Published on Apr 21, 2022 Updated 1 Days ago

क्या चंडीगढ़ को लेकर हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश के बीच लंबे समय से चला आ रहा विवाद कभी सुलझ पाएगा?

चंडीगढ़ को लेकर खींचतान: राज्यों के बीच लंबे समय से चला आ रहा विवाद और 2024 का लोकसभा चुनाव!

केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए हालिया आदेश के तहत अब चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश के कर्मचारियों पर केंद्रीय सेवाओं के नियम लागू होंगे, न कि मौजूदा पंजाब सेवा के नियम. इस अधिसूचना ने राज्यों के बीच सीमा के लंबे समय से चल आ रहे विवाद को एक बार फिर से उभार दिया है. चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश को लेकर जो विवाद अभी पैदा हुआ है, वो मुख्य रूप से पंजाब और हरियाणा के बीच है, जो क़रीब पांच दशक से चला आ रहा है. केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए हालिया क़दम पर, नई नई चुनी गई आम आदमी पार्टी की पंजाब सरकार ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. उसका कहना है कि केंद्र सरकार ने चंडीगढ़ पर पंजाब के प्रशासनिक अधिकार को छीन लिया है. पंजाब विधानसभा ने चंडीगढ़ पर पंजाब के इकलौते दावे को दोहराते हुए एक प्रस्ताव भी पास किया. इस प्रस्ताव में केंद्र सरकार से बड़े ज़ोरदार तरीक़े से कहा गया कि वो चंडीगढ़ को पंजाब के हवाले कर दे. पंजाब विधानसभा के प्रस्ताव के जवाब में हरियाणा विधानसभा ने भी एक प्रस्ताव पारित किया और कहा कि, ‘केंद्र सरकार को ऐसा कोई भी क़दम नहीं उठाना चाहिए जो दोनों राज्यों के बीच मौजूदा संतुलन में खलल डाले. केंद्र को चाहिए कि जब तक पंजाब के पुनर्गठन से पैदा हुए सभी विषयों का समाधान न हो जाए तब तक सौहार्द को बनाए रखे.’

केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए हालिया आदेश के तहत अब चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश के कर्मचारियों पर केंद्रीय सेवाओं के नियम लागू होंगे, न कि मौजूदा पंजाब सेवा के नियम. इस अधिसूचना ने राज्यों के बीच सीमा के लंबे समय से चल आ रहे विवाद को एक बार फिर से उभार दिया है.

इतिहास पर एक नज़र

चंडीगढ़ पर अधिकार क्षेत्र का ये विवाद काफ़ी पुराना है. चूंकि अविभाजित पंजाब की राजधानी रहा लाहौर शहर, 1947 में देश के बंटवारे के चलते पाकिस्तान में चला गया था. इसलिए, बंटवारे के बाद भारत के पंजाब राज्य को एक नई राजधानी की ज़रूरत थी. आज़ादी के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने पंजाब से सलाह-मशविरा करके 1948 में शिवालिक की पहाड़ियों के नीचे चंडीगढ़ के नाम से एक नया योजनाबद्ध शहर बसाने की परियोजना की शुरुआत की, जो पंजाब की राजधानी बनेगा. चंडीगढ़ शहर का निर्माण होने तक, पंजाब की राजधानी शिमला रही. 21 सितंबर 1953 को पंजाब की राजधानी शिमला से चंडीगढ़ स्थानांतरित हुई. विवाद तब पैदा हुआ, जब 1966 में पंजाब पुनर्गठन एक्ट 1966 के तहत पंजाब सूबे को काटकर हरियाणा राज्य बनाया गया. भारत के अविभाजित पंजाब राज्य के पहाड़ी इलाक़े हिमाचल प्रदेश में मिला दिए गए. 1966 से चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया, जो सीधे केंद्र सरकार के अंतर्गत आता है. लेकिन, चंडीगढ़ में पंजाब के वही क़ानून लागू रहे, जो अविभाजित पंजाब के वक़्त लागू थे. चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश, पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों की राजधानी बन गया. उसकी संपत्तियों को 60 और 40 के अनुपात में पंजाब और हरियाणा के बीच बांटा गया. उस वक़्त केंद्र सरकार ने ऐलान किया था कि नए राज्य हरियाणा को बाद में अलग राजधानी मिलेगी और पूरा चंडीगढ़ शहर दोबारा पंजाब को दिया जाएगा.

कई दशक बीत जाने के बाद अब तक भी हरियाणा राज्य की अलग राजधानी का निर्माण नहीं हो सका है. जुलाई 1985 में केंद्र सरकार उस वक़्त चंडीगढ़ को पंजाब को देने के बेहद क़रीब पहुंच गई थी, जब अबोहर और फ़ाज़िल्का जैसे हिंदी बोलने वाले क़स्बे हरियाणा को दिए जाने थे.

हालांकि, उस वक़्त केंद्र ने चंडीगढ़ शहर को भी दो हिस्सों में बांटकर हरियाणा और पंजाब को देने के विकल्प पर विचार किया था; लेकिन, शहर को जिस योजनाबद्ध तरीक़े से बनाया गया था, उसमें चंडीगढ़ को इस तरह से बांट पाना मुमकिन नहीं था. इसी वजह से केंद्र सरकार ने हरियाणा से कहा कि वो पांच साल तक चंडीगढ़ से ही अपनी राजधानी का काम चलाए और इस दौरान अपनी अलग राजधानी बसा ले. केंद्र सरकार ने इसके लिए हरियाणा को वित्तीय मदद देने का भी प्रस्ताव दिया था. लेकिन, कई दशक बीत जाने के बाद अब तक भी हरियाणा राज्य की अलग राजधानी का निर्माण नहीं हो सका है. जुलाई 1985 में केंद्र सरकार उस वक़्त चंडीगढ़ को पंजाब को देने के बेहद क़रीब पहुंच गई थी, जब अबोहर और फ़ाज़िल्का जैसे हिंदी बोलने वाले क़स्बे हरियाणा को दिए जाने थे. केंद्र ने ये वादा राजीव- लोंगोवाल समझौते के तहत किया था. मगर ये समझौता लागू नहीं किया जा सका. 1980 और 90 के दशक में पंजाब में उग्रवाद और इस विवाद के समाधान को लेकर दोनों राज्यों के बीच सहमति न होने के चलते ये विवाद अब तक ज़िंदा है. पंजाब के नेता लगातार ये मांग करते रहे हैं कि पूरा चंडीगढ़ पंजाब राज्य को दिया जाए. इस बारे में पंजाब की विधानसभा द्वारा कई प्रस्ताव पारित किए जा चुके हैं, जिनमें चंडीगढ़ पर पंजाब का एकमुश्त हक़ होने की बात दोहराई गई है.

परस्पर दावे और लगातार जारी सियासी खींच-तान

इतने लंबे समय से चले आ रहे क्षेत्रीय विवाद में कई भागीदार हैं जिनके अपने अपने तर्क हैं. मोटे तौर पर तीन ऐसी बातें हैं, जिनसे इस विवाद में अपने अपने पक्ष में तर्क देने वालों के हित आपस में टकराते हैं- इलाक़े को लेकर दावे, संसाधनों का बंटवारा और राजनीतिक नफ़ा- नुक़सान. पहला, चंडीगढ़ इलाक़े पर दावा पहचान से भी जुड़ा है और दावेदार राज्यों के जज़्बात का भी मामला है. पंजाब के लिए चंडीगढ़ एक सांस्कृतिक केंद्र का काम करता है और ये राज्य की GDP का भी एक प्रमुख स्रोत है. पंजाब के नेता बार-बार चंडीगढ़ पर अपने राज्य के ऐतिहासिक दावे को भी दोहराते हैं और इसके लिए वो केंद्र सरकार के बार बार किए गए उन वादों की तरफ़ ध्यान दिलाते हैं, जब पूरे चंडीगढ़ को पंजाब को सौंपने का भरोसा दिया गया था. वहीं दूसरी तरफ़ वैसे तो हरियाणा ने फ़रीदाबाद और गुरुग्राम जैसे महत्वपूर्ण वित्तीय केंद्र विकसित कर लिए हैं. फिर भी वो चंडीगढ़ में अपनी हिस्सेदारी का दावा करता है, क्योंकि हरियाणा का मानना है कि चंडीगढ़ उसके अंबाला ज़िले का अभिन्न अंग है. इसीलिए दोनों ही राज्यों के सभी दल, केंद्र शासित प्रदेश पर अपने इस जज़्बाती दावे को लेकर एकजुट हैं. इसके अलावा, 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फ़ैसला भी सुनाया था. जिसमें अदालत ने ये कहा था कि ‘1966 के पंजाब पुनर्गठन क़ानून के तहत चंडीगढ़ के 7.19 फ़ीसद हिस्से पर हिमाचल प्रदेश का भी हिस्सा है.’ हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भी हाल ही में चंडीगढ़ में हिमाचल प्रदेश की हिस्सेदारी का मुद्दा उठाया है. इस मामले में सबसे अहम दावेदार ख़ुद चंडीगढ़ का केंद्र शासित प्रदेश है. हाल में उठे विवाद के दौरान चंडीगढ़ के निकाय ने एक प्रस्ताव पारित किया और एक विधानसभा के साथ चंडीगढ़ के एक केंद्र शासित प्रदेश बने रहने की ख़्वाहिश जताई, जिससे केंद्र के अंतर्गत उसकी स्वायत्तता बनी रहेगी.

पंजाब की नाराज़गी की एक बड़ी वजह चंडीगढ़ प्रशासन में उसकी घटती हिस्सेदारी और वहां पर केंद्रीय अधिकारियों की बढ़ती तैनाती रही है. इसके अलावा, पंजाब ने भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड जैसी साझा संपत्तियों के मिल-जुलकर किए जाते रहे प्रबंधन में अपनी हिस्सेदारी में हेर-फेर को लेकर भी चिंता जताई है.

दूसरी बात ये कि सभी दावेदारों की प्राथमिकता संसाधनों तक बेहतर पहुंच की रही है. पंजाब की नाराज़गी की एक बड़ी वजह चंडीगढ़ प्रशासन में उसकी घटती हिस्सेदारी और वहां पर केंद्रीय अधिकारियों की बढ़ती तैनाती रही है. इसके अलावा, पंजाब ने भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड जैसी साझा संपत्तियों के मिल-जुलकर किए जाते रहे प्रबंधन में अपनी हिस्सेदारी में हेर-फेर को लेकर भी चिंता जताई है. वहीं दूसरी तरफ़, हरियाणा की मांग ये है कि चंडीगढ़ के विधानसभा परिसर में उसे 20 कमरे मिलें, जिन पर पंजाब ने अवैध क़ब्ज़ा किया हुआ है. हरियाणा अपने लिए अलग हाई कोर्ट की मांग भी करता रहा है. वहीं हिमाचल प्रदेश ने भाखड़ा नांगल परियोजना में बनने वाली बिजली में से 7.19 प्रतिशत हिस्सा मांगा है. केंद्र सरकार ने ऐलान किया है कि चंडीगढ़ में तैनात केंद्रीय कर्मचारियों को संशोधित नियमों से बेहतर तनख़्वाह, रिटायर होने की ज़्यादा उम्र और बच्चों के रख-रखाव की बेहतर सुविधाओं का लाभ मिलेगा. लेकिन, इस बात को लेकर चिंता भी जताई गई है कि जब केंद्र के नियम लागू होंगे तो चंडीगढ़ को सरकारी पदों के लिए ज़्यादा उम्र तक नौकरी हासिल करने की मौजूदा सुविधाएं और पंजाब सेवा के नियमों के तहत मिलने वाले शहर के मुआवज़े और भत्ते नहीं मिलेंगे. तो इस बात को लेकर मतभेद हैं कि चंडीगढ़ में तैनात केंद्र के कर्मचारियों के लिए, केंद्रीय सेवा के नियम लागू होने के फ़ायदे ज़्यादा हैं या नहीं. क्योंकि चंडीगढ़ जो 1980 के दशक के आख़िर तक केंद्रीय सेवा के नियमों के दायरे में आता था, उसने बेहतर अवसरों के लिए पंजाब के नियम लागू करने की मांग की थी, जो 1991 में लागू किए गए थे.

तीसरा, कई विशेषज्ञों ने ये राय ज़ाहिर की है कि परस्पर टकराव वाले क्षेत्रीय दावों और अलग अलग दावेदारों के हितों को लेकर अलग नज़रियों के अलावा, हालिया विवाद पैदा करने में राजनीतिक नफ़ा- नुक़सान का भी अहम योगदान रहा है. चंडीगढ़ के नगर निकाय पर हाल के दिनों तक बीजेपी का दबदबा रहा था. मगर, दिसंबर 2021 में हुए चुनावों में वहां पर आम आदमी पार्टी ने काफ़ी अच्छा प्रदर्शन किया था. इस बात की अटकलें लगाई जा रही हैं कि केंद्र सरकार के इस दांव से 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को काफ़ी फ़ायदा हो सकता है. क्योंकि, केंद्रीय सेवा के नियम लागू होने से जिन कर्मचारियों को फ़ायदा होगा, वो बीजेपी को तरज़ीह दे सकते हैं. वहीं दूसरी तरफ़, पंजाब में पिछले चुनाव के बाद सनसनीख़ेज़ तरीक़े से सत्ता में आने वाली आम आदमी पार्टी जो चंडीगढ़ में भी बड़ी सियासी ताक़त बन रही है, उसके लिए इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाए रखना पंजाब, हरियाणा और ख़ुद चंडीगढ़ की सियासत के लिहाज़ से भी बहुत ज़रूरी है.

चंडीगढ़ के नगर निकाय पर हाल के दिनों तक बीजेपी का दबदबा रहा था. मगर, दिसंबर 2021 में हुए चुनावों में वहां पर आम आदमी पार्टी ने काफ़ी अच्छा प्रदर्शन किया था. इस बात की अटकलें लगाई जा रही हैं कि केंद्र सरकार के इस दांव से 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को काफ़ी फ़ायदा हो सकता है.

संघीय संवाद की ज़रूरत

आज जब केंद्र और राज्यों के रिश्ते विवादों और अविश्वास के शिकार हैं, उस समय लंबे समय से चले आ रहे इस विवाद के चलते राज्यों के बीच टकराव बढ़ने की पूरी आशंका है. क्योंकि इससे न केवल संघीय व्यवस्था में ख़लल पड़ेगा बल्कि इससे आपसी तालमेल से चलने वाली प्रशासनिक व्यवस्था में भी बाधा पड़ने का डर है. इस विवाद के और बढ़कर पड़ोसी राज्यों के बीच बड़े पैमाने पर अविश्वास और संदेह का रूप लेने से पहले इस मामले में सभी भागीदार राज्यों- पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के बीच संवाद की शुरुआत की जानी चाहिए. इसमें केंद्र सरकार को समन्वय करने वाली भूमिका निभानी चाहिए. इस मामले का सर्वमान्य और दूरगामी समाधान निकालने के लिए चंडीगढ़ की जनता की राय भी ली जानी चाहिए. इन सबसे ज़रूरी तो ये है कि अलग अलग राजनीतिक और दलगत हितों को पीछे रखकर संघीय संवाद की ज़रूरत आज वक़्त की मांग है, जिसमें सभी राजनीतिक दावेदार पूरी ईमानदारी से शिरकत करें.

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