क्वॉड का अब तक का सफ़र लगातार संतुलन बनाने वाला रहा है. एक तरफ़ तो वो आसियान जैसे दूसरे क्षेत्रीय संगठन को कमज़ोर भी नहीं करना चाहता, वहीं दूसरी ओर क्वॉड की ये भी कोशिश है कि वो चार सदस्यों की आपसी बातचीत के मंच तक ही न सीमित रह जाए. क्वॉड अब तक काम पर आधारित भागीदारों के मॉडल के आधार पर नए विचारों को जन्म देने में सफल रहा है. हालांकि, अब जबकि भारत 2024 में क्वॉड के शिखर सम्मेलन की मेज़बानी के लिए तैयार हो रहा है, तो उसके लिए ये एक अच्छा मौक़ा होगा कि वो हिंद प्रशांत के सामरिक ढांचे में इस समूह का ध्यान ‘हिंद’ पर केंद्रित कर सके.
भारत 2024 में क्वॉड के शिखर सम्मेलन की मेज़बानी के लिए तैयार हो रहा है, तो उसके लिए ये एक अच्छा मौक़ा होगा कि वो हिंद प्रशांत के सामरिक ढांचे में इस समूह का ध्यान ‘हिंद’ पर केंद्रित कर सके.
सिडनी में होने वाला क्वॉड का शिखर सम्मेलन अमेरिका के क़र्ज़ के संकट का शिकार हो गया. हालांकि G7 में उच्च स्तर की कूटनीति और प्रभावी तालमेल के ज़रिए हिरोशिमा में हुई क्वॉड देशों की बैठक, व्यावहारिक सहयोग पर सकारात्मक माहौल को बनाए रखने में सफल रही. और, उससे भी अहम बात कि वो अपनी उम्मीदों पर खरी उतरी, निराश नहीं किया. यहां तक कि चीन के जानकारों ने भी ये माना कि क्वॉड ने अपनी ‘तैयारी’ अच्छी तरह से की थी.
जहां तक क्वॉड की परिकल्पना की बात है, तो हमारे दौर के बेहद क़ाबिल लोगों में से एक जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान के ‘सामरिक हीरे’ की परिकल्पना की थी. मगर 2007 में इसकी शुरुआत बेहद धीमी गति से हुई थी और उस वक़्त क्वॉड घरेलू राजनीति का बंधक बन गया था. एक दशक बाद जब 2017 में क्वॉड को फिर से ज़िंदा किया गया, तो क्वॉड के आला दर्जे के नीति नियंताओं की बातचीत गंभीर चर्चा में तब्दील हो चुकी थी. लेकिन ये तो 2021 में जाकर हुआ जब क्वॉड अपना पहला साझा बयान जारी कर सका.
अपने व्यापक एजेंडे के साथ क्वॉड आज बेहद प्रासंगिक समूह बन चुका है. आज क्वॉड स्वास्थ्य से सुरक्षा तक, समुद्री क्षेत्र की जागरूकता को लेकर हिंद प्रशांत साझेदारी, केबल कनेक्टिविटी और लचीलेपन की साझेदारी और क्वॉड इन्वेस्टर्स नेटवर्क (QUIN) तक के व्यापक क्षेत्रों में सहयोग कर रहा है. इसके अलावा क्वॉड क्रिटिकल तकनीकों में साझा निवेश और पलाउ में कारोबारी मुक्त RAN तैनाती को भी आगे बढ़ा रहा है. क्वॉड नेताओं द्वारा जारी किए गए एक के बाद एक साझा बयानों का विश्लेषण से हमें एक नई और आगे की सोच और फिर उस सोच को ठोस समाधानों में तब्दील करने की नीति नज़र आती है.
अब समय आ गया है कि हम क्वॉड का दायरा हिंद प्रशांत क्षेत्र में बढ़ाएं. क्वॉड के ‘विज़न स्टेटमेंट’ में अलग अलग एजेंडों के साथ तालमेल की अहमियत पर ज़ोर दिया गया है. इसके अलावा इस बयान में ‘आसियान, पैसिफिक आइलैंड फोरम और इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन समेत सभी क्षेत्रीय संगठनों की केंद्रीयता, अस्तित्व और नेतृत्व का सम्मान करने’ की बात भी कही गई है
यूक्रेन का संघर्ष हो, विशाल मुक्त व्यापार समझौते हों या फिर भारत के नक़्शे हों. इन मुद्दों पर क्वॉड के भीतर मतभेद भी इस समूह को जहां तक मुमकिन हो, मुद्दों पर आधारित आपसी तालमेल वाला एजेंडा तैयार करने से नहीं रोक सके हैं. क्वॉड को ‘एशियाई नेटो’ बताने के चीन के प्रयास को नाकाम करते हुए, क्वॉड के हिंद प्रशांत क्षेत्र में साझा क्षमताओं के ज़रिए व्यावहारिक समाधान के मक़सद को काफ़ी समर्थन मिल रहा है.
क्वॉड की भूमिका
दक्षिणी पूर्वी एशिया की कई ताक़तें ये मानती हैं कि ‘क्वॉड इस क्षेत्र के लिए सकारात्मक होगा’. जानकारों का एक समूह क्वॉड और आसियान के बीच नज़दीकी सहयोग की वकालत कर रहा है. क्योंकि, क्वॉड के संसाधन न केवल कुछ एशियाई देशों के बीच मज़बूत क्षमता के निर्माण को बढ़ावा दे सकते हैं, बल्कि आसियान भी ‘संस्थागत सहयोग’ के माध्यम से हिंद प्रशांत को लेकर क्वॉड की सामरिक सोच को प्रभावित कर सकता है.
हालांकि अब समय आ गया है कि हम क्वॉड का दायरा हिंद प्रशांत क्षेत्र में बढ़ाएं. क्वॉड के ‘विज़न स्टेटमेंट’ में अलग अलग एजेंडों के साथ तालमेल की अहमियत पर ज़ोर दिया गया है. इसके अलावा इस बयान में ‘आसियान, पैसिफिक आइलैंड फोरम और इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन समेत सभी क्षेत्रीय संगठनों की केंद्रीयता, अस्तित्व और नेतृत्व का सम्मान करने’ की बात भी कही गई है.
वैसे तो अमेरिका, पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में उलझा हुआ है और वो पश्चिमी हिंद महासागर की अनदेखी कर रहा है. लेकिन, ऑस्ट्रेलिया की दिलचस्पी का प्राथमिक क्षेत्र उत्तरी पूर्वी हिंद महासागर से लेकर प्रशांत महासागर तक जाने वाले दक्षिणी पूर्वी एशिया के समुद्री मार्ग हैं. अमेरिका और जापान के सत्ता के गलियारों में समुद्री सुरक्षा को लेकर होने वाली बातचीत में प्रशांत क्षेत्र के द्वीपों के साथ साथ ताइवान, पूर्वी और दक्षिणी चीन सागर के इलाक़ों का ख़ास तौर से ज़िक्र होता है.
क्वॉड की सामूहिक क्षमता IPOI में पूरक का काम कर सकती है. चूंकि क्वॉड का विचार हिंद महासागर में आई सुनामी के कोर ग्रुप की गतिविधियों से पैदा हुआ था. इसलिए, ये IPOI के आपदा के जोखिम को कम करने और प्रबंधन वाले हिस्से को अपना सकता है.
चूंकि हिंद महासागर में आज के दौर के महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग और चोकिंग प्वाइंट मौजूद हैं, तो उसे सबके लिए स्वतंत्र और खुला रखना उतना ही अहम है, जितना प्रशांत महासागर का इलाक़ा. चूंकि, 2024 में भारत क्वॉड के शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करेगा, तो ये सम्मेलन उसके लिए ये मौक़ा होगा जब वो क्वॉड का ध्यान हिंद महासागर की तरफ़ आकर्षित कर सके.
आज चूंकि क्वॉड ने हिंद प्रशांत को लेकर आसियान के नज़रिए (AOIP) के साथ तालमेल बिठाने पर काफ़ी ध्यान केंद्रित किया हुआ है, तो ये भी ज़रूरी है कि क्वॉड हिंद महासागर में भी अपनी गतिविधियां बढ़ाए और ‘सहयोग की आदतें’ विकसित करे, ख़ास तौर से इसलिए और क्योंकि भारत और दूसरे क्षेत्रीय देशों ने इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन के हिंद प्रशांत के लिए दृष्टिकोण (IOIP) को अपनाया है. IOIP में लचीली क्षेत्रीय मूल्यवर्धक श्रृंखलाएं (Value Chains), क़र्ज़ को बर्दाश्त करने लायक़ बनाने, मूलभूत ढांचे और कनेक्टिविटी के विकास, डिजिटल संपर्कों को बढ़ाने और साइबर दुनिया को सुरक्षित बनाने जैसी साझा चिंताएं जताई गई हैं. क्वॉड, IOIP के साथ इन स्पष्ट रूप से निर्धारित प्राथमिक मुद्दों पर तालमेल बढ़ा सकता है, ख़ास तौर से समुद्री सुरक्षा और रक्षा, और आपदा के ख़तरों से निपटने की तैयारियों के मामले में.
चूंकि इंडो पैसिफिक ओशन इनिशिएटिव (IPOI) का आधार भारत ही है, इसलिए क्वॉड इसके सात स्तंभों में से किसी एक स्तंभ को भी अपने साथ जोड़ सकता है, जो उसकी प्राथमिकताओं से पूरी तरह मिलता जुलता हो. समुद्री इकोलॉजी और कनेक्टिविटी के मामले में ऑस्ट्रेलिया और जापान, भारत के साथ क्रमश: काम करते ही हैं. IPOI को क्षेत्र में काफ़ी पसंद किया जा रहा है. फ्रांस और इंडोनेशिया इसके समुद्री संसाधन वाले स्तंभ पर काम कर रहे हैं. वहीं, सिंगापुर ने अकादमी और विज्ञान के साथ तकनीक के स्तंभ का चुनाव किया है.
क्वॉड की सामूहिक क्षमता IPOI में पूरक का काम कर सकती है. चूंकि क्वॉड का विचार हिंद महासागर में आई सुनामी के कोर ग्रुप की गतिविधियों से पैदा हुआ था. इसलिए, ये IPOI के आपदा के जोखिम को कम करने और प्रबंधन वाले हिस्से को अपना सकता है. क्वॉड, सेंडाई फ्रेमवर्क फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन (SFDRR) से सबक़ लेते हुए, किसी आपदा को लेकर प्रतिक्रिया देने के बजाय, आपदा के दुष्प्रभाव को असरदार तरीक़े से कम करने की रणनीति को आगे बढ़ाकर कमज़ोरियां दूर कर सकता है. इससे, इंफ्रास्ट्रक्चर फॉर रेजिलिएंट आइलैंड स्टेट्स (IRIS) के साथ साथ क्वॉड, कोएलिशन फॉर डिजास्टर रेजिलिएंट इन्फ्रास्ट्रक्चर (CDRI) की रूपरेखा के अंतर्गत किए जा रहे प्रयासों में भी योगदान दे सकता है. IRIS की पहल का लक्ष्य छोटे विकासशील देशों को तकनीक और पूंजी जुटाने में मदद करना है.
क्वॉड की केबल कनेक्टिविटी और लचीलेपन के मामले में नई साझेदारी के साथ भारत अपनी सामरिक भौगोलिक स्थिति, आबादी के मामले में बढ़त और IT के क्षेत्र समेत हुनरमंद कामगारों की ताक़त का इस्तेमाल करते हुए ख़ुद को समुद्र के नीचे बिछे केबल के नेटवर्क का क्षेत्रीय केंद्र बना सकता है और पूरे हिंद महासागर में डेटा के प्रवाह में मददगार बन सकता है, क्योंकि हिंद महासागर में दुनिया की कुछ सबसे तेज़ी से आगे बढ़ रही अर्थव्यवस्थाएं मौजूद हैं. भारत के क्वॉड साझीदार, अमेरिका– जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच पलाउ स्पर केबल परियोजना पर मिलकर काम कर रहे हैं. इसके साथ साथ हिंद प्रशांत के दूसरे साझेदारों के साथ सुरक्षा के जोखिमों से निपटने और समुद्र के नीचे मौजूद ख़तरों के बारे में जानकारी साझा करना भी ज़रूरी है.
इस बीच, IPMDA क्रांतिकारी बदलाव का नुस्खा है. हॉकआई 360 नाम से उपग्रहों के नए समूह के लॉन्च से इसकी ताक़त और बढ़ जाएगी. पूरे दक्षिणी पूर्वी एशिया, प्रशांत महासागर के द्वीपों और हिंद महासागर क्षेत्र के लिए तैयार किए गए पायलट कार्यक्रमों को लागू करने से बहुत से फ़ायदे मिल सकते हैं. इस बीच भारत ने मालदीव, मॉरीशस, श्रीलंका और सेशेल्स के साथ मिलकर तटीय रडार श्रृंखला स्थापित की है और क्षेत्रीय क्षमता निर्माण का समर्थन किया है. क्वॉड के लिए कामयाबी इस बात पर निर्भर करेगी कि सूचना का बेरोक–टोक आदान प्रदान हो और लागू की जा सकने वाला तालमेल विकसित किया जाए.
भारत का रुख
भारत को लगता है कि हिंद महासागर में आसियान के साथ ख़ास तौर से’ कुशल और प्रभावी कनेक्टिविटी एक क्रांतिकारी विचार साबित होगा’. भारत के हिंद प्रशांत समीकरणों में उत्तरी पूर्वी भारत एक प्रमुख मोर्चा है, क्योंकि ये इलाक़ा बंगाल की खाड़ी से सामरिक रूप से बेहद क़रीब है. जब बात क्षेत्र के मूलभूत ढांचे और कनेक्टिविटी के गलियारों को इस क्षेत्र में आगे बढ़ाने की बात आती है, तो भारत के पास जापान के रूप में एक भरोसेमंद साझेदार है. क्योंकि उसने बंगाल की खाड़ी और उत्तरी पूर्वी भारत की औद्योगिक वैल्यू चेन को शुरू किया है. आज जब आर्थिक सुरक्षा पर परिचर्चा केंद्रबिंदु में आ रही है तो भारत, दक्षिण पूर्व एशिया से जुड़ने और आर्थिक संपर्कों की बुनियाद बनाने का लक्ष्य हासिल करने के लिए क्वॉड की मूलभूत ढांचे के विकास के लिए पूंजी और संसाधन जुटाने और क्षमता निर्माण की कोशिशों का भी इस्तेमाल कर सकता है.
2024 में क्वॉड के नेताओं के शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करते हुए भारत को चाहिए कि वो क्वॉड के सामरिक लक्ष्यों के बीच संतुलन बनाए और हिंद महासागर को भी उतनी ही प्राथमिकता का क्षेत्र बनाए, जितना प्रशांत महासागर है. भारत ने मेज़बान के देश के तौर पर हाल के दिनों में कई साहसिक विकल्प अपनाए हैं. एक छोटा क़दम जो भारत उठा सकता है, कि वो क्वॉड से जुड़ी कुछ बैठक अंडमान और निकोबार द्वीपों पर आयोजित करें. ये क़दम शायद बेहद कारगर साबित हो.
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