कोविड-19 वैश्विक महामारी से मुक़ाबले में बेहद अहम सप्लाई चेन्स के ठप पड़ जाने और अत्यावश्यक चीज़ों की किल्लत के मद्देनज़र, दक्षिण अफ्रीका और भारत ने अक्टूबर 2020 में डब्ल्यूटीओ में ट्रिप्स काउंसिल के समक्ष ‘व्यापार-संबंधी बौद्धिक संपदा अधिकार’ (ट्रिप्स) समझौते के कुछ प्रावधानों से छूट का प्रस्ताव रखा, ताकि सप्लाईज़ के विनिर्माण में विविधता लायी जा सके. कोविड-19 से बचाव, रोक-थाम व उपचार के लिए, टीकों, जांच व चिकित्सा सामग्री से जुड़े बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) से छूट चाहने वाले प्रस्ताव को सौ से ज़्यादा देशों और सिविल सोसाइटियों का समर्थन मिला. हालांकि, यूरोपीय संघ (ईयू), स्विट्जरलैंड, फिनलैंड, और कई अन्य विकसित राष्ट्रों ने इस छूट का विरोध किया. उनका तर्क था कि मौजूदा ट्रिप्स समझौता पात्र देशों को, अनिवार्य लाइसेंसिंग के ज़रिये, टीका बनाने की अनुमति देने के लिए पर्याप्त लचीलेपन और औज़ारों से लैस है. इस लचीलेचन के बावजूद, ऐसी रिपोर्ट्स थीं कि आपात स्थिति के दौरान भी आईपीआर एक रोड़ा बना रहा. जब ट्रिप्स के लचीलेपन का फ़ायदा उठाने की कोशिश करते हुए विकासशील देशों ने विवादों और व्यापार प्रतिबंधों को आकर्षित किया है, तब भारत चिकित्सा व जांच सामग्री और उपकरणों को शामिल करने के लिए ट्रिप्स छूट के प्रावधानों को विस्तृत करने के लिए बातचीत जारी रखे हुए है.
ट्रिप्स छूट पर विचार-विमर्श के इन 20 महीनों के दौरान, कई मौक़ों पर या शिखर सम्मेलनों में टीकों की उपलब्धता में समता (वैक्सीन इक्विटी) के विषय पर बात की गयी, और विकल्पों के बारे में सोचा गया, लेकिन इस छूट पर सहमति और सहयोग छलावा ही बने रहे.
ट्रिप्स छूट पर विचार-विमर्श के इन 20 महीनों के दौरान, कई मौक़ों पर या शिखर सम्मेलनों में टीकों की उपलब्धता में समता (वैक्सीन इक्विटी) के विषय पर बात की गयी, और विकल्पों के बारे में सोचा गया, लेकिन इस छूट पर सहमति और सहयोग छलावा ही बने रहे. कमज़ोर एजेंडा निर्धारण के परिणामस्वरूप लगातार इधर-उधर की ही बात की गयी, क्योंकि सदस्य असंगत हितों की रक्षा के प्रयासों तथा प्रस्तावित छूट की शब्दावली की परस्पर-विरोधी व्याख्याओं के ज़रिये आपस में बंटे हुए थे, जिसने अत्यावश्यक चिकित्सकीय संसाधनों तक समतापूर्ण पहुंच में सुधार के लिए किसी नीतिगत कार्रवाई के अवसरों को नष्ट कर डाला. जिस समय महामारी ने निम्न-आय वाले देशों को असमानुपातिक ढंग से प्रभावित किया, जीवनरक्षक संसाधनों तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए समानुपातिक नीतिगत कार्रवाई को अमलीजामा नहीं पहनाया गया. प्रभावित समुदायों की मदद कर सकने वाले उपकरणों और संसाधनों तक पहुंच मुहैया कराने के वास्ते उपयुक्त व पर्याप्त नीतिगत कार्रवाई को ठोस स्वरूप देने में नीत-निर्माताओं की हिचकिचाहट के लिए ‘नीतिगत हिचकिचाहट’ शब्द का इस्तेमाल किया जा सकता है. इस पेपर ने दो मॉडलों, किंगडन (Kingdon) के मॉडल और डिडेरिक्शन (Diderichsen) के मॉडल, का इस्तेमाल कर नीतिगत हिचकिचाहट का एक विहंगावलोकन मुहैया कराने की कोशिश की है. हमने सदस्य देशों के बयानों के मनोभाव विश्लेषण (सेंटिमेंट एनालिसिस) के ज़रिये भी वैश्विक नेतृत्व के बीच नीतिगत हिचकिचाहट को दर्शाया है और पहली बार छूट प्रस्तावित किये जाने के बाद से घटित मुख्य घटनाओं, कार्रवाइयों और निर्णयों पर और चर्चा की है.
किंगडन का स्ट्रीम्स मॉडल सुझाता है कि समस्या, और राजनीतिक एवं नीतिगत धाराओं का संरेखण (अलाइनमेंट) नीति बनाने के लिए अवसर की एक खुली खिड़की की ओर ले जाता है. ट्रिप्स से छूट की शर्तों का सही समय पर इस्तेमाल द्वि-श्रेणीय वैश्विक पुनरुद्धार को रोकने के लिए एक औज़ार के रूप में किया जाना चाहिए था, जहां विकसित और विकासशील राष्ट्र, वैश्विक महामारी के ख़िलाफ़ वैश्विक एकजुटता के लिए सचेत प्रयासों के साथ, तकनीक और व्यावहारिक ज्ञान साझा कर सकते थे, साथ ही जीवनरक्षक संसाधनों तक पहुंच के अवरोध हटा सकते थे. इसके बजाय, राष्ट्रवादी नीतियां अपनाये जाने, टीकों के ज़ख़ीरे जमा किये जाने, टीकों के ठेके के संबंध में पारदर्शिता और जवाबदेही के अभाव, और टीकों की तकनीक व संसाधनों को लगातार अपने तक सीमित रखे जाने के चलते विषमता का मसला और बढ़ गया (चित्र 1). ट्रिप्स से छूट के एजेंडे की हैसियत आईपीआर के भविष्य से जुड़े राजनीतिक पहलू से पार नहीं पा सकी, और नीतिगत आम सहमति के अवसर को खो दिया गया.
चित्र 1 : इस मामले के लिए किंगडन स्ट्रीम मॉडल का अनुकूलन
ऐसी नीति बनाने में हिचकिचाहट, जो समता और मिलकर काम करने को बढ़ावा देती हो और दोहा घोषणा की शर्तों के अनुरूप हो, द्विपक्षीय स्तर पर नीतिगत अमल में कठिनाइयों को उस वक़्त उजागर करती है जब लाइसेंसिंग प्रावधानों का इस्तेमाल किया जाना सिर्फ़ कोविड-19 के लिए नहीं, बल्कि मंकीपॉक्स महामारी जैसे भविष्य के ख़तरों के लिए भी हो. ट्रिप्स समझौते के अनुच्छेद 66.2 के मुताबिक़, औद्योगीकृत देशों से उम्मीद की जाती है कि वे मानव कल्याण तथा अधिकारों और दायित्वों के संतुलन को बढ़ावा देने के लिए सबसे कम विकसित देशों को तकनीक और विशेषज्ञता हस्तांतरित करने में योगदान देंगे. इन प्रावधानों को लागू करना मुश्किल साबित हुआ है, क्योंकि इन्हें मोटे तौर पर लिखा गया है तथा आईपीआर निजी अधिकार समझते जाते हैं, इसलिए, तकनीकी फ़ासला काफ़ी चौड़ा बना हुआ है, जिसका सबूत है कि कई सबसे कम विकसित देश दवाओं के लिए लगभग पूरी तरह आयात पर निर्भर हैं.
डब्ल्यूटीओ सदस्यों के दृष्टिकोण को समझने के लिए, हमने ट्रिप्स से छूट के प्रति उनके मनोभावों के परीक्षण के लिए ‘वैलेंस अवेयर डिक्शनरी फॉर सेंटीमेंट रीजनिंग’ (VADER) मॉडल का इस्तेमाल किया, जो मंत्रीय सम्मेलन में सदस्य देशों द्वारा दिये गये बयानों पर आधारित था.
विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का 12वां मंत्रीय सम्मेलन 12 जून 2022 को बहुपक्षवाद की उम्मीद और सदस्य देशों की ओर से डब्ल्यूटीओ के प्रति, विश्व व्यापार और वैश्विक आर्थिक विकास के लिए एक प्रणाली के रूप में, समर्थन भरे बयानों के साथ आयोजित हुआ. डब्ल्यूटीओ सदस्यों के दृष्टिकोण को समझने के लिए, हमने ट्रिप्स से छूट के प्रति उनके मनोभावों के परीक्षण के लिए ‘वैलेंस अवेयर डिक्शनरी फॉर सेंटीमेंट रीजनिंग’ (VADER) मॉडल का इस्तेमाल किया, जो मंत्रीय सम्मेलन में सदस्य देशों द्वारा दिये गये बयानों पर आधारित था.
ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, कीनिया, और 100 से ज़्यादा देशों ने ट्रिप्स समझौते के कुछ प्रावधानों से छूट के ज़रिये वैक्सीन इक्विटी की मांग की, जबकि ईयू, जर्मनी, नॉर्वे, और 20 से ज़्यादा औद्योगीकृत देश अब भी आईपीआर की अखंडता और नवाचार के प्रोत्साहन के संबंध में चिंताओं का आकलन कर रहे थे. बहरीन, इज़राइल और सिंगापुर उन राष्ट्रों में शामिल हैं जिन्होंने मंत्रीय सम्मेलन से पहले जारी किये गये बयानों में छूट पर अपनी टिप्पणी को रोक लिया है, जबकि अल्बानिया, रोमानिया और कई अन्य देश छूट के संबंध में तटस्थ हैं. उन्होंने टीकों की उपलब्धता में समता की ज़रूरत को स्वीकार किया है, लेकिन अस्थायी छूट के संबंध में ख़ामोश रहे हैं.
ईयू, दक्षिण अफ्रीका, भारत और अमेरिका ने अपने विचार-विमर्श में समस्या-समाधान दृष्टिकोण का उपयोग किया. मेडिकल सप्लाईज के विनिर्माण में विविधीकरण का मार्ग प्रशस्त करने के लिए कुछ स्थितियों में सरकारें पेटेंट अधिकारों की कैसे अवहेलना कर सकती हैं, इसे समझाने, स्ट्रीमलाइन करने और सरल बनाने के व्यावहारिक उपाय सुझाये गये. छूट प्रणालियों में इलाज और जांच को शामिल किये जाने की अनुमति देने पर, विरोध कर रहे राष्ट्रों की नीतिगत हिचकिचाहट के चलते एजेंडा निर्धारण को स्थापित नहीं किया जा सका. वैश्विक नीतिगत हिचकिचाहट संशोधित ट्रिप्स छूट पर आपत्ति और लंबे व कठिन विचार-विमर्श की ओर ले गयी, जिसका नतीजा कोविड-19 की जांच और चिकित्सा सामग्री के उत्पादन व आपूर्ति के विविधीकरण को सीमित किये जाने के ज़रिये नीतिगत समाधानों को कमज़ोर किये जाने के रूप में सामने आया. छूट की ज़रूरत को लेकर नीतिगत हिचकिचाहट ने ‘बिल्ड बैक बेटर’ (बेहतर पुनर्निर्माण) के लक्ष्य को हक़ीक़त बनने से रोका, और आम सहमति के अभाव के चलते ट्रिप्स से छूट, जैसी कि योजना थी, जून 2022 में डब्ल्यूटीओ मंत्रीय सम्मेलन में हासिल नहीं हो सकी. इसके बजाय, कोविड-19 वैक्सीन के लिए अनिवार्य लाइसेंसिंग की अनुमति देने वाली एक कमज़ोर छूट हासिल हुई. कुछ ने इस बीच-के-रास्ते वाली ट्रिप्स छूट पर सावधानी भरे आशावाद के साथ प्रतिक्रिया दी और इसे कोविड-19 के ख़िलाफ़ संसाधनों के समतापूर्ण वितरण की दिशा में पहले क़दम के बतौर स्वीकार किया. जबकि, दूसरों को डर है कि यह आंशिक छूट महामारी से वैश्विक रूप से उबरने के लिए आवश्यक वहनीय उपकरणों, चिकित्सा एवं जांच सामग्री तक निर्बाध व त्वरित पहुंच के लिए नीतिगत अवरोधों को हटाने में नाकाम रहेगी.
वैक्सीन इक्विटी हासिल करने के लिए, उभर रहे मसलों के ख़िलाफ़ वैश्विक एकजुटता के महत्व को समझते हुए स्पष्ट एजेंडा निर्धारण के ज़रिये नीतिगत कार्रवाई को लागू करने की ज़रूरत है. डिडेरिक्शन मॉडल स्वास्थ्य असमानता उत्पन्न होने की क्रियाविधि को दिखाता है
वैक्सीन इक्विटी हासिल करने के लिए, उभर रहे मसलों के ख़िलाफ़ वैश्विक एकजुटता के महत्व को समझते हुए स्पष्ट एजेंडा निर्धारण के ज़रिये नीतिगत कार्रवाई को लागू करने की ज़रूरत है. डिडेरिक्शन मॉडल स्वास्थ्य असमानता उत्पन्न होने की क्रियाविधि को दिखाता है, जैसे, सामाजिक स्थितियां आबादी का ऐसे समूहों में स्तरीकरण करती हैं जो असमान जोखिम और भेद्यता (वल्नरबिलिटी) से गुजर रहे होते हैं, ख़ासकर मौजूदा क्षमता और संसाधनों की सीमित उपलब्धता के संदर्भ में. जैसाकि डिडेरिक्शन मॉडल ने दर्शाया है, नीति को उच्च-आय वाले देशों की तुलना में निम्न एवं मध्यम-आय वाले देशों में सामाजिक स्तरीकरण, असमान प्रभाव, और बीमारी के असमानुपातिक नतीजे के परिणामों को भी समाहित करना चाहिए (चित्र 2). कोविड-19 के संदर्भ में गंवा दी गयी अवसर की खिड़की की वजह से गैर-टीकाकृत आबादी में वायरस का फैलना जारी रहा, जिससे डेल्टा और ओमिक्रॉन जैसे उत्परिवर्तित वेरिएंट्स की प्राणघातक दूसरी लहर आयी.
चित्र 2 : इस मामले के लिए डिडेरिक्शन मॉडल का अनुकूलन
वर्तमान में, भारत ने उपकरणों, चिकित्सा एवं जांच सामग्री को शामिल करने के लिए, ट्रिप्स छूट में लचीलेपन के विस्तार के लिए शर्तों पर दोबारा बातचीत जारी रखी हुई है. डब्ल्यूटीओ की बैठकों में अपनायी गयी अनिवार्य लाइसेंसिंग प्रक्रिया पर असमानुपातिक ज़ोर दिये जाने के मद्देनज़र, मौजूदा टेक्स्ट (समझौते के शब्द) अब भी जीवनरक्षक संसाधनों तक पहुंच की अनुमति देने तक ही सीमित है. ब्रिटेन समेत अन्य राष्ट्रों से भारत की मुलाक़ात के साथ ट्रिप्स समझौता एक बार फिर एजेंडे पर था. नवीनतम मुक्त व्यापार समझौते में, ब्रिटेन ने ट्रिप्स और जन स्वास्थ्य पर दोहा घोषणा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को नवीकृत किया और दवाओं तक, ख़ासकर ‘अंतरराष्ट्रीय चिंता के जन स्वास्थ्य आपातकाल’ (PHEIC) के दौरान, बेहतर पहुंच के समर्थन में आगे आया है. जब कोविड-19 के लिए ट्रिप्स छूट के और विस्तार के वास्ते बातचीत जारी है, एक दूसरा जन स्वास्थ्य ख़तरा, मंकीपॉक्स, अफ्रीकी देशों में जो चुनौती पेश कर रहा है उसे बहुत कम या कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल रही है. अफ्रीका में महामारी का रूप लेने के बावजूद, इस ख़तरे से निपटने के लिए इस महाद्वीप को अभी तक कोई टीका नहीं मिला है. इस टीके की लगभग 1.6 करोड़ ख़ुराकें उन्हीं राष्ट्रों ने जमा कर रखी हैं, जिन्होंने कोविड-19 के लिए ट्रिप्स से छूट का विरोध किया.
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