लगभग आधे दशक के अंतराल के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस के दौरे पर गए थे. इससे पहले मोदी 2019 में रूस की यात्रा पर गए थे और उसके बाद से बहुत कुछ बदल चुका है. भारत का रूस के साथ व्यापार 10 अरब डॉलर के आस-पास मंडरा रहा था. वहीं, प्रतिबंधों के बावजूद यूरोप के साथ रूस का कारोबार अपने सर्वोच्च स्तर पर चल रहा था. ये सारे समीकरण 22 फरवरी 2023 को रूस के यूक्रेन पर हमला करने के साथ ही बदल गए. जिस संबंध को सुप्तावस्था में बताया जा रहा था कि वो अब प्रतीकात्मक बनने की दिशा में बढ़ रहा है, उसे अचानक ही आर्थिक पंख लग गए. 2023 में भारत और रूस के बीच आपसी व्यापार 65 अरब डॉलर के उच्च स्तर पर जा पहुंचा था. इसकी प्रमुख वजह भारत द्वारा रूस से ऊर्जा संबंधी आयात करना थी. प्रधानमंत्री मोदी का हाल का रूस दौरा एक नियमित द्विपक्षीय यात्रा थी, जिसका मक़सद संबंधों में पिछले कुछ वर्षों के दौरान पैदा हुई रुकावटों को दूर करना था, बल्कि आने वाले वर्षों के लिए भी रूस और भारत के संबंध की दशा दिशा तय करना था.
प्रधानमंत्री मोदी का हाल का रूस दौरा एक नियमित द्विपक्षीय यात्रा थी, जिसका मक़सद संबंधों में पिछले कुछ वर्षों के दौरान पैदा हुई रुकावटों को दूर करना था, बल्कि आने वाले वर्षों के लिए भी रूस और भारत के संबंध की दशा दिशा तय करना था.
इस दौरे से क्या हासिल हुआ?
अपने रूस दौरे के दौरान प्रधानमंत्री मोदी को रूस के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ऑर्डर ऑफ सेंट ऐंड्रयू से सम्मानित किया गया. इससे रूस की नज़र में भारत की महत्ता और स्पष्ट हो जाती है. दो दिन के इस दौरे के दौरान यूक्रेन युद्ध, धोखे से रूस के सैन्य बलों में शामिल किए गए उन भारतीय नागरिकों की वापसी जो युद्ध के मोर्चे पर लड़ रहे हैं और ग़ज़ा के संकट जैसे अन्य मसलों पर चर्चा हुई. इन परिचर्चाओं के साथ साथ रूस और भारत के बीच 15 समझौतों पर दस्तख़त भी किए गए. इनमें ट्रेड प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया और ऑल रशिया पब्लिक ऑर्गेनाइजेशन ‘बिज़नेस रशिया’ के बीच द्विपक्षीय व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिए सहमति पत्र (MoU) पर हस्ताक्षर भी शामिल हैं. इसके अलावा इन्वेस्ट इंडिया और JSC ‘मैनेजमेंट कंपनी ऑफ रशियन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट फंड’ के बीच समझौता भी शामिल था. दोनों देशों ने आपसी व्यापार को 2030 तक 100 अरब डॉलर पहुंचाने का लक्ष्य भी रखा है.
भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और रूसी गणराज्य के आर्थिक विकास मंत्रालय के बीच जलवायु परिवर्तन से जुड़े मसलों से निपटने और कम कार्बन उत्सर्जन वाली तकनीकें विकसित करने के एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए गए. इसके अलावा, सर्वे ऑफ इंडिया और रूस के फेडरल सर्विस फॉर स्टेट रजिस्ट्रेशन कैडेस्ट्रे ऐंड कार्टोग्राफी के बीच एक सहमति पत्र पर भी हस्ताक्षर किए गए; और भारत के फार्माकोपिया कमीशन और रूस के फेडर स्टेट बजेटरी इंस्टीट्यूशन ‘साइंटिफिक सेंटर फॉर एक्सपर्ट इवैल्यूएशन ऑफ़ मेडिसिनल प्रोडक्ट’ के बीच भी एक सहमति पत्र (MoU) पर दस्तख़त किए गए.
इससे भी अहम बात ये है कि रूस के सुदूर पूर्व इलाक़े के साथ सहयोग में भारत की दिलचस्पी 2019 के बाद से काफ़ी बढ़ गई है, और दोनों ही देश 2024 से 2029 के दौरान रूस के सुदूर पूर्व इलाक़े से व्यापार करने और निवेश बढ़ाने पर सहमत हुए हैं, विशेष रूप से कृषि, ऊर्जा, खनन, कामगारों, हीरा, फार्मास्यूटिकल्स और समुद्री परिवहन के क्षेत्र में. आर्कटिक क्षेत्र में खोज को लेकर भारत के नेशनल सेंटर फॉर पोलर रिसर्च और अंटार्कटिक रिसर्च इंस्टीट्यूशन ऑन कोऑपरेशन इन रिसर्च एंड लॉजिस्टिक्स इन द पोलर रीजन के बीच सहमति पत्र पर सहमति बनी है. पिछले महीने रूस ने सेनाओं के बीच आदान-प्रदान, प्रशिक्षण, पोर्ट कॉल और मानवीय सहायता एवं आपदा राहत के अभियानों (HADR) को लेकर लॉजिस्टिक्स के समझौते के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है.
पिछले महीने रूस ने सेनाओं के बीच आदान-प्रदान, प्रशिक्षण, पोर्ट कॉल और मानवीय सहायता एवं आपदा राहत के अभियानों (HADR) को लेकर लॉजिस्टिक्स के समझौते के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है.
प्रधानमंत्री मोदी के इस दौरे के दौरान आतंकवाद से मुक़ाबले और क्षेत्रीय सुरक्षा के मामले में सहयोग पर काफ़ी बल दिया गया था, और दोनों नेताओं ने अफ़ग़ानिस्तान के हालात, कट्टरपंथ से जुड़े मसलों, ड्रग की तस्करी और आतंकवाद पर भी चर्चा की और उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान में दूरगामी समाधान के लिए मास्को के मॉडल वाली बैठकों की भूमिका की अहमियत पर ज़ोर दिया था.
भारत और रूस के रिश्तों के लिए इस दौरे का मतलब क्या है?
बहुत से सामरिक पर्यवेक्षकों ने इस दौरे को महज़ प्रतीकात्मक बताते हुए ख़ारिज करके इसके नतीजों को नीचा दिखाने की कोशिश की है. हालांकि, मोदी के इस रूस दौरे के परिणाम काफ़ी महत्वपूर्ण हैं; इससे संकेत मिलता है कि आने वाले वर्षों में दोनों देशों के बीच आर्थिक साझेदारी और बढ़ने वाली है. काग़ज़ पर अगर INSTC (अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण व्यापार गलियारा) पर अगर यातायात बढ़ता है और EAEU के बीच मुक्त व्यापार का समझौता होता है और उत्तर का समुद्री मार्ग खुलने पर सोवियत संघ के दौर के चेन्नई व्लादिवोस्तोक समुद्री गलियारे में नई जान आती है, तो इससे दोनों देशों के बीच समुद्री सफर 40 से घटकर केवल 20 दिन का रह जाएगा, जिससे भारत यूरेशिया के व्यापार में अधिक सक्रिय भूमिका निभा सकेगा.
येकातेरिनबर्ग और कज़ान शहर में अपने दो वाणिज्य दूतावास स्थापित करने की घोषणा करके भारत ने रूस में अपनी बढ़ती दिलचस्पी का ही संकेत दिया है. इससे ये भी पता चलता है कि पूरे रूस में भारतीय मूल के लोग रहते हैं; वैसे तो रूस में भारतीय कारोबारियों की उपस्थिति मामूली है. लेकिन, पिछले कुछ वर्षों के दौरान इसमें काफ़ी बढ़ोतरी हुई है. वैसे तो दोनों देशों के बीच व्यापार में ऊर्जा के कारोबार का दबदबा है. लेकिन रूस में भारत का फार्मास्यूटिकल सेक्टर तेज़ी से आगे बढ़ रहा है और अब जर्मनी की जगह भारत, रूस को दवा निर्यात करने वाला सबसे बड़ा देश बन गया है. भारत की कई बड़ी दवा कंपनियां जैसे कि डॉक्टर रेड्डीज़ लैब, सन फार्मा और सिप्ला ने रूस की स्थानीय कंपनियों के साथ समझौता किया है और वहां जेनेरिक दवाओं का उत्पादन कर रही हैं.
रूस के बैंकों ने रुपए में भारत के शेयरों, सरकार के बॉन्ड और मूलभूत ढांचे की परियोजनाओं में निवेश किया है. इसके साथ साथ रुपए को रूबल में तब्दील करने की लागत भी कम हो गई है, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापार की बाधाएं अब और कम हो गई हैं.
2022 से ही दोनों देशों के बीच भुगतान के निपटारे की समस्या गहरी होती जा रही है और 2023 में रुपए और रूबल में कारोबार में गिरावट से ये समस्या और बढ़ गई है. हालांकि, एक व्यवस्था उभरी है जिसमें भुगतान के विवादों का समाधान किया जा रहा है. वीटीबी बैंक के सीईओ आंद्रेई कोस्टिन ने कहा कि, रूस के ख़ज़ाने में जमा भारतीय रुपयों की समस्या का निदान ढूंढ लिया गया है, और ‘भारत और संयुक्त अरब अमीरात के मध्यस्थों की मदद से रुपए को रूबल में तब्दील किया जा रहा है.’ यही नहीं, रूस के बैंकों ने रुपए में भारत के शेयरों, सरकार के बॉन्ड और मूलभूत ढांचे की परियोजनाओं में निवेश किया है. इसके साथ साथ रुपए को रूबल में तब्दील करने की लागत भी कम हो गई है, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापार की बाधाएं अब और कम हो गई हैं.
आख़िर में पुतिन ने रूस की सेना में काम कर रहे 35 से 50 भारतीय नागरिकों को आज़ाद करके उन्हें देश भेजने की भारत की गुज़ारिश स्वीकार कर ली है. ये भारत के लिए बड़ी कूटनीतिक विजय है, क्योंकि नेपाल और श्रीलंका तमाम अपीलों के बावजूद रूसी सेना में काम कर रहे अपने नागरिकों को वापस ला पाने में नाकाम रहे थे.
चुनौतियां
ऐतिहासिक रूप से भारत और रूस के रिश्तों का आधार सैन्य तकनीकी साझेदारी रही है. हाल के वर्षों में देखें तो S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम के बाद से दोनों देशों के बीच कोई बड़ा सैन्य समझौता नहीं हुआ है. यूक्रेन में युद्ध ने भारत में रूस से समय पर हथियारों के निर्यात को लेकर भी आशंकाएं पैदा कर दी हैं; रूस की चीन से बढ़ती नज़दीकी भी इन चिंताओं को बढ़ा रही है, क्योंकि चीन को रूस से हथियार हासिल करने के मामले में भारत पर तरज़ीह मिल सकती है. दूसरा, रूस के सुदूर पूर्व से नज़दीकी बढ़ाने की भारत की तमाम कोशिशों और चेन्नई, व्लादिवोस्तोक समुद्री गलियारे को दोबारा जीवित करने के बाद भी दोनों देशों के बीच व्यापार से लाभ अनुमान से कहीं कम रहा है. ऐसे में रूस के सुदूर पूर्व में भारतीय उद्योगों की संभावनाएं बस इतनी हैं कि वो रूस के भीतर कारोबार कर सकेंगी या फिर आसियान, या भारत के साथ व्यापार बढ़ा सकेंगी. इसी तरह अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण व्यापार गलियारे (INSTC) की राह में भी चुनौतियां बनी हुई हैं. क्योंकि, इसमें शामिल होने का मतलब है कि भारतीय कंपनियों को ईरान से व्यापार करना होगा, जिस पर पाबंदियां लगी हुई हैं. इसके अलावा, सामान को बार बार चढ़ाने उतारने की समस्या भी एक बाधा बनी हुई है. आख़िर में रूस और भारत के बीच बढ़ता व्यापार घाटा भी चिंता का एक और विषय है. क्योंकि 2023 में रूस को भारत का व्यापार केवल 4 अरब डॉलर का था. इसकी तुलना में भारत ने रूस से 61 अरब डॉलर के सामान का आयात किया था, जिसकी वजह से भुगतान का पलड़ा रूस के पक्ष में झुका हुआ है. भविष्य में भी व्यापार घाटे को और कम करने की चुनौती बनी रहने वाली है.
इस बार के दौरे से ये दिखा है कि भारत और और रूस के बीच सहयोग स्थिर है और इस पर विश्व व्यवस्था के बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों का असर नहीं पड़ रहा है.
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री मोदी के रूस दौरे पर पश्चिम के कई देशों ने नाख़ुशी जताई थी. वहीं, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदीमीर ज़ेलेंस्की ने तो इस दौरे को ‘निराश करने वाला बहुत बड़ा क़दम और शांति के प्रयासों को भारी नुक़सान पहुंचाने वाला झटका’ क़रार दिया था. क्योंकि, जिस दिन मोदी रूस में थे, उसी दिन रूसी मिसाइलों ने किव में बच्चों के एक अस्पताल को निशाना बनाया था, जिसमें 42 लोग मारे गए थे. अमेरिका ने भी रूस के साथ भारत के संबंध को लेकर अपनी चिंता ज़ाहिर की थी. वहीं, बाइडेन प्रशासन ने अपने सामरिक समीकरण में भारत की अहमियत को भी रेखांकित किया था. यही नहीं, प्रधानमंत्री मोदी और प्रेसिडेंट पुतिन जब अपने अपने यहां के चुनाव के बाद मिले, तो मोदी के इस रूस दौरे से विश्व को लेकर भारत के बहुध्रुवीय नज़रिए को ही बल मिला है. ये दौरा, उन आशंकाओं को भी दूर करने वाला है कि भारत और रूस के संबंधों में गिरावट आ रही है, क्योंकि मोदी ने 2022 और 2023 में रूस का दौरा नहीं किया था. इस बार के दौरे से ये दिखा है कि भारत और और रूस के बीच सहयोग स्थिर है और इस पर विश्व व्यवस्था के बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों का असर नहीं पड़ रहा है.
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