Published on Jul 30, 2024 Updated 2 Hours ago

UAE और सऊदी अरब अफ्रीकी महाद्वीप में अपनी कृषि कूटनीति के प्रयासों को तेज कर रहे हैं. ऐसे में खाड़ी में एक अधिक ख़ुली और गतिशील क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था का अर्थ यह निकाला जा सकता है कि अफ्रीका के लिए भी कुछ अच्छा होने वाला है. 

अफ्रीका में UAE और सऊदी अरब की कृषि कूटनीति: प्रतिस्पर्धा और सहयोग का समीकरण

सीमित कृषि योग्य भूमि और जल संसाधनों की वजह से यूनाइटेड अरब अमीरात (UAE) और सऊदी अरब समेत खाड़ी के अन्य देश खाद्यान्न आयात पर अत्यधिक आश्रित हैं. COVID-19 महामारी, यूक्रेन में चल रहा युद्ध और जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभाव ने पहले से मौजूद चुनौतियों को और बढ़ाकर खाड़ी के देशों की आपूर्ति श्रृंखलाओं से जुड़ी वर्तमान कमज़ोरियों को उजागर कर दिया है. खाद्यान्न के लिए UAE और सऊदी अरब निश्चित ही क्रमश: 90 और 80 फ़ीसदी आयात पर आश्रित हैं. एक अनुमान है कि 2050 तक सऊदी अपना सारा खाद्यान्न आयात करने लगेगा. ऐसे में यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि दोनों देश अपनी कृषि कूटनीति का विस्तार करते हुए खाद्यान्न तक पहुंच को सुधारकर ख़ुद को इस स्थिति के लिए तैयार कर रहे हैं.

विश्व की 60 प्रतिशत कृषि योग्य असिंचित भूमि की वजह से अफ्रीका इस मसले को लेकर एक संभावित सहयोगी बन सकता है. इस महाद्वीप की असीमित कृषि संभावनाओं में निवेश करते हुए दीर्घावधि के लिए खाद्यान्न/अनाज आयात को सुनिश्चित किया जा सकता है. इसी प्रकार वे अपनी अर्थव्यवस्थाओं को विविधतापूर्ण बनाकर अपने सॉफ्ट पावर के प्रभाव का उपयोग करके अपना दबदबा बढ़ा सकते हैं.

एक अनुमान है कि 2050 तक सऊदी अपना सारा खाद्यान्न आयात करने लगेगा. ऐसे में यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि दोनों देश अपनी कृषि कूटनीति का विस्तार करते हुए खाद्यान्न तक पहुंच को सुधारकर ख़ुद को इस स्थिति के लिए तैयार कर रहे हैं.

UAE के नेशनल फुड सिक्योरिटी स्ट्रेटेजी 2051 का उद्देश्य ग्लोबल फुड सिक्योरिटी इंडेक्स यानी वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक की अगुवाई करना है. यह लक्ष्य टिकाऊ खाद्य उत्पादन, नवाचार तकनीक और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देकर ही हासिल किया जा सकता है. इसी प्रकार सऊदी अरब अपनी खाद्य सुरक्षा रणनीति पर नए सिरे से विचार करते हुए अधिक वित्तीय संसाधन मुहैया करा रहा है ताकि कृषि प्रक्रियाओं को उन्नत किया जा सके. इसके साथ ही सऊदी अरब आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने और स्थिरता बनाए रखने पर भी पैसा ख़र्च कर रहा है. रियाद और अबू धाबी दोनों ही अफ्रीका के साथ कृषि सहयोग करना चाहते हैं. ऐसे में स्वाभाविक रूप से प्रतिस्पर्धा होगी और इसके चलते दोनों के हित एक-दूसरे से ओवरलैप करेंगे यानी परस्पर व्याप्त होंगे.

UAE : अफ्रीकी कृषि का अग्रदूत

अफ्रीका में कृषि संसाधन सुरक्षित करने में UAE अग्रणी रहा है. BMI विश्लेषण के अनुसार मुख्यत: अफ्रीका में UAE 14 भूमि ख़रीद सौदों पर काम रहा है. इसके अलावा उसके 56 सौदे पूर्ण हो चुके हैं. इसमें नवनीतम सौदा 50 वर्ष पूर्व सूडान के साथ हुआ था. हाल ही में किए गए कुछ बड़े निवेश में दुबई वेंचर्स एवं E20 इंवेस्टमेंट के बीच हुआ संयुक्त उपक्रम शामिल है, जिसमें अंगोला में भू-भाग का एक बड़ा हिस्सा विकसित किया जाएगा. इसके साथ ही एक अमिराती कृषि समूह अल दहरा भी मिस्त्र में कुछ भूमि अधिगृहीत करेगा या लीज़ पर लेने वाला है. इस भूमि का उपयोग अनाज उत्पादन के लिए किया जाना है. ज़िम्बाब्वे में भी UAE आधारित फर्म ग्लोबल कार्बन इंवेस्टमेंट्‌स ने 7.5 मिलियन हेक्टेयर्स भूमि के संरक्षण का अधिकार हासिल किया है. ज़िम्बाब्वे के 20 प्रतिशत भूभाग का यह सौदा 1.5 बिलियन अमेरिकी डालर में किया गया है. इसके अतिरिक्त UAE की एक कृषि कंपनी, EAP, इथियोपिया में 200 मिलियन अमेरिकी डालर के एक गेंहू फार्म प्रोजेक्ट को लेकर चर्चा कर रही है.

सऊदी अरब : एक उभरता प्रतिस्पर्धी

अफ्रीका से कृषि आपूर्ति को सुरक्षित करने की सऊदी अरब की कोशिशें भले ही नई हो, लेकिन ये उतनी ही महत्वाकांक्षी भी है. सऊदी साम्राज्य ने अनाज और जल संकट से उपजने वाली चुनौतियों के निपटने के लिए अफ्रीका के संपन्न क्षेत्र में चतुराईपूर्ण निवेश करने की अहम आवश्यकता को पहचान लिया है. इस संदर्भ में एक उल्लेखनीय मामला सऊदी अरब और UAE की ओर से सूडान के कृषि क्षेत्र में किए जा रहे 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर के संयुक्त निवेश को माना जा सकता है. सऊदी अरब ने सूडान की अर्थव्यवस्था को विकसित होने के लिए संयुक्त निवेश फंड में भी 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान दिया है. इस फंड की कोशिश कृषि उपज को बढ़ाकर और अधिक निवेश को उत्प्रेरित करना है.

हाल ही में किए गए कुछ बड़े निवेश में दुबई वेंचर्स एवं E20 इंवेस्टमेंट के बीच हुआ संयुक्त उपक्रम शामिल है, जिसमें अंगोला में भू-भाग का एक बड़ा हिस्सा विकसित किया जाएगा.

कृषि निवेश संभावनाओं को बढ़ाने के लिए सूडान के अलावा सऊदी साम्राज्य, घाना के साथ भी सहयोग कर रहा है. अफ्रीका की हालिया यात्रा के दौरान सऊदी के पर्यावरण, जल और कृषि मंत्री Eng. अब्दुलरहमान अल फैडली तथा घाना के खाद्य एवं कृषि मंत्री डॉ. ब्रायन अचेमपोंग ने कृषि, खाद्य सुरक्षा, मत्स्य पालन और पशुधन में संबंधों को मजबूत करते हुए निवेश को बढ़ाने पर सहमति जताई है.

अंतरराष्ट्रीय मंचों में सऊदी अरब का दख़ल उसे विदेशों में कृषि क्षेत्र में निवेश की प्रतिबद्धता को मजबूती प्रदान करता है. दरअसल मंत्री Eng. अब्दुलरहमान अल फैडली की अफ्रीका यात्रा कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए निवेश को बढ़ावा देने के समझौते करने पर ही केंद्रित थी. इस यात्रा के दौरान वे सेनेगल, कोट डिलवोइर, नाइजीरिया और घाना गए थे. इसका उद्देश्य हाल ही में हुए सऊदी-अफ्रीका शिखर सम्मेलन के परिणामों को लागू करना और सऊदी अरब तथा इन अफ्रीकी देशों के बीच संबंधों को मजबूती प्रदान करना था.

अफ्रीका में UAE तथा सऊदी अरब : खाद्य व्यापार ढांचे को लेकर प्रतिस्पर्धा

कृषि निवेश के अलावा सऊदी अरब तथा UAE के बीच बंदरगाह सुविधाओं एवं लॉजिस्टिक्स में भी कड़ी प्रतिस्पर्धा है. ये दोनों बातें खाद्य व्यापार और व्यापक आर्थिक प्रभाव को बढ़ावा देने में अहम भूमिका अदा करती हैं. UAE ने लाजिस्टिक्स और री-एक्सपोर्ट हब के रूप में अपना नेतृत्व पुख़्ता कर लिया है. इसके लिए उसने रेड सी क्षेत्र तथा हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका में बंदरगाह एवं बुनियादी सुविधा ढांचे में महत्वपूर्ण निवेश किया है. अपने रणनीतिक स्थान और विस्तृत नेटवर्क का उपयोग करते हुए UAE ने DP वर्ल्ड और AD पोर्ट्‌स के माध्यम से अफ्रीका में अपने प्रभाव को विस्तारित कर लिया है. यह मजबूत लॉजिस्टिक्स ढांचा UAE को अफ्रीका से कुशलतापूर्वक खाद्यान्न आयात करने का अवसर देकर उसकी खाद्य सुरक्षा को मजबूत बनाता है.

इसके विपरीत सऊदी अरब के पास ऐसा पोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर नही है. ऐसे में उसे अफ्रीकी महाद्वीप से खाद्यान्न आयात करने में महत्वपूर्ण लॉजिस्टिकल सुविधाओं से जुड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. सऊदी अरब की रणनीति में रेड सी में स्थित लिट्टोरल स्टेट्‍स यानी भूमि से जुड़े देशों में निवेश करना शामिल है. इसके अलावा वह UAE के साथ अपने संबंधों का लाभ वाणिज्यिक कनेक्टिविटी को सुनिश्चित करने के लिए उठा रहा है. UAE की तरह सऊदी अरब अभी तक अपना ‘‘पोर्ट्‌स चैंपियन’’ विकसित नहीं कर पाया है. ऐसे में उसे DP वर्ल्ड जैसे कारोबार पर निर्भर रहना पड़ता है. हालांकि पब्लिक इन्वेस्टमेंट फंड (PIF) साम्राज्य में नए प्रमुख बंदरगाह विकसित करते हुए अफ्रीका तथा मध्य पूर्व में बंदरगाहों की क्षमता को बढ़ा रहा है.

प्रतिस्पर्धा, सहयोग और रणनीतिक आशय

अफ्रीका में UAE तथा सऊदी अरब की कृषि कूटनीति के रणनीतिक आशय बहुआयामी हैं. इसमें प्रतिस्पर्धा और सहयोग दोनों के ही सिद्धांत शामिल हैं. दोनों ही देश खाद्य संसाधनों को सुरक्षित करने के मुद्दे को लेकर ही ऐसा करने के लिए प्रेरित हुए हैं. इसका कारण यह है कि दोनों के ही पास सीमित घरेलू कृषि क्षमताएं हैं. इस वजह से उन्हें अफ्रीकी कृषि में महत्वपूर्ण निवेश करना पड़ रहा है. अपने सक्रिय और तकनीकी रूप से उन्नत दृष्टिकोण की वजह से UAE ने अपना पैर जमा लिया है. ऐसा करने के लिए उसने व्यापक वित्तीय निवेश और नवाचार वाली कृषि प्रक्रियाओं का लाभ उठाया है. इस क्षेत्र में नया होने के बावजूद सऊदी अरब महत्वपूर्ण निवेश और रणनीतिक साझेदारियों के साथ ख़ुद को बराबरी में स्थापित करता जा रहा है. यह गतिविज्ञान भले ही स्पर्धा को बढ़ा रहा है लेकिन यह स्पर्धा भूमि और संसाधन सुरक्षित करने को लेकर है और इसकी वजह से सहयोग की संभावनाएं भी बढ़ी हैं. ये संभावनाएं विशेषत: तकनीक साझा करने और क्षेत्रीय स्थिरता के मामले में देखी जा रही हैं.

अगर दोनों देश यह स्वीकार कर ले कि यह स्पर्धा जीरो-सम गेम नहीं है तो इसका दोनों ही देशों की अर्थव्यवस्थाओं को लाभ मिलेगा. इसी प्रकार खाड़ी में एक अधिक खुली और गतिशील क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था अफ्रीका के लिए भी लाभकारी ही साबित होगी.

भू-राजनीतिक रूप से अफ्रीका में उनकी गतिविधियां गठबंधन और आर्थिक परिदृश्य को नया आकार दे रही हैं. ये दोनों ही देश कृषि निवेश और बुनियादी सुविधाओं के विकास में निवेश करते हुए अपने प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. बंदरगाह सुविधाओं और लॉजिस्टिक्स पर प्रभुत्व हासिल करने की यह स्पर्धा रणनीतिक दांव के महत्व को और भी उजागर करती है. इस होड़ में UAE के पास पहले से मौजूद आधुनिक लॉजिस्टिक्स नेटवर्क उसे थोड़ा आगे कर देता है. पोर्ट यानी बंदरगाह क्षमताओं को विकसित करने की सऊदी अरब की कोशिश इस बात का संकेत है कि वह इस ख़ामी को भरने की कोशिश कर रहा है.

क्षेत्रीय स्तर पर ही संभवत: अंतर-खाड़ी प्रतिद्वंद्विता चल रही है. इसका कारण यह है कि सऊदी अरब तथा UAE दोनों ही अब अपने यहां ढांचागत सुधार करने में जुटे हुए हैं. वे ऐसा सुधार आर्थिक विविधता हासिल करने की दृष्टि से कर रहे हैं, ताकि दोनों ही देशों की तेल निर्यात पर अत्यधिक निर्भरता को कम किया जा सके. इन दोनों देशों का दृष्टिकोण उन्हें अनेक रणनीतिक क्षेत्रों में स्पर्धा करने की ओर धकेल रहा है. इसमें अफ्रीका भी शामिल है. ऐसे में दोनों के बीच की अनबन और बढ़ने की भी संभावना है.

निष्कर्ष

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का अनुमान है कि गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल (GCC) की जनसंख्या 2025 तक 57 मिलियन पहुंच जाएगी. ऐसे में GCC की खाद्य आवश्यकताओं में बहुत ज़्यादा इज़ाफ़ा होगा. सीमित कृषि योग्य भूमि होने की वजह से इन देशों को पहले ही बड़ी मात्रा में आयात पर निर्भर रहना पड़ता है. जलवायु परिवर्तन और भू-राजनीतिक अस्थिरता इस निर्भरता को और भी बढ़ा सकती है. अत: अफ्रीका जैसे उपजाऊ इलाके में कृषि निवेश को सुनिश्चित करना ही महत्वपूर्ण रूप से रणनीतिक प्राथमिकता है.

अफ्रीका में अपने राजनीतिक, आर्थिक और रक्षा संबंधी ऐतिहासिक दख़ल की वजह से UAE वहां अपने प्रभाव को बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा में इज़ाफ़ा करने के लिए कृषि कूटनीति से काम ले रहा है. लेकिन सऊदी अरब का मध्य पूर्व तथा उत्तरी अफ्रीका में बतौर नेता पुनरुत्थान और अफ्रीका में उसकी कृषि कूटनीति में आयी तेजी के कारण दोनों देशों के बीच आसन्न तनाव की संभावनाएं हकीकत बन सकती है. हालांकि यह संघर्ष टकरावपूर्ण हो यह ज़रूरी नहीं है. अगर दोनों देश यह स्वीकार कर ले कि यह स्पर्धा जीरो-सम गेम नहीं है तो इसका दोनों ही देशों की अर्थव्यवस्थाओं को लाभ मिलेगा. इसी प्रकार खाड़ी में एक अधिक खुली और गतिशील क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था अफ्रीका के लिए भी लाभकारी ही साबित होगी.


समीर भट्टाचार्य, ऑर्ब्जवर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज प्रोग्राम में एसोसिएट फ़ेलो हैं.

अहमद फ़वाज लतीफ़, ऑर्ब्जवर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं.

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