ज्य़ादातर भारतीय शहर अलग- अलग गति में लेकिन ज़ाहिर तौर पर जनसंख्या वृद्धि की समस्या से जूझ रहे हैं. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, ऐसा अनुमान है कि वर्ष 2019 और 2035 के दरम्यान, विश्व भर में, 20 सबसे तेज़ी से विकसित होते शहरों में से अकेले 17 सिर्फ़ भारत से होंगे. सूरत, आगरा, बेंगलुरू, हैदराबाद, नागपूर, तिरुपुर और राजकोट जैसे शहर इस मुहिम का आगे से नेतृत्व करेंगे. वर्तमान समय में अपवाद स्वरूप भारत में सिर्फ छावनी क्षेत्र होंगे, जिसने सामान्यतः जनसंख्या में सपाट या फिर गिरावट की प्रवृत्ति का प्रदर्शन किया है. जहां एक तरफ देश ने 2001 और 2011 के दशक के दौरान औसत 1.62 प्रतिशत की संपूर्ण जनसंख्या वृद्धि के साथ सामान्य शहरीकरण के बदलाव को देखा है, वहीं भारत के कुल 62 छावनियों में से 27 ने अपने यहां बसी आबादी को खोया है.
वर्तमान समय में अपवाद स्वरूप भारत में सिर्फ छावनी क्षेत्र होंगे, जिसने सामान्यतः जनसंख्या में सपाट या फिर गिरावट की प्रवृत्ति का प्रदर्शन किया है.
हालांकि, ये देखा जा रहा है कि दुनियाभर में कई शहरों ने जनसांख्यिकी गिरावट के चरण में प्रवेश कर लिया है. पूर्वी यूरोप और सेंट्रल एशिया से संबंधित वर्ल्ड बैंक द्वारा छापे गये एक विशेष लेख में इस बात का खुलासा हुआ है कि इन दोनों क्षेत्रों के शहरों की आबादी में एक संपूर्ण स्तर पर गिरावट की प्रवृत्ति देखी जा रही है. शुरुआत करते हुए कहें तो, इन दोनों क्षेत्रों में बसे शहरों ने अपने यहां तेज़ गति का शहरीकरण देखा है, और 1989 आते-आते, 64 प्रतिशत से भी ज्य़ादा की आबादी इन शहरी व्यवस्था में ही रह रहे थे. हालांकि, साल 2000 और 2010 के बीच, इन क्षेत्रों में स्थित कुल 61 प्रतिशत शहर वहां बसी कुल आबादी के औसतन 11 प्रतिशत जनसंख्या को खो चुकी थी. दो दशकों से अधिक तक वहां के प्रजनन दर का प्रतिस्थापन या रिप्लेसमेंट स्तर से नीचे होने की वजह से इसमें गिरावट दर्ज की गई. इसके अलावा, चूंकि, विकसित देशों में ही ज्य़ादातर शहरीकरण की प्रक्रिया देखी गई है, इसलिए ज्य़ादातर शहरों में शहरीकरण की प्रक्रिया एक तरह से बिलकुल सपाट हो गई है.
जनसंख्या में गिरावट
यूरोप में, 2020 के बाद, कोविड19 महामारी के पहले वर्ष के दौरान, 10 में से 9 महानगरीय क्षेत्रों की आबादी में कमी दर्ज की गई; पहले जहां यूरोपियन शहरों द्वारा +0.3 प्रतिशत का औसत वृद्धि दर रिकॉर्ड किया गया था, वहीं बाद में कोविड के बाद ये वृद्धि दर प्रति वर्ष -0.3 प्रतिशत के दर से नेगेटिव अथवा नकारात्मक हो गया. यह प्रवृत्ति सबसे पहले, 500,000 और उससे अधिक की जनसंख्या वाले शहरों में देखी गयी थी. हालांकि, तात्कालिक तौर पर, होने वाली इस जनसांख्यिकी गिरावट के पीछे महामारी का प्रभाव रहा होगा, लेकिन यह एक प्राकृतिक जनसांख्यिकी गिरावट है जो लंबे समय में होने वाली गिरावट की एक प्रमुख वजह है. एक तरफ जहां चंद क्षेत्रों में मध्यम शहरी आबादी बढ़त दर्ज होगी, वहीं कुछ स्पैनिश शहरें जैसे- (बार्सिलोना, मैड्रिड, वैलेनसिया), पुर्तगाली शहरें जैसे- (पोर्टो), लिथुआनियाई शहर जैसे- (विलनियस), और जर्मनी स्थित शहरेंस और इबेरियाई प्रायद्वीप शहरों में जनसंख्या में भारी गिरावट दर्ज होने की उम्मीद है. कुल मिलाकर, 1990 और 2015 के मध्य में, पश्चिमी यूरोप में शहरी जनसंख्या में 0.7 प्रतिशत वृद्धि दर्ज हुई. हालांकि, वर्ष 2015 और 2025 के दौरान, 0.5 प्रतिशत तक की गिरावट आने की संभावना व्यक्त की गई है, और 2025 और 2035 तक के वर्षों के दौरान 0.4 प्रतिशत तक की गिरावट संभावित है. हालांकि, शहरों के बीचों-बीच, जनसंख्या में विविधता के काफी बेहतर अंतर है. जहां कुछ इलाकों में, जनसांख्यिकी गिरावट दिखती है, तो कुछ अन्य शहरों जैसे- बर्लिन, लंदन, ओस्लो, पेरिस, और स्टॉकहोम में जनसंख्या में थोड़ी बढ़त अब भी जारी है.
सीएनएन द्वारा निर्गत एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में जारी जनगणना और सांख्यिकी विभाग के आंकड़ों के हवाले से कहा गया है कि सबसे तेज़ गिरावट हॉन्गकॉन्ग की आबादी में दर्ज की गई है. यहाँ इनकी आबादी 1.6 प्रतिशत की कमी के साथ, 7.4 मिलियन से घटकर 7.29 मिलियन हो गई.
सीएनएन द्वारा निर्गत एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में जारी जनगणना और सांख्यिकी विभाग के आंकड़ों के हवाले से कहा गया है कि सबसे तेज़ गिरावट हॉन्गकॉन्ग की आबादी में दर्ज की गई है. यहाँ इनकी आबादी 1.6 प्रतिशत की कमी के साथ, 7.4 मिलियन से घटकर 7.29 मिलियन हो गई. चीनी जनगणना के नवीनतम आंकड़ों के तहत बीजिंग, शंघाई, ग्वांगझू और शेनझेन क्षेत्र में जनसंख्या में कमी रिकार्ड की गई है. एक तरफ जहां आंशिक तौर पर कोविड19 महामारी को इसके लिये दोषी माना गया है, बीजिंग और शंघाई में स्थानीय प्रशासन द्वारा जनसंख्या के आकार को नियंत्रित करने संबंधी जारी किए गए आदेश की वजह से भी वहां की आबादी ने काफी बड़ी संख्या खो दी है. समय के साथ-साथ, चीनी जनसंख्या में गिरावट (2050 तक ये आँकड़े 1.32 बिलियन तक पहुंचने की संभावना है) तक आने की कल्पना करना बेमानी नहीं होगी, वहीं अन्य शहरों को भी होने वाली जनसंख्या हानि की संभावना को नजरंदाज़ नहीं किया जा सकता है. जापान में, शहरी आबादी भी गंभीर संकट के दौर में प्रवेश कर चुकी है.1990 और 2015 के दौरान देश के शहरीकरण में 0.9 प्रतिशत की वृद्धि रिकॉर्ड की गई है और 2010 और 2015 के मध्य में इसमें 0.6 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज हुई. अंदरूनी स्तर पर माइग्रेशन के कारण भी नगोया और टोक्यो में मामूली स्तर पर शहरी विकास को देखा गया है. हालांकि, वर्ष 2012 और 2015 के बीच, जापान के शहरी बस्तियों में 40 प्रतिशत तक की कमी आयी है. ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि आगे जाकर, जापान के सभी बड़े शहरों में वर्ष 2050 तक उनकी कुल आबादी में 40 प्रतिशत तक की कमी आने की संभावना है.
संयुक्त राज्य अमेरिका में, सन 2000 और 2021 के बीच, बड़े शहरों में भारी मात्रा में जनसंख्या में गिरावट देखी गई है. उस अवधि के दौरान 2,50,000 से ज्य़ादा आबादी वाले शहरों में 0.95 प्रतिशत के औसत से वार्षिक बढ़त देखी गई. अमेरिका के दो लाख पचास हज़ार की आबादी की संख्या वाले 88 शहरों में से 77 चुने हुए शहरों में या तो धीमी वृद्धि या फिर कि काफी बड़ी गिरावट की प्रकृति देखी गई है, और 14 शहरों में जनसंख्या का भारी नुकसान देखा गया है. जिन शहरों ने बड़ा नुकसान दर्ज किया है उनमें सैन-फ्रांसिस्को, न्यूयॉर्क, वॉशिंगटन डीसी, बोस्टन, सेंट लुइस और अटलांटा आदि शहर शामिल हैं. हालांकि, ये स्पष्ट किया जाना ज़रूरी है कि अमेरिकी शहरी व्यवस्था काफी विविध है और जापान, या फिर पश्चिमी यूरोप द्वारा अपनाए जाने वाली शहरी पदचिन्हों के पैटर्न या पद्धति की तुलना में काफी अलग है. जहां चंद शहरों में ये बढ़त काफी सिकुड़ती हुई दिखी वहीं अन्य शहरों में ये सपाट है, कई अन्य शहरों में उच्च जनसंख्या वृद्धि का क्रम जारी है.
विकसित विश्व के शहरों की तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए, इस तरह से समूची जनसंख्या में गिरावट, एक बुरा संकेत है, जो पिछले कई दशकों से जनसंख्या वृद्धि से प्रेरित रहा है.
विकसित विश्व के शहरों की तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए, इस तरह से समूची जनसंख्या में गिरावट, एक बुरा संकेत है, जो पिछले कई दशकों से जनसंख्या वृद्धि से प्रेरित रहा है. घटते प्रजनन दर, वृद्धों की बढ़ती आबादी, और ग्रामीण से शहरी प्रवास में आई कमी के साथ ही, अब विश्व के कई प्रमुख शहरों को बढ़ती आर्थिक गिरावट का भी सामना करने को विवश होना पड़ेगा. एक तरफ जहां, कई शहरों में विकास अब भी जारी है, वहीं कुछ शहरों में आर्थिक रूप से कमज़ोर होने के बाद के दुष्प्रभावों से बचने के लिए, लोगों का एक शहरी बस्ती से दूसरे शहरी बस्ती में शिफ्ट कर जाना इस तरह की आवाजाही का एक प्रमुख कारण माना जा रहा है. आने वाले समय के साथ-साथ, विभिन्न शहरों के बीच अपनी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने की होड़ बढ़ जाएगी क्योंकि वे सभी उत्पादकता बढ़ाने के लिए स्थानीय स्तर पर कारगर रणनीति तैयार करते रहते हैं. अत्यधिक कुशल और प्रभाशाली व्यक्तियों और उनकी अर्थव्यवस्था में सफल व्यवसायों को आकर्षित करना, उनकी रणनीति का ही भाग है. हालांकि, ये रणनीतियाँ काफी आकर्षक हैं और बाकी अन्य शहरों द्वारा भी इसे अपनाने की पूरी संभावना है. नगर प्रशासन को संभवतः अपने व्यय, सामाजिक कल्याण योजनाओं, और महंगे बुनियादी ढांचों पर होने वाले खर्चों में कमी करनी पड़ेगी. इनमें से कुछ तो नागरिकों को नापसंद भी हो सकते हैं, और कुछ लोकतांत्रिक देशों के लिये आर्थिक बेल्ट को और भी मज़बूत करने के लिए ज़रूरी इन अलोकप्रिय और ज्य़ादातर विवादास्पद निर्णय लेने में, राजनीतिक और चुनावी प्रतिक्रिया के डर की वजह से काफी मुश्किलों का सामना भी करना पड़ सकता है. आर्थिक गिरावट और बढ़ती बेरोज़गारी ने अपराध को प्रोत्साहित करने के लिए एक वैश्विक प्रवृत्ति तैयार की है. विकसित होते दुनिया के घटते शहरों में ऐसी स्थिति से इनकार नहीं किया जा सकता है.
आगे की राह
वर्तमान में भारत बढ़ते शहरीकरण की ओर बढ़ रहा है. शहरीकरण की ये प्रक्रिया संभवत: आने वाले कई दशकों तक लगातार जारी रहेगा जब तक कि देश, पश्चिमी शहरीकरण द्वारा स्थापित मानक तक नहीं पहुंच जाता है. इसलिए , भारतीय और पश्चिमी शहरों के बीच इस लाइन पर कुछ समानताएं खींची जा सकती है.
भारत को एक ऐसा तरीका या उपाय करना पड़ेगा, जिसके द्वारा पुरुष और महिलायें अपनी निजी आजादी और आकांक्षाओं से बग़ैर समझौता किए, परिवार का पालन पोषण कर पाने में सक्षम हों.
भारतीय शहरों को आने वाली बड़ी जनसंख्या के साथ अपना संघर्ष जारी रखना होगा और उन्हें मज़बूत करने के लिए आर्थिक, भौतिक, सामाजिक और मनोरंजन के लिए ज़रूरी बुनियादी ढांचों को जोड़ना पड़ेगा. इसलिए विकसित दुनिया के शहरों को जनसंख्या हानि के दुष्प्रभावों का उचित प्रबंधन करना होगा: वहीं भारतीय शहरों को अपने यहां बसे लोगों को बेहतर सुविधा प्रदान करने के नये लक्ष्यों को पूरा करने के लिए लगातार संघर्ष जारी रखना पड़ेगा. हालांकि, ये भी सही है कि अगले कुछ दशकों में भारत में जनसंख्या स्थिर हो ही जाएगी और एक निश्चित समय के बाद कम भी हो जाएगी. हमने ऐसा देखा है कि, आर्थिक समृद्धि के साथ, भारतीय महिलायें आर्थिक स्वतंत्रता का बेहतर लुत्फ़ उठायेंगी. लोकतंत्र उन्हे परिवार के भीतर और बाहर और भी ज्य़ादा आजादी देगी साथ ही उन्हें इन निकायों के ऊपर अधिक नियंत्रण भी मुहैय्या करायेगी. महिलाओं के बीच, बच्चों के जन्म का बोझ और उनकी परवरिश की ज़िम्मेदारी संभालने की तैयारी, इन महत्वपूर्ण बदलावों के बाद और भी कम होने की संभावना है. इसलिए देश और उनके शहरों के सामने काफी अहम सवाल खड़ें होंगे. जैसे – देश के भीतर की जनसंख्या में गिरावट की प्रवृत्ति से कैसे बचा जा सकता है. जिस ऊहापोह की स्थिति में पश्चिमी समाज आज खुद को पाते है, उससे भारत को खुद को बचाना पड़ेगा. इसके लिए भारत को एक ऐसा तरीका या उपाय करना पड़ेगा, जिसके द्वारा पुरुष और महिलायें अपनी निजी आजादी और आकांक्षाओं से बग़ैर समझौता किए, परिवार का पालन पोषण कर पाने में सक्षम हों.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.