Author : Rajen Harshé

Published on Jun 29, 2021 Updated 0 Hours ago

ये विडंबना ही है कि कभी यही मुसेवेनी उन अफ्ऱीकी नेताओं को भ्रष्ट कहकर उनकी आलोचना करते थे, जो कार्यकाल पूरा होने के बाद भी अपने पद पर बने रहते थे 

युगांडा: योवेरी मुसेविनी के दोबारा राष्ट्रपति बनने पर, क्या होगा क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय असर?

12 मई 2021 को हुए शपथ ग्रहण समारोह के बाद 76 बरस के योवेरी मुसेवेनी ने युगांडा के राष्ट्रपति के तौर पर अपने छठे कार्यकाल की शुरुआत की. ये विडंबना ही है कि कभी यही मुसेवेनी उन अफ्ऱीकी नेताओं को भ्रष्ट कहकर उनकी आलोचना करते थे, जो कार्यकाल पूरा होने के बाद भी अपने पद पर बने रहते थे. लेकिन, अब वो ख़ुद पिछले दशक के मुअम्मर गद्दाफी (लीबिया), रॉबर्ट मुगाबे (ज़िम्बाब्वे), उमर अल बशीर (सूडान और इदरीस डेबी (चाड) जैसे अफ्ऱीकी नेताओं की क़तार में खड़े हैं, जिन्होंने अपने देश पर शिकंजा कसकर राज किया.

मुसेवेनी ने सत्ता में बने रहने के लिए, एक धूर्त शासक के तौर पर राजनीतिक संस्थाओं का भरपूर दोहन किया है. संविधान संशोधन के ज़रिए 2005 में राष्ट्रपति पद के कार्यकाल की सीमा और 2017 में 75 साल उम्र की बंदिश हटा दी गई. जब जनवरी 2021 में युगांडा में चुनाव हुए तो 14 जनवरी को मुसेवेनी की नेशनल रेज़िस्टेंस मूवमेंट पार्टी (NRM) को 58.4 प्रतिशत वोट के साथ विजयी घोषित किया गया था. हालांकि, मतदान का प्रतिशत बहुत कम रहा था. क्योंकि देश के कुल 1.8 करोड़ मतदाताओं में से सिर्फ़ एक करोड़ ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था.

बॉबी वाइन एक संगीतकार और स्टार हैं, जो देश की युवा पीढ़ी की नुमाइंदगी करते हैं. उनकी कोशिश थी कि वो राष्ट्रपति चुनाव में सर्वशक्तिमान मुसेवेनी को हराकर सत्ता पर उनकी पकड़ को चुनौती दें.

राष्ट्रपति चुनाव में मुसेवेनी के मुक़ाबले नेशनल यूनिटी प्लेटफॉर्म पार्टी (NUP) के रॉबर्ट क्यागुलान्यी थे, जो बॉबी वाइन के नाम से ज़्यादा मशहूर हैं. रॉबर्ट ने राष्ट्रपति चुनाव में धांधली का आरोप लगाकर इसके नतीजे को चुनौती दी है. बॉबी वाइन एक संगीतकार और स्टार हैं, जो देश की युवा पीढ़ी की नुमाइंदगी करते हैं. उनकी कोशिश थी कि वो राष्ट्रपति चुनाव में सर्वशक्तिमान मुसेवेनी को हराकर सत्ता पर उनकी पकड़ को चुनौती दें. आज युगांडा की दो तिहाई से ज़्यादा आबादी 30 साल से कम उम्र की है. पर अपने करिश्मे के बावजूद बॉबी वाइन, नई पीढ़ी को सत्ता तक नहीं पहुंचा सके. हालांकि, चुनाव से पहले मुसेवेनी सरकार ने नागरिक संगठन के कार्यकर्ताओं और विरोधियों पर शिकंजा कसने के लिए उनके पीछे सुरक्षा बल लगा दिए थे. इसके चलते नवंबर 2020 में 45 लोग मारे गए थे; कोविड-19 के बावजूद चुनावी रैलियां हुईं; नागरिकों के मानव अधिकार और उनकी दूसरी आज़ादी छीन ली गई; और इंटरनेट भी बंद कर दिया गया था. यहां तक कि बॉबी वाइन को भी उनकी कार से घसीटकर घर में नज़रबंद कर दिया गय था. बॉबी पर दंगे भड़काने और विदेशी ताक़तों का एजेंट होने के इल्ज़ाम लगाए गए थे.

चुनाव के नतीजे, बाहरी दुनिया को कोई सकारात्मक संदेश देने में नाकाम रहे. अफ्रीका में अमेरिकी राजनयिक टिबोर नैगी मानते हैं कि मुसेवेनी का चुनाव जीतना बुनियादी रूप से ग़लत है. 1986 से ही अफ्रीका में युगांडा अमेरिकी मदद पाने वाला प्रमुख देश रहा है. अमेरिका का विदेश विभाग, मुसेवेनी सरकार के ख़िलाफ़ कई क़दम उठाने की तैयारी में है. इसी तरह यूरोपीय संघ के देशों ने भी युगांडा के नेताओं और नागरिक संगठनों के साथ मुसेवेनी सरकार के बर्ताव पर गंभीर चिंता जताई है. इन आलोचनाओं के बावजूद, मुसेवेनी ने पद संभालते ही इस बात पर ज़ोर दिया कि लीबिया में असुरक्षा, पश्चिमी और मध्य अफ्रीका के कई देशों और सोमालिया व मोज़ांबीक की समस्याएं सुलझाने की ज़रूरत है. मुसेवेनी ने पश्चिमी देशों के अहंकारी और ग़ैरज़िम्मेदार क़दमों की भी आलोचना की और कहा कि वो ‘आक्रमणकारी’ देश हैं. उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों के ऐसे बर्ताव के चलते ही उनके पड़ोसी देश मुश्किल में हैं. ये तय है कि मुसेवेनी के चुनाव जीतने का क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय रूप से असर दिखेगा. युगांडा की भौगोलिक स्थिति और विवादित इतिहास, इन आशंकाओं को जायज़ ठहराते हैं.

युगांडा की सामरिक अहमियत

चारों तरफ़ से ज़मीन से घिरा युगांडा सामरिक रूप से बेहद अहम क्षेत्र में स्थित है. दक्षिणी सूडान, केन्या, रवांडा, तंज़ानिया और कॉन्गो इसके पड़ोसी देश हैं. युगांडा के पड़ोसी देशों में तंज़ानिया और केन्या, पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र (WIOR) में जाने का रास्ता मुहैया कराते हैं. बाक़ी के तीन पड़ोसी देश संसाधनों के लिहाज़ से समृद्ध हैं. इसके अलावा, युगांडा को क़ुदरती रूप से क्षेत्रीय व अंतरराष्ट्रीय व्यापार और लेन-देन का केंद्र बनाकर इस्तेमाल किया जा सकता है. पर, बदक़िस्मती से 1962 में आज़ादी से लेकर 1986 तक युगांडा में प्रशासन की स्थिति बेहद ख़राब रही थी. 1971 में ईदी अमीन के नेतृत्व में सेना ने युगांडा के पहले राष्ट्रपति मिल्टन ओबोटे का तख़्तापलट कर दिया था. इसके अलावा अमीन के राज (1971-79) के दौरान लाखों लोगों का नरसंहार किया गया. ओबोटे 1980 से 1985 तक फिर देश के राष्ट्रपति रहे. पहले तो मुसेवेनी ने ईदी अमीन को पद से हटाने के लिए नेशनल साल्वेशन फ्रंट (NSF) का हिस्सा बनकर मिल्टन ओबोटे का साथ दिया. बाद में, युगांडा के पूर्व राष्ट्रपति यूसुफ़ लुले (अप्रैल से जून 1979 तक) के साथ मिलकर मुसेवेनी ने नेशनल रेज़िस्टेंस मूवमेंट और ख़ास तौर इसकी हथियारबंद इकाई का नेतृत्व करके, पहले ओबोटे और उसके बाद बेहद कम वक़्त पद पर रहे उनके उत्तराधिकारियों का विरोध किया. आख़िरकार, हथियारबंद संघर्ष के ज़रिए मुसेवेनी ने 1986 में सत्ता हथिया ली. युगांडा में कार्यकारी लोकतंत्र तो 1996 के बाद जाकर स्थापित हुआ था.

पूर्ववर्तियों की तुलना में मुसेवेनी का काम-काज भी बेहतर था. 2005 में हुए एक जनमत संग्रह के बाद युगांडा एक बहुदलीय लोकतंत्र बन गया. हालांकि, मुसेवेनी के मन में बहुदलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को लेकर कई आशंकाएं थीं. 

मुसेवेनी सरकार की तरफ़ पश्चिमी देशों का ध्यान इसलिए गया क्योंकि वो पूंजीवादी सुधारों, टिकाऊ आर्थिक विकास, आज़ाद प्रेस, बुनियादी ढांचे के विकास और राजनीतिक स्थिरता की बातें कर रहे थे. पूर्ववर्तियों की तुलना में मुसेवेनी का काम-काज भी बेहतर था. 2005 में हुए एक जनमत संग्रह के बाद युगांडा एक बहुदलीय लोकतंत्र बन गया. हालांकि, मुसेवेनी के मन में बहुदलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को लेकर कई आशंकाएं थीं. उन्हें डर था कि इससे क़बीलावाद को बढ़ावा मिलेगा. फिर भी मुसेवेनी ने जनादेश को स्वीकार कर लिया. इन उपलब्धियों के बावदूद, मुसेवेनी लॉर्ड्स रेज़िस्टेंस आर्मी (LRA) का मुक़ाबला कर पाने में नाकाम रहे. जोसेफ कोनी के नेतृत्व में उत्तरी युगांडा में सक्रिय इस एलआरए को अमेरिका ने एक बार आतंकवादी संगठन घोषित किया था.

हालांकि, युगांडा के पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते निभाने में मुसेवेनी अपनी उग्रवादी आदतों को छुपाने में नाकाम रहे. 1990 के दशक में उन्होंने रवांडा पैट्रियॉटिक फ्रंट (RPF) का समर्थन किया, जो रवांडा में जातीय नरसंहार के शिकार रहे तुत्सी जनजातियों को इंसाफ़ दिलाने की लड़ाई लड़ रहा था. उन्होंने आरपीएफ के लड़ाकों के साथ-साथ देश से भागने को मजबूर हुए तुत्सी जनजाति के लोगों को भी पनाह दी. उन्होंने कॉन्गो के क्रांतिकारी लॉरेंट कबीला का समर्थन किया, जो 1997 में ज़ायर (द कॉन्गो) की सत्ता से मोबुतू सेसे सेको को हटाने में कामयाब रहे. मुसेवेनी ने सूडान में अल बशीर की इस्लामिक कट्टरपंथी सरकार के ख़िलाफ़ दक्षिण सूडान के लोगों का भी समर्थन किया था.

इसके अलावा युगांडा, अफ्रीकी संघ के शांति अभियानों (AMISON) में भी अपने सैनिक भेजता रहा है. अफ्रीकी संघ की ये सेना सोमालिया में अल क़ायदा से जुड़े अल शबाब की आतंकवादी गतिविधियों से टक्कर ले रहा है. मुसेवेनी की इन आतंकवाद विरोधी नीतियों के चलते ही युगांडा के अमेरिका से क़रीबी संबंध बने. अमेरिका, स्वास्थ्य, सेना, शिक्षा और कृषि क्षेत्र में युगांडा को हर साल 97 करोड़ डॉलर से ज़्यादा की मदद देता है. अमेरिका से मिली मदद के बूते ही युगांडा क़रीब दस लाख एचआईवी मरीज़ों का इलाज कर सका. इसके अलावा इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान के अमेरिकी सैनिक अड्डों में युगांडा के दस हज़ार सुरक्षा बल तैनात कर सकते हैं.

पूर्वी और मध्य अफ्रीका में हथियारों के सबसे अहम बाज़ार पर युगांडा और अमेरिकी कंपनियों का नियंत्रण है, जिन पर ब्रिटेन, इज़राइल, अमेरिका और युगांडा के नागरिकों का नियंत्रण है.

अपनी भौगोलिक स्थिति की वजह से युगांडा ने पश्चिमी देशों की कंपनियों और अपने पड़ोसी देशों के बीच मध्यस्थ की भूमिका भी निभाई है. सच तो ये है कि 2013 में सूडान और दक्षिणी सूडान के बीच शुरू हुए संघर्ष में युगांडा ने खुलकर सूडानीज़ पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (SPLA) को हथियार और सैनिक मुहैया कराए हैं. 2014 में युगांडा ने दक्षिणी सूडान के साथ सैन्य सहयोग का समझौता किया था. युगांडा ने साउथ सूडान के शरणार्थियों को पनाह देनी भी शुरू की थी. जुलाई 2015 में तो युगांडा ने यूक्रेन से निर्यात किए गए हेलीकॉप्टर के कल-पुर्ज़े ख़रीदे थे और फिर इन्हें असेंबल करके कम से कम तीन M24 U अटैक हेलीकॉप्टर साउथ सूडान को दिए थे. साउथ सूडान ने युगांडा के ज़रिए बुल्गारिया, स्लोवाक गणराज्य और रोमानिया से भी छोटे हथियार और गोला-बारूद ख़रीदे थे. पूर्वी और मध्य अफ्रीका में हथियारों के सबसे अहम बाज़ार पर युगांडा और अमेरिकी कंपनियों का नियंत्रण है, जिन पर ब्रिटेन, इज़राइल, अमेरिका और युगांडा के नागरिकों का नियंत्रण है. ज़मीन और हवा के इस नेटवर्क के ज़रिए इन कंपनियों ने अमेरिका से सैन्य विमान और ऑस्ट्रेलिया में बने विमान जहाज़ ख़रीदे हैं. 2015 और 2016 के संघर्ष के दौरान ये विमान सूडानीज़ पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को मुहैया कराए गए थे.

चीन और भारत का प्रवेश

अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ-साथ, युगांडा को अफ्रीका में चीन और भारत की बढ़ती गतिविधियों का भी सामना करना पड़ रहा है. अफ्रीका और ख़ास तौर से युगांडा में चीन बहुत आक्रामक तरीक़े से अपने प्रभाव का विस्तार कर रहा है. चीन ने युगांडा में कई प्रोजेक्ट जैसे कि कंपाला से एक्सप्रेसवे, अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा और बांध बनाने के लिए ज़्यादातर अपने एक्सपोर्ट इंपोर्ट (EXIM) बैंक के ज़रिए 58 करोड़ डॉलर के विशाल क़र्ज़ को मंज़ूरी दी है. युगांडा के अधिकारियों ने कई प्रोजेक्ट तो इस उम्मीद में शुरू किए हैं कि जब 2022 में उनके यहां तेल का उत्पादन शुरू हो जाएगा, तो उससे आमदनी होगी. चीन, युगांडा में अपना बीआरआई प्रोजेक्ट भी लागू करना चाहता है. युगांडा पर जितना क़र्ज़ है, उसमें से एक तिहाई हिस्सा चीन का है. भले ही चीन ये दावा करता है कि उसने ये मदद बिना शर्त दी है. लेकिन, युगांडा के वित्त मंत्री मतजा कसाइजिया, अपने देश की संपत्ति चीन के क़र्ज़ के जाल में फंसने से बचाने पर काफ़ी ज़ोर दे रहे हैं. वर्ष 2018 में मुसेविनी को लिखे एक गोपनीय ख़त में उन्होंने पैसे के बदले चीन के खातों में जमा ज़मानत, युगांडा में चल रहे चीन के प्रोजेक्ट में देश के नागरिकों को नौकरी न देने और स्थानीय स्तर पर सीमेंट जैसे सामान न ख़रीदने की शिकायत की थी. ये चिट्ठी लीक हो गई थी.

चीन की तुलना में युगांडा में भारतीय मूल के लोगों की अच्छी ख़ासी आबादी थी. 1970 के दशक में ईदी अमीन ने भारतीय मूल के लोगों को युगांडा से निष्कासित कर दिया था. इस समय भी युगांडा में भारतीय मूल के लगभग 30 हज़ार लोग रह रहे हैं. 

चीन की तुलना में युगांडा में भारतीय मूल के लोगों की अच्छी ख़ासी आबादी थी. 1970 के दशक में ईदी अमीन ने भारतीय मूल के लोगों को युगांडा से निष्कासित कर दिया था. इस समय भी युगांडा में भारतीय मूल के लगभग 30 हज़ार लोग रह रहे हैं. भारत ने ऊर्जा, फूड प्रॉसेसिंग, कृषि और डेयरी क्षेत्र में मदद के लिए युगांडा को 20 करोड़ डॉलर के दो क़र्ज़ रियायती दरों पर दिए हैं. भारत ने ऐसे हथियार भी युगांडा को भेजे हैं जिन्हें रक्षा और असैन्य काम में इस्तेमाल किया जा सकता है. युगांडा पीपुल्स डिफेंस फोर्स (UDPD) के कर्मचारियों को भारत के रक्षा क्षेत्र से जुड़े संस्थानों में ट्रेनिंग दी जा रही है. 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे के बाद भारत और युगांडा के बीच क्षमता के निर्माण और विकास के क्षेत्र में सहयोग को और बढ़ावा मिला है. भारत ने जिन्जा में महात्मा गांधी कन्वेंशन/ हेरिटेज सेंटर भी बनाया है. यहीं पर महात्मा गांधी की अस्थियां नील नदी में विसर्जित की गई थीं. गांधी अभी भी अफ्रीका और भारत को जोड़ने वाले बने हुए हैं.

मुसेवेनी ने बढ़ते घरेलू विरोध और अमेरिका और यूरोपीय संघ की आलोचना के बीच अपना कार्यकाल शुरू किया है. हो सकता है कि अमेरिका उनकी सरकार को दंड देने वाले कुछ क़दम उठाए. हालांकि, मुसेविनी की छवि लंबे समय तक राज करने वाले एक ऐसे नेता की है जिसने युगांडा को राजनीतिक स्थिरता दी. ऐसे में पश्चिमी देशों के पूर्वी और मध्य अफ्रीका से जुड़े समीकरणों में उनकी अहमियत बनी रहेगी. उन्होंने जिन हालात में सत्ता संभाली है, उसमें घरेलू और अहम विदेशी ताक़तों के विरोध के बावजूद, सत्ता में बने रहने की मुसेवेनी की क्षमता का इम्तिहान होगा.

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