Author : Vivek Mishra

Published on Jun 04, 2022 Updated 0 Hours ago

अमेरिकी देशों के 9वें शिखर सम्मेलन की मेज़बानी से पहले अमेरिका ने एक ज़्यादा क्षेत्रीय केंद्रित विदेश नीति अपना ली है.

अमेरिकी देशों का शिखर सम्मेलन: ‘अधिकतम दबाव से लेकर सोच-समझकर भागीदारी की क़वायद तक’

अब जबकि रूस-यूक्रेन युद्ध ऐसे दौर में पहुंच गया है जहां युद्ध के बारे में कुछ हद तक पूर्वानुमान लगाया जा सकता है और किसी तरह का नतीजा दीर्घकालीन लगता है, ऐसे समय में अमेरिका प्राथमिकता वाले दूसरे क्षेत्रों की तरफ़ ध्यान देने के लिए तेज़ी से लौटा है- उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका प्राथमिकता वाले ऐसे ही क्षेत्रों में से एक हैं. 

अमेरिका 6-10 जून 2022 के बीच अमेरिकी देशों के 9वें/नौवें शिखर सम्मेलन की मेज़बानी कर रहा है. शिखर सम्मेलन के दौरान इस क्षेत्र में एक टिकाऊ, लचीला, और न्यायसंगत भविष्य का निर्माण करने पर ध्यान दिया जाएगा. 1994 में शुरुआत के समय से इस शिखर सम्मेलन को अमेरिकी महादेश के देशों के द्वारा जिन अलग-अलग चुनौतियों का सामना किया जा रहा है और जो अवसर हैं, उनके समाधान के लिए एक महत्वपूर्ण मंच माना जाता है. 1994 में मयामी में शुरुआती बैठक के बाद अमेरिका पहली बार इस शिखर सम्मेलन की मेज़बानी कर रहा है. अमेरिका ने वो क्षेत्र निर्धारित किए हैं जहां पर बहुत ज़्यादा काम करने की ज़रूरत है जैसे कि महामारी की स्थिति में प्रतिक्रिया, जलवायु परिवर्तन, प्रवासन के कारणों को हल करना, और मज़बूत लोकतंत्र का निर्माण. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मुक़ाबले, जो पेरू के लीमा में 2018 में हुए आख़िरी शिखर सम्मेलन के दौरान अनुपस्थित रहे, बाइडेन प्रशासन के सामने इस क्षेत्र में एक बार फिर से नेतृत्व की भूमिका स्थापित करने का अवसर है. लेकिन इस क्षेत्र में एक फिर से विश्वास के निर्माण का बाइडेन का दृष्टिकोण कई पुराने मुद्दों, ख़ास तौर पर लैटिन एवं मध्य अमेरिका के देशों और अमेरिका के बीच, की वजह से अस्पष्ट रहा है. वैसे तो बाइडेन प्रशासन के सामने मिली-जुली समस्याएं हैं जो उन्हें पूर्ववर्ती सरकारों से मिली हैं लेकिन लैटिन अमेरिका और मध्य अमेरिका के देशों को लेकर उनके प्रशासन की चिंता ने उन समस्याओं में बढ़ोतरी की है. इनमें से कुछ मुद्दों को लेकर ख़तरा है कि ये अमेरिकी शिखर सम्मेलन के दौरान चर्चा के सफल नतीजे की राह में रुकावट बन सकते हैं. ख़ास तौर पर क्यूबा, वेनेज़ुएला और निकारागुआ को शिखर सम्मेलन से बाहर रखने के बाइडेन के फ़ैसले का दूसरे लैटिन और मध्य अमेरिकी देशों ने तीखा विरोध किया है. 

ट्रंप के राष्ट्रपति कार्यकाल की शुरुआत में लैटिन अमेरिका के देशों में अमेरिका के नेतृत्व की लोकप्रियता में भारी गिरावट आई.

Source: https://www.pewresearch.org/global/2018/04/12/fewer-people-in-latin-america-see-the-u-s-favorably-under-trump/

 

राष्ट्रपति ट्रंप ने क्यूबा और वेनेज़ुएला के ख़िलाफ़ ‘अधिकतम दबाव’ की नीति का पालन किया था. गैलप के एक पोल में ट्रंप के नेतृत्व को लेकर सिर्फ़ 16 प्रतिशत मंज़ूरी की ऐतिहासिक गिरावट दिखी थी. हालांकि, बाइडेन के नेतृत्व के तहत राष्ट्रपति की लोकप्रियता की रेटिंग में सुधार हुआ है लेकिन उनके पूर्ववर्ती प्रशासन की तरफ़ से लगाई गई कई आर्थिक पाबंदियां अभी भी जारी हैं. वैसे बाइडेन ने वेनेज़ुएला और क्यूबा पर लगाई गई आर्थिक पाबंदियों में ढील देने को लेकर कुछ इरादे ज़ाहिर किए हैं. बाइडेन प्रशासन ने क्यूबा पर लगाई गई आर्थिक पाबंदियों में से कुछ को वापस लेने के लिए क़दम उठाए हैं जिनमें क्यूबा की यात्रा और वहां भेजी जानी वाली रक़म शामिल हैं. क्यूबा के बाद बाइडेन प्रशासन ने वेनेज़ुएला पर लगाई गई कुछ ऊर्जा पाबंदियों में भी ढील दी है. वास्तव में क्यूबा और वेनेज़ुएला पर लगाई गई आर्थिक पाबंदियों में बाइडेन प्रशासन की तरफ़ से ढील देने के दो कारण हैं. पहला कारण ये है कि कई देशों ने अमेरिका के द्वारा शिखर सम्मेलन से कुछ देशों को बाहर रखने के फ़ैसले का विरोध किया है और इसकी वजह से अमेरिका को मजबूर होकर कुछ आर्थिक प्रतिबंधों को वापस लेना पड़ा. दूसरा कारण ये है कि मौजूदा यूक्रेन-रूस युद्ध ने बाइडेन प्रशासन को मजबूर कर दिया है कि वो ऊर्जा से जुड़ी ज़रूरतों के लिए वेनेज़ुएला से संपर्क करे, ख़ास तौर पर अमेरिका के द्वारा इस उद्देश्य के लिए मध्य-पूर्व के अपने साझेदार देशों जैसे कि सऊदी अरब और यूएई से किए गए अनुरोध के बेहद कम असर को देखते हुए. अमेरिका के द्वारा ये कोशिशें जल्द होने वाले शिखर सम्मेलन को बचाने के लिए की गई हैं क्योंकि मध्य और लैटिन अमेरिका के कई देशों ने शिखर सम्मेलन का बहिष्कार करने की धमकी दी है. 

लैटिन अमेरिका के साथ संबंध बेहतर करने की कवायद

वैसे तो मध्य और लैटिन अमेरिका के देश अमेरिकी शिखर सम्मेलन को सफल या असफल बना सकते हैं लेकिन इन देशों के बीच ये एकजुटता बाइडेन प्रशासन को इस क्षेत्र के देशों को लेकर अपनी नीतियों को बदलने के लिए मजबूर कर सकती है. जल्द होने वाले शिखर सम्मेलन में इस क्षेत्र के देश एकजुट होकर ट्रंप के कार्यकाल के दौरान लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों पर समीक्षा के लिए कह सकते हैं. उदाहरण के लिए, लोकतंत्र की बहाली की दिशा में वेनेज़ुएला और निकारागुआ जैसे देशों में आर्थिक प्रतिबंधों में कोई राहत नहीं दी गई है. इसके स्थान पर बाइडेन प्रशासन के दौरान आर्थिक प्रतिबंधों में मज़बूती आई है, वो भी तब जब इस बात के सबूत बढ़ रहे हैं कि इन आर्थिक प्रतिबंधों की वजह से लोगों के रहन-सहन के स्तर पर असर और नकारात्मक प्रभाव बेहद कम है. चुनाव के बाद क्यूबा से संबंध सुधारने की नीति के ऐलान के बाद भी क्यूबा को लेकर नीतियों में काफ़ी बदलाव नहीं आया है. ट्रंप के कार्यकाल के दौरान की शत्रुता मौजूदा प्रशासन में भी बनी हुई है. इससे अमेरिका को इस द्वीपीय देश में महत्वपूर्ण फ़ायदा उठाने का काफ़ी कम मौक़ा मिलता है. अमेरिकी देशों का शिखर सम्मेलन बाइडेन को मध्य, लैटिन, और उत्तरी अमेरिका के कुछ देशों के साथ अमेरिका के संबंधों को ठीक करने और इस क्षेत्र में अपने असर को फिर से बहाल करने का मौक़ा देता है. 

अमेरिकी देशों का शिखर सम्मेलन बाइडेन को मध्य, लैटिन, और उत्तरी अमेरिका के कुछ देशों के साथ अमेरिका के संबंधों को ठीक करने और इस क्षेत्र में अपने असर को फिर से बहाल करने का मौक़ा देता है.

इस शिखर सम्मेलन में ध्यान मेज़बान देश अमेरिका पर है क्योंकि इस बात को लेकर अटकलें लग रही हैं कि ये बातचीत आख़िर कितनी कामयाबी की ओर ले जाती है. शिखर सम्मेलन की सफलता इस पर निर्भर करेगी कि कितने देशों के राष्ट्र प्रमुख इसमें शामिल होते हैं लेकिन दुख की बात ये है कि लैटिन अमेरिका के कई देशों के शिखर सम्मेलन में शामिल होने को लेकर संदेह है. इन देशों में मेक्सिको, बोलीविया, होंडुरास, और ब्राज़ील शामिल हैं. यहां तक कि कैरेबियाई देशों ने भी शिखर सम्मेलन का बहिष्कार करने की धमकी दी है. 

अमेरिका के लिए इन देशों के साथ मुख्य चिंता लोकतंत्र में लगातार आती गिरावट और कुछ मामलों में लोकतंत्र के लिए सम्मान की पूरी तरह कमी है. इस क्षेत्र के कुछ देशों की राजनीतिक शासन व्यवस्था में लोकतंत्र को खोखला करने और तानाशाही शासन की तरफ़ झुकाव की प्रवृत्ति रही है. इसकी वजह से अमेरिका को निराशा होती है. उदाहरण के लिए, ब्राज़ील की रूस के साथ बढ़ती नज़दीकी, राष्ट्रपति बोलसोनारो के ख़िलाफ़ चुनाव में धांधली के आरोप, और जलवायु विरोधी नीतियों को जारी रखना, जिसकी वजह से अमेज़न में बड़ी संख्या में पेड़ काटे जा रहे हैं. इन कारणों से अमेरिका के साथ ब्राज़ील के संबंध तनावपूर्ण हैं. दूसरी तरफ़ राष्ट्रपति बोलसोनारो को इस बात का भी डर है कि शिखर सम्मेलन के दौरान उन्हें अपने देश में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के सम्मान को लेकर अमेरिका के दबाव का भी सामना करना पड़ सकता है. वैसे कई देशों की तरफ़ से इस साल के शिखर सम्मेलन में शामिल होने को लेकर कुछ हद तक अनिश्चितता का आंशिक कारण घरेलू मोर्चे पर चुनौतियां भी हो सकती हैं जैसे कि महामारी की वजह से आर्थिक मंदी, महंगाई, बढ़ता भ्रष्टाचार, और कमज़ोर लोकतांत्रिक संस्थान. 

शिखर सम्मेलन से बड़े क्षेत्रीय देशों जैसे कि ब्राज़ील और मेक्सिको की ग़ैर-मौजूदगी की स्थिति में बाइडेन के द्वारा इस क्षेत्र के नेतृत्व को मज़बूत करने और क्षेत्रीय देशों के साथ संबंध सुधारने का उद्देश्य पटरी से उतर सकता है. इस क्षेत्र के दो बड़े देशों- ब्राज़ील और मेक्सिको- की अनुपस्थिति में शिखर सम्मेलन होने पर इसको नाकाम बताते हुए पहले से ही आलोचना हो रही है. लेकिन अगर आर्थिक प्रतिबंधों को वापस लेने और इस क्षेत्र के देशों के साथ संबंध सुधारने की दिशा में बाइडेन के क़दम असरदार साबित होते हैं तो उनका प्रशासन बदलाव, लोकतंत्र की रक्षा, और प्रवासन के बोझ को कम करने के मुद्दे पर विदेश नीति के उद्देश्यों को हासिल करने पर ध्यान देगा. 

बाइडेन प्रशासन का मक़सद वैश्विक स्तर पर अमेरिका के नेतृत्व और विश्वसनीयता को बहाल करना तो है लेकिन लैटिन अमेरिका के देशों के लिए उसके पास ठोस कार्यक्रम की कमी है.

बाइडेन प्रशासन का मक़सद वैश्विक स्तर पर अमेरिका के नेतृत्व और विश्वसनीयता को बहाल करना तो है लेकिन लैटिन अमेरिका के देशों के लिए उसके पास ठोस कार्यक्रम की कमी है. उदाहरण के लिए, राष्ट्रपति बाइडेन की बुनियादी ढांचे और सामाजिक कल्याण परियोजनाओं के लिए बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (बी3डब्ल्यू) पहल, और लैटिन अमेरिका के देशों के लिए इस पहल का वादा सीनेट में अटका हुआ है. शायद ही बुनियादी ढांचे या निवेश की कोई योजना लैटिन अमेरिका पर असर डालती है. ऐसा ही एक कार्यक्रम “कॉल टू एक्शन” है जिसकी शुरुआत उप राष्ट्रपति कमला हैरिस ने की थी और जिसका उद्देश्य मध्य अमेरिका के देशों से प्रवासन के मूल कारणों को ख़त्म करना है. लेकिन इस कार्यक्रम को नॉर्दर्न ट्राएंगल (ग्वाटेमाला, होंडुरास, एल सल्वाडोर) की सरकारों से अच्छा सहयोग नहीं मिला है जिसकी वजह से उप राष्ट्रपति को सिविल सोसायटी का समर्थन लेना पड़ रहा है लेकिन सिविल सोसायटी के पास विश्वसनीय राजनीतिक प्रभाव की कमी है जो प्रवासन की समस्या से असरदार ढंग से निपटने के लिए आवश्यक है. 

9वां शिखर सम्मलेन

लैटिन अमेरिका के देशों के आलोचक अमेरिका के द्वारा शिखर सम्मेलन से कुछ देशों को बाहर करने की धमकी को उन देशों के ख़िलाफ़ भेदभाव के तौर पर देखते हैं जिसका आधार अमेरिका के साथ उन देशों के तनावपूर्ण राजनयिक संबंध है. क्यूबा के मामले में ये बात ख़ास तौर पर सही हो सकती है जिसे शिखर सम्मेलन के शुरुआती छह वर्षों तक भाग नहीं लेने दिया गया था. एक और कारण जिसकी वजह से इस क्षेत्र में अमेरिका की राजनीति का रंग बदल गया है, वो है इस क्षेत्र के कुछ देशों का चीन के साथ बदलता संबंध और इस क्षेत्र में चीन का बढ़ता असर. लैटिन अमेरिका के कई देशों ने अपने बुनियादी ढांचे के विकास के लिए चीन के निवेश का स्वागत किया है. इस वजह से इस क्षेत्र में अमेरिका के नेतृत्व के लिए जगह और भी कम हो गई है. बाइडेन प्रशासन के लिए अमेरिकी महादेश के देशों के साथ संबंधों को सुधारना इस समझ के साथ जुड़ा हुआ है कि उसे बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं के लिए चीन के साथ मुक़ाबला करने की ज़रूरत होगी. लैटिन अमेरिका में चीन का बढ़ता असर इस बात पर ज़ोर डालता है कि अमेरिका इस क्षेत्र में क्षमताओं को विकसित करे. ऐसी स्थिति में अमेरिकी देशों का शिखर सम्मेलन बाइडेन प्रशासन को एक अवसर प्रदान कर सकता है कि वो बी3डब्ल्यू कार्यक्रम के तहत होने वाले फ़ायदों के बारे में लैटिन और मध्य अमेरिका के देशों को बताए. अमेरिका के लिए इस क्षेत्र में प्रभाव फिर से हासिल करने और चीन को बाहर करने का रास्ता काफ़ी हद तक इस बात पर निर्भर हो सकता है कि अमेरिका के अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों के देश कितना आगे बढ़ते हैं. 

पिछले शिखर सम्मेलन का मुख्य नतीजा भ्रष्टाचार की कार्य प्रणाली से निपटना था जो काफ़ी हद तक नाकाम रहा. इस साल का 9वां/नौवां शिखर सम्मेलन इस क्षेत्र में आर्थिक रूप से चीन के विस्तारवाद को देखते हुए बाइडेन प्रशासन पर एक विशेष महत्व देता है. लैटिन अमेरिका के देश ख़ुद को अमेरिका के असर के तहत रहने के लिए मजबूर नहीं समझते हैं और इन देशों ने सामूहिक विरोध और यहां तक कि बहिष्कार की वजह भी तलाश ली है. शिखर सम्मेलन के दौरान लैटिन अमेरिका और मध्य अमेरिका के देशों के द्वारा जिन समस्याओं का सामना किया जा रहा है, उनके लिए एक व्यावहारिक प्रस्ताव की ज़रूरत है और इस प्रस्ताव को गंभीर ज़िम्मेदारी के साथ लागू किया जाए. ये शिखर सम्मेलन बाइडेन प्रशासन को एक ठोस योजना बनाने और अमेरिकी देशों में अमेरिका को लेकर राजनीतिक सोच का प्रबंधन करने का एक अवसर प्रदान करता है. अगर इसमें सफलता मिली तो शिखर सम्मेलन बाइडेन का कार्यकाल ख़त्म होने तक फिर से क्षेत्रीय नेतृत्व हासिल करने की योजना बनाने के लिए अमेरिका का रास्ता साफ़ कर सकता है और पश्चिमी गोलार्ध में बेहतर क्षेत्रीय संबंध को आगे बढ़ा सकता है.  

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Author

Vivek Mishra

Vivek Mishra

Vivek Mishra is a Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. His research interests include America in the Indian Ocean and Indo-Pacific and Asia-Pacific regions, particularly ...

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Contributor

Souravie Ghimiray

Souravie Ghimiray

Souravie Ghimiray is a Ph.D. scholar of American Studies program in JNU. She has submitted her doctoral dissertation on Religious Freedom in US Foreign Policy. ...

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