दो वर्ष पूर्व भारत एवं चीन के मध्य पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी में टकराव हुआ था, लेकिन स्थिति वर्तमान समय में भी सामान्य नहीं हुई है. अभी भी पेंगोंग त्सो, गलवान, गोगरा हॉटस्प्रिंग इन क्षेत्रों में सेना का जमाव है. अत: एलओसी की समस्या का क्या समाधान होगा, गलवान घाटी की टकराव की स्थति से कैसे निजात मिलें ये सवाल आज भी बरकरार है. रूस–युक्रेन युद्ध के कारण भी चीन रूस के करीब आया है, इससे भी वैश्विक रणनीति में बदलाव देखा गया है. भारत के पड़ोस में हो रहे इन राजनीतिक, कूटनीतिक और सामरिक हलचल पर ओआरएफ़ के वीडियो मैगज़ीन गोलमेज़ के ताज़ा एपिसोड में अभिजीत सिंह और नग़मा सह़र ने बातचीत की. उसी बातचीत पर आधारित है ये लेख, जिसका शीर्षक है ‘गलवान घाटी संघर्ष के दो साल बाद: सबब और सबक’
अभिजीत सिंह, नग़मा सहर.
नग़मा – LAC को लेकर गलवान घाटी में हुए संघर्ष को तीन साल होने को आये और साथ में वार्ता भी चल रही है, भारत चीन के रिश्ते में क्या बदलाव आया है?
अभिजीत – गलवान घाटी में हुए संघर्ष के दौरान चीन और भारत दोनों तरफ के सैनिकों की जान गयी है जिसमें सबसे महत्वपूर्ण यह है कि विश्वास को लेकर दोनों के बीच दूरियां बढ़ गयी हैं. 15 राउंड के कोर कमांडर की बैठक वार्ता हो चुकी है और 10 राउंड के WLCC की वार्ता भी होती है, लेकिन इसके बावजूद कुछ निष्कर्ष नहीं निकल पाया और तनाव का माहौल अभी भी बना हुआ है. भारत की तरफ़ से जो अवकाश के लिए कहा गया था उसके बाद पेंगोंग त्सो, गलवान घाटी में से ज़रूर कुछ हद तक सेना की वापसी हुई है किंतु गोगरा हॉट स्प्रिंग, डेमचोक जैसे क्षेत्र संकटमय स्थिति में है. चीन और भारत दोनों कूटनीतिक रणनीति अपना रहें है और जो वार्ता की जा रही है, उसमें कुछ विशेष सफलता हासिल नहीं हो रही है बल्कि चीन तो यह मान रहा है कि भारत की सेना चीन के क्षेत्र में बैठी है, यह अब राजनीतिक रूप ले चुका है. दूसरी ओर चीन आधारभूत संरचना का निर्माण कर रहा है, जिसमें ब्रिज़, सड़क, बंकर आदि का निर्माण कर रहा है जो बहुत उन्नत शैली के हैं और उनकी स्थिति को सुदृढ़ करेगा. भारत ने भी श्योक नदी पर पुल का निर्माण किया है, रिपोर्ट के अनुसार 27 पुल, सड़क का निर्माण किया गया है और चीन के बराबर आने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन चीन की तरफ जो सेना को एकत्रित करने का काम हो रहा है वो चीन को आगे बढाने का कार्य करता है और शायद वो काम भारत अब तक नहीं कर पा रहा है. दूसरी और दोनों देशों के मध्य अविश्वास बढ़ा है और पूर्वी व मध्य क्षेत्र तथा एलएसी (LAC) पर सेना का जमाव हुआ है. सिक्किम, अरुणाचल एवं हिमाचल में भी यही हालात है और यदि ऐसी स्थिति में सेना को पीछे किया जाता है तो यह आसान नहीं है. सबसे महत्वपूर्ण यह है कि वर्ष 2020 में जब यह घटना घटी तब हमारी इंटेलिजेंस टीम असफ़ल हुई थी जो हमारी सबसे बड़ी ग़लती थी क्योकि चीन के बारे में हम यह मान रहे थे कि यदि वहाँ ऐसा माहौल है तो चीन ऐसा नहीं करेगा. गलवान घाटी में मई 2020 से ही ऐसे संदेश आने शुरू हो गए थे कि चीनी सैनिक हमारी सीमा पर आ गये हैं, पर उनको गंभीरता से नहीं लिया गया और पूर्ण रूप से हम अपनी सीमाओं की सुरक्षा नहीं कर पाए, यह हमारी सबसे बड़ी भूल थी.
वर्ष 2020 में जब यह घटना घटी तब हमारी इंटेलिजेंस टीम असफ़ल हुई थी जो हमारी सबसे बड़ी ग़लती थी क्योकि चीन के बारे में हम यह मान रहे थे कि यदि वहाँ ऐसा माहौल है तो चीन ऐसा नहीं करेगा. गलवान घाटी में मई 2020 से ही ऐसे संदेश आने शुरू हो गए थे कि चीनी सैनिक हमारी सीमा पर आ गये हैं, पर उनको गंभीरता से नहीं लिया गया और पूर्ण रूप से हम अपनी सीमाओं की सुरक्षा नहीं कर पाए, यह हमारी सबसे बड़ी भूल थी.
नग़मा – लद्दाख में चीनी गतिविधि चौंकाने वाली है, गलवान घाटी संघर्ष के दौरान भारत एवं चीन के बीच क्या बदलाव आया है?
अभिजीत – हाल ही में जनरल फ्लिमं ने कहा कि चीन की आधारभूत संरचना का निर्माण भारत के लिए चिंताजनक है और यही बात उनके सचिव ऑस्टिन ने शांगरी लॉ डायॅलाग में भी दोहराई. अमेरिका का यह मानना है कि रूस-युक्रेन युद्ध में भी भारत खुलकर अमेरिका के साथ नहीं आया, वहीं भारत भी यह मानता है कि चीन के साथ तनाव के समय अमेरिका ने भी इस मसले पर कुछ ख़ास दिलचस्पी नहीं दिखाई थी और हमें कोई अंतरराष्ट्रीय समर्थन भी प्राप्त नहीं हुआ था. अमेरिका की राजनीतिक रणनीति के स्वरूप बार बार यह जताने का प्रयास कर रहा है, कि वह भारत के साथ खड़ा है चाहे वह क्वॉड का मसला हो या, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र या फिर हाल ही में संपन्न हुए हिन्द-प्रशांत आर्थिक फ्रेमवर्क हो. भारत ने यह भी स्पष्ट किया है कि सीमा पर जो तनाव की स्थिति है उसमें हमें किसी का साथ नहीं चाहिए, और जो पेंगोंग त्सो के पास निर्माण कार्य हो रहा है वो भारत की भूमि पर नहीं बल्कि चीन के आधिकारिक क्षेत्र में ही हो रहा है. हमें भ्रमित होने की आवश्यकता नहीं है.
भारत ने यह भी स्पष्ट किया है कि सीमा पर जो तनाव की स्थिति है उसमें हमें किसी का साथ नहीं चाहिए, और जो पेंगोंग त्सो के पास निर्माण कार्य हो रहा है वो भारत की भूमि पर नहीं बल्कि चीन के आधिकारिक क्षेत्र में ही हो रहा है. हमें भ्रमित होने की आवश्यकता नहीं है.
नग़मा – रूस–युक्रेन युद्ध के कारण चीन रूस के करीब आया है और क्वॉड जैसे संगठन मजबूत हए है, इनसे हिन्द–प्रशांत क्षेत्र पर क्या असर पड़ेगा?
अभिजीत – इसमें कोई संदेह नहीं है कि रूस-युक्रेन युद्ध में चीन एक नई शक्ति के रूप में उभरकर सामने आया है और हमें शक्ति के संतुलन में एक हलचल भी देखने को मिली. वहीं हम ग़ौर करे तो गलवान घाटी जो चीन के लिए विकट स्थिति हो गयी है और चीन यह सब हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिय कर रहा है. आस्ट्रेलिया से एक रिपोर्ट आई है जिसमें यह कहा गया कि चीन दक्षिणी चीन सागर, पश्चिमी प्रशांत सागर के साथ हिन्द सागर में भी अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है. चीन के कंबोडिया, म्यांमार, मालदीव, एवं अफ्रीका के साथ कई ऐसे समझौते हुए है जिसमें सिविल एवं सैन्य आधारभूत संरचना का विकास किया जा रहा है. चीन की रणनीति में भिन्नता है, दक्षिणी चीन सागर में चीन सर्वाधिक मात्रा में सैन्य मोर्चा बढ़ाता है वहीं हिंद महासागर में चीन धीरे-धीरे विकासात्मक कार्यो के द्वारा अपनी बढ़त बढ़ा रहा है. भारत के विशेषज्ञों ने कहा की हमें चीन से मुकाबला करने के लिए अमेरिका से मिलकर क्वॉड जैसे संगठन को और मज़बूत करना होगा एवं नौसैनिक बढ़ाने चाहिए. भारतीय विशेषज्ञों ने यह बात कुछ हद तक सही कही है लेकिन चीन का मुक़ाबला करने के लिए हमें समग्र रणनीति की आवश्यकता होगी जिसमें आर्थिक, तकनीक, साइबर एवं आधारभूत संरचना मूल रूप से शामिल हो. यदि हम हिन्द-प्रशांत आर्थिक फ्रेमवर्क के विषयों पर भी ग़ौर करें तो उसमें भी तक़नीक, साइबर, आर्थिक, समुद्री क्षेत्र में जागरूकता बढ़ाने वाले मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया है. साथ ही यह भी कहा गया कि चीन समुद्री क्षेत्र में अवैध रूप से फिशिंग कर रहा है उसको रोकने के लिए समुद्री क्षेत्र में जागरूकता कार्यक्रम शुरू करने की आवश्कता है और शक्ति के संतुलन को बनाये रखने के लिए हमें अपने साझीदारों को महत्त्व देना ज़रूरी है.
भारतीय विशेषज्ञों ने यह बात कुछ हद तक सही कही है लेकिन चीन का मुक़ाबला करने के लिए हमें समग्र रणनीति की आवश्यकता होगी जिसमें आर्थिक, तकनीक, साइबर एवं आधारभूत संरचना मूल रूप से शामिल हो.
नग़मा – रूस–युक्रेन युद्ध के कारण चीन एवं रूस करीब आये है और वैश्विक विभाजन भी बढ़ा है, परिणामस्वरूप हिन्द–प्रशांत क्षेत्र में किस तरह का बदलाव देखा गया है ?
अभिजीत – रूस-युक्रेन युद्ध की वजह से चीन रूस के कुछ हद तक करीब आया है पूर्ण रूप से नहीं, और चीन ने कहा भी है की यह युद्ध इतना ज़रूरी नहीं था क्योंकि युद्ध के कारण चीन को भी खामियाज़ा भुगतना पड़ रहा है. अत: यह उचित नहीं होगा की चीन एवं रूस एकसाथ है. चीन की रणनीति अलग है यदि हम ताइवान और दक्षिणी चीन सागर के मुद्दे को देखे तो चीन ने कहा कि यह हमारा आधिकारिक क्षेत्र है और हम इसकी रक्षा करेंगे, रूस की तरह आक्रामक रवैया नहीं अपनाता. ताइवान में अमेरिका के बढ़ते क़दम को रोकने के लिए भी चीन ने चेतावनी ही दी रूस की तरह आक्रमण नहीं किया. चीन की रणनीति बिलकुल अलग है और वो ताइवान को एक अलग रणनीति के तहत घेरेगा. भारत को भी हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में चीन को रोकने के लिए एक ऐसी रणनीति की आश्यकता होगी. क्योंकि जो गलवान घाटी में सीमा पर तनाव चल रहा है इसका प्रतिउत्तर हमें हिन्द-प्रशांत क्षेत्र तथा दक्षिणी चीन सागर में भूमिका बढ़कर देना होगा.
मई में चीन के विदेश मंत्री जब भारत आये थे तब उन्होंने भी यही कहा था कि सीमा पर जो विवाद चल रहा है उसको हम सुधारने की कोशिश करेंगे लेकिन इससे हमारे संबंधो पर असर नहीं पड़ना चाहिए और भारत इससे सहमत था.
नग़मा – गलवान घाटी विवाद के तीसरे साल के दौरान भारत और चीन का क्या नज़रिया है?
अभिजीत – निष्कर्ष के तौर पर हम यह मान सकते हैं कि गलवान घाटी के बाद दोनों में अविश्वास तो बढ़ा है किंतु दोनों देशों के बीच सुधार भी हुआ है, जैसे चीन के साथ व्यापार बढ़ा है जो 30 बिलियन तक पहुँच गया है, और हाल ही में ब्रिक्स के माध्यम से भारत-चीन मिलकर एक नवाचार सैटेलाइट स्पेस कोऑपरेशन करेंगे. चीन में जो ब्रिक्स सम्मेलन होगा उसमे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल होंगे. अत: ऐसा नहीं है की हमने गलवान मुद्दे के बाद चीन से व्यापारिक, राजनीतिक बातचीत पूरी तरह से भंग कर दी है. मई में चीन के विदेश मंत्री जब भारत आये थे तब उन्होंने भी यही कहा था कि सीमा पर जो विवाद चल रहा है उसको हम सुधारने की कोशिश करेंगे लेकिन इससे हमारे संबंधो पर असर नहीं पड़ना चाहिए और भारत इससे सहमत था. भारत ने यह भी कहा कि ऐसे मुद्दों को चीन जल्द हल करे ताकि उसके बाद हम बेहतर संबंध बना पायें और इसी पथ पर दोनों देश आगे बढ़ते चलें.
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