यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे मौजूदा युद्ध ने लड़ाई लड़ने और उसे अंजाम तक पहुंचाने के बारे में अलग-अलग पहलुओं और आयामों की तरफ ध्यान खींचा है. जैसा कि पूरे इतिहास में देखा गया है, युद्ध के लिए हालात के मुताबिक ढलना महत्वपूर्ण बना हुआ है और रूस एवं यूक्रेन और हमास एवं इज़रायल के बीच मौजूदा संघर्ष इससे अलग नहीं है. ये बदलाव रणनीतिक, परिचालन (ऑपरेशनल) से जुड़ा, सांगठनिक और तकनीक़ी रूप में आ सकता है. इस लेख में हम ख़ुद को बदलाव के तकनीक़ी आयाम तक सीमित रखते हैं. आम तौर पर सबसे जटिल और आधुनिक तकनीकें विशेषज्ञों और आम लोगों का सबसे ज़्यादा ध्यान खींचती हैं. लेकिन सबसे कम आधुनिक तकनीकें सबसे अत्याधुनिक क्षमताओं की तरह लोगों का ध्यान आकर्षित नहीं करती हैं. हमारी आंखों के सामने जो दो युद्ध हो रहे हैं- रूस और यूक्रेन के बीच और हमास-इज़रायल के बीच- वो तकनीकों के इस्तेमाल का अनुभव कर रहे हैं जो कि एक मामले में तो काफी हद तक आधुनिक हैं जबकि दूसरे मामले में उतने अत्याधुनिक नहीं हैं. फिर भी दोनों तरह की क्षमताएं, चाहे वो शुरुआती हों या आधुनिक, घातक और असरदार साबित हुई हैं. हम सबसे पहले रूस-यूक्रेन संघर्ष पर विचार करते हैं जहां रूस ने यूक्रेन के द्वारा क्षमता के मामले में फायदेमंद स्थिति में होने के मुताबिक ख़ुद को ढाल लिया है. यूक्रेन की क्षमता में इस बढ़ोतरी की वजह अमेरिका के द्वारा बनाया और सप्लाई किया गया हाई मोबिलिटी आर्टिलरी रॉकेट सिस्टम (हिमार) है. बेहद आधुनिक हिमार, जो कि एक मल्टीपल रॉकेट लॉन्च सिस्टम (MRLS) है, लंबी दूरी तक बेहद सटीक निशाना साधने, ले जाने में आसानी, मोबिलिटी और बचे रहने के लिए जाना जाता है.
हमारी आंखों के सामने जो दो युद्ध हो रहे हैं- रूस और यूक्रेन के बीच और हमास-इज़रायल के बीच- वो तकनीकों के इस्तेमाल का अनुभव कर रहे हैं जो कि एक मामले में तो काफी हद तक आधुनिक हैं जबकि दूसरे मामले में उतने अत्याधुनिक नहीं हैं.
आम तौर पर लंबी दूरी में रूस के टारगेट पर हमले के लिए अमेरिका से सप्लाई किया गया यूक्रेन का हिमार बेहद असरदार साबित हुआ हैं. इसका नतीजा ये निकला कि 2022 के आख़िरी चार महीनों में रूस की सेना को काफी नुकसान हुआ और मजबूर होकर उसे उत्तरी यूक्रेन के खारकीव इलाके से वापस होना पड़ा. इसके बाद रूस ने जनवरी 2023 की शुरुआत से खुद को हालात के मुताबिक ढाला और हिमार का जवाब देने के लिए IB75 पेंसिलिन काउंटर-आर्टिलरी सिस्टम और कामिकेज़ जर्मेनियम-2 अनमैन्ड एरियल व्हीकल (UAV) की तैनाती और इस्तेमाल शुरू किया. ये UAV वास्तव में ईरान के द्वारा सप्लाई किए गए शाहेद-136 ड्रोन हैं जो इनर्शियली-गाइडेड हथियार (मंडराते रहने वाले) हैं जिन्हें रूस ने बदलकर सैटेलाइट-गाइडेड बना दिया. इसकी वजह से ड्रोन की मारक क्षमता में काफी बढ़ोतरी हो गई है. बखमुत की लड़ाई, जिसे आख़िर में रूस के सैनिकों ने जीत लिया, में IB75 काउंटर-आर्टिलरी सिस्टम का इस्तेमाल किया गया और इसने IB75 पेंसिलिन के बारे में यूक्रेन की पता लगाने और नाकाम करने की क्षमता को ख़त्म करने में मदद की. इसकी वजह काफी हद तक ये है कि इसने रडार का इस्तेमाल नहीं किया. अगर रडार का इस्तेमाल होता तो इसके बारे में पता लग जाता और फिर इसे रोक दिया जाता. पेंसिलिन पूरी तरह ऑटोमेटेड है और ये थर्मोअकॉस्टिक सेंसर और ऑप्टिकल कैमरे का इस्तेमाल करते हैं. इस तरह ये आर्टिलरी सिस्टम इलेक्ट्रॉनिक जवाबी कदम के प्रति प्रतिरोधक और यूक्रेन के एयर डिफेंस की तरफ से पता लगाने की रेंज के नीचे हो जाता है. यूक्रेन का एयर डिफेंस सिस्टम केवल 50 किलोमीटर या उससे अधिक की रेंज के टारगेट का पता लगा सकता है. इस तरह 50 किलोमीटर से नीचे के टारगेट को नाकाम करना तो दूर, उन्हें पेंसिलिन का पता लगाने से भी रोकता है.
रूस-यूक्रेन एयर डिफेंस
लेकिन IB75 की मुख्य कमज़ोरी है इसका 25 किलोमीटर का काम करने का दायरा. इसका ये मतलब है कि हिमार की लंबी दूरी तक सटीक निशाना लगाने की क्षमता की बराबरी नहीं कर सकता है. साथ ही ये आम तौर पर शहरी लड़ाई के इलाकों और घने युद्ध के माहौल में असरदार होता है. इससे पता चलता है कि रूस बाखमुत पर कब्ज़ा करने में क्यों सफल रहा. पेंसिलिन के असरदार इस्तेमाल के अलावा यूक्रेन के एयर डिफेंस, जो कि रडार पर आधारित है, को रूस की शानदार इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर (EW) क्षमता के द्वारा प्रभावी ढंग से जाम भी कर दिया गया. इन क्षमताओं के मिले-जुले इस्तेमाल ने रूस को यूक्रेन की सेना के द्वारा कुछ हद तक पूरब में और आगे बढ़ने से रोकने में सक्षम बना दिया. इसके अलावा रूस ने पिछले कुछ समय से शाहेद-136 या जर्मेनियम-2 जैसे UAV का इस्तेमाल किया है ताकि अपनी भारी-भरकम ज़मीनी रक्षा की मदद की जा सके. हथियार से शाहेद-136 को लैस करने के साथ-साथ उन्हें रूस के विशाल ड्रोन के बेड़े ओरलान-10 के साथ जोड़ने से हवा में टोही निगरानी या गश्त का मक़सद पूरा होता है जिससे बड़े इलाके में जासूसी की क्षमता हासिल होती है. साथ ही एकजुट होकर आर्टिलरी हमले में भी रूस सक्षम हुआ और शाहेद-136 यूक्रेन की ज़मीनी सेना पर हमला करने और उन्हें रूस की रक्षा पंक्ति को तोड़कर आगे बढ़ने से रोकने में कामयाब रहा. ये यूक्रेन के जवाबी आक्रमण के ख़िलाफ़ किसी इलाके की रक्षा करने में रूस की सेना के लिए असली फायदा रहा और इसके साथ-साथ यूक्रेन की सेना को इसने गंभीर नुकसान भी पहुंचाया.
पेंसिलिन के असरदार इस्तेमाल के अलावा यूक्रेन के एयर डिफेंस, जो कि रडार पर आधारित है, को रूस की शानदार इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर (EW) क्षमता के द्वारा प्रभावी ढंग से जाम भी कर दिया गया. इन क्षमताओं के मिले-जुले इस्तेमाल ने रूस को यूक्रेन की सेना के द्वारा कुछ हद तक पूरब में और आगे बढ़ने से रोकने में सक्षम बना दिया.
इसके बावजूद, यूक्रेन ने भी रूस पर निशाना साधने के लिए अपने संसाधनों को विकसित करके ख़ुद में बदलाव किया है, भले ही उसके पास सबसे आधुनिक तकनीक ना हों. पश्चिमी देशों के द्वारा सप्लाई की जाने वाली सटीक और आर्टिलर हथियारों की कमी को पूरा करने के लिए यूक्रेन ने फर्स्ट पर्सन व्यू (FPV) ड्रोन का इस्तेमाल करके नये ढंग की सोच का सहारा लिया है. FPV ड्रोन पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) जैसी जगहों से हासिल तैयार उपकरणों से बनाए गए हैं. FPV इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग से बचने के लिए एनेलॉग सिग्नल का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि इस मामले में डिजिटल सिग्नल सबसे असुरक्षित होते हैं. ये सामरिक ड्रोन सेल्फ-प्रोपेल्ड ग्रेनेड लेकर चलते हैं जो कि रूस के सबसे आधुनिक युद्धक टैंक- टी-90- के कवच को भी भेद सकते हैं. ध्यान देने की बात है कि भारत भी बड़े पैमाने पर टी-90 टैंक का इस्तेमाल करता है. यूक्रेन ने इन ड्रोन का इस्तेमाल मौजूदा युद्ध के मैदान में इतने असरदार ढंग से किया है कि शायद उसे अमेरिका में बने महंगे एंटी-टैंक जेवलिन मिसाइल के इस्तेमाल की ज़रूरत भी न पड़े.
फिलिस्तीन-इज़रायल संघर्ष में बदलाव
अंत में, बदलाव ग़ाज़ा पट्टी के पास बेहद घातक प्रभाव के साथ कम-तकनीक़ी साधन के इस्तेमाल के ज़रिए इज़रायल की रक्षा को भेदने में हमास की सफलता के लिए भी महत्वपूर्ण रहा है. ग़ाज़ा पट्टी पर नियंत्रण रखने वाला हमास आतंकी संगठन इतना अधिक अनुशासित बना रहा कि इज़रायल का सिग्नल इंटेलिजेंस (SIGNT) और कम्युनिकेशन इंटरसेप्शन, जो कि बेहद शानदार हैं, किसी भी तरह के ख़तरे का पता लगाने में नाकाम रहे. ज़्यादा उम्मीद इस बात की है कि हमास ने इज़रायल की निगरानी और पता लगाने से परहेज करने के लिए छोटी टीम बनाकर काम किया और उन्हें विस्फोटकों और मोटर से चलने वाले हैंड ग्लाइडर का इस्तेमाल करके ग़ाज़ा और इज़रायल को बांटने वाली ऊंची दीवारों को लांघने के लिए ट्रेनिंग दी. एक बार जब घुसपैठ पूरी हो गई तो हमले शुरू हो गए जो बेहद क्रूरता से किए गए और जिसने इजरायल के लोगों को पूरी तरह हैरान कर दिया.
जीत की चाहत या कम-से-कम बेहद फायदे की स्थिति वाले दुश्मन को सबक सिखाने की प्रेरणा किसी संघर्ष को पैदा करती है और इसे लंबा खींचती है.
युद्ध में बदलाव होने या एक पक्ष के ख़िलाफ़ हालात होने के बावजूद संघर्ष छिड़ने की वजह मनोबल है. जीत की चाहत या कम-से-कम बेहद फायदे की स्थिति वाले दुश्मन को सबक सिखाने की प्रेरणा किसी संघर्ष को पैदा करती है और इसे लंबा खींचती है. लेकिन इसमें भारतीय सशस्त्र बलों के लिए एक सबक भी है. इसकी वजह सिर्फ़ बदलाव का स्पष्ट कारण नहीं है बल्कि मनोबल पाकिस्तान और यहां तक कि चीन जैसे दुश्मनों को लाचार करने में भी भूमिका निभाता है जो भारत के नागरिकों, सैन्य कर्मियों और ठिकानों को व्यापक नुकसान पहुंचाने में सबसे शुरुआती और छोटी तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं. वैसे तो भारत सरकार को आधुनिक सैन्य तकनीकों को विकसित करने पर ज़रूर निवेश करना चाहिए लेकिन इसके साथ-साथ उसे युद्ध के मैदान में प्रभावी ढंग से इस्तेमाल में आने वाली इनोवेटिव कम लागत वाली तकनीकों को विकसित करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा अनुसंधान एवं विकास (R&D) संगठनों और भारत के निजी क्षेत्र को भी भारतीय सेना की सभी सर्विस ब्रांच के साथ मिलकर काम करने की सलाह देनी चाहिए.
कार्तिक बोम्माकांति ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में सीनियर फेलो हैं.
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