Published on Apr 08, 2021 Updated 0 Hours ago

नवंबर में त्योहारों की वजह से आर्थिक गतिविधियों में आई तेज़ी का महंगाई के आंकड़ों पर प्रभाव पड़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.

जीडीपी के पहले एडवांस एस्टिमेट्स की उम्मीदों में पिछले नवंबर के औद्योगिक उत्पादन आंकड़ों का साया

पहले एडवांस एस्टिमेट्स में वित्त वर्ष 2020-21 में स्थिर क़ीमतों (आधार वर्ष: 2011-12) पर वास्तविक जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के 134.40 लाख करोड़ रु रहने का अनुमान है. वित्त वर्ष 2019-20 के अस्थायी अनुमान के मुताबिक ये 145.66 लाख करोड़ रु था. इस तरह से वित्त वर्ष 2019-20 में वास्तविक जीडीपी में 4.2 फीसदी बढ़त के मुक़ाबले वित्त वर्ष 2020-21 में अर्थव्यवस्था में 7.7% की गिरावट का अनुमान है.

वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था में 23.9 प्रतिशत का संकुचन देखने को मिला था. ऐसे में माना जा रहा है कि अर्थव्यवस्था पर महामारी के सीमित प्रभावों को लेकर इस ताज़ा आशावादी सोच के पीछे दूसरी तिमाही में आर्थिक गतिविधियों में देखा गया “एक अच्छा सुधार” है.

हालांकि, जीडीपी के तमाम अहम घटकों में से सिर्फ़ सरकारी उपभोग व्यय (जीएफसीई) के ही सकारात्मक विकास दर हासिल करने की संभावना है. जीडीपी के बाकी सारे घटकों में संकुचन का ही अनुमान है. निजी उपभोग और निवेश में सुस्ती का दौर जारी रहने की बात कही गई है. वहीं आयात में 20.5% की गिरावट चिंता का विषय है. पूंजीगत वस्तुओं (भारी मशीनरी और औद्योगिक कच्चामाल) के लिए आयात पर निर्भर रहने वाले भारत जैसे देश के लिए इस तरह के रुझान कतई उत्साहवर्धक नहीं हैं (चित्र 1). सरकारी व्यय पहले ही अपनी उच्चतम सीमा पर पहुंच चुका है. अब आगे इसके ज़रिए अर्थव्यवस्था को मज़बूत दे पाना संभव नहीं है.

एडवांस एस्टिमेट्स के मामले में सतर्कता बरतने की ज़रूरत है क्योंकि इनके “आगे चलकर पूरी तरह से बदल जाने की भरपूर संभावनाएं”हैं. 

अर्थव्यवस्था की सेहत बताने वाले ये अनुमान कई सूचकांकों को मिलाकर किए गए अध्ययन से सामने आए हैं. इन संकेतकों में वित्त वर्ष के पहले सात महीनों के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) और शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध कंपनियों के 6 महीनों के वित्तीय निष्पादन से जुड़े आंकड़े शामिल हैं. लिहाजा एडवांस एस्टिमेट्स के मामले में सतर्कता बरतने की ज़रूरत है क्योंकि इनके “आगे चलकर पूरी तरह से बदल जाने की भरपूर संभावनाएं”हैं. ऐसे में भविष्य को लेकर ज़्यादा आशाएं लगाने से पहले इन तमाम बातों पर ग़ौर करना ज़रूरी हो जाता है.   

कृषि, वानिकी और मछली पालन अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों में शामिल हैं. 2020-21 में इनमें 3.4 प्रतिशत की सकारात्मक बढ़ोतरी का अनुमान है. इसी तरह बिजली, गैस, पानी समेत दूसरी उपभोक्ता सेवाओं और सार्वजनिक प्रशासन, रक्षा और अन्य सेवाओं में भी वृद्धि का अनुमान है. एक अत्यंत आशावादी अनुमान विनिर्माण क्षेत्र को लेकर है जिसमें 2020-21 में 0.03% की बढ़ोतरी आने की बात कही गई है. इस वित्त वर्ष में बाकी क्षेत्रों में नकारात्मक वृद्धि या संकुचन का ही अनुमान है 

दिसंबर 2020 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में नरमी आने से अर्थव्यवस्था के लिए एक और राहत की किश्त आई. नवंबर के महीने में सीपीआई और सीएफपीआई (उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक) दोनों में ही उछाल देखा गया था. ईंधन की घरेलू क़ीमतों में बढ़ोतरी जारी है जिसका महंगाई पर सीधा असर पड़ता है. हालांकि, नवंबर में त्योहारों की वजह से आर्थिक गतिविधियों में आई तेज़ी का महंगाई के आंकड़ों पर प्रभाव पड़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. ऐसे में दिसंबर में महंगाई दर में नरमी आना अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत है (टेबल 1). मूल्य सूचकांकों पर लगातार पैनी नज़र बनाए रखने की ज़रूरत है. इसमें कोई शक नहीं है कि महंगाई में बढ़ोतरी होने पर ब्याज़ दरों पर दबाव पड़ना लाजमी है.

अगर इन सभी परिणामों को मिलाकर देखा जाए तो निश्चित रूप से ये कहा जा सकता है कि अर्थव्यवस्था की तस्वीर को लेकर तत्काल जो आशा की किरण नज़र आ रही है वो सटीक लगती है. हालांकि, नवंबर में आईआईपी (औद्योगिक उत्पाद सूचकांक) से जुड़े जो आंकड़े आए हैं उनसे इन उम्मीदों पर काले बादल मंडराते दिख रहे हैं.   

महामारी की वजह से जो पाबंदियां लगाई गईं थी उन्हें जून 2020 में हटा लिया गया था. अगर जून के बाद महीने दर महीने आईआईपी के आंकड़ों का आकलन किया जाए तो हम पाते हैं कि अगस्त तक उसमें गिरावट का दौर रहा, जबकि उसके बाद के दो महीनों में उसमें थोड़ी बढ़त देखी गई. हालांकि नवंबर में त्योहारी मौसम के पूरा हो जाने के बाद ये ग्राफ़ एक बार फिर नीचे जाता दिखाई दिया (चित्र 3). 

महामारी के चलते एक बड़ा तबका घर से ही काम कर रहा है. बिजली की खपत कम होने की एक वजह ये भी है. बहरहाल विनिर्माण और साधारण आईआईपी दोनों के रुझान एक साथ बदलते दिख रहे हैं.

अगस्त के बाद से खनन क्षेत्र के उत्पादन में बढ़ोतरी देखी गई है. बिजली क्षेत्र में सितंबर के बाद से गिरावट का दौर है. हालांकि इसकी एक वजह मौसमी हो सकती है क्योंकि सितंबर के बाद जाड़े का असर मौसम आ जाता है. महामारी के चलते एक बड़ा तबका घर से ही काम कर रहा है. बिजली की खपत कम होने की एक वजह ये भी है. बहरहाल विनिर्माण और साधारण आईआईपी दोनों के रुझान एक साथ बदलते दिख रहे हैं. इससे औद्योगिक उत्पादन में विनिर्माण क्षेत्र की अहमियत का पता चलता है. नवंबर के महीने में दोनों में ही गिरावट देखी गई है. यहां एक बार फिर ये याद रखना ज़रूरी हो जाता है कि पहले एडवांस एस्टिमेट्स में 2020-21 में विनिर्माण क्षेत्र में 0.03% की बढ़ोतरी का अनुमान जताया गया है (चित्र 2). 

जीडीपी को लेकर जो उम्मीद जताई जा रही है उसकी पूर्ति के लिए औद्योगिक उत्पादन के क्षेत्र में वित्त वर्ष 2020-21 के आख़िरी चार महीनों का प्रदर्शन बेहद अहम हो जाता है.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने जनवरी 2021 के अपने वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक में भारतीय अर्थव्यवस्था में 11.5% की वृद्धि का अनुमान जताया था. तब कई लोग खुशी से उछल पड़े थे. हालांकि, अभी तक पक्के तौर पर ये नहीं कहा जा सकता कि अर्थव्यवस्था की हालत वाकई सुधर गई है. अलग-अलग सरकारी आंकड़ों के परस्पर विरोधी नतीजों से इस बात को और बल मिलता है. ऐसे में इस समय हम जिसे सुधार मान रहे हैं, हो सकता है कि वो दिखावटी या तात्कालिक साबित हो. 

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