Author : Ayjaz Wani

Published on Sep 20, 2022 Updated 25 Days ago

चीन अपनी आर्थिक शक्ति का इस्तेमाल कर अंतरराष्ट्रीय संगठनों और विकासशील दुनिया पर हावी होने में सक्षम रहा है.

उइगर मुद्दा: चीन के बढ़ते दबदबे का आकलन

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) एक बार फिर अपने मूल मिशन को कायम रखने में नाक़ाम साबित हुआ है क्योंकि यह चीन के शिनजियांग में मानवाधिकारों के उल्लंघन के मुद्दे पर अपनी हालिया रिपोर्ट के आधार पर बहस करने में विफल रहा है. उच्चायुक्त के कार्यालय द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अगुआई में शिनजियांग के मुसलमानों के ख़िलाफ़ चीनी सरकार के अत्याचार अंतरराष्ट्रीय अपराध, ख़ास तौर पर “मानवता के ख़िलाफ़ अपराध” और गंभीर मानवाधिकारों के उल्लंघन की ओर इशारा करते हैं. हालांकि, 6 अक्टूबर को  संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 47 सदस्यों ने इस मुद्दे पर अगले साल एक बहस के आयोजन करने के प्रस्ताव को ख़ारिज़ कर दिया, जिसमें 19 मत विरोध में, 17 पक्ष में पड़े और 11 राष्ट्रों ने वोटिंग से दूरी बनाई. ज़्यादातर मुस्लिम अधिकारवादी देशों ने इस प्रस्ताव के ख़िलाफ़ मतदान किया और भारत और यूक्रेन ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया. ऐसे में यूएनएचआरसी की अपनी रिपोर्ट पर बहस करने में विफलता ने इसकी विश्वसनीयता पर कई सवाल खड़े किए हैं लेकिन यह चीन की बढ़ती आर्थिक शक्ति के आधार पर अंतरराष्ट्रीय संगठनों और विकासशील दुनिया पर उसके बढ़ते राजनयिक दबदबे को भी प्रदर्शित करता है.

उच्चायुक्त के कार्यालय द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अगुआई में शिनजियांग के मुसलमानों के ख़िलाफ़ चीनी सरकार के अत्याचार अंतरराष्ट्रीय अपराध, ख़ास तौर पर “मानवता के ख़िलाफ़ अपराध” और गंभीर मानवाधिकारों के उल्लंघन की ओर इशारा करते हैं. 

मानवाधिकारों का उल्लंघन और शिनजियांग के मुस्लिम

शिनजिंयाग प्रांत चीन का एक संसाधन संपन्न उत्तर-पश्चिमी प्रांत है, जिसमें लगभग 12 मिलियन मुस्लिम हैं, जिनमें ज़्यादातर उइगर हैं. यह 2017 से चर्चा  में है जब चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) ने शी के शासन में 700 मिलियन अमेरिकी डॉलर के भारी निवेश के साथ यहां 1200 डिटेंशन कैंपों का निर्माण किया था. बीजिंग ने इन डिटेंशन केंद्रों में दस लाख से अधिक मुसलमानों को आतंकवाद, विभाजनवाद और अवैध धार्मिक गतिविधियों में संलिप्त होने का आरोप लगा कर रखा. उइगर, कज़ाक और उज़्बेक्स को इन हिरासत केंद्रों में “अपराधों” के लिए भेजा गया था, जिसमें “घूंघट पहनना”, “लंबी दाढ़ी बढ़ाना” और “सरकार की परिवार नियोजन नीति का उल्लंघन करना” भी शामिल था. उइगर महिलाओं को राज्य प्रायोजित अभियानों के तहत गर्भनिरोधक उपकरणों के जबरन इस्तेमाल, नसबंदी और गर्भपात कराने के लिए बाध्य किया गया था. इन राज्य प्रायोजित अभियानों का ही यह नतीजा था कि दक्षिणी शिनजियांग के खोतान और काशगर शहरों में कुदरती जनसंख्या वृद्धि में 84 प्रतिशत की गिरावट देखी गई. उइगर मुसलमानों को उनकी संस्कृति से दूर करने के लिए, बीजिंग ने सरकारी विभागों में काम करने वाले उइगर मुसलमानों को नमाज़ (एक दिन में पांच नमाज़) ना करने का संकल्प लेने के लिए मज़बूर किया और यहां तक कि मस्ज़िदों और धार्मिक स्थलों जैसे धार्मिक स्थानों को भी ध्वस्त कर दिया. हिरासत शिविरों में मुस्लिम महिलाओं को सीसीपी सदस्यों द्वारा प्रताड़ित किया गया, व्यवस्थित तौर पर उनका बलात्कार और यौन शोषण किया गया.

जैसे ही हिरासत शिविरों और उइगरों को क़ैद किए जाने की ख़बर लीक हुई, मानवाधिकार समूहों ने चीन द्वारा शिनजियांग में मानवाधिकारों के उल्लंघन की स्वतंत्र जांच की अपील की. यूरोपीय संघ (ईयू) के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, लिथुआनिया सहित अधिकांश लोकतांत्रिक देशों ने क्षेत्रीय और वैश्विक मंचों पर इसे लेकर बार-बार चिंता जताई. उन्होंने चीन की आलोचना की, शिनजियांग से निर्यात की जाने वाली वस्तुओं पर प्रतिबंध लगा दिया और उइगरों के ख़िलाफ़ चीनी दमनकारी नीतियों को “नरसंहार” बताया. यहां तक ​​कि इन देशों ने सीसीपी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाने के  लिए कानून बनाए और बीजिंग में आयोजित शीतकालीन ओलंपिक का कूटनीतिक रूप से बहिष्कार भी किया.

उइगर महिलाओं को राज्य प्रायोजित अभियानों के तहत गर्भनिरोधक उपकरणों के जबरन इस्तेमाल, नसबंदी और गर्भपात कराने के लिए बाध्य किया गया था. इन राज्य प्रायोजित अभियानों का ही यह नतीजा था कि दक्षिणी शिनजियांग के खोतान और काशगर शहरों में कुदरती जनसंख्या वृद्धि में 84 प्रतिशत की गिरावट देखी गई.

दूसरी ओर, चीन ने यूएनएचआरसी जैसे वैश्विक मंचों पर अमेरिका के नेतृत्व वाले लोकतांत्रिक राष्ट्रों द्वारा शुरू किए गए इस अभियान को ख़त्म करने के लिए मुस्लिम देशों पर अपने आर्थिक दबदबे का इस्तेमाल किया. जैसा कि अपेक्षित था, इस्लामिक सहयोग संगठन और अन्य अधिकारवादी मुस्लिम राष्ट्रों ने बीजिंग की आधिकारिक रूख़ का पालन किया और “इंसानों की रक्षा और विकास के माध्यम से मानवाधिकारों को बढ़ावा देने” में चीन की कोशिशों की सराहना की. इतना ही नहीं, इसके अलावा अहम मुस्लिम देशों पर बीजिंग का आर्थिक दबदबा ऐसा है कि 2017 के बाद से इन मुस्लिम देशों के 682 उइगर निर्वासितों को हिरासत में लेकर उन्हें वापस चीन भेज दिया गया.

अंतरराष्ट्रीय  संगठनों पर चीन का कूटनीतिक प्रभाव

पिछले दशक के बाद से, बीजिंग ने संयुक्त राष्ट्र और संबद्ध निकायों जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों पर अपना असर जमाने के लिए कई कदम उठाए हैं. इसने इन संगठनों को वॉलंटरी डोनेशन (स्वैच्छिक दान) में लगभग 350 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है. इसी तरह, संयुक्त राष्ट्र के नियमित बज़ट में चीन की हिस्सेदारी 2000 में लगभग 2 प्रतिशत के मुक़ाबले 2022 में बढ़कर 15.25 प्रतिशत हो गई है. चीन ने अपने सामरिक लक्ष्यों और हितों को आगे बढ़ाने के लिए इन संगठनों के प्रमुख पदों पर अपने लोगों के एंट्री के लिए अपने आर्थिक दबदबे का इस्तेमाल किया है. जब यूएनएचआरसी की बात आती है तो चीन ऐसे अधिकारवादी देशों को इस परिषद के रोटेटिंग बॉडी के तहत सीट दिलाने में मदद कर रहा है. इसके अलावा, इज़रायल-फिलिस्तीन मुद्दे को लेकर परिषद से संयुक्त राष्ट्र की वापसी ने चीन को अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिए और मौक़ा दिया है.

चीन ने ख़राब मानवाधिकार रिकॉर्ड वाले अधिकारवादी देशों के समर्थन से परिषद का एक तरह से मजाक उड़ाया है. बीजिंग ने चीन के भीतर मानवाधिकारों के उल्लंघन की निगरानी और रिकॉर्ड रखने के लिए अनिवार्य लोगों और पदों की स्वतंत्रता को कम करने के लिए भी रणनीति अपनाई है. उदाहरण के लिए, जब संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख, मिशेल बाचेलेट ने चीन का दौरा किया तब बीजिंग द्वारा लगाई गई शर्तों ने स्वतंत्र और पूर्ण मूल्यांकन को पूरा नहीं होने दिया. इसके बाद कुछ पश्चिमी सरकारों और मानवाधिकार समूहों द्वारा बाचेलेट की आलोचना की गई थी. इसके अलावा, ख़ुद बैचेलेट ने सीसीपी द्वारा और राजनयिक चैनलों के ज़रिए चीन के शिनजियांग क्षेत्र पर लंबे समय से विलंबित रिपोर्ट पर अपने कार्यालय पर “ज़बर्दस्त दबाव” होने की बात भी स्वीकार की थी.

चीन ने ख़राब मानवाधिकार रिकॉर्ड वाले अधिकारवादी देशों के समर्थन से परिषद का एक तरह से मजाक उड़ाया है. बीजिंग ने चीन के भीतर मानवाधिकारों के उल्लंघन की निगरानी और रिकॉर्ड रखने के लिए अनिवार्य लोगों और पदों की स्वतंत्रता को कम करने के लिए भी रणनीति अपनाई है. 

चीन ने विकासशील देशों को अपने पक्ष में मोड़ने के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठनों को एक टूल (उपकरण) के रूप में इस्तेमाल किया है जहां उदार अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था और चीन के उच्च तकनीक वाले सत्तावाद के बीच लड़ाई जारी है. उदाहरण के लिए, जुलाई 2020 में बीजिंग ने हांगकांग में नया राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून लागू किया था जिसने असहमति या असंतोष को अपराध घोषित कर दिया. जबकि लोकतंत्र और संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों के गठबंधन ने इस कदम की आलोचना की तो 53 दूसरे राष्ट्रों ने बीजिंग के इस कदम की सराहना की. इन 53 में से 80 फ़ीसदी देशों के पास चीनी निवेश का बड़ा हिस्सा मौज़ूद है.

अधिकारवादी मुस्लिम राष्ट्रों, विकासशील दुनिया और अंतरराष्ट्रीय संगठनों पर बढ़ते आर्थिक दबदबे के समर्थन से चीन ज़्यादा जुझारू हो गया है और वह छवि या धारणाओं के प्रबंधन के लिए वैश्विक प्लेटफॉर्मों का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहा है. बीजिंग ने शिनजियांग में मानवाधिकारों के हनन पर संयुक्त राष्ट्र के किसी भी कदम से ना केवल “लड़ने” का संकल्प दोहराया है, बल्कि अपने प्रोपेगैंडा को आगे बढ़ाने के लिए विश्व निकाय का भी इस्तेमाल किया है. यह वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर बीजिंग की कूटनीतिक जुझारूपन का ही असर है जिसकी वज़ह से अमेरिका और यूरोपीय संघ महत्वपूर्ण वोट के दौरान पर्याप्त वोट हासिल करने में नाकाम रहते हैं. यही वज़ह है कि पश्चिम के उदार लोकतांत्रिक राष्ट्रों को चीन के आर्थिक दबदबे और अंतरराष्ट्रीय  संगठनों के साथ-साथ विकासशील दुनिया के साथ जुड़ाव पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है.

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