Author : Manoj Joshi

Published on Jul 19, 2022 Updated 0 Hours ago

दुनिया भयावह मुसीबतों से घिरी हुई है, क्योंकि यह एक के बाद एक आने वाली पहाड़ जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार नहीं है.

यूक्रेन युद्ध: दुनिया पर लंबे समय तक मंडराने वाली एक मनहूस संकट!

कोविड-19 संकट के बीच मार्च, 2021 में, यूक्रेन युद्ध से पहले यूनाइटेड स्टेट्स नेशनल इंटेलीजेंस काउंसिल ने अपनी दशकीय ग्लोबल ट्रेंड्स रिपोर्ट जारी की थी. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 20 वर्ष आगे की दुनिया कैसी होगी. दि ग्लोबल ट्रेंड्स 2040 रिपोर्ट एक ऐसी दुनिया को सामने लेकर आती है, जो 2020 में COVID-19 महामारी की अचानक शुरुआत और चीन एवं  अमेरिका के बीच रणनीतिक वर्चस्व के पहले चरण के चरम पर पहुंचने से पहले ही बुरी तरह प्रभावित हो चुकी है. जिस तरह से इस रिपोर्ट में तथ्यों का विश्लेषण किया गया था, एक-एक बात को बारीक़ी से बताया गया है, उसके हिसाब से देखा जाए तो ग्लोबल ट्रेंड्स रिपोर्ट काफ़ी संतुलित और विचारशील थी. इसके बावज़ूद, COVID-19 महामारी के भयानक असर को देखते हुए, बगैर निराशा में घिरकर इसे पढ़ना बेहद मुश्किल था. हालांकि आज यूक्रेन युद्ध छिड़ने के साथ निराशा और उदासीनता की यह भावना और गहरी हो गई है. 

दि ग्लोबल ट्रेंड्स 2040 रिपोर्ट एक ऐसी दुनिया को सामने लेकर आती है, जो 2020 में COVID-19 महामारी की अचानक शुरुआत और चीन एवं  अमेरिका के बीच रणनीतिक वर्चस्व के पहले चरण के चरम पर पहुंचने से पहले ही बुरी तरह प्रभावित हो चुकी है.

रिपोर्ट के मुताबिक विश्व निरंतर जलवायु परिवर्तन, बीमारी, वित्तीय संकट और तकनीकी बाधाओं जैसी बड़ी “वैश्विक चुनौतियों” का सामना कर रहा है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर देशों की सरकारें एकजुट होने के बजाए, बंटी हुई हैं और इन चुनौतियों का सामना करने के लिए काम करने वाले संस्थानों के बीच भी कोई तालमेल नहीं दिखता है. इस रिपोर्ट में चीन और अमेरिका को लेकर एक “होड़” भी दिखी. जैसे कि अमेरिका के लिए चीन कई क्षेत्रों, जैसे सूचना, मीडिया, व्यापार और प्रौद्योगिकी में बड़ी चुनौती बना हुआ है, इतना ही नहीं इससे परमाणु प्रसार और संभावित परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की संभावना भी बढ़ी है. रिपोर्ट के अंत में यह उम्मीद भी जताई गई है कि पूरी दुनिया जब जलवायु परिवर्तन से होने वाली उथल-पुथल या बड़े विनाश का सामना करेगी, तो यह समूचे विश्व को साझा चुनौतियों से निपटने के लिए एकजुट करेगी.

रिपोर्ट में वर्ष 2040 में चार संभावित परिदृश्यों के बारे में बताया गया है-पहला, एक “दिशाहीन और अस्त-व्यस्त” वैश्विक व्यवस्था में एक दुनिया; दूसरा, अमेरिका और चीन का “प्रतियोगी सह-अस्तित्व”, जहां दोनों देश अपनी प्रतिस्पर्धा के साथ चल सकते हैं; तीसरा, अलग-अलग गुटों में सिमटी बड़ी और मध्यम ताक़तों की एक “विभाजित” दुनिया, जहां हर कोई सिर्फ ख़ुद पर, अपनी आत्मनिर्भरता और सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित कर रहा है; और अंत में यूरोपीय संघ (ईयू) और चीन के नेतृत्व वाले गठबंधन की ओर अग्रसर एक वैश्विक विनाश की स्थिति, जो ऊपर बताई गईं चुनौतियों का समाधान करने के लिए गैर सरकारी संगठनों और बहुपक्षीय संस्थानों के साथ काम कर रहा है.

रिपोर्ट के मुताबिक विश्व निरंतर जलवायु परिवर्तन, बीमारी, वित्तीय संकट और तकनीकी बाधाओं जैसी बड़ी “वैश्विक चुनौतियों” का सामना कर रहा है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर देशों की सरकारें एकजुट होने के बजाए, बंटी हुई हैं और इन चुनौतियों का सामना करने के लिए काम करने वाले संस्थानों के बीच भी कोई तालमेल नहीं दिखता है.

यूक्रेन युद्ध और उसके परिणाम

इस रिपोर्ट के एक साल बाद हम इसके सबसे निराशावादी हिस्से में जिस दुनिया की कल्पना की गई थी, उसकी तुलना से कहीं अधिक अमानवीय, भय से भरी और संकटग्रस्त दुनिया को सामने देख रहे हैं. COVID-19 महामारी से पूरे विश्व में मची तबाही के बावज़ूद आज महामारी जैसे मसलों और उसके प्रभावों, चाहे वो जन स्वास्थ्य से जुड़ें हों या आर्थिक उथल-पुथल से जुड़े हों, उनसे वैश्विक स्तर पर मिलकर लड़ने की कोई ललक दिखाई नहीं देती है.

जहां तक जलवायु परिवर्तन के मुद्दे की बात है तो पूरी दुनिया में बेमौसम और बेवक़्त आने वाली बाढ़, सूखा और भीषण गर्मी आज एकदम सामान्य हो चुका है, लेकिन इन अहम विषयों को लेकर भी वैश्विक समुदाय ने कुछ नहीं किया है. अनुमानों के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन की क़ीमत खरबों अमेरिकी डॉलर ख़र्च करके चुकानी पड़ सकती है. यूरोप के बीचों-बीच यूक्रेन युद्ध ने इन हालातों को और जटिल बना दिया है. इस युद्ध का शायद नेशनल इंटेलिजेंस काउंसिल ने भी अंदाज़ा नहीं लगाया था और ना ही इसके नतीज़ों से निपटने के लिए कोई विशेष तैयारी की थी. अभी इस युद्ध के जो परिणाम सामने आ रहे हैं, निकट भविष्य में हमें उससे और भी गंभीर नतीजे दिखाई देंगे. वास्तव में जिस प्रकार यूक्रेन संकट सामने आया है, उससे यह स्पष्ट है कि इसके कई और प्रभावों को लेकर कोई अनुमान नहीं लगाया गया है. पश्चिम द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बाद उम्मीद बंधी थी कि मास्को पर दबाव पड़ेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसके उलट वैश्विक ऊर्जा और कमोडिटी मार्केट संकट पैदा हो गया, जिससे दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं की नींव हिल गई है. जुलाई के प्रारंभ में बैंक ऑफ इंग्लैंड ने चेतावनी दी कि देश और दुनिया के लिए आर्थिक परिदृश्य “अंधकारमय” हो गया है और बैंकों को एक बड़े ज़लज़ले का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा.

जिस प्रकार यूक्रेन संकट सामने आया है, उससे यह स्पष्ट है कि इसके कई और प्रभावों को लेकर कोई अनुमान नहीं लगाया गया है. पश्चिम द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बाद उम्मीद बंधी थी कि मास्को पर दबाव पड़ेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसके उलट वैश्विक ऊर्जा और कमोडिटी मार्केट संकट पैदा हो गया, जिससे दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं की नींव हिल गई है.

कुछ अनुमानों के अनुसार अमेरिकी अर्थव्यवस्था का आकार अप्रैल-जून की तिमाही में कम हो सकता है और जनवरी-मार्च की तिमाही में अर्थव्यवस्था की गिरावट और ज़्यादा हो सकती है. यानी अर्थव्यवस्था का यह संकुचन दो अवधि का होगा.  इससे साबित होता है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में है और दि इकोनोमिस्ट का पूर्वानुमान है कि वर्ष 2024 तक अमेरिकी अर्थव्यवस्था संभावित मंदी की चपेट में होगी, क्योंकि लगातार खाद्य वस्तुओं और पेट्रोल की बढ़ती क़ीमतों ने लोगों का ख़र्च बढ़ा दिया है और यूक्रेन में युद्ध और चीन में मंदी की वजह से आपूर्ति श्रृंखला में बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं.

 मंदी का सामना कर रहा चीन अपनी अर्थव्यवस्था में और अधिक पैसा झोंकने की योजना बना रहा है. बताया जा रहा है कि विकास को गति देने के लिए चीन लगभग 74.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर अपनी अर्थव्यवस्था में डालेगा. यूरोज़ोन की स्थिति तो और भी ख़राब है. यूक्रेन युद्ध की वजह से बढ़ती ऊर्जा लागत का सामना करते हुए, 19 देशों के मुद्रा समूह को भी मंदी का सामना करना पड़ रहा है. इस समूह की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी ने नॉर्डस्ट्रीम I  पाइपलाइन के माध्यम से रूस की तरफ से गैस की कम आपूर्ति की समस्या से निपटने के लिए एक आपातकालीन योजना बनाई है. यूरोप में अभी ऊर्जा संकट अपने चरम पर है.

यूक्रेन युद्ध ने पूरे वैश्विक परिदृश्य को इस तरह से परिवर्तित कर दिया है कि जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की गई थी. अब पूरे विश्व में शक्ति का विभाजन कुछ इस तरह से हो गया है कि एक तरफ रूस और चीन हैं और दूसरी ओर अपने सहयोगियों को फिर से एकजुट करने वाला अमेरिका. हालांकि इसमें कोई दोराय नहीं है कि यूक्रेन युद्ध ने रूस की ताक़त को कम करने में सहायता की है. जापान और जर्मनी के अपने रक्षा खर्च को बढ़ाने का फ़ैसला किया है, जिसके काफ़ी हद तक भौगोलिक और आर्थिक नतीजे हो सकते हैं. फ़िनलैंड और स्वीडन का नेटो में सम्मिलित होना अपने आप में एक बड़ा परिवर्तन है. यूक्रेन में युद्ध का परिणाम चाहे जो हो, लेकिन यह तो निश्चित है कि वह वैसा नहीं होगा, जिसका रूस ने अनुमान लगाया था. फरवरी महीने की शुरुआत में रूस और चीन के बीच “असीमित संबंधों” के पनपने के पीछे हालात चाहे जो भी रहे हैं, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि इससे बीजिंग को आघात लगा है. जैसे कि इसने चीन की कूटनीतिक कुशलता और सॉफ्ट पावर की छवि को बड़ा झटका दिया है. भले ही इसे भुला दिया गया है, लेकिन एक समय था, जब यूक्रेन के चीन के साथ बहुत क़रीबी संबंध थे और इन संबंधों ने उसकी रक्षा प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई. यूक्रेन युद्ध ने उदार अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था  को आईने के सामने लाकर खड़ा कर दिया है. उल्लेखनीय है कि हाल के दशकों में यूक्रेन कोई ऐसा पहला देश नहीं है, जिस पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्यों द्वारा आक्रमण किया गया हो. इससे पहले अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान और इराक पर हमले किए गए थे. मुमकिन है कि यूक्रेन युद्ध का नतीजा उदार अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की वकालत करने वालों को दूसरे देशों में सशस्त्र हस्तक्षेप के मुद्दे के प्रति अधिक संवेदनशील होने के लिए सहमत करेगा.

इस महीने की शुरुआत में रूस के पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने अमेरिका को चेतावनी दी थी कि पश्चिम द्वारा रूस जैसी परमाणु ताक़त को परेशान करने का कोई भी प्रयास “मानवता के अस्तित्व के लिए ख़तरा” पैदा करने वाला होगा. कहीं न कहीं यह परमाणु हथियारों के संभावित उपयोग को लेकर दी गई धमकी है.

परमाणु ख़तरा

यूक्रेन संकट से जो शायद सबसे गंभीर मसला पैदा हुआ है, वह है परमाणु युद्ध का बढ़ता ख़तरा. यूक्रेन युद्ध की शुरुआत में ही पुतिन ने स्वयं चेतावनी दी थी कि यदि इस लड़ाई में कोई तीसरा पक्ष कूदता है, तो इसके “अभूतपूर्व परिणाम” हो सकते हैं. इसके तीन दिन बाद उन्होंने ऐलान किया कि परमाणु हथियारों से लैस रूसी सुरक्षा बल विशेष अलर्ट पर रहेंगे. रूस के परमाणु सेबर-रैटलिंग ने अप्रैल में Sarmat ICBM यानी ख़तरनाक परमाणु हथियारों से लैस अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण किया. रूस में मई, 2022 में प्रसारित टीवी कार्यक्रम में एक बनावटी परमाणु हमले के प्रभाव को दिखाया गया, जो यूनाइटेड किंगडम (यूके) और आयरलैंड को तबाह कर सकता है.

अप्रैल महीने के आख़िर में, रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने पश्चिम को चेतावनी दी कि वो यूक्रेन को लेकर परमाणु संघर्ष से उत्पन्न होने वाले नतीजों को कतई कम करके नहीं आंके. रूस के सरकारी टीवी पर एक साक्षात्कार में कहा गया कि उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नेटो) की छद्म भागीदारी की वजह से यूक्रेन में लड़ाई तीसरे विश्व युद्ध में बदल सकती है. इस महीने की शुरुआत में रूस के पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने अमेरिका को चेतावनी दी थी कि पश्चिम द्वारा रूस जैसी परमाणु ताक़त को परेशान करने का कोई भी प्रयास “मानवता के अस्तित्व के लिए ख़तरा” पैदा करने वाला होगा. कहीं न कहीं यह परमाणु हथियारों के संभावित उपयोग को लेकर दी गई धमकी है. यह सभी बातें और हालात रूस के सैन्य सिद्धांत के मुताबिक हैं, जो “अस्तित्व पर संकट” की स्थिति में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की अनुमति देता है. यहां तक कि ऐसी सैन्य परिस्थियां, जिनसे रूस के लोगों को लगे कि अब उनके अस्तित्व पर ख़तरा पैदा हो चुका है, तो परमाणु हमले जैसी प्रतिक्रिया भी सामने आ सकती है. हालांकि, रूस के आधिकारिक प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि सिर्फ यूक्रेन में संघर्ष परमाणु हथियारों के उपयोग की वजह नहीं बनेगा.

इस पूरी कहानी में यहां एक और दिलचस्प मोड़ है. वर्ष 1994 में यूक्रेन उन तीन पूर्व सोवियत गणराज्यों (कजाकिस्तान और बेलारूस के साथ) में से एक था, जिसने बुडापेस्ट मेमोरेंडम के अंतर्गत परमाणु हथियारों का त्याग कर दिया था. इस मेमोरेंडम में कहा गया था कि “अगर यूक्रेन किसी ऐसे हमले या आक्रामकता का शिकार बनता है, जिसमें परमाणु हथियारों का उपयोग किया जाता है,” तो उसे तत्काल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की मदद मिलेगी. अब यहां समस्या वाली बात यह है कि इस मेमोरेंडम में हस्ताक्षर करने वालों में से एक रूस था, जो यूएनएससी का स्थायी सदस्य भी है.

यूक्रेन में चार परमाणु ऊर्जा संयंत्र इस संघर्ष में एक और चुनौती हैं. रूस द्वारा शुरुआत में चेरनोबिल पर कब्ज़ा करने के बाद यूक्रेन द्वारा यह आरोप भी लगाया गया था कि रूसियों को वापस जाने के लिए मज़बूर किए जाने के बाद उन्होंने उसके कंप्यूटर और उपकरण लूट लिए थे. रूस के कब्ज़े वाले ज़ापोरिज़्ज़िया में स्थित यूक्रेन के सबसे बड़े परमाणु ऊर्जा संयंत्र से जुड़ा एक और ताज़ा आरोप है. यूक्रेन का आरोप है कि रूसियों ने इसे एक सैन्य अड्डे में तब्दील कर दिया है. सुरक्षा से जुड़े इन्हीं मुद्दों के मद्देनज़र यूक्रेन जवाबी हमला करने से हिचकिचा रहा है.

निष्कर्ष

यूक्रेन संघर्ष ने परमाणु युद्ध और परमाणु प्रसार से जुड़े ख़तरों की पहले से मौजूद भयावह स्थिति को एक अत्यधिक ख़तरनाक स्तर तक पहुंचा दिया है, जैसा कि ग्लोबल ट्रेंड्स 2040 रिपोर्ट के निराशाजनक हिस्सों में वर्णित किया गया है. रूसियों को भले ही यूक्रेन के पूर्वी भाग में बढ़त हासिल हो गई हो, लेकिन युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ है. इसके साथ ही यह युद्ध कब एक अप्रत्याशित मोड़ पर पहुंच जाए और इसमें सामरिक परमाणु हथियारों का इस्तेमाल होने लगे, इसको लेकर कुछ कहा नहीं जा सकता है. इन संभावित परिस्थियों का दुनिया के देशों पर क्या असर होगा, इसके बारे में भी कुछ कहा नहीं जा सकता है. 

रूस के आक्रामक रुख को रोकने में पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए तमाम तरह के प्रतिबंधों की विफलता, ताइवान पर बीजिंग द्वारा आक्रमण शुरू करने की मंशा को परवान चढ़ा सकती है. ऐसी स्थिति में पूरी विश्व व्यवस्था चरमरा कर रह जाएगी.

इसी प्रकार, रूस के आक्रामक रुख को रोकने में पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए तमाम तरह के प्रतिबंधों की विफलता, ताइवान पर बीजिंग द्वारा आक्रमण शुरू करने की मंशा को परवान चढ़ा सकती है. ऐसी स्थिति में पूरी विश्व व्यवस्था चरमरा कर रह जाएगी. जो हालात हैं, उनमें छोटे गैर-परमाणु देश अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं और अब उनके परमाणु हथियार हासिल करने के विकल्प पर गंभीरता से विचार करने की संभावना भी बढ़ गई है. जापान और दक्षिण कोरिया ऐसे दो देश हैं, जिनका नाम सबसे पहले जेहन में आता है और इन दोनों देशों के पास परमाणु संपन्नता हासिल करने के पूरे संसाधन भी मौजूद हैं. अमेरिका और रूस के बीच जारी तनाव से बने मौजूदा वैश्विक परिदृश्य ने हथियार नियंत्रण और अप्रसार उपायों को आगे बढ़ाने की उम्मीद को धूमिल कर दिया है. यह इस सच्चाई से अलग है कि ईरान और उत्तर कोरिया से संबंधित मसलों का समाधान किया जाना अभी शेष है. 

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