अगस्त 2021 में सत्ता हथियाने के फ़ौरन बाद तालिबानी नुमाइंदों ने नए तौर-तरीक़ों वाली हुकूमत चलाने का वादा किया था. इस सिलसिले में अफ़ग़ान महिलाओं के ख़िलाफ़ पूर्वाग्रहों या हिंसक बर्तावों से बचने की बात कही गई थी. बहरहाल, चंद महीनों के भीतर ही सिर्फ़ मर्दों की रहनुमाई वाले तालिबान के अंतरिम प्रशासन ने महिलाओं के ख़िलाफ़ एक के बाद एक हुक्मनामों की झड़ी लगा दी है. इनके ज़रिए महिलाओं को सबसे बुनियादी अधिकारों (जैसे शिक्षा और रोज़गार) से भी महरूम किया जाने लगा है. इस तरह औरतों के सार्वजनिक जीवन के सभी पहलुओं में रोड़े अटकाए जा रहे हैं.
नई हुकूमत के तहत महिला पत्रकारों और टीवी एंकरों को भारी क़ीमत चुकानी पड़ी है. दोबारा सत्ता पर क़ाबिज़ होने के बाद से तालिबान लगातार भेदभाव वाले तौर-तरीक़े अपना रहा है. लिहाज़ कई महिलाएं मीडिया क्षेत्र छोड़ने पर मजबूर हो गई हैं.
एक लंबे अर्से तक अफ़ग़ानिस्तान का मीडिया स्वतंत्र रूप से और मज़बूती के साथ अपना काम करता रहा था. पिछले कुछ अर्सों में तालिबान ने (अक्सर इस्लामिक क़ानून की कट्टरवादी व्याख्या का हवाला देते हुए) महिलाओं के प्रेस से जुड़े अधिकारों, अभिव्यक्ति की आज़ादी और व्यक्तिगत स्वायत्तता को काफ़ी हद तक कुचल कर रख दिया है. नई हुकूमत के तहत महिला पत्रकारों और टीवी एंकरों को भारी क़ीमत चुकानी पड़ी है. दोबारा सत्ता पर क़ाबिज़ होने के बाद से तालिबान लगातार भेदभाव वाले तौर-तरीक़े अपना रहा है. लिहाज़ कई महिलाएं मीडिया क्षेत्र छोड़ने पर मजबूर हो गई हैं. तालिबानी चरमपंथियों ने पत्रकारों पर कोड़े बरसाए हैं, उनको मारा-पीटा है और मनमाने तरीक़े से हिरासत में लिया है.
मीडिया जगत की निगरानी करने वाली संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) और अफ़ग़ान इंडिपेंडेंट जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा दिसंबर 2021 में किए गए साझा सर्वेक्षण के मुताबिक अगस्त 2021 के बाद से 84 फ़ीसदी महिला पत्रकार और मीडियाकर्मी अपनी नौकरियों से हाथ धो चुके थे. मार्च 2022 में अफ़ग़ान नेशनल जर्नलिस्ट्स यूनियन द्वारा किए गए एक और सर्वे के अनुसार 79 फ़ीसदी अफ़ग़ानी महिला पत्रकारों ने नई तालिबानी हुकूमत के तहत अपमानित होने और धमकियां मिलने का दावा किया. इनमें तालिबानी प्रतिनिधियों द्वारा दी गई शारीरिक और मौखिक प्रताड़ना शामिल हैं. अफ़ग़ानिस्तान की महिला टीवी कर्मचारियों ने तालिबानी हुक्मरानों द्वारा “काली सूची में डाले जाने” का भी ज़िक्र किया है.
काम विरोधी फ़रमान
अफ़ग़ानिस्तान के समाचार, कला और मनोरंजन उद्योग में महिलाओं द्वारा कामयाबी के झंडे गाड़े जाने के बावजूद ऐेसे हालात देखने को मिल रहे हैं. तालिबान ने (बेहद शुरुआती दौर में ही) अफ़ग़ानी टीवी चैनलों पर महिलाओं की भूमिका वाले नाटकों और सीरियलों के प्रसारण पर रोक लगा दी थी. इसके बाद उसने ऑन एयर ख़बर पढ़ने वाली महिलाओं को हिजाब से सिर ढकने का हुक्म सुनाते हुए पत्रकारों के लिए 11 नियमों का हुक्मनामा जारी कर दिया. इसके तहत समाचार रिपोर्ट के प्रसारण से पहले रिपोर्टरों द्वारा तालिबान की मंज़ूरी हासिल करने को अनिवार्य बना दिया गया. इस तरह पत्रकारों को अपनी पसंद के मसलों पर ख़बर तैयार करने की आज़ादी से हाथ धोना पड़ा.
तालिबान ने ये आदेश भी दिया कि अपने घरों से 45 मील से ज़्यादा का सफ़र तय करने के लिए महिलाओं को एक पुरुष अभिभावक को साथ रखना होगा. लिहाज़ा महिला रिपोर्टरों के लिए दूरदराज़ के इलाक़ों में ज़मीन पर जाकर रिपोर्टिंग और न्यूज़ कवरेज करना मुश्किल हो गया.
साथ ही तालिबान ने ये आदेश भी दिया कि अपने घरों से 45 मील से ज़्यादा का सफ़र तय करने के लिए महिलाओं को एक पुरुष अभिभावक को साथ रखना होगा. लिहाज़ा महिला रिपोर्टरों के लिए दूरदराज़ के इलाक़ों में ज़मीन पर जाकर रिपोर्टिंग और न्यूज़ कवरेज करना मुश्किल हो गया. इन तमाम फ़रमानों को मिलाकर देखें तो अफ़ग़ानिस्तान में महिला पत्रकारों के लिए अपना काम करने के रास्ते की चुनौतियां बढ़ती ही जा रही हैं. दूसरी ओर तालिबान अपनी सख़्तियों में किसी तरह की नरमी लाने के संकेत नहीं दे रहा है.
पाबंदियों की ताज़ा कड़ी में तालिबान के अवगुण और सदाचार मंत्रालय ने अपने हुक्मनामे के ज़रिए बीते 21 मई से महिला टीवी कर्मचारियों और एंकरों के लिए समाचार पेश करते वक़्त चेहरा ढकना अनिवार्य बना दिया. मंत्रालय की ओर से ज़ाहिर किया गया है कि इस मक़सद से बुर्क़ा सबसे मुनासिब पहनावा हो सकता है. थोड़े वक़्त के लिए कुछ महिला एंकरों ने इस फ़रमान को मानने से इनकार कर दिया. इसके बाद तालिबान ने मीडिया कंपनियों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया. नतीजतन जल्द ही तमाम महिला एंकर अपना चेहरा ढककर समाचार पढ़ती नज़र आने लगीं. बहरहाल, इस फ़रमान के ज़रिए अधिकारियों को ड्रेस कोड का पालन करने में नाकाम रहने वाली महिला कर्मचारियों को नौकरी से बर्खास्त करने का अधिकार मिल गया है. इसके अलावा महिला रिश्तेदारों द्वारा हुक्म की तामील नहीं किए जाने की सूरत में पुरुष कर्मचारियों के लिए भी निलंबन का ख़तरा रहेगा.
पीछे धकेलने वाले क़दम
कइयों के लिए ये विनाशकारी फ़रमान पीछे धकेलने वाला एक और क़दम साबित हुआ है. इससे अफ़ग़ानी मीडिया में महिलाओं के काम करने की क्षमता बाधित हो सकती है. इसकी कई वजहें हैं. पहली वजह तो यही है कि किसी इंसान के लिए चेहरा ढककर लगातार 2 से 3 घंटों तक बात करते रहना बेहद मुश्किल है. दूसरा, नक़ाब पहनकर और मुंह ढककर कोई भी महिला पत्रकार अपने दर्शकों से साफ़गोई से संवाद करने में शायद ही कामयाब हो सकेगी. तीसरा, इस हुक्मनामे का महिला रिपोर्टरों पर मनोवैज्ञानिक रूप से बेहद नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. ऐसे में वो इस पेशे से अपने-आप को पूरी तरह से बाहर निकाल सकती हैं.
इस बीच अंतरराष्ट्रीय बिरादरी ने तालिबानी हुकूमत को औपचारिक मान्यता देने से इनकार कर दिया है. अफ़ग़ानिस्तान के नए हुक्मरान अपने लिए राजनयिक वैधानिकता वाले दर्जे की आस लगाए हुए हैं. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की ओर से साफ़ किया गया है कि ऐसे दर्जे के लिए महिलाओं के अधिकारों और आज़ादी का सम्मान एक अहम शर्त होगी.
बहरहाल, तालिबान के कट्टरपंथी रुख़ से कई कार्यकर्ताओं की आशंकाएं सच साबित हुई हैं. इन तमाम लोगों ने आशंका जताई थी कि देर-सबेर तालिबान शासन चलाने के उसी पुराने ढर्रे (जो उसने 1996 से 2001 के बीच अपनाया था) पर वापस आ जाएगा. उस वक़्त महिलाएं एक बड़े क़ैदख़ाने में रह रही थीं जहां उनकी ज़िंदगियां दमनकारी नियम-क़ानूनों के हिसाब से चल रही थीं. हालांकि, इस बार न तो अंतरराष्ट्रीय बिरादरी और ना ही अफ़ग़ानी महिलाएं ख़ामोश बैठी हैं. अफ़ग़ानिस्तान समेत दुनियाभर की अनेक महिलाओं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने तालिबान के हालिया निर्देशों के ख़िलाफ़ विरोध जताने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया है. इसके लिए उन्होंने #FreeHerFace हैशटैग का इस्तेमाल कर मास्क के साथ अपनी तस्वीरें साझा की हैं.
इस बीच अंतरराष्ट्रीय बिरादरी ने तालिबानी हुकूमत को औपचारिक मान्यता देने से इनकार कर दिया है. अफ़ग़ानिस्तान के नए हुक्मरान अपने लिए राजनयिक वैधानिकता वाले दर्जे की आस लगाए हुए हैं. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की ओर से साफ़ किया गया है कि ऐसे दर्जे के लिए महिलाओं के अधिकारों और आज़ादी का सम्मान एक अहम शर्त होगी. यहां तक कि विकास के लिए मिलने वाली रकम और फ़्रीज़ की गई नक़दी भी महिलाओं के साथ बेहतर बर्ताव पर निर्भर करेगी. अगर तालिबान महिलाओं के ख़िलाफ़ ऐसे ही दकियानूसी हथकंडे अपनाना जारी रखता है, उन्हें अभिव्यक्ति की आज़ादी, व्यक्तिगत स्वायत्तता और मजहबी आस्था से महरूम करता है, और महिला पत्रकारों के ख़िलाफ़ बर्बर हमले बंद नहीं करता है तो उसके बाक़ी दुनिया से अलग-थलग पड़ जाने का ख़तरा रहेगा.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.