही तरीका है जिसमे कई तरीके शामिल है जिन्हें लागू करके इस स्थिति से निपटा जा सकता है. जैसे यूरोपियन देश अपने आरक्षित हथियारों को बाहर निकले या किसी तीसरे देश से हथियारों का आयात करें और अपने यहां पर भी हथियारों के उत्पाद को गति प्रदान करें. इसके लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति और तत्काल निर्णय क्षमता की ज़रुरत है.
यूक्रेन की ओर से पिछले वर्ष किए गए जवाबी हमले को मिली विफलताओं से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या यह है कि कुछ पश्चिमी देशों और ख़ासकर यूरोपीय देश के नेताओं को अभी भी यह बात समझ में नहीं आई है कि युद्ध के मोर्चे पर पर्याप्त सैन्य सहायता समय पर पहुंचाना कितना ज़रूरी होता है.
म्युनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस के दौरान डेनिश प्राइम मिनिस्टर मेटे फ्रेडरिक्सेन ने कहा कि यूक्रेन को वित्तीय सहायता प्रदान करने की जिम्मेदारी यूरोपियन्स को स्वयं उठानी होगी. उन्होंने कहा कि यूक्रेन को दी जाने वाली वित्तीय सहायता से जुड़ी समस्या का हल निकालने के लिए अमेरिकी निर्भरता से आगे बढ़ कर यूरोप को ख़ुद की सुरक्षा के बारे में सोचना होगा, क्योंकि यह युद्ध यूरोपीय महाद्वीप की धरती पर लड़ा जा रहा है. अपने देश का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि यूरोपियन देशों को हथियार “निर्माण क्षमता में कमी की दुहाई देने की बजाय” अपने-अपने देशों के उन हथियारों को बाहर निकालना चाहिए, जो फिलहाल बगैर उपयोग के पड़े हुए हैं.
यूक्रेन की ओर से पिछले वर्ष किए गए जवाबी हमले को मिली विफलताओं से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या यह है कि कुछ पश्चिमी देशों और ख़ासकर यूरोपीय देश के नेताओं को अभी भी यह बात समझ में नहीं आई है कि युद्ध के मोर्चे पर पर्याप्त सैन्य सहायता समय पर पहुंचाना कितना ज़रूरी होता है. यदि यह समय पर नहीं पहुंची तो इसका कोई उपयोग नहीं होता. यूक्रेन के रक्षा मंत्री रुस्तम उमारोव के अनुसार यूक्रेन को पश्चिमी देशों की ओर से मुहैया करवाए जा रहे आधे से ज़्यादा हथियार समय पर नहीं मिलते. पश्चिमी देशों की ओर से जारी किया गया यह बयान कि वे यूक्रेन को “हर संभव सहायता” मुहैया कराएंगे, अस्पष्ट साबित हुआ है, क्योंकि यूक्रेन को जीत हासिल करने के लिए जो नीति बनाई जानी चाहिए उसका इस बयान में स्पष्ट अभाव दिखाई देता है.
“यूक्रेन. ईयर 2024” फोरम के समक्ष अपनी बात रखते हुए वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने कहा था कि, “यह वर्ष एक निर्णायक मोड़ साबित होगा. ऐसे में हमें संघर्ष में मज़बूती और हिम्मत दोनों की ज़रूरत होगी, ताकि हम युद्ध में बने रहे. मुझे लगता है कि यह युद्ध किस तरह जाकर समाप्त होगा यह बात इस वर्ष तय हो जाएगी.” इसके अलावा यूक्रेन की जीत काफ़ी हद तक पश्चिमी देश और उसके सहयोगियों की ओर से होने वाली हथियारों की आपूर्ति पर ही निर्भर करती है.
यह समझौते उस वक़्त तक जारी रहेंगे जब तक यूक्रेन NATO का सदस्य नहीं बन जाता. इन समझौतों को भविष्य में गठबंधन के सहयोगी के रूप में यूक्रेन को शामिल करने का संकेत भी माना जा रहा है.
यूक्रेन को मिल रही अमेरिकी सहायता में हो रही देरी को देखते हुए यूरोपियन सहयोगी अपने स्तर पर यूक्रेन को आवश्यक सहयोग करने को लेकर सक्रिय हो गए हैं. यूक्रेन के यूरोपीय सहयोगी उसे लंबे समय तक सैन्य सहायता देने के लिए सुरक्षा समझौता पर हस्ताक्षर करते हुए अपनी प्रतिबद्धता दिखा रहे हैं. यूक्रेन ने पहले ही ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, डेनमार्क, इटली, कनाडा और नीदरलैंड के साथ 10 वर्ष के लिए समझौते पर हस्ताक्षर कर लिए हैं. इसके अलावा यूक्रेन 30 अन्य देशों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करने की तैयारी में हैं. इसमें अमेरिका भी शामिल है. इसका मुख्य उद्देश्य यूक्रेन को अब तक दी गई सहायता की ख़ामियों को दूर करना और भविष्य में भी सहायता देने वाले देश में सत्ता परिवर्तन के बावजूद पूर्ण सैन्य, वित्तीय तथा अन्य सहयोग जारी रखना है. यह समझौते उस वक़्त तक जारी रहेंगे जब तक यूक्रेन NATO का सदस्य नहीं बन जाता. इन समझौतों को भविष्य में गठबंधन के सहयोगी के रूप में यूक्रेन को शामिल करने का संकेत भी माना जा रहा है. इसके अतिरिक्त G7 देश के नेताओं ने यूक्रेन के 2024 के बजटीय घाटे की पूर्ति करने के लिए अतिरिक्त सहायता देने को भी मंज़ूरी दे दी है.
कड़े संघर्ष वाले युद्ध में यूक्रेन को न केवल यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसे अपने सहयोगियों से सैन्य और वित्तीय सहायता मिलती रहे, बल्कि उसे अपने दुश्मन के सैन्य एवं अन्य आर्थिक ठिकानों को भी सर्वाधिक नुकसान पहुंचाना चाहिए. यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि ऐसा होने पर यूक्रेन अपने हथियारों को उन्नत करते हुए रशियन फेडरेशन के सैनिक ठिकानों को निशाना बना सकेगा. इसके अलावा यूक्रेन रूस के भीतर (वायुसेना के ठिकानों, सैन्य उपक्रमों और ऑयल रिफाईनरीज को भी अपने निशाने पर ले सकता है, उसने पिछले वर्ष ऐसा ही किया था) सहयोगी देशों से मदद मिलना जारी रहने पर यूक्रेन रशियन मिलिट्री के लिए आवश्यक कल पुर्जों की आपूर्ति श्रृंखला को भी बाधित कर सकेगा जो रूस के लिए हथियार बनाने में काम आते हैं. इतना ही नहीं ऐसा होने पर यूक्रेन को अपने प्रतिद्वंद्वी के मुकाबले सैन्य और तकनीकी श्रेष्ठता भी हासिल हो सकेगी. युद्ध के मोर्चे में सैन्य क्षमता फ़िलहाल एक के मुकाबले सात की है, यह स्थिति रूस के पक्ष में है. ऐसे में यूक्रेनी को रक्षा के मैदान में आधुनिक तकनीकी सॉल्यूशंस की आवश्यकता है. इसमें विभिन्न प्रकार के ड्रोन और एंटी ड्रोन सिस्टम शामिल है. आज की स्थिति में युद्ध के मोर्चे में उपयोग किए जा रहे 90% UAV'S यूक्रेन की कंपनियां (200 उपक्रम) तैयार कर रही है. सरकार ने इस वर्ष के अंत तक एक मिलियन ड्रोन के उत्पादन का लक्ष्य रखा है. इसके अलावा NATO सदस्य देशों ने भी एक मिलियन ड्रोन मुहैया करवाने का वादा किया है. यूक्रेन ने अपने घरेलू ड्रोन में AI का उपयोग करने का भी निर्णय लिया है. वह इसमें जर्मन कंपनी Helsing GmbH का सहयोग लेने वाला है.
अपने स्तर पर रूस ने युद्ध में हाइब्रिड तरीकों को अपनाना शुरू कर दिया है. उसका लक्ष्य यूक्रेन के पश्चिमी सहयोगियों में फूट डालना है. इसके अलावा वह यूरोपियन यूनियन के बीच ही असंतोष की स्थिति पैदा करना चाहता है. (ऐसा वह यूरोपियन संसद के चुनाव में अपनाए गए रुख़ की वज़ह से करना चाहता है). मास्को का उद्देश्य यूक्रेन की सीमा पर 'सर्किल आफ इंस्टेबिलिटी' यानी अस्थिरता का केंद्र पैदा करना भी है. ऐसा हो भी रहा है. उदाहरण के लिए पोलिश किसानों का विरोध प्रदर्शन और पड़ोसी मालदोवा में अस्थिरता की स्थिति. हाल ही में अमेरिकी पत्रकार टकर कार्लसन को दिए साक्षात्कार में पुतिन ने कहा था कि यदि पश्चिमी देश यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति रोक दे तो कुछ सप्ताह में ही युद्ध समाप्त हो जाएगा. रूस के उच्च पदस्थ अधिकारियों ने भी हाल में इसी लाइन पर बयान दिए हैं. उनके चीनी सहयोगियों ने भी यही बात दोहराई है. रूस और चीन दोनों का मानना है कि ऐसा होने पर ही “यूक्रेन को बातचीत की टेबल” पर लाया जा सकता है. दरअसल, इसका विस्तृत संदर्भ में उद्देशय यूक्रेन को मॉस्को की शर्तों पर घुटने टेकने पर मजबूर करना भी है.
अतः एक देश के रूप में यूक्रेन और राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की स्वयं युद्ध के तीसरे वर्ष में अनेक चुनौतियों के साथ आगे बढ़ेंगे. ये चुनौतियां सैन्य और हाइब्रिड प्रकृति की होगी.
इसी दौरान यूक्रेन रक्षा मंत्रालय के मेन डायरेक्टरेट ऑफ़ इंटेलिजेंस के मुखिया क्यारिलो बुदानोव ने कहा है कि रूस एक ऑपरेशन की तैयारी कर रहा है, जिसमें उसका उद्देश्य यूक्रेनियन सरकार को गैरकानूनी घोषित करना है. रूस के अनुसार यूक्रेन में युद्ध के दौरान चुनाव नहीं करवाए गए, अत: वहां गैरकानूनी सरकार काम संभाल रही है. इस युद्ध में सैन्य सफ़लता हासिल करने में विफ़लता और यूक्रेनियन समाज की हिम्मत को, उनके संघर्ष के जज़्बा को तोड़ने में नाकाम रहने के कारण रशियन फेडरेशन यूक्रेनी समाज को विभाजित करने और वहां के लोगों को अपने ही अधिकारियों पर भरोसा नहीं करने के लिए उनके मन में संदेह के बीज बोने की नीति पर काम कर रहा है. (हाल ही में करवाए गए एक ताजा सर्वेक्षण के अनुसार यूक्रेन के 85 फ़ीसदी नागरिकों को लगता है कि यूक्रेन इस युद्ध में विजय हासिल करेगा).
अतः एक देश के रूप में यूक्रेन और राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की स्वयं युद्ध के तीसरे वर्ष में अनेक चुनौतियों के साथ आगे बढ़ेंगे. ये चुनौतियां सैन्य और हाइब्रिड प्रकृति की होगी. इन समस्याओं का समाधान इस बात पर निर्भर करेगा कि यह युद्ध कितने दिन चलता है और इसके अंत में क्या परिणाम रहता है.
नतालिया बुतीरस्का यूक्रेन के कीव स्थित अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की एक स्वतन्त्र विश्लेषक हैं.
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Nataliya Butyrska is a freelance expert on International Relations from Kyiv, Ukraine. ...
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