Author : Kenan Toprak

Published on Apr 24, 2024 Updated 0 Hours ago

तुर्की का ये नारा कि दुनिया पांच देशों से बड़ी है (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन), अभी भी एक ऐसी मज़बूत मांग है, जो स्थानीय और विदेशी मामलों के लोकतांत्रीकरण पर ज़ोर देती है.

अफ्रीकी देशों में वापसी के ज़रिये दुनिया को महत्वपूर्ण संदेश दे रहा है तुर्की; मददगार के रूप में बढ़ रही है हैसियत

अफ्रीका को अपने भरपूर क़ुदरती संसाधनों, तेज़ी से बढ़ रही आबादी और मुक्त बाज़ार के लिए जाना जाता है. जियोपॉलिटिक्स और कारोबार में बदलाव के चलते अफ्रीका अब ऐसे देशों के लिए जंग का मैदान बन गया है, जो अपने लिए नए मौक़े तलाश रहे हैं और अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं. अतीत की तुलना में चीन, भारत, ब्राज़ील, तुर्की और खाड़ी देशों के उभार के चलते अफ्रीका अब अधिक प्रतियोगी और बहुध्रुवीय महाद्वीप बन गया है. अफ्रीका में बढ़ती दिलचस्पी और यहां प्रभाव जमाने में जुटे ताक़तवर देशों की संख्या बढ़ने के चलते अफ्रीका की पूर्व साम्राज्यवादी ताक़तें अपने आक्रामक एजेंडे के साथ अपना दायरा बढ़ा रही हैं.

अफ्रीका में नई शक्तियों का उदय हो रहा है; इनमें से कुछ तो साझा भौगोलिक स्थितियों, इतिहास और उपनिवेशवाद और दास प्रथा के ख़िलाफ़ साझा संघर्ष से बने रिश्तों के ज़रिए अपनी साझेदारी मज़बूत कर रही हैं, वहीं कुछ देश नए साम्राज्यवाद और नई शक्ति और पूंजी की मदद से अपना प्रभाव बढ़ा रहे हैं. आज दुनिया की बड़ी ताक़तों के बीच इस बात की होड़ लगी है कि वो अफ्रीका में मज़बूत भौगोलिक सामरिक स्थिति हासिल कर लें, जिससे उन्हें महाद्वीप के समृद्ध क़ुदरती संसाधनों तक पहुंच बनाने में मदद मिले.

आज दुनिया की बड़ी ताक़तों के बीच इस बात की होड़ लगी है कि वो अफ्रीका में मज़बूत भौगोलिक सामरिक स्थिति हासिल कर लें, जिससे उन्हें महाद्वीप के समृद्ध क़ुदरती संसाधनों तक पहुंच बनाने में मदद मिले.

जब हम अफ्रीका को लेकर तुर्की की स्थिति में आ रहे बदलाव और विकास को देखते हैं, तो ऐसा लगता है कि नियमों और बर्ताव में तुर्की की रणनीति अधिक विकसित शक्तियों जैसे कि अमेरिका, ब्रिटेन या फ्रांस से काफ़ी अलग है. अफ्रीका में पश्चिमी सरकारों का तानाशाही को बढ़ावा देने, चुपके चुपके हथियारों की खेप पहुंचाने, वित्तीय सहायता के ज़रिए अपने कारोबारी हित साधने और विभाजनकारी नीतियों का लंबा इतिहास रहा है. इससे अफ्रीकी देशों को फ़ायदे से ज़्यादा नुक़सान हुआ है. इस वक़्त अफ्रीका में अपना प्रभाव बढ़ाने में जुटे देशों, जो ख़ुद को अफ्रीका का पारंपरिक साझीदार मानते हैं, की तुलना में तुर्की का ज़्यादा सम्मान रहा है. इन हालात से तुर्की को अर्थव्यवस्था के हर मोर्चे पर फ़ायदा हो सकता है.

अगर अफ्रीकी महाद्वीप के देशों की आज़ादी और स्वायत्तता, उनको राजनीतिक समानता, आपसी विश्वास, तुर्की की सभी पक्षों जीत वाली नीति जैसे साझा प्रोजेक्ट, सांस्कृतिक और पढ़ाई से जुड़ी मदद, आपसी सहयोग के अध्ययन और निवेश कूटनीतिक संबंधों पर टिके हैं, तो तुर्की की अफ्रीका नीति के पैमानों का खाका खींचने की ज़रूरत है. तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुट कावुओलु ने कहा कि अफ्रीका के साथ सहयोग का तुर्की का नज़रिया ‘आपसी लाभ पर ज़ोर देता है, जो समानता, पारदर्शिता, और स्थायित्व की नीतियों पर आधारित है.’ मोटे तौर पर यही तुर्की की अफ्रीकी महाद्वीप संबंधी नीति है. 

तुर्की की अफ्रीका वापसी

जब इतिहास से उस्मानिया सल्तनत का नाम-ओ-निशां मिट गया, तो तुर्की के शासकों ने अफ्रीका के बजाय यूरोप पर ध्यान देने को तरज़ीह दी. लेकिन, 21वीं सदी की शुरुआत के साथ ही वैश्विक प्रक्रिया में तेज़ी से बदलाव आने लगा. दुनिया की तेज़ी से बदलती तस्वीर के चलते विकास के नए पैमाने गढ़े जाने लगे. नए नज़रियों का विकास हुआ. ऐसे में तुर्की को भी अपनी विदेश नीति में बदलाव करके नया नज़रिया लाने की ज़रूरत महसूस हुई. इसका नतीजा ये हुआ कि तुर्की को, विशेष रूप से 2002 के बाद से अपने विकास के लिए नई घरेलू और विदेश नीतियों का विकास करना पड़ा है. 1998 में अपनाए गए अफ्रीका एक्शन प्लान के तहत जब वर्ष 2005 को ‘अफ्रीका का साल’ घोषित किया गया, तो तुर्की ने इसके तहत अफ्रीकी महाद्वीप को लेकर अपनी नीति में भी नए आयाम जोड़े हैं. वर्ष 2010 के बाद तो तुर्की ने ख़ास तौर से बहुआयामी नीतिगत औज़ारों की मदद से अफ्रीका के साथ अपने संबंधों का विस्तार किया है.

तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुट कावुओलु ने कहा कि अफ्रीका के साथ सहयोग का तुर्की का नज़रिया ‘आपसी लाभ पर ज़ोर देता है, जो समानता, पारदर्शिता, और स्थायित्व की नीतियों पर आधारित है.’ मोटे तौर पर यही तुर्की की अफ्रीकी महाद्वीप संबंधी नीति है. 

अफ्रीका में तुर्की ने तब दोबारा दिलचस्पी लेनी शुरू की और इस महाद्वीप की तरफ़ दोस्ती का हाथ बढ़ाया, जब बहुत से देश अफ्रीकी राष्ट्रों के साथ राजनीतिक, सैन्य और कारोबारी पहल के ज़रिए रिश्ते बढ़ा रहे थे. अफ्रीका में तुर्की का विस्तार तीन प्रमुख बातों पर टिका हुआ है: आर्थिक नीतियां, कूटनीतिक मिशन का विस्तार और मानवीय मदद. ख़ास तौर से पिछले 15 वर्षों के दौरान तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप अर्दोआन ने बार बार दौरे करके अफ्रीकी महाद्वीप के साथ अपने संबंधों में नई जान डाली है.

अफ्रीका में तुर्की की मौजूदगी

जब बात अफ्रीका में अपनी प्रतिष्ठा सुधारने की आई, तो तुर्की ने पूरे अफ्रीका के साथ अपने रिश्ते अच्छे बनाने पर ज़ोर दिया है और इसके लिए तुर्की ने तमाम अफ्रीकी देशों के साथ अपने अलग अलग संस्थानों के ज़रिए संबंध को आगे बढ़ाया है. तुर्की ने अफ्रीका में अपनी नीतियों का दायरा बढ़ाने पर काफ़ी ज़ोर दिया है और जब से एके पार्टी सत्ता में आई है, तब से ही तुर्की अफ्रीका में अपनी हैसियत बढ़ाने में जुटा हुआ है. तुर्की ने अफ्रीका में अपने दूतावासों की संख्या बढ़ाकर भी अफ्रीका से अपने रिश्तों को मज़बूती दी है. 2003 में अफ्रीका में तुर्की के 12 दूतावास थे, जो 2021 में बढ़कर 43 हो गए है.

अफ्रीका में तुर्की की सरकार के साथ साथ, टीका (तुर्की की सहयोग और समन्वय एजेंसी), डिएक (तुर्की की विदेशी आर्थिक संबंध परिषद), मारिफ फाउंडेशन स्कूल, यूनुस अमीर इंस्टीट्यूट, रेड क्रीसेंट, अनादोलु एजेंसी, दियानेट फाउंडेशन जैसी संस्थाएं और कई एनजीओ भी  काम कर रही हैं. जैसे जैसे अफ्रीकी देशों से तुर्की के संबंध बेहतर हुए हैं, वैसे वैसे उच्च स्तरीय दौरों की तादाद भी बढ़ी है. प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के तौर पर रेचेप तैयप अर्दोआन ने अब तक लगभग 30 अफ्रीकी देशों का दौरा किया है.

बदलते हुए संबंधों के चलते, आज अफ्रीका में तुर्की की संस्थागत मौजूदगी, उस स्तर पर पहुंचने के क़रीब है, जिस स्तर पर फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका और चीन हैं. इन सभी कोशिशों को हम तुर्की की बहुआयामी विदेश नीति की जागरूकता और इस बात का संकेत भी मान सकते हैं कि अफ्रीकी महाद्वीप में वो लंबी अवधि के लिए असरदार तरीक़े से पैर जमाना चाहता है.

अफ्रीका में तुर्की ने तब दोबारा दिलचस्पी लेनी शुरू की और इस महाद्वीप की तरफ़ दोस्ती का हाथ बढ़ाया, जब बहुत से देश अफ्रीकी राष्ट्रों के साथ राजनीतिक, सैन्य और कारोबारी पहल के ज़रिए रिश्ते बढ़ा रहे थे.

बहुत से देशों की तरह तुर्की भी अपनी सॉफ्ट पावर का बख़ूबी इस्तेमाल कर रहा है. तुर्की का समृद्ध इतिहास, उसकी अनूठी सभ्यता, साम्राज्यवाद और अत्याचार के ख़िलाफ़ उसका नैतिक और राजनीतिक रुख़ और उसकी ज़बरदस्त सॉफ्ट पावर, तुर्की को अन्य देशों की क़तार से बिल्कुल अलग खड़ा कर देती है. तुर्की के संस्थान, एनजीओ और तमाम अफ्रीकी देशों के साथ उसकी सभ्यता और संस्कृति के ऐतिहासिक रिश्ते, तुर्की की सॉफ्ट पावर का बहुत बड़ा स्रोत हैं.

इसी तरह तुर्की को जो प्रमुख बढ़त हासिल है, वो ये है कि वो पूरे महाद्वीपों के मुसलमानों के साथ जो आदर्श और सिद्धांत साझा करता है, उसकी मदद से वो कई अफ्रीकी देशों के साथ संवाद कर सकता है. इसके अलावा, ग़ैर मुस्लिम अफ्रीकी समुदायों से संवाद करने में तुर्की को अपने यहां एक धर्मनिरपेक्ष सरकार होने के चलते खाड़ी देशों और अन्य देशों पर बढ़त मिल जाती है. इन बातों के अलावा, हाल के वर्षों में तुर्की के टीवी सीरियल अब अफ्रीकी महाद्वीप में उसकी सॉफ्ट पावर के विस्तार का बहुत बड़ा ज़रिया बन गए हैं और उनकी लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है. अफ्रीका में मुसलमान हों या ईसाई, दोनों ही तुर्की के टीवी सीरियल बहुत पसंद करते हैं. हमएंगल के साथ जुड़े एक स्वतंत्र रिसर्चर और विश्लेषक अलियू दाहिरू के मुताबिक़, तुर्की का ऐतिहासिक सीरियल ‘दिरिलिस एर्तुग्रुल’ नाइजीरिया में बेहद लोकप्रिय बन चुका है और इसके चलते लोग उस्मानिया साम्राज्य में दोबारा दिलचस्पी लेने लगे हैं.

अफ्रीका में तुर्की का रक्षा उद्योग

जैसे जैसे अफ्रीका में स्थानीय निर्माण क्षमता बढ़ रही है, तो तुर्की के रक्षा कारोबारी अफ्रीका में अपने विस्तार पर लगातार ज़ोर दे रहे हैं. तुर्की के रक्षा उद्योगों के विभाग (SSB) ने 2019-23 के लिए एक रणनीतिक योजना जारी की है. इसके तहते रक्षा उपकरणों में स्थानीय कल-पुर्ज़ों के उपयोग को बढ़ाकर 75 प्रतिशत करने और रक्षा निर्यात को वर्ष 2023 तक बढ़ाकर 10.2 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है.

हाल के दिनों में कई अफ्रीकी देशों ने तुर्की से हथियार ख़रीदने शुरू किए हैं. अफ्रीका में हथियारों की बिक्री पर संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘2018 में तुर्की के रक्षा उद्योग ने बर्किना फासो को 40, चाड को 20, घाना को तीन मॉरिटानिया को छह और सेनेगल को 25 बख़्तरबंद गाड़ियां बेची थीं.’

इसके अलावा अल्जीरिया, नाजीरिया, रवांडा और ट्यूनिशिया जैसे देशों को भी तुर्की ने बख़्तरबंद गाड़ियां बेची हैं. इनमें से ज़्यादातर कोब्रा ब्रांड की हथियारबंद गाड़ियां हैं, जिन्हें ओटोकार ने बनाया है. तुर्की ने कई अफ्रीकी देशों को राइफलें और हैंडगन भी बेची हैं.

.बदलते हुए संबंधों के चलते, आज अफ्रीका में तुर्की की संस्थागत मौजूदगी, उस स्तर पर पहुंचने के क़रीब है, जिस स्तर पर फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका और चीन हैं.

तुर्की ने बताया था कि वर्ष 2019 में उसके हथियारबंद गाड़ियां बनाने वाले निर्माता कैटमर्सिलर को ‘एक अनाम अफ्रीकी देश’ से 2 करोड़ डॉलर के हथियारों का ठेका मिला था.

तुर्की की रक्षा ठेकेदार कैटमर्सिलर अफ्रीका में अपना प्रभाव बढ़ा रही है. उसने अभी जून महीने में ही केन्या के साथ 118 बख़्तरबंद गाड़ियों की ख़रीद-फरोख़्त का सौदा किया है.

जैसे जैसे तुर्की के घरेलू गाड़ियों के निर्माताओं का अफ्रीका में विस्तार हो रहा है, तो उसके सैन्य उद्योग का अफ्रीकी देशों को निर्यात भी आने वाले वर्षों में बढ़ेगा. 

इसी तरह तुर्की में बनाए जाने वाले सिहा मानव रहित विमान (UAV), अटक हमला करने वाले हेलिकॉप्टर, और आल्टे टैंक को भी अफ्रीकी सरकारें तरज़ीह दे सकती हैं.

तुर्की चाहता है कि रक्षा उद्योग के निर्यात के साथ साथ उसके देश की सेनाओं और अफ्रीकी देशों के सैन्य बलों के बीच भी संबंध मज़बूत हों. तुर्की की सेना ने सोमालिया की राजधानी मोगादिशू में एक सैन्य अड्डा बनाया है, जहां सोमालिया के सैनिकों को प्रशिक्षण दिया जाता है. इसके अलावा 26 दिसंबर 2019 को तुर्की और संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता प्राप्त लीबिया की वैधानिक सरकार के बीच हुए सुरक्षा समझौते और सैन्य सहयोग की सहमति के तहत, तुर्की के सैन्य बल (TSK) लीबिया की सेना को प्रशिक्षित कर रहे हैं.

तुर्की की सेना ने सोमालिया की राजधानी मोगादिशू में एक सैन्य अड्डा बनाया है, जहां सोमालिया के सैनिकों को प्रशिक्षण दिया जाता है.

पांच देशों से बड़ी है दुनिया

जिस तरह तुर्की ने संघर्षों का समाधान करने में सहयोग दिया है, उससे शांति और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के तुर्की के प्रयासों को नई रफ़्तार मिली है. इसमें अफ्रीकी देशों लीबिया और सोमालिया की मिसालें शामिल हैं. इसका नतीजा ये हुआ है कि तुर्की की सरकार अफ्रीका को शांतिपूर्ण और स्थिर बनाए रखने के लिए साझेदारियां कर रही है और उन्हें मज़बूत भी बना रही है. एक उभरती ताक़त के रूप में तुर्की का स्तर बढ़ा है. इसके अलावा मानवीय मददगार और सॉफ्ट पावर के रूप में भी उसकी बढ़ी हुई हैसियत से लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है. बहुत से अफ्रीकी देश संप्रभुता का समर्थन करने वाले तुर्की के बयानो को तरज़ीह देते हैं. बहुत से अफ्रीकी देशों की तरह तुर्की का भी यही मानना है कि पश्चिमी देशों के मानव अधिकार, आर्थिक उदारीकरण और लोकतंत्र संबंधी बयानबाज़ी में एक पाखंड छुपा है. तुर्की लगातार इस बात पर ज़ोर देता है कि विकसित देशों की तरह विकासशील देशों संप्रभुता और उनकी क्षेत्रीय अखंडता का भी सम्मान हो. इसके साथ साथ वो एक निष्पक्ष और स्थायी वैश्विक अर्थव्यवस्था का भी समर्थक है. तुर्की का ये नारा कि दुनिया पांच देशों से बड़ी है (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन), अभी भी एक ऐसी मज़बूत मांग है, जो स्थानीय और विदेशी मामलों के लोकतांत्रीकरण पर ज़ोर देती है.

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