Published on May 07, 2022 Updated 1 Days ago

अंतरराष्ट्रीय संबंधों में व्यापार प्रतिबंधों का इस्तेमाल ख़त्म करने पर कन्वेंशन’ सही दिशा में एक क़दम होगा. सिद्धांत रूप में, इस कन्वेंशन की मेज़बानी के लिए संयुक्त राष्ट्र सही जगह होगी.

प्रगति के पथ पर लगातार आगे बढ़ता ट्रेड गवर्नेंस — क्या सिर्फ़ प्रजातांत्रिक व्यवस्थाओं के लिये ही है?

ये लेख  — रायसीना फाइल्स 2022 का हिस्सा है.


आइकेनबेरी (2020) के नक़्शे क़दम पर चलते हुए, यह स्वीकार कर पाना आसान है कि, विश्व (अ)व्यवस्था[1] में बढ़ती अराजकता की मौजूदा स्थिति में, बड़ी और मुख्य मझोली शक्तियां ‘अराजकता की समस्याओं’ जैसे आधिपत्य के लिए संघर्ष, सुरक्षा एवं प्रभाव क्षेत्र के लिए प्रतिस्पर्धा, या प्रतिक्रियावादी राष्ट्रवाद से पूरी तरह ग्रसित हैं. वह आगे कहते हैं, हालांकि उन्हें ज़्यादा ख़तरा ‘उभरते, अंतरसंबद्ध, एक से दूसरे के पास पहुंचते पारराष्ट्रीय (ट्रांसनेशनल) जोखिमों’ से है: महामारियां, वित्तीय संकट, ख़तरनाक ढंग से बढ़ रहा प्रदूषण का ख़तरा और व्यापक नाभिकीय प्रसार इनमें से कुछ हैं.

जब मुक्त व्यापार के रामबाण नुस्ख़े का दुरुपयोग उचित या ज़्यादा उचित व्यापार की ओर ज़्यादा यथार्थवादी दृष्टि के लिए जगह बना रहा है, तो व्यापार के दूसरे उद्देश्यों को स्वर मिला है. रोज़गार सृजन, वैश्वीकरण को लेकर असंतोष बढ़ा रहा है; अब यह स्पष्ट है कि कम योग्य और अंतरराष्ट्रीय दक्षता मंत्र द्वारा बेदख़ल लोगों के लिए रोज़गार सुरक्षित करने को अधपकी अनुकूलन नीतियों के सहारे नहीं छोड़ा जाना चाहिए.

स्थिर और सघन अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रवाहों को बनाये व सुनिश्चित रखने की क्षमता का लोप होना एक बड़ा पारराष्ट्रीय ख़तरा है. लोकतंत्रों के बीच सामंजस्यपूर्ण प्रगति और एक व्यापक कल्याण-वर्धक लक्ष्य, जिसमें शासनों (रिजीम्स) की बहुलता शामिल हो, के लिए इस तरह की गतिविधि बहुत महत्वपूर्ण है.

जब मुक्त व्यापार के रामबाण नुस्ख़े का दुरुपयोग उचित या ज़्यादा उचित व्यापार (फेयर या फेयरर ट्रेड) की ओर ज़्यादा यथार्थवादी दृष्टि के लिए जगह बना रहा है, तो व्यापार के दूसरे उद्देश्यों को स्वर मिला है. रोज़गार सृजन, वैश्वीकरण को लेकर असंतोष बढ़ा रहा है; अब यह स्पष्ट है कि कम योग्य और अंतरराष्ट्रीय दक्षता मंत्र द्वारा बेदख़ल लोगों के लिए रोज़गार सुरक्षित करने को अधपकी अनुकूलन नीतियों के सहारे नहीं छोड़ा जाना चाहिए. पर्यावरण को देखभाल की ज़रूरत है, डिजिटल से निबटा जाना चाहिए, और राजनीति व विशेष हितों (जो हमेशा मौजूद रहते हैं) को अमूमन दूर रखा जाना चाहिए.

हालांकि, यह अभी गहरी सुसुप्तावस्था में नहीं है, लेकिन संबंधित अंतरराष्ट्रीय संस्था ‘विश्व व्यापार संगठन’ (डब्ल्यूटीओ) को कभी-कभी कठपुतली संस्था बनने के नाते निंदित और दरकिनार किया गया है. काफ़ी हद तक अशासन (अनगवर्नेंस) की मौजूदा स्थिति अव्यवस्था की ओर पहल क़दम है. अलग-अलग, स्वायत्त व्यापार मंडलों को बनाना और उनसे दूसरों को बाहर रखना एक पश्चगामी क़दम होगा, जिसके गंभीर नतीजे सामने आयेंगे.

हम एक आधुनिक और लचीले अंतराष्ट्रीय संस्थान (जो सभी को आकर्षित करे) की सरपरस्ती में, मौजूदा व्यापार के आक्रामक, अवरोधक और मनमौजी पहलुओं के साथ किस तरह इसी कार्य के एक बेहतर, नाममात्र ही अधिक न्यायपूर्ण और ज्यादा कल्याण-वर्धक अंतरराष्ट्रीय संस्करण का मेल-मिलाप कराएं, जो एक पर्याप्त स्तर का शासन (गवर्नेंस) सुनिश्चित कर सके?

ग्लोबलाइज्ड विश्व प्रतिस्पर्धा अब किसी विशिष्ट वस्तु के प्रतिस्पर्धी संस्करणों की आपूर्ति पर केंद्रित नहीं है. हालांकि, प्रतिस्पर्धी आपूर्ति अब भी मौजूद है, लेकिन आज मुख्य फोकस तकनीकी निर्णयों और नवाचारों में निहित नियमों, मानदंडों और मानकों पर है, जो बहु-देशीय वैल्यू चेन्स के निर्माण को आसान बनाता है.

यह पर्चा (पेपर) ट्रेड गवर्नेंस की मौजूदा प्रणाली में गहरे बदलावों का प्रस्ताव करते हुए इस महत्वाकांक्षी चुनौती को संबोधित करता है. अगला खंड उन आधुनिक मुद्दों का संक्षेप में ज़िक्र करता है जिन्होंने व्यापार के मानक पैटर्न और उपयोग को पूरी तरह बदल दिया है, और फिर डब्ल्यूटीओ के साथ समस्याओं की भी चर्चा करता है. यह खंड-3 में पेश किये प्रस्तावों के लिए बिल्डिंग ब्लॉक का काम करता है. खंड 4 एक तरह के ‘इनलॉर्ज्ड व्यू’ के साथ समाप्त होता है.

व्यापार समस्याएं और संस्थानिक परेशानियां

व्यापार के आयाम

अर्थव्यवस्थाएं कई तरह की राज्य और बाजार व्यववस्थाओं को प्रदर्शित कर सकती हैं, जो कम या ज़्यादा अपूर्ण (imperfect) बाज़ारों और कम या ज़्यादा राजकीय हस्तक्षेप के साथ काम कर रही हैं, और अमूमन एकाधिकार या चंद लोगों के अधिकार से ग्रसित हैं, चाहे यह नज़र आता हो या नहीं. कुछ देशों में – और अक्सर शासन से स्वतंत्र ढंग से- राज्य मुख्य उद्यमों में अहम साझेदार हैं. इन संरचनाओं के बीच अंत:क्रिया कड़ी प्रतिस्पर्धा और शुम्पीटेरियन विनाश (Schumpeterian destruction) को जन्म देती है; व्यापार या तो एकरूपता थोपने का औज़ार हो सकता है या फिर विविधता को बढ़ावा देने के साधन के बजाय तेज़, कभी-कभी अवांछित, वैश्वीकरण को प्रोत्साहित करने का[2].

मौजूदा विश्व (अ)व्यवस्था में, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के संचित अनुभवों ने उन समस्याओं या वास्तविकताओं को जन्म दिया है जिन पर व्यापार नियमन की बहसों में ठीक से विचार नहीं हुआ है.

वैल्यू चेन परिघटना

वैल्यू चेन्स ने कई क्लासिकल शुल्क (टैरिफ) और व्यापार अवरोध प्रणालियों के तर्क को अंतत: बदल डाला है, पर साथ ही गंभीर निर्भरताएं पैदा की हैं और विशिष्ट सामग्रियों और पुर्ज़ों के महत्व को भी उजागर किया है. यह श्रम समस्याओं को बढ़ाती है (चेन में कम दक्ष उत्पादकों के ठीकठाक बड़े समूहों को विस्थापित करके) और संपत्ति अधिकारों (प्रॉपर्टी राइट्स) के नाज़ुक मुद्दों को जन्म देती है.

श्रेय जाता है विखंडित उत्पादन और अंतरराष्ट्रीय वैल्यू चेन्स के निर्माण को कि वस्तुओं के मामले में लगभग 80% व्यापार 1000 बड़े वैश्विक विनिर्माताओं से भी कम के बीच होता है. डेविड रिकार्डो[3] द्वारा परिकल्पित तुलनात्मक लाभ की स्थिति वाले जाने-पहचाने (स्थानीयकृत) वातावरण के मुक़ाबले यह काफ़ी व्यापक और ज़्यादा आधुनिक आर्थिक तर्क है.

11 दिसंबर 2001 को चीन के डब्ल्यूटीओ में शामिल होने के बाद से ही अमेरिका उसकी कार्रवाइयों की शिकायत करता रहा है. अमेरिकी पक्ष मोटे तौर पर आरोप लगाता है कि चीन ने उनकी उम्मीदों के साथ दगाबाज़ी की, जिन्होंने उसके डब्ल्यूटीओ में शामिल होने की राह आसान बनायी. वहीं चीन इससे सख़्ती से इनकार करता है और व्यापार के बहुपक्षीय दृष्टिकोण और डब्ल्यूटीओ के पक्ष में खुलकर उपदेश देता है.

ग्लोबलाइज्ड विश्व प्रतिस्पर्धा अब किसी विशिष्ट वस्तु के प्रतिस्पर्धी संस्करणों की आपूर्ति पर केंद्रित नहीं है. हालांकि, प्रतिस्पर्धी आपूर्ति अब भी मौजूद है, लेकिन आज मुख्य फोकस तकनीकी निर्णयों और नवाचारों में निहित नियमों, मानदंडों और मानकों पर है, जो बहु-देशीय वैल्यू चेन्स के निर्माण को आसान बनाता है.

डिजिटल गैलेक्सी

इसने इंटरनेट बिक्री मंचों (सेल्स प्लेटफार्म्स) से लेकर 3डी प्रिंटर्स तक, विनिमय के नये रूपों की शुरुआत की है, जिसने मौजूदा चलन को बाधित करते हुए और वर्तमान नियमनों द्वारा अभी तक संबोधित नहीं किये गये सवालों को पेश करते हुए, शुल्क और यहां तक कि क्लासिकल प्रतिस्पर्धी वातावरण जैसी भ्रांतिकारी अवधारणाओं को पूरी तरह बदल डाला है. पांच तारामंडल- अल्फाबेट/गूगल, अमेजन, एपल, फेसबुक और माइक्रोसॉफ्ट इस गैलैक्सी में प्रमुख हैं और इतने शक्तिशाली हैं कि ऐसे नियमों व तौर-तरीक़ों को निर्देशित (अलिखित रूप में) कर सकते हैं जिनसे या तो बचा जा सकता है या फिर वे पारंपरिक व्यापार प्रवाह के दायरे से बाहर लागू होते हैं. व्यापार-संबंधी बौद्धिक संपदा अधिकार चुनौतीपूर्ण और अनसुलझे नये आकार ग्रहण करते हैं.

नये (और शक्तिशाली) ऐक्टर्स

ऊपर ज़िक्र की गयी पांच भीमकाय कंपनियों के साथ, वॉलमार्ट, बेनेटन या ज़ारा, बायर, पांच सबसे बड़े फार्मास्यूटिकल उद्योगों[4], सैमसंग, हुवेई, सीमेन्स, टेन्सेंट और अली बाबा इत्यादि को शामिल कर लें, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि ये राष्ट्रों के बजाय बड़ी कंपनियां हैं जो ज़्यादा अंतरराष्ट्रीय बिक्री और बाज़ार हिस्सेदारी के लिए लड़ रही हैं, भले उनका अभिभावक देश अमूमन कुछ समर्थन प्रदान करता हो. बाजार को कैसे काम करना चाहिए, इस बारे में पारंपरिक निष्कर्षों और सिद्धांतों को यह कमज़ोर करता है, और किसी राष्ट्र – चाहे वह लोकतांत्रिक हो या न हो – को न सिर्फ़ आर्थिक, बल्कि जटिल न्यायिक और भूरणनीतिक नीति विकल्पों से सामना करने के लिए मज़बूर करता है.

राजनीतिक प्रेरणाओं का ज्वार

एक कमज़ोर अधिपति (hegemon) और कुछ मझोली शक्तियों की दावेदारी के साथ गंभीर विकल्पों की वृद्धि से उपजी (अ)व्यवस्था, हाल में, अतिरिक्त समस्याओं को सामने लेकर आयी है, जैसे :

  1. i) आत्मनिर्भरता की चाहत: विशिष्ट, कथित तौर पर रणनीतिक, वस्तुओं के उत्पादन में राष्ट्रीय स्वायत्तता को लेकर चिंताएं हमेशा से रही हैं, लेकिन कोविड-19 महामारी ने इन चिंताओं को बढ़ाया है. साथ ही, संबंधित वैल्यू चेन्स के रीडिजाइन के साथ, मुख्य कच्चे माल और पुर्ज़ों को लेकर संरक्षणवादी नीतियों पर ध्यान केंद्रित किया है;
  2. ii) प्रतिबंध: आर्थिक प्रतिबंधों का इस्तेमाल (जिनमें व्यापार पाबंदियां शायद सबसे पहले और सबसे महत्वूपर्ण हैं) इस शताब्दी के शुरुआती वर्षों से लगातार बढ़ा है, और व्यापक बन रहा है. प्रतिबंध, मानवीय लिहाज़ से और प्रभावी क्षति पहुंचाने के लिहाज़ से बहस के क़ाबिल तो हैं ही, ये व्यापार के पैटर्न को भी बाधित करते हैं और अक्सर बुनियादी व्यापार नियमनों की अवहेलना करते हैं. इनका व्यापक इस्तेमाल, चाहे जितनी समझदारी से किया जाए, अंतत: पूरी प्रणाली और कई अन्य साझेदारों (जिनका संघर्ष से लेना-देना नहीं है) को चोट पहुंचाता है;

iii) तकनीकी संरक्षणवाद: जिसे अक्सर, हालांकि गलत ढंग से, अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध कहा जाता है, वह वास्तव में तकनीकी सर्वोच्चता को लेकर संघर्ष है. इसमें विवाद की सबसे प्रमुख धुरी 5जी तकनीक है. अमेरिका इस बात से बहुत हैरान है कि चीन ने फ़िलहाल बेहतर उत्पाद[5] विकसित कर लिया है; और सुपर और क्वांटम कंप्यूटिंग में हुई प्रगति, खेल को बदल देनेवाले नागरिक और सैन्य उपयोग (अप्लीकेशन) सामने लेकर आयी है. चूंकि वस्तु और सेवाएं अपने भीतर महत्वपूर्ण तकनीक समेटे होती हैं, यह युद्ध तब व्यापार प्रतिबंधों (कई अवैध) तक फैल जाता है, और औद्योगिक नीतियां विकृत किये जाने को उकसाता है.

सामाजिक-पर्यावरणीय प्राथमिकताएं

सामाजिक और पर्यावरणीय प्राथमिकताएं वैश्विक साझा संसाधनों (ग्लोबल कॉमन्स) के बारे में अधिक जागरूकता को दिखाती हैं कि किस तरह व्यापार गतिविधियों का नियंत्रण महज़ आर्थिक दायरे तक सीमित नहीं किया जा सकता. ख़रीदी-बेची गयी वस्तुओं व सेवाओं के कार्बन फुटप्रिंट, विविधीकृत श्रमबल संबंधी चिंताओं, और यहां तक कि प्राणी जगत से जुड़े मुद्दों के समावेश को पहले से अधिक स्थान मिल रहा है. कुछ ख़ास देश और ब्लॉक पहले ही इस आधार पर अतिरिक्त शुल्क लगा रहे हैं (या लगाने की सोच रहे हैं) कि ख़रीदी गयी वस्तु या सेवा कितनी ‘हरित’ रहने वाली है.

डब्ल्यूटीओ के साथ परेशानियां

डब्ल्यूटीओ में मौजूदा संकट कब शुरू हुआ, यह पता लगाना आसान नहीं है. चीज़ें गंभीर रूप से गड़बड़ा गयी हैं, इसका स्पष्ट संकेत दिसंबर 2019 में तलाशा जा सकता है, जब संस्थान का अपीलीय निकाय (Appellate Body) कोरम के अभाव में बंद कर दिया गया, और उसके बहुत से काम व गुण सवालों और आलोचना के घेरे में आ गये. इस संकट के मूल में अमेरिका-चीन की प्रतिद्वंद्विता है. 11 दिसंबर 2001 को चीन के डब्ल्यूटीओ में शामिल होने के बाद से ही अमेरिका उसकी कार्रवाइयों की शिकायत करता रहा है. अमेरिकी पक्ष मोटे तौर पर आरोप लगाता है कि चीन ने उनकी उम्मीदों के साथ दगाबाज़ी की, जिन्होंने उसके डब्ल्यूटीओ में शामिल होने की राह आसान बनायी. वहीं चीन इससे सख़्ती से इनकार करता है और व्यापार के बहुपक्षीय दृष्टिकोण और डब्ल्यूटीओ के पक्ष में खुलकर उपदेश देता है. अपीलीय निकाय में कामकाज ठप होने के लिए अकेले अमेरिका ज़िम्मेदार है, जो नये जजों का नामांकन रोकने के लिए योजनानुसार वीटो पॉवर का इस्तेमाल कर रहा है.

इस संदर्भ में, यह लगभग अपरिहार्य है कि बहुत से सदस्यों द्वारा की गयी कार्रवाइयां अगर डब्ल्यूटीओ के नियमों का खुला उल्लंघन न भी करें, तो तय सीमाओं को लांघना ज़रूर शुरू कर देती हैं.

लोकतांत्रिक राष्ट्रों के मामले में, क़ाननू लागू करने और ज़रूरत पड़ने पर हिंसा का एकाधिकार, स्पष्ट रूप से राज्य के हाथ में है, लेकिन एक अंतरराष्ट्रीय बहुपक्षीय संगठन में कोई पुलिस उपलब्ध नहीं है, और विवादों का उचित निपटान सुनिश्चित करने के रास्ते अलग-अलग रूप धारण करते हैं, जिनमें से कोई भी आदर्श या पूरी तरह दक्ष नहीं है. 

विश्व व्यापार के क्षेत्र में ऊपर ज़िक्र की गयी नयी वास्तविकताओं ने इसकी स्थिति बिगड़ने में योगदान दिया है. डिजिटल कॉम्पेलक्स और इसके कई व्यापार-संबंधी पहलू संगठन में मौजूद एक साफ़ खालीपन को दिखाते हैं. बौद्धिक संपदा अधिकारों पर एक गंभीर अपडेट और पुनर्विचार की सख़्त ज़रूरत है. इन्हें फार्मा जैसे नाजुक क्षेत्रों में अधिक लचीला, या डिजिटल गैलेक्सी जैसे बिल्कुल नये क्षेत्रों में ज़्यादा आधुनिक बनाया जाना चाहिए. यह व्यापार और निवेश के संबंध में एक नयी दृष्टि के साथ किया जाना चाहिए, जहां माइक्रो-इकोनॉमिक उद्देश्यों और व्यापक सामाजिक लाभों के बीच संतुलन हासिल करना अतीत के मुक़ाबले और भी कठिन होगा. राजकीय व्यापारिक फर्मों के विवादित प्रश्न को इस शै की एक स्पष्ट और व्यापक मान्यता प्राप्त परिभाषा के साथ शुरू करने की ज़रूरत है.

इसके अलावा, मूल रूप से अमेरिका द्वारा की गयी आलोचना इस तर्क को उपयोग में लाती है : कि अपीलीय निकाय धीरे-धीरे इस संस्थान का दोहरा व्यक्तित्व बन गया था. वह ऐसे निर्णय और प्रकियाएं स्थापित कर रहा था जो, धीरे-धीरे और अनौपचारिक तरीक़े से – हालांकि प्रभावी ढंग से – कड़े मोलभाव से बनी संधियों की व्याख्या, और इन संधियों के जोड़ या विस्तार के रूप में, संहिताबद्ध हो जाते हैं;  लिहाज़ा, वह संगठन को एक अस्वीकार्य मात्रा में न्यायाधिकार प्रदान कर रहा था.

इस तरह, डब्ल्यूटीओ महामारी से पहले ही गहन देखभाल (इन्टेन्सिव केयर) में था. यह नयी व्यापार वास्तविकताओं के अनुरूप नहीं रह गया. इसने अपना फोकस खो दिया और बड़ी तस्वीर को भुलाते हुए आंशिक सुधारों पर केंद्रित हो गया. यह सोचना कि सामयिक उपाय, जैसे ‘डिस्प्यूट सेटलमेंट अंडरस्टैंडिंग’ (विवाद निपटान समझ) में बदलाव, इसके सांस के लिए तड़पते शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन मुहैया करा सकते हैं, भ्रामक है. बहुत सालों तक अंतरराष्ट्रीय नौकरशाहों – चाहे वे जितने क्षमतावान रहे हों – के हाथों में रहने के बाद, नये विचारों और नये ‘व्यापार आकारों व रूपों’ से निपटने के तरीकों पर पूरी तरह चर्चा की जानी चाहिए, बिना किसी पूर्वाग्रह के और बिना इस छिपी इच्छा के कि चीजें जैसी हैं उनका वैसा ही रहना सुनिश्चित रहे.

इसके बावजूद, डब्ल्यूटीओ में एक बेशक़ीमती संचित मूल्य (इसके उच्चस्तरीय स्टाफ में निहित प्रणालियों व प्रक्रियाओं की जानकारी) है जिसे संरक्षित किया जाना चाहिए, और वैश्विक व्यापार को सिद्धांतत: वैश्विक नियमों की ज़रूरत है.

महामारी के बाद के आगामी (मंदी वाले) सालों में व्यापार पैटर्न बहाल और विकसित होने के साथ ही मांग और विवादों में उछाल आयेगी. घरेलू सब्सिडी का सहारा लेना बार-बार अलग-अलग रूपों में सामने आयेगा. यह उन संरक्षणवादी उपायों में वृद्धि करेगा जो 2008-2009 के वित्तीय संकट के समय से अब भी बचे हुए हैं.

अलग-अलग मुद्दों (जैसे मुद्दे ऊपर वर्णित हैं) को अलग-अलग संबोधित करने का लोभ बढ़ेगा. यह कुकृत्यों को सुधारने, क्षतियों की मरम्मत करने और डब्ल्यूटीओ को गहन देखभाल से बाहर निकालने की व्यावहारिक भावना के तहत होगा. लेकिन क्या यह सही दिशा में उठाया गया क़दम नहीं है? और इसका नेतृत्व कौन करेगा – वह अमेरिका जो हर जगह फिर से अपनी स्पष्ट उपस्थिति चाहता है? क्या इस विकल्प से चीन खुश होगा? संभावित गठबंधनों के बारे में क्या? थीमों की बहुलता और निपटे जाने के लिए नुक़सान को देखते हुए, यह उम्मीद करना कठिन है कि मझोली शक्तियां उन सभी में एक ही नेता से चिपकी रहेंगी. क्या एक विभाजन सामने आयेगा, जहां वफ़ादार अनुयायियों के समूह या तो चीन या अमेरिका के पीछे एकजुट होंगे?

एक वैश्विक समाज, जो स्वाभाविक रूप से अराजक प्रवृत्तियों को कम करना चाहता है, में क़ानून के शासन की गारंटी के लिए अंतरराष्ट्रीय संस्थान बुनियाद हैं. लेकिन ऐसा होने के लिए एक ठीकठाक संख्या में देशों को तैयार होना होगा, इनके लिए लड़ना होगा और इन्हें समर्थन करना होगा: एक भरोसेमंद साझा प्रयास के माध्यम से डब्ल्यूटीओ के पुनर्जन्म की ज़रूरत है. और, दुर्भाग्य से, पिछले कथनों के मर्म में एक मूलभूत, प्राथमिक सवाल मौजूद है, जो किसी भी अंतरराष्ट्रीय संगठन पर बहस में अंतर्निहित है : क्या यह नयी विश्व (अ)व्यवस्था बहुपक्षवाद में विश्वास करती है और उसे चाहती है?

बहुपक्षवाद राज्यों के समुदायों के लिए लोकतंत्र के आदर्श प्रारूप में बदल जाता है. सभी तरह के देशों के साथ संलग्न होने, और कमज़ोर को शक्तिशाली के बराबर करने का वांछनीय गुण होने के बावजूद, बहुपक्षवाद जन्मजात कमियां भुगतता है.

लोकतांत्रिक राष्ट्रों के मामले में, क़ाननू लागू करने और ज़रूरत पड़ने पर हिंसा का एकाधिकार, स्पष्ट रूप से राज्य के हाथ में है, लेकिन एक अंतरराष्ट्रीय बहुपक्षीय संगठन में कोई पुलिस उपलब्ध नहीं है, और विवादों का उचित निपटान सुनिश्चित करने के रास्ते अलग-अलग रूप धारण करते हैं, जिनमें से कोई भी आदर्श या पूरी तरह दक्ष नहीं है. इसके अलावा, पक्षों के बीच लागू सैद्धांतिक समानता विकृतियां उत्पन्न कर सकती है, ख़ासकर दायित्वों के संबंध में. डब्ल्यूटीओ संधियों में, सभी सदस्यों को एक बराबर धनी, विकसित और प्रतिस्पर्धी मान लेना, कई बार उन्हें शक्तिशाली – उन्नत पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं – की ओर धकेलने का एक स्वार्थी तरीका है.

पुराने प्रारूप की तरह बाज़ार नियमनों को, इस तथ्य के बावजूद कि वे आपसी बातचीत के बाद बनीं संधियों का नतीजा थे, पक्षों पर थोपा नहीं जाता. इसके बजाय वे उनमें शामिल होने के लिए स्वतंत्र होते हैं, अगर वे ऐसा जरूरी समझते हैं तो. यह भलीभांति ज्ञात है कि, डब्ल्यूटीओं के नियम मददगार भले हों, पर वे विदेशी निवेश के लिए पूर्व-शर्त नहीं हैं, ख़ासकर मौजूदा समय में. विदेश निवेश अमूमन जोखिम और अवसरों के बीच समझौते का नतीजा होते हैं. 

ज़्यादा शक्तिशाली देश अपने विचारों को स्वीकार करने के लिए छोटे और कमज़ोर देशों पर हमेशा दबाव डाल सकते हैं. कई बार अन्य क्षेत्रों में रियायतों, जैसे विदेशी क़र्ज़ या सैन्य गठबंधन, के बदले समर्थन हासिल करने की सौदेबाज़ी के ज़रिये वे ऐसा कर सकते हैं. कई बहुपक्षीय संगठनों में इस तरह की ‘कॉरिडोर पॉलिटिक्स’ आम बात है, और डब्ल्यूटीओ में उन्हें कभी-कभी ग्रीन रूम बैठकों का नाम दिया जाता है. कॉरिडोर पॉलिटिक्स बहुपक्षवाद के गुणों को निष्प्रभावी नहीं बनाती, लेकिन उसे रोकने के लिए कार्यप्रणाली शुरू करना, आसान नहीं होने के बावजूद, एक स्वागत योग्य प्रगति है, क्योंकि उसे इस दृष्टिकोण के गोल्डन टूल में से एक को निकम्मा नहीं करना चाहिए, जो यह है – कमज़ोर का एक स्तर पर इतना बड़ा गठबंधन कि वह मज़बूत को रोक सके.

इसके साथ ही, शक्तिशाली सदस्य नियमों को तोड़ सकते हैं और अपने द्वारा समर्थित व्यवस्थाओं में भी शामिल होने से इनकार कर सकते हैं. अमेरिका का ‘समुद्रों के इंटरनेशनल कन्वेंशन’ और, उससे भी महत्वपूर्ण, ‘अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय’ का हस्ताक्षरी बनने से इनकार, और उसके बाद चीन, रूस तथा अमेरिकी संरक्षण में इस्राइल का इसी रास्ते पर चलना, इस कथित आदर्श डिजाइन की स्वीकृति की सीमाओं को दिखाता है.

हालांकि, अगर बहुपक्षवाद की रणनीति, अपनी सरलता और भ्रांतिकारी पूर्ण निष्पक्षता के साथ, मनमर्जियों के नियम (जो अराजकता के समान है) पर पूरी तरह लगाम लगाने के लिए न तो पर्याप्त रह गयी है और न ही आकर्षक, तो दूसरे समाधानों को अधिक ब्योरों की और जिम्मेदारियों की एक ज़्यादा स्पष्ट परिभाषा की ज़रूरत है.

बहुपक्षवाद को अवश्य रहना चाहिए, भले ही कम व्यापक और ज़्यादा अनुकूलित (conditioned) हो. यह एक व्यवहार्य अंतर-राज्यीय समुदाय निर्मित करता है, बशर्ते कि स्थापित शक्ति संतुलन में अधिक व्यवधान न हो. यह अंतर्निहित जंगल की भावनाओं (jungle spirits) को समाप्त नहीं करता; यह बस उन पर अध्यारोपित होता है. यहां प्रस्तावित गवर्नेंस बॉडी में, बहुलतावाद को जारी रखा जाना चाहिए.

कैसा हो नया डिज़ाइन

डब्ल्यूटीओ के क्रमिक विकास के रूप में, एक बहुपक्षीय संगठन प्रस्तावित है; इसे आईटीओ- अंतरराष्ट्रीय व्यापार संगठन कहिए, जिस नाम की कल्पना 1947 के हवाना चार्टर में की गयी थी.

इस प्रस्ताव को दो मुख्य सिद्धांत निर्देशित करते हैं. पहला, डब्ल्यूटीओ न सिर्फ़ एक भारी-भरकम ढांचे, बल्कि (बदतर यह कि) एक गैर-लचीले फ्रेमवर्क की ओर बढ़ गया, जहां पक्षों की स्वतंत्रता का स्तर उत्तरोत्तर घटता गया. सारे सदस्यों को – उनकी मर्ज़ी और विशिष्टता की परवाह किये बिना – एक ही सांचे में फिट होने को बाध्य किया जा रहा है. लचीलेपन, और जितना संभव हो उतना हल्का ढांचा, वापस लाया जाना चाहिए. दूसरा, यह स्वीकार करना होगा कि एक अंतरराष्ट्रीय संस्था में प्रवर्तन समस्यापूर्ण है और यह आसानी से गतिरोधों को पैदा कर सकता है जैसा कि आजकल डब्ल्यूटीओ द्वारा हुआ. इसके साहसिक नतीजे होंगे जैसा कि हम नीचे देखेंगे.

एक प्राथमिक सवाल है: हम मौजूदा डब्ल्यूटीओ के साथ क्या करते हैं? हम गृहीत नियम, क़ानूनों, फ़ैसलों (acquis), सबसे महत्वपूर्ण यह कि, मौजूदा संधियों और प्रतिबद्धताओं का क्या करते हैं?

डिस्प्यूट सेटलमेंट अंडरस्टैडिंग’ वह जगह है जहां सबसे बड़ा बदलाव होगा. एनेक्स 2 के पूरे फ्रेमवर्क को समाप्त करना यहां एक साहसिक फैसला है. इसकी जगह एक ज़्यादा सरल व सुव्यवस्थित संस्करण होगा. पैनलों का पहला चरण जस का तस रखा जायेगा, और पैनल के निर्णयों के ख़िलाफ़ अपील उसी पैनल के समक्ष की जा सकेगी, जिसे तब एक या दो पैनलिस्टों से बढ़ाया जा सकेगा. 

जवाब के लिए, हमें पहले सदस्यता पर बात करनी चाहिए. दो तरह के सदस्य संभव हैं: सदस्य और व्यापक सदस्य (Encompassing Members). सदस्य एक एकल बुनियादी संधि से बंधे होंगे, जो आधुनिकीकृत होगी और कुछ हद तक 1994 के गैट (GATT)[6] और उसकी सारी समझ का, साथ ही एनेक्स 1A और सेवाओं में व्यापार पर एनेक्स 1B में मौजूद अधिकतर समझौतों का, बड़ा संस्करण होगी. दूसरी तरह के सदस्य मराकेश समझौते के सभी मूठपाठों (टेक्स्ट) का अनुमोदन जारी रखेंगे, इस टिप्पणी के साथ कि विवाद निपटारे से संबंधित एनेक्स 2 का नीचे किये गये वर्णन के अनुरूप दोबारा सूत्रीकरण किया जायेगा.

इस तरह, सभी पक्ष ‘सबसे तरजीही देश’ या ‘नेशनल ट्रीटमेंट’ जैसे बुनियादी सिद्धांतों का सम्मान करेंगे, लेकिन इससे आगे की प्रतिबद्धताएं, जैसे ट्रिप्स (TRIPS) और प्रवर्तन पैकेज (एनेक्स 2) वैकल्पिक होंगे.

कोई भी सदस्य, किसी भी समय, इस मूल मर्म के बाहर मौजूद किसी टेक्स्ट से जुड़ या दोबारा जुड़ सकते हैं, या फिर व्यापक सदस्य का दर्जा हासिल करने का फैसला कर सकते हैं. मसलन, मान लीजिए कि कोई विकासशील देश ख़ुद को संपत्ति अधिकारों की पाबंदियों में न बांधना चाहे. वह अपने बाजार के आकर्षक होने पर भरोसे करते हुए रह सकता है, जिसे विदेशी निवेशकों को एक न्यूनतम संरक्षण प्रदान करने वाले घरेलू कानून द्वारा समर्थित भी किया जा सकता है. अगर किसी क्षण, उसे लगता है कि मौजूदा स्थिति अस्वीकार्य है, वह निवेश और अवसरों को गंवा रहा है क्योंकि वह ट्रिप्स (एनेक्स 1सी) से नहीं बंधा है, तो वह समझौते में शामिल होने के लिए आसानी से अनुरोध कर सकता है.

पुराने प्रारूप की तरह बाज़ार नियमनों को, इस तथ्य के बावजूद कि वे आपसी बातचीत के बाद बनीं संधियों का नतीजा थे, पक्षों पर थोपा नहीं जाता. इसके बजाय वे उनमें शामिल होने के लिए स्वतंत्र होते हैं, अगर वे ऐसा जरूरी समझते हैं तो. यह भलीभांति ज्ञात है कि, डब्ल्यूटीओं के नियम मददगार भले हों, पर वे विदेशी निवेश के लिए पूर्व-शर्त नहीं हैं, ख़ासकर मौजूदा समय में. विदेश निवेश अमूमन जोखिम और अवसरों के बीच समझौते का नतीजा होते हैं. ऊंचे, मगर ज्ञात जोखिम – जैसे, संपत्ति अधिकार वगैरह – अमूमन बर्दाश्त कर लिये जाते हैं, क्योंकि वे अनुमानित रिटर्न की समग्र गणना का हिस्सा रहे हैं.

यह लचीलापन सामान्यत: विकासशील देशों के बोझ को भी कम करता है, क्योंकि उन्हें ऐसे अधिक उन्नत नियमनों पर दस्तख़त करने के लिए बाध्य नहीं किया जाता है जो उनकी वृद्धि और नवचार संभावनाओं का दम घोंट सकते हैं. बराबरी के मैदानों की बहुलता उन्नत अर्थव्यवस्थाओं को एक स्तर पर आपस में व्यापार करने की अनुमति देती है, जबकि अविकसित अर्थव्यवस्थाएं उनके बीच बुनियादी व्यापार निष्पक्षता आवश्यकताओं के अधीन होती हैं, और दोनों समूहों के नुमाइंदों के बीच संबंधों को सबसे कमज़ोर पर लागू होने वाली बाध्यताओं द्वारा विनियमित किया जाता है.

मौजूदा क़ानूनी टेक्स्ट में किसी भी तत्काल आवश्यक संशोधन, अपडेट और नये जोड़ की सभी पक्ष चर्चा करते हैं और बातचीत से निर्णय पर पहुंचते हैं. सभी अपने सूत्रीकरण में लिप्त हो सकते हैं, हालांकि कई अंतत: पीछे हट सकते हैं. इसका मतलब है संधि को मंज़ूरी देने की एक अलग नीति, जिसे मामूली बहुमत के स्तर, जैसे सभी पक्षों के 55 या 60% पर निर्धारित किया जा सकता है.

चुनिंदा पक्षों द्वारा ज़्यादा साहसिक पहलकदमियों को प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिए. कोई समूह – चाहे वह कुल पक्षों के आधे से कम से बना हो – किसी विशिष्ट क्षेत्र या गतिविधि का उदारीकरण और नियमन दोनों बढ़ाते हुए, किसी भी समय एक विशेष-हित खंड (niche) बना सकता है. इसका मतलब है गैट 1994 के आर्टिकल XXIV में बड़ा सुधार, जिसके तहत इस तरह के खंड के सृजन और संरूपण (फॉर्मेटिंग) के लिए जोर और प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए, न कि (आजकल के) भारीभरकम और समय व संसाधन की खपत करनेवाले अतार्किक ढंग से महत्वाकांक्षी क्षेत्रीय एकीकरण के लिए.

‘डिस्प्यूट सेटलमेंट अंडरस्टैडिंग’ वह जगह है जहां सबसे बड़ा बदलाव होगा. एनेक्स 2 के पूरे फ्रेमवर्क को समाप्त करना यहां एक साहसिक फैसला है. इसकी जगह एक ज़्यादा सरल व सुव्यवस्थित संस्करण होगा. पैनलों का पहला चरण जस का तस रखा जायेगा, और पैनल के निर्णयों के ख़िलाफ़ अपील उसी पैनल के समक्ष की जा सकेगी, जिसे तब एक या दो पैनलिस्टों से बढ़ाया जा सकेगा. निर्णय यह तय करेगा कि कौन पक्ष सही था (थे). यह अवैध तौर-तरीक़ों को स्थगित करने या ख़त्म करने के लिए कह सकता है, लेकिन मुआवजे या बदले के लिए किसी क्षति का अनुमान नहीं लगायेगा. एक तय समय अंतराल के दौरान, एक निश्चित संख्या बार गलत करने के दोषी ठहराये गये पक्ष के इस संगठन में अधिकार निलंबित हो जायेंगे. इसका दोहराव के नतीजे आईटीओ छोड़ने के रूप में सामने आ सकते हैं.

इससे समय बचेगा और जुर्माना व मुआवजा (अक्सर जिससे बच निकला जाता है या वास्तव में पालन नहीं होता) लागू करने की कुछ-कुछ पाखंडी प्रक्रिया से बचा जा सकेगा.

उम्मीद है कि इस ज़्यादा छरहरे और अधिक गतिशील ढांचे के लिए दो निम्नलिखित अनुपूरक सिद्धांत पूरक का काम करेंगे और उसे अतिरिक्त शक्ति प्रदान करेंगे.

पहला, इस अति-उत्साही और सर्वव्याप्त दृष्टिकोण के साथ बढ़ना बंद करें कि पर्यावरणीय अवनति या अमानवीय श्रम स्थितियों जैसे ग्लोबल कॉमन्स मुद्दों से ज़्यादा प्रभावी ढंग से निपटने या उनके समाधान के लिए व्यापारिक सौदे और व्यापार अपने आप में एक रास्ता हैं. इस तरह का दृष्टिकोण व्यापारिक एजेंडे को ऐसे सवालों से भर देता है, जिन्हें सामान्यत: दूसरे मंच पर बेहतर ढंग से लिया जा सकता है.

व्यापार का ख़ुद व्यापार के अलावा दूसरे उद्देश्यों के वास्ते इस्तेमाल रोकने के लिए सामूहिक प्रयास किये जाने चाहिए; व्यापार और रणनीतिक संघर्ष (युद्ध) लक्ष्यों के बीच एक स्पष्ट विभाजन को आगे बढ़ाना होगा, जिसके लिए गैट 1994 के आर्टिकल XX और, ख़ासकर, XXI में बदलाव की ज़रूरत होगी. युद्ध के एक हथियार की तरह व्यापार के इस्तेमाल पर पूर्ण रोक होनी चाहिए, या कम से कम बहुत ज़्यादा पाबंदी होनी चाहिए.

पारराष्ट्रीय कंपनियों के स्वभावत: विषम चरित्र और वस्तुओं के वैश्विक व्यापार में इनके वजन को देखते हुए, इनके व्यापार प्रवाहों के साथ पेश आने के लिए नयी कार्यप्रणाली बनायी जानी चाहिए चाहिए[7]. दूसरी बहुपक्षीय एजेंसियों के साथ संयुक्त, समन्वित कार्य को बढ़ावा दिया जाना चाहिए और उसे एक बड़ा प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए. यह बिल्कुल नया नहीं है, क्योंकि पहले के सफल प्रयोग, जैसे खाद्य एवं कृषि संगठन के ‘कोडेक्स एलेमेंटेरियस’ के साथ ‘सैनिटरी’ और ‘फाइटोसैनिटरी’ नियमों के बीच जुड़ाव, इसकी गवाही देते हैं. दूरसंचार और इंटरनेट के मुद्दे काफ़ी कुछ इंटरनेशनल टेलीकम्युनीकेशन्स यूनियन (आईटीयू) के साथ ओवरलैप करते हैं. बुनियादी साधारण आईटीओ-आईटीयू नियमों के संयोजन और उनकी पहचान करने के लिए एक संयुक्त कार्य बल ज़रूरी लगता है.

सामान्य चीज़ों के गवर्नेंस और नियमन में सभी विफलताओं के समाधान के लिए व्यापार को एक प्रॉक्सी के तौर पर लेना बंद करना होगा. जलवायु परिवर्तन और कार्बन फुटप्रिंट, अन्यायपूर्ण श्रम प्रथाएं, बुनियादी मानवाधिकारों का संभावित उल्लंघन, चौड़े प्रतिस्पर्धात्मक अंतराल, और भू-रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता- इन सभी को उनके उचित मंच पर संबोधित करना होगा.

दूसरा, व्यापार का ख़ुद व्यापार के अलावा दूसरे उद्देश्यों के वास्ते इस्तेमाल रोकने के लिए सामूहिक प्रयास किये जाने चाहिए; व्यापार और रणनीतिक संघर्ष (युद्ध) लक्ष्यों के बीच एक स्पष्ट विभाजन को आगे बढ़ाना होगा, जिसके लिए गैट 1994 के आर्टिकल XX और, ख़ासकर, XXI में बदलाव की ज़रूरत होगी. युद्ध के एक हथियार की तरह व्यापार के इस्तेमाल पर पूर्ण रोक होनी चाहिए, या कम से कम बहुत ज़्यादा पाबंदी होनी चाहिए. अपने जघन्य नतीजों के बावजूद व्यापार प्रतिबंधों का कुछ ख़ास राज्यों पर थोपा जाना, हालांकि वे अमूमन अमानवीय होने के लिए जाने जाते हैं, बढ़ ही रहा है. ‘अंतरराष्ट्रीय संबंधों में व्यापार प्रतिबंधों का इस्तेमाल ख़त्म करने पर कन्वेंशन’ सही दिशा में एक क़दम होगा. सिद्धांत रूप में, इस कन्वेंशन की मेज़बानी के लिए संयुक्त राष्ट्र सही जगह होगी.

हथियारों के व्यापार (जो ‘युद्ध और संघर्ष कारोबार’ का केंद्र और ईंधन है) के मुद्दे पर भी इसी तरह का प्रयास किया और ध्यान दिया जाना चाहिए, लेकिन समाधानों की जटिलता हमें बाध्य करती है कि हम बस यहां इस बिंदु का ज़िक्र भर कर दें.

निष्कर्ष

व्यापार इतना मूलभूत और महत्वपूर्ण है कि उसे केवल लोकतांत्रिक शासनों तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए. यह न तो शासन परिवर्तन का औज़ार है और न ही बेहतर व ज़्यादा समतापूर्ण सरकारी मूल्यों को पहुंचाने का एक सुनिश्चित माध्यम. इसके बावजूद, इसमें ऐसी सूचना होती है जो ख़रीद-बिक्री की गयी वस्तु या सेवा से परे जाती है. यह उत्साहजनक है और इस बात का औचित्य ठहराता है कि व्यापार प्रवाहों – बशर्ते कि श्रम, संस्कृति जैसी स्थानीय ख़ूबियों और न्यूनतम ज़रूरतों को सरंक्षित किया जाए – को दुनिया भर में जाना चाहिए. इस क्रम में उन्हें अभिसरण (कन्वर्जेंस) की सृष्टि करनी चाहिए और हर विश्व नागरिक का जीवन बेहतर बनाना चाहिए.

नियमनों की ज़रूरत है, लेकिन इन्हें न्यूनतम स्तर पर रखा जाना चाहिए. इन्हें बिजंटाइन ब्यूरोक्रेसी (अत्यधिक जटिल नौकरशाही) और कृत्रिम अधि-संरचना के लिए स्रोत नहीं बनना चाहिए. इस दिशा में एक रूपरेखा पिछली पंक्तियों में खींची जा चुकी है. सुधार और ब्योरों की ज़रूरत है, लेकिन डिजाइन की मूल भावना बनाये रखी जानी चाहिए.


[1] Throughout the text use is made of the expression ‘world (dis)order’, following Tharoor and Saran (2020). See also Flôres (2021). J. Ikenberry, “The Next Liberal Order,Foreign Affairs 99, no.4 (2020), pp. 133-42,; Shashi Tharoor and Samir Saran, The New World Disorder and the Indian Imperative. (New Delhi: Aleph Book Company, 2020); R. G. Flôres, Jr, The World Corona Changed: US, China and Middle Powers in the New International Order (Abington: Routledge, 2021).

[2] On the multiple features of the trade activity, and the false causality trade ®peace, see Flôres (2013). R. G. Flôres Jr., “Conclusion: Dismissing the Kantian view of trade and peace,” in A Global History of Trade and Conflict since 1500 eds. L. Coppolaro and F. McKenzie, (London: Palgrave MacMillan, 2013).

[3] This is true despite the fact that the very concept of “comparative advantage” is quite elusive and not correctly understood by many, who easily confuse it with “absolute advantage”. Paul Samuelson, to his credit, liked to say that Ricardian comparative advantage remained one of the most subtle and difficult-to-grasp economic concepts.

[4] Respectively, in terms of revenue, as of 2020: Johnson & Johnson, Pfizer, Roche, Novartis and Merck & Co, though the next three – GlaxoSmithKline and Sanofi – also posted revenues above US$40 billion.

[5] One of the reasons for this is that US companies focused on individual components, as handsets or routers, and disregarded the network dimension needed to build any end-to-end 5G system like that offered by Huawei. See, for instance, Darby and Seawall (2021). Christopher Darby and Sarah Seawall, “The Innovation Wars: America’s eroding technological advantageForeign Affairs 100, no. 2 (2021), pp. 142-53.

[6] All GATT 1994 articles cited are according to the incorporation of GATT 1947 in the GATT 1994 as described in WTO (1995); a reference that applies to all treaties mentioned in the text. World Trade Organization (WTO), The Results of the Uruguay Round of Multilateral Trade Negotiations: The Legal Texts, Geneva: WTO (1995).

[7] Unfortunately, there is no space to further elaborate this point here.

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