Author : Namrata Yadav

Published on Aug 18, 2020 Updated 0 Hours ago

विशाल असंगठित क्षेत्र वाली विकासशील अर्थव्यवस्थाओं द्वारा 'इम्पैक्ट सोर्सिंग' मॉडल का लाभ उठाकर ऐसी डिजिटल अर्थव्यवस्था निर्मित की जा सकती है जिसमें कम कुशल लोगों की आवश्यकता बरकरार रहे.

कोविड-19 के बाद दुनिया: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के ज़रिये यूं बनाए डिजिटल दुनिया को अधिक समावेशी

साल 2020 ने सरकारों को झिंझोड़ कर रख दिया है और सामाजिक—आर्थिक विषमता की खाई भी कहीं अधिक चौड़ी कर दी है. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. दूरसंचार के जरिए कुछ उद्योग—धंधे अपने कुशल कर्मचारियों को अपने—अपने घर से ही काम करने की अनुमति देकर बचे हुए हैं. अलबत्ता अल्प कुशल कर्मचारियों के लिए ऐसी कोई व्यवस्था उपलब्ध नहीं है. इसके परिणामस्वरूप दुनिया भर में अनौपचारिक क्षेत्र में दो अरब अल्प कुशल कर्मचारी कोविड—19 के कारण बेसहारा हो गए हैं. अल्प डिजिटल साक्षरता, कंप्यूटरों अथवा इंटरनेट की निरंतर उपलब्धता के अभाव और अंतत: अपने पेशों की किस्म के कारण अल्प कुशल कर्मचारी दूरस्थ ऑनलाइन कार्य संस्कृति में ढल पाने लायक नहीं बन पा रहे. कोविड—19 के कारण अपनी नौकरी गंवा बैठे लोगों के लिए भविष्य में काम का क्या स्वरूप होगा? वे डिजिटल अर्थव्यवस्था में अवसरों का लाभ कैसे उठा पाएंगे? आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में इसका अप्रत्याशित हल निकल सकता है.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ऐप्लीकेशनों की संख्या जैसे—जैसे बढ़ रही है वैसे—वैसे उससे कोडिंग जैसे उच्च कौशल वाले क्षेत्रों में ही नहीं अल्प कौशल वाले क्षेत्रों में भी नए रोज़गार पैदा हो रहे हैं क्योंकि आधारभूत मानवीय योगदान की मांग में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है. एआई के लिए डेटा तैयार, एआई मॉडल प्रशिक्षित करने के लिए डेटासेटों की व्याख्या करके समझाने के वास्ते, इन मॉडलों की कार्य कुशलता की निगरानी के लिए और गलत निष्कर्षों को ठीक करने के लिए मानव श्रमिकों की ही आवश्यकता होती है. इस प्रकार डेटा लेबलिंग उद्योग अपने आप में विशाल उद्योग के रूप में उभरा है. डिजिटल साक्षरता की अल्प दर, कंप्यूटरों एवं भरोसेमंद इंटरनेट संचरण के अभाव एवं अंतत: अपनी पेशागत भिन्नता के कारण  अनेक अल्प कुशल कामगार स्वयं को दूरस्थ ऑनलाइन कार्य करने के उपयुक्त नहीं बना पाए हैं.

कोविड—19 के कारण अपना रोज़गार गंवा बैठे लोगों के लिए भविष्य में कौन सी आजीविका उपलब्ध हो पाएगी? वे डिजिटल अर्थव्यवस्था में उपलब्ध अवसरों का दोहन कैसे कर सकते हैं? आर्टिफिशियल इंटैलिजेंस—एआई— अप्रत्याशित समाधान उपलब्ध करा सकती है.

भारत में इम्पैक्ट सोर्सिंग के प्रणेताओं में शामिल आई मेरिट ने 2500 से अधिक वंचित व्यक्तियों को साल 2012 से अपने रांची, शिलांग, वाइजैग एवं कोलकाता स्थित केंद्रों में रोज़गार दे रखा है. आईमेरिट के कर्मचारी कृषि क्षेत्र में ड्रोन, मेडिकल इमेजिंग तथा ई कॉमर्स कंपनियों के लिए डेटा लेबलिंग का कार्य करते हैं.

ह्यूमंस इन द लूप सामाजिक प्रतिष्ठान है. यह बाल्कन तथा पश्चिम एशियाई देशों के शरणागतों, शरणार्थियों तथा युद्ध पीड़ितों सहित असुरक्षित लोगों को सरल एवं सुगम रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराने में मदद कर रहा है. इवा गुम्निष्का द्वारा 2017 में स्थापना के बाद से ह्यूमंस इन द लूप ने प्रभाव निकास/इम्पैक्ट सोर्सिंग के माध्यम से अल्प कुशलों के लिए सामाजिक एवं आर्थिक समावेश का अनुकरणीय मॉडल पेश किया है. इसमें कामगारों को प्रशिक्षण एवं दूरस्थ कार्य निष्पादन निर्देश मिलते हैं जिन्हें वे घर से ही सुविधानुसार निष्पादित कर सकते हैं. प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत कंप्यूटर संचालन की आरंभिक जानकारी देकर कामगारों को धीरे—धीरे कौशल संवर्धन के लिए प्रेरित किया जाता है. इसके तहत अंग्रेजी भाषा अथवा कंप्यूटर की पूर्व जानकारी आवश्यक नहीं है. इस कार्य को आधिकारिक रूप में ‘संपर्क में पेशेवर मानव’ अर्थात प्रोफेशनल ह्यूमन इन द लूप कहते हैं. ऐसा व्यक्ति जिसे मानव विचार प्रक्रिया सक्रिय करने के लिए एआई सिखाने में सहायता करने में महारत हासिल हो. अपनी प्रेरणास्रोत का वर्णन करते हुए गुम्निष्का बताती हैं,’ काम के सुगम्य अवसरों के द्वारा कामगारों को सक्षम बनाने एवं कम मजदूरी पर अदृश्य सूक्ष्मकार्य का वातावरण बनाने के मध्य अंतर का भान कंपनी को भली भांति है: ”हमारे यहां विस्तृत निगरानी तंत्र है जो हमारे कामगारों को गरिमापूर्ण पारिश्रमिक दिलाने के साथ ही भविष्य में उनके पेशेवर विकास संबंधी स्पष्ट नीति पर भी कार्यरत है.” [1] भारत में इम्पैक्ट सोर्सिंग के प्रणेताओं में शामिल आई मेरिट ने 2500 से अधिक वंचित व्यक्तियों को साल 2012 से अपने रांची, शिलांग, वाइजैग एवं कोलकाता स्थित केंद्रों में रोज़गार दे रखा है. आईमेरिट के कर्मचारी कृषि क्षेत्र में ड्रोन, मेडिकल इमेजिंग तथा ई कॉमर्स कंपनियों के लिए डेटा लेबलिंग का कार्य करते हैं.

कंपनियों को कोविड—19 के कारण मजबूरन घर बैठने वाले लोगों के संदर्भ में पहली समस्या कार्यक्षेत्र के बाहर संसाधनों की कमी से जूझने की पेश आई. आई मेरिट की सीईओ राधा रामास्वामी बसु कहती हैं, “एआई प्रौद्योगिकी में हो रही उन्नति को कभी—कभी नौकरियों का काल समझ लिया जाता है लेकिन आईमेरिट ने दिखा दिया कि सत्य इसके विपरीत है. मनुष्य दरअसल एआई श्रृंखला की बुनियादी कड़ी हैं और सच में तो ये कहना तार्किक होगा कि मानवीय दख़ल के बिना एआई का प्रयोग किया ही नहीं जा सकता.” [2]

आईमेरिट, एचआईटीएल आदि जैसे प्रतिष्ठान जहां कौशल की कमी का लघु अवधि के लिए समाधान कर रहे हैं वहीं अल्प कुशल कामागारों के रोज़गार योग्य होने की राह की अलग चुनौतियां हैं. कार्यस्थल के बाहर संसाधनों की कमी की समस्या से कोविड—19 के कारण मजबूरन घर बैठने वाले लोगों के संदर्भ में कंपनियों को सबसे पहले जूझना पड़ा. कंपनी को स्थिर एवं चालू रखने के लिए कोविड—19 के विरूद्ध की गई तैयारियों के बारे में बसु ने कहा,” सबसे बड़ा परिवर्तन 100 प्रतिशत कार्यस्थल आधारित वितरण प्रक्रिया को 100 प्रतिशत घर से काम में ढालने का रहा. इस परिवर्तन में आईमेरिट ने अपने भागीदार—मुवक्किल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर नौकरियों का वरीयता क्रम तय करने और डेटा सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर काम किया. अब ये जब स्थापित हो गया तो कंपनी आने वाली बाधाओं से निपटने में बेहतर रूप में तैयार है.”

यहां बुल्गेरियाई मॉडल को बस छुटपुट समायोजन ही करना पड़ा क्योंकि वहां अधिकतर कामगार पहले से ही घरों से काम कर रहे थे:  “हम उन सौभाग्यशाली कंपनियों में शामिल थे जिन्हें कोविड—19 संकट नहीं झेलना पड़ा. सच तो यह है कि इससे हमारे मॉडल की और अधिक मज़बूती साबित हुई, क्योंकि हमारे कामगार पहले से ही दूरस्थ कार्य पद्धति के अंतर्गत काम कर रहे थे. गुम्निष्का ने बताया,”हमारे सभी प्लेटफ़ॉर्म एवं उपकरण दूरस्थ कार्य के लिए पहले से ही सक्षम किए हुए थे जो कि हमारे मॉडल के मूल में 2019 के आरंभ से ही निहित है.”

अन्य प्रौद्योगिकी आधारित समाधानों की तरह नकारात्मक पहलू इससे भी जुड़े हुए हैं. व्यक्तिगत एवं सांगठनिक स्तर पर नियमित काम एवं भुगतान का अभाव उन लोगों के लिए बड़ी बाधा है जो डेटा लेबलिंग के माध्यम से आजीविका कमाना चाहते हैं.

लेबलिंग कार्य के लिए दूरस्थ कार्यरत अधिकतर लोग जब तक प्रोजेक्ट नियमित नहीं आते तब तक सामान्यत: इसे अपने बुनियादी रोज़गार की जगह पैसा कमाने का अतिरिक्त साधन समझते हैं. हालांकि, अन्य प्रौद्योगिकी आधारित समाधानों की तरह नकारात्मक पहलू इससे भी जुड़े हुए हैं. व्यक्तिगत एवं सांगठनिक स्तर पर नियमित काम एवं भुगतान का अभाव उन लोगों के लिए बड़ी बाधा है जो डेटा लेबलिंग के माध्यम से आजीविका कमाना चाहते हैं. लोगों को चूंकि प्रोजेक्ट आधारित काम एवं भुगतान मिलता है इसलिए लगा—बंधा वेतन नहीं मिल पाता. विकसित एवं विकासशील देशों के बीच प्राथमिक डिजिटल साक्षरता, प्रौद्योगिकी एवं संबद्ध बुनियादी ढांचे तक पहुंच में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अत्यधिक विसंगति है. इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन के अनुसार इंटरनेट उपभोक्ताओं का प्रतिशत विकसित देशों में विकासशील देशों के मुकाबले बहुत अधिक है जहां पांच में से चार लोग अब भी ऑनलाइन  होने का लाभ नहीं ले पा रहे. एशिया—प्रशांत क्षेत्र में कुल ब्रॉडबैंड उपभोक्ताओं में से 70 फीसदी जापान एवं दक्षिण कोरिया में हैं जबकि उनकी आबादी कुल क्षेत्रीय जनसंख्या में महज करीब चार प्रतिशत ही है. इसी तरह विकसित देश में रहने के बावजूद इंटरनेट की उपलब्धता सबके लिए बराबर नहीं है: अमेरिका में ब्रॉडबैंड कनेक्शन की लागत 68 डॉलर प्रति माह है और बाजार में प्रतिस्पर्धियों की कमी के कारण उपभोक्ताओं के पास बहुत विकल्प भी नहीं बचे. इतना ही नहीं लेबलिंग के दूरस्थ काम से संबंधित अधिकतर लोग जब तक उनके पास नियमित प्रोजेक्ट नहीं आते तब तक सामान्यत: इसे अपना मूल रोज़गार समझने के बजाए आमदनी का अतिरिक्त स्रोत समझते हैं. इसलिए लघु अवधि के लिए आशाजनक होने के बावजूद इस अवसर का प्रभाव लंबी अवधि के लिए सीमित है. इसीलिए इसका समावेशी पहलू भी सीमित है. बड़े अनौपचारिक क्षेत्र वाली विकासशील अर्थव्यवस्था ‘इम्पैक्ट सोर्सिंग’ मॉडल का लाभ उठा कर डिजिटल अर्थव्यवस्था निर्मित कर सकती हैं जिसमें अल्प कुशल अपरिहार्य हैं.

“हम जब यह सोच ही रहे हैं कि जिसे लोग ‘नई सामान्य स्थिति’ कहते हैं तो हम उसे ऐसे आकार दें कि अल्प कुशल कामगारों के लिए वह समावेशी हो एवं उन्हें ऐसे संसाधन उपलब्ध कराए जो उन्हें कठिन समय से निपटने के लिए मजबूत एवं भविष्य में उन्हें बेहतर अवसर पाने के काबिल बनाए.”  किसी  एक  सेक्टर में कर्मचारियों की मांग में गिरावट दूसरे किसी सेक्टर में उनकी मांग बढ़ा सकती है: एआई द्वारा यही अवसर पैदा किए जाएंगे. यदि उसका सही उपयोग किया जाए तो एआई उद्योग की बढ़ती संभावनाएं अल्प कुशलों को आर्थिक रूप में समर्थ बना सकती हैं. कोविड—19 दुनिया को बदल रहा है: हम यह सुनिश्चित करें कि यह परिवर्तन दुनिया के लिए हितकारी हो.


[1] Iva Gumnishka, interview by Namrata Yadav, 15 June 2020.

[2] Radha Basu, interview by Namrata Yadav, 8 June 2020.

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