Published on Oct 15, 2022 Updated 24 Days ago

म्यांमार में लगातार जारी हिंसा राष्ट्र के भीतर और आसपास की स्थिरता के लिए खतरा है.

अशांत म्यांमार: क्षेत्रीय सुरक्षा फिर ख़तरे में

2021 में हुए तख्तापलट के बाद से ही म्यांमार एक युद्धक्षेत्र बन गया है. देश के अधिकांश हिस्सों, विशेषत: उत्तरपूर्वी तथा दक्षिणपूर्वी इलाकों में लगातार संघर्ष देखा जा रहा है. डेपायिन टाउनशिप में 16 सितंबर को सैनिक सरकार की ओर से करवाए गए हवाई हमले में सात स्कूली बच्चों की मौत ने दुनिया को दहला दिया था. इस हमले में बच गए लोगों को सेना ने यह कहकर हिरासत में लिया है कि यह स्कूल विद्रोहियों का गढ़ है. खबरों के अनुसार तख्तापलट के बाद से अब तक लगभग 2000 लोगों को, जिसमें उम्र, लिंग और दिव्यांगता का भेद नहीं किया गया है, लोकतंत्र समर्थक समूहों का करीबी होने का आरोप झेलते हुए संघर्ष अथवा अन्य घातक घटनाओं की वजह से अपनी जान गंवानी पड़ी है. लगभग 20,000 सार्वजनिक संपत्तियों, जिसमें आवासीय, धार्मिक और शैक्षणिक केंद्र शामिल हैं, को नष्ट कर दिया गया है. दुर्भाग्यवश यह आंकड़े वहां होने वाली हिंसा और विध्वंस का सही आकलन नहीं करते, क्योंकि इस जानकारी की पुष्टि करना संभव नहीं है. इसके बावजूद इनको देखकर यह समझा जा सकता है कि यह देश इस वक्त किस भयावह मानवीय संकट को झेलते हुए इस क्षेत्र की स्थिरता के लिए गंभीर खतरा बना हुआ है.

नाराज पड़ोसी 

म्यांमार के साथ सीमा साझा करने वाले पड़ोसी देश वर्तमान स्थिति को लेकर दो कारणों से नाराज हैं : पहला है हवाई सीमा का अतिक्रमण. सैनिक सरकार की ओर से निरंतर किए जा रहे हवाई हमलों के कारण पड़ोसी देशों में दागे जाने वाले गोलों की वजह से कुछ थाई और बांग्लादेशी नागरिकों को घायल होना पड़ा है और वहां की संपत्ति को भी क्षति पहुंची है. इन देशों ने इन घटनाओं को लेकर अपनी शिकायत दर्ज करवा दी है.

तख्तापलट के बाद से अब तक लगभग 2000 लोगों को, जिसमें उम्र, लिंग और दिव्यांगता का भेद नहीं किया गया है, लोकतंत्र समर्थक समूहों का करीबी होने का आरोप झेलते हुए संघर्ष अथवा अन्य घातक घटनाओं की वजह से अपनी जान गंवानी पड़ी है. लगभग 20,000 सार्वजनिक संपत्तियों, जिसमें आवासीय, धार्मिक और शैक्षणिक केंद्र शामिल हैं, को नष्ट कर दिया गया है.

एक ओर जहां बांग्लादेश ने अपने क्षेत्र में अनेक गोले दागे जाने की बात स्वीकारी है, वहीं सैनिक सरकार ने इसकी जवाबदेही लेने से इंकार करते हुए इसके लिए विद्रोहियों को दोषी बताया है. लेकिन बांग्लादेश की सरकार ने साफ कर दिया है कि यह म्यांमार की जिम्मेदारी है कि वह अपनी सीमा में होने वाली हिंसा को नियंत्रण में रखें. इस संदर्भ में विदेश मंत्रालय ने यह दोहरा दिया है कि आतंकवाद के मुद्दे पर वह पड़ोसी देशों की सुरक्षा को लेकर शून्य सहिष्णुता नीति अर्थात जीरो टॉलरेंस पॉलिसी अपनाती है.

थाइलैंड में भी कुछ इसी तरह की स्थिति देखी जा रही है. जुलाई 2022 में थाई ग्रामीणों ने सूचना दी कि एसएसी के लड़ाकू विमानों ने थाई अधिकार क्षेत्र में तीन मर्तबा 5 किलोमीटर की घुसपैठ की थी. इस वजह से थाई सीमा में बसे ग्रामीणों के बीच घबराहट और असुरक्षा की भावना पनपी थी. खबरें हैं कि एक ओर जहां थाई सैनिक म्यांमार के लड़ाकू विमानों की थाई क्षेत्र में घुसपैठ को लेकर स्पष्ट रूप से नाराज है, वहीं दूसरी ओर थाईलैंड की सरकार इस मामले को यह कहते हुए भूला देना चाहती है कि म्यांमार ने इसके लिए माफी मांग ली है.

बढ़ती हुई विस्थापना का मुद्दा पड़ोसियों के बीच नाराजगी का दूसरा कारण है. बांग्लादेश इस बात को लेकर आशंकित है कि लगतार होने वाले हवाई हमलों की वजह से बड़ी मात्रा में रोहिंग्या विस्थापित होंगे. बांग्लादेश पहले ही 2017 में उपजे रोहिंग्या संकट के बाद विस्थापित होकर बांग्लादेश आने वाले शरणार्थियों की व्यवस्था करने में परेशानी का सामना कर रहा है. बांग्लादेश ने कड़े शब्दों में म्यांमार से कह दिया है कि वह अब और शरणार्थियों को अपने यहां नहीं आने देगा. इसी प्रकार थाईलैंड और भारत भी अब अपने यहां बड़ी संख्या में पहुंचने वाले शरणार्थियों को समाहित करने में सक्षम नहीं है. इसका कारण यह है कि दोनों ने ही 1951 के शरणार्थी सम्मेलन अथवा 1968 में बने इसके प्रोटोकॉल यानी मूल पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. सितंबर 2022 के पहले सप्ताह में म्यांमार के 500 नागरिकों ने भारतीय राज्य मिजोरम में प्रवेश किया. मिजोरम पहले से ही 30,000 विस्थापितों की व्यवस्था करने में जुटा हुआ है. इसी प्रकार थाईलैंड में भी आधिकारिक रूप से 20,000 शरणार्थियों को आश्रय दिया गया है, जबकि असल आंकड़ा इससे ज्यादा भी हो सकता है. एक ओर जहां बांग्लादेश ने साफ शब्दों में अपनी नाराजगी व्यक्त की है, वहीं बैंकॉक और नई दिल्ली अपनी चिंताएं व्यक्त करने में हिचक रहे हैं. इसका कारण यह है कि दोनों ही म्यांमार के साथ अपनी रणनीतिक और सुरक्षा से जुड़े हितों को ध्यान में रखकर संबंधों को बनाए रखना चाहते हैं.

बढ़ती हुई विस्थापना का मुद्दा पड़ोसियों के बीच नाराजगी का दूसरा कारण है. बांग्लादेश इस बात को लेकर आशंकित है कि लगतार होने वाले हवाई हमलों की वजह से बड़ी मात्रा में रोहिंग्या विस्थापित होंगे.

क्षेत्रीय संस्थान

आसियान जैसे क्षेत्रीय संस्थानों ने पांच सूत्रीय सहमति का प्रस्ताव दिया है, ताकि खुले तौर पर बातचीत होकर म्यांमार में पुन: शांति स्थापित की जा सके. लेकिन सैनिक सरकार इसमें से कुछ सूत्रों पर काम करने को लेकर हिचकिचा रही है, जिससे साफ है कि यह योजना काम नहीं करने वाली है. अब यह देखना है कि क्या आसियान कोई नया और बेहतर प्रस्ताव तैयार करता है और सैनिक सरकार इसे स्वीकार करेगी या नहीं.

क्षेत्रीय संगठनों के बीच कोई ठोस कदम उठाने की पहल का अभाव इस क्षेत्र में और भी अनिश्चितता पैदा कर रहा है. इस वजह से अंतर्देशीय अपराध जैसे नागरिकों, संसाधनों तथा मादक पदार्थो के अवैध और असुरक्षित आवागमन को बढ़ावा मिल रहा है. 

एक और उपक्षेत्रीय संगठन बीआईएमएसटीईसी (बिम्सटेक), जिसमें म्यांमार, भारत, बांग्लादेश और थाईलैंड सदस्य हैं, ने अब तक सुरक्षा को लेकर उठ रही  चिंताओं को लेकर कोई उपयुक्त रणनीति नहीं बनाई है. क्षेत्रीय संगठनों के बीच कोई ठोस कदम उठाने की पहल का अभाव इस क्षेत्र में और भी अनिश्चितता पैदा कर रहा है. इस वजह से अंतर्देशीय अपराध जैसे नागरिकों, संसाधनों तथा मादक पदार्थो के अवैध और असुरक्षित आवागमन को बढ़ावा मिल रहा है.

म्यांमार के भीतर और उस क्षेत्र में हो रही हिंसा और उससे होने वाले विनाश को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने अपने सदस्य देशों से अपील की है कि वह म्यांमार को हथियारों की बिक्री बंद कर दें. लेकिन इस सलाह पर कोई ध्यान देता दिखाई नहीं दे रहा है. म्यांमार को अपने अधिकांश हथियार दो महाशक्तियों, चीन और रूस से मिलते हैं. तख्तापलट के बाद भी इन दोनों देशों ने म्यांमार को हथियार, गोला-बारुद और हवाई जहाजों की आपूर्ति जारी रखी है. हाल ही में रूस से साथ परमाणु सहयोग संधि पर हस्ताक्षर करते हुए म्यांमार ने रूस के साथ अपने रिश्तों को और मजबूत बना लिया है. इस संधि के चलते अब वहां की सैनिक सरकार परमाणु ऊर्जा हासिल करने के अपने सपने को पूरा करने की उम्मीद कर रही है. सैनिक सरकार यह दावा करती है कि वह इस परमाणु ऊर्जा का उपयोग बिजली पैदा करने के लिए करने वाली है. इसके अलावा मेडिकल और वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए भी इसका उपयोग किया जाएगा. लेकिन अनेक विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि सेना इसका उपयोग परमाणु हथियार बनाने के लिए ही करेगी. यदि यह आशंका सही साबित हुई तो इससे दुनिया के सामने जटिल मुद्दा खड़ा हो जाएगा. यहां सनद रहे कि म्यांमार परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर कर चुका है. यह एक ऐसा कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है, जो परमाणु हथियारों को व्यापक रूप से प्रतिबंधित करता है. म्यांमार ने 2018 में बनी परमाणु हथियारों के निषेध की संधि पर भी हस्ताक्षर किए हैं. लेकिन उसने अभी तक इसकी पुष्टि नहीं की है. अंतर्राष्ट्रीय कानून की सैनिक सरकार ने जो हालिया अवहेलना की है उससे यह कहना बेहद मुश्किल है कि वह इन अंतर्राष्ट्रीय संधियों का भविष्य में सम्मान करेगा या नहीं.

म्यांमार में जारी हिंसा को रोकने को लेकर क्षेत्रीय मंचों ने कोई ठोस काम नहीं किया है. इस वजह से अनेक लोगों को निराशा हुई है. वर्तमान स्थिति को देखते हुए कुछ नए उपाय किए जाने की आवश्यकता है, ताकि वहां चल रही अशांति को प्रभावी रूप से कम करने में सफलता मिले. क्योंकि इस अशांति में क्षेत्र को अस्थिर करने की क्षमता है.

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