Published on Jun 13, 2022 Updated 0 Hours ago

भारत को यूक्रेन संकट के दौरान रूस की सेना की जो ख़ामियां उजागर हुईं हैं, उनसे तत्काल सीख लेनी चाहिए.

रूस-यूक्रेन विवाद से भारत को मिलने वाले ‘सैन्य’ सबक…!

यह संक्षिप्त हिस्सा ‘यूक्रेन संकट: संकट के कारण और दिशा’ से लिया गया है. 


यूक्रेन के संकट को कई मायनों में अमेरिका का सबसे चर्चित विवाद माना जा सकता है. इसका असर दुनिया भर के देशों पर होने के साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा के सभी पहलुओं पर होने वाला है. इससे हमें भविष्य में कुछ सैन्य सबक भी सीखने को मिलेंगे.

यूक्रेन संकट ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति की कठोर स्थिति को उसकी वास्ताविकता से परिचित भी करवाया है. सबसे पहले तो यह कि न्यूक्लीयर हथियार आपकी सेना के पास होना बेहद महत्वपूर्ण है. पुतिन के इन हथियारों के उपयोग की बात करने मात्र से पश्चिमी देश इस मामले में सैन्य हस्तक्षेप करने से बच रहे हैं. इन हथियारों की वजह से ही प्रभाव वाले अधिकार क्षेत्र में विस्तार की शक्ति मिली हुई है. दूसरी यह कि आर्थिक प्रतिबंध (यहां तक कि इनके भयावह असर की तुलना सामूहिक विनाश के हथियारों से की जाने के बावजूद) व्यक्तिगत आक्रमण को नहीं रोक सकते. 

आधुनिक समय में युद्ध की कला और बल के प्रयोग  को लेकर चल रही बहस भी अब लगभग निर्णायक निष्कर्ष पर पहुंच गई है. इन दिनों यह दावा किया जाता था कि अब खुले तौर पर पूर्ण युद्ध के दिन लद गए हैं और अब समानांतर क्षमता व दांव-पेंच से ही काम चल जाएगा. लेकिन इस संकट ने हमें खुले तौर पर पूरी ताकत के साथ लड़े जाने वाला युद्ध दिखा दिया है. दुनिया में अपना प्रभाव जमाने के लिए अब बल का प्रयोग करना एक बार फिर ज़रूरी दिखाई दे रहा है. ऐसे में भारत को भी अब अपना ध्यान इस बात पर केंद्रित करना चाहिए कि वह कैसे प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार, उपयोग लायक, जाँच करने, स्मार्ट, तकनीकी रूप से सक्षम सयुंक्त बल को विकसित कर उसका पोषण करने के लिए तैयार रहे. इनका उपयोग हम प्रतिस्पर्धा में समानांतर क्षमता और संघर्ष  में कर सके. ऐसा उपकरण उपलब्ध होना शांति के लिए बेहद ज़रूरी है, लेकिन इसकी डिज़ाइन और निर्माण भी भारत की मौलिक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक चुनौती होगी. यूक्रेन संकट हमारे लिए भी रूस के साथ अपने संबंधों को सही और सटीक आकार करने का मौका है ताकि हम उस पर अपनी निर्भरता की समीक्षा को व्यापक आधार दे सकें. 


पुतिन यूक्रेन की लड़ाई जीतने ही वाले थे, लेकिन उन्होंने 24 फरवरी 2022 को रूबीकॉन अर्थात एक सीमा पार कर दी. जॉर्जिया, क्राइमिया और सीरिया में मिली सफलता की वजह से रूसी सेना की ख्य़ाति एक विजयी और परिस्थितियों से अनुकूल होने वाली सेना के रूप में होने लगी थी. गेराशिमोव सिद्धांत अच्छा काम कर रहा था और पुतिन लड़ाई के बग़ैर भी विजयी होते दिखाई दे रहे थे. लेकिन, उनकी समस्याएं उस वक्त़ शुरू हुई जब उन्होंने लड़कर जीतने का निर्णय लिया. 


द ऑपरेशनल पैराडाइम


ग्रे ज़ोन ऑपरेशन्स के साथ सूचना युद्धाभ्यास एक बात है और खुले तौर पर युद्ध दूसरी ही बात होती है. शीत युद्ध के दौरान रूसी काफ़िले ने वेस्टर्न ब्लॉक की सेनाओं के रीढ़ की हड्डी में कंपकंपाहट ला दी थी. रूसी सेना ने यूरोप के मैदानी इलाकों को तेज़ी से पार कर 48 घंटे के भीतर ही इंग्लिश चैनल तक पहुंचने की धमकी दी थी. इसी प्रकार, यह आकलन लगाया गया था कि रूसी टैंक की फौज यूक्रेन को कुचल देगी, क्योंकि यूक्रेन के एक टैंक के मुकाबले रूस के पास छह टैंक थे. ऐसे में यह विशाल रूसी सेना, जिसके पास बड़ी संख्या में टैंक और बेहद ज्य़ादा गोला बारूद था, जो दुनिया में हवा और ज़मीन पर अपनी अद्भुत सामरिक क्षमता के लिए पहचानी जाती है, उसने हवाई युद्ध और परिचालन में नाटकीय रूप से कमज़ोर प्रदर्शन कैसे किया यह समझ से परे है. 

ग्रे ज़ोन ऑपरेशन्स के साथ सूचना युद्धाभ्यास एक बात है और खुले तौर पर युद्ध दूसरी ही बात होती है. शीत युद्ध के दौरान रूसी काफ़िले ने वेस्टर्न ब्लॉक की सेनाओं के रीढ़ की हड्डी में कंपकंपाहट ला दी थी. रूसी सेना ने यूरोप के मैदानी इलाकों को तेज़ी से पार कर 48 घंटे के भीतर ही इंग्लिश चैनल तक पहुंचने की धमकी दी थी.

इसके अनेक कारण हो सकते हैं. हर कारण से सबक लिया जा सकता है. जैसे थिएटर कमांडर की अनुपलब्धता अर्थात नेतृत्वहीन सेना, मॉस्को में योजना तैयार कर वहां से ही रिमोट कंट्रोल की जा रही लड़ाई, सेना में आधे से ज्य़ादा नए रंगरूटों की भर्ती, नेतृत्व का अभाव, एनसीओ कॉर्प्स की अनुपलब्धता, अनेक रणनीतिक धारणाओं का गलत होना. उदाहरण के तौर पर रूसी आला नेतृत्व ने यह आकलन किया था कि यह ‘स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन’ 2014 में किए गए इसी तरह के ऑपरेशन का बड़ा स्वरूप होगा और इसे ज्य़ादा विरोध का सामना नहीं करना पड़ेगा. यह सोच लेना कि इस ऑपरेशन में ज्यादा हिंसा नहीं होगी. रूसी सेना को केवल यूक्रेन वासियों को ‘अपनी आजादी पाने’ में सहायता मात्र करनी है. लेकिन, इस ऑपरेशन का जितना कड़ा विरोध किया गया उसकी वजह से इसकी जटिलता को न तो पर्याप्त रूप से समझा ही गया और न ही उसका सही आकलन ही हुआ था. इसके अलावा रसद (गोला बारूद और अन्य युद्ध सामग्री) पहुंचाने में भी अनेक खामियां थीं. रूसी टैंकों का दमखम खत्म हो रहा था. आपस में सूचनाएं देने की व्यवस्था इतनी खुली थी कि उसे आसानी से इंटरसेप्ट किया जा सकता था. यह सारी बातें रूसी वॉर मशीनरी में लापरवाही और उसमें आयी गिरावट का संकेत दे रही थीं. 


दूसरी ओर यूक्रेन ने 2014 का सबक सीखने के बाद अच्छी तैयारी करते हुए कड़ा अभ्यास किया है. उनका विरोध न केवल मज़बूत दिखाई देता है, बल्कि यह काफी गहराई तक सुनियोजित भी है. आरक्षित जवान की तैनाती काफी तेज़ी से की गई और इसकी रणनीति काफी कल्पनाशील थी. यूक्रेनी सेना ने रूसी सेना के बड़े अफ़सर पर भी बखूबी हमला बोला हैउसने अब तक 12 रूसी जनरल को मारने के अलावा रूसी मिसाइल क्रूजर का भी बेड़ा गर्क कर दिया है. हमने यूक्रेन की ओर से काफी कल्पनाशील देखे हैं, जिसमें ट्रैक्टर ब्रिगेड, आनन-फानन में बनाए गए वर्कशॉप और अपने रक्षा कारोबार को जारी रखना शामिल है. इसी वजह से वह अपनी लड़ाई को जारी रखने में सफल रहा है. अब तक की लड़ाई में हमने रूसी सेना की चर्चित रेकी स्ट्राइक फायर भी नहीं देखी है, या फिर भारी तोपखाना का उपयोग ही हुआ है जो देखते ही देखते शहरों को ध्वस्त कर लोगों का हौसला तोड़ने में सक्षम थी. यह सब लक्षित गोलाबारी  से अलग है, जो विरोधी की लड़ाई वाली जगह को सजिर्कल सटीकता के साथ निशाना बनाती है. और हमें अब तक रूस का चिर-परिचित शास्त्रीय युद्धाभ्यास भी नहीं दिखा है, जिसको लेकर उसकी सेना गर्वित महसूस करती थी. रूसी एयर पॉवर भी अब तक नदारद ही दिखाई दिया है. एसईएडी अथवा डीईएडी भी अब तक न के बराबर दिखाई दिए हैं. रूसी एयर फोर्स अब भी यूक्रेन को विवादित हवाई क्षेत्र मान रही है. क्योंकि उसकी रणनीति और यह तथ्य कि उसके विमान काफी नीचे उड़ान भर रहे हैं, साबित करते हैं कि यूक्रेन का एयर डिफेंस नेटवर्क अब भी बरकरार है. 

यूक्रेन ने 2014 का सबक सीखने के बाद अच्छी तैयारी करते हुए कड़ा अभ्यास किया है. उनका विरोध न केवल मज़बूत दिखाई देता है, बल्कि यह काफी गहराई तक सुनियोजित भी है. आरक्षित जवान की तैनाती काफी तेज़ी से की गई और इसकी रणनीति काफी कल्पनाशील थी. यूक्रेनी सेना ने रूसी सेना के बड़े अफ़सर पर भी बखूबी हमला बोला है

द एरियल रिकॉनिसंस यूनिट ऑफ़ द यूक्रेनियन आर्म्ड फोर्सेस (AEROROZVIDKA ) ने दूसरी ओर अपनी तकनीक जादूगरी का बेहतरीन प्रदर्शन किया है. उदाहरण के तौर पर उसने एलन मस्क की ओर से उपलब्ध करवाए गए स्टार-लिंक टर्मिनल्स (एलईओ सैटेलाइट कॉन्फिग्युरेशन के माध्यम से हाई डेटा रेट्स पर स्थिर संचार मुहैया करवाना) का फायदा उठाते हुए परंपरागत युद्ध उपकरणों मसलन टैंक, आर्टिलरी, एयर डिफेंस और रूसी सेना के अन्य मुकाबला कर रहे उपकरणों पर सटीकता के साथ ड्रोन स्ट्राइक करने में सफलता हासिल की है. स्टारलिंक का उपयोग कर ड्रोन के ऊपर लगाए गए थर्मल विजन डिवाइस को कनेक्ट करते हुए टार्गेट पर तोप का सही निशाना साधा गया. स्टारलिंक टर्मिनल्स इतने शक्तिशाली हो गए हैं कि वे अब रूसी सेना के प्रतिरोधी हमले का मुख्य निशाना बन रहे हैं. स्टारलिंक रोज़ाना बदलते युद्धक्षेत्र की गतिशील चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए मुस्तैद है. बचाव का रास्ता अपनाने के लिए न्यू सॉफ्टवेयर अपडेट्स किए गए हैं. इन्हीं टर्मिनल्स का उपयोग यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने रणनीतिक संचार के लिए भी किया है अर्थात लक्षित लोग को प्रभावित करने के लिए, दुनिया की अलग-अलग संसदों को संबोधित कर वहां के जनप्रतिनिधियों को अपने पक्ष में करने के लिए, जनभावना को अपने हक में करने के लिए और स्थानीय नागरिकों के साथ अपनी सेना का हौसला बुलंद करने के लिए भी. 


इस युद्ध में भी ड्रोन ने अपनी मौलिक भूमिका एक बार पुन: निभाई है. रूसी टैंक कॉलम जो कीव और एयरपोर्ट के नज़दीक पहुंच गए थे तो सटीक ड्रोन ने अपना निशाना बनाते हुए आगे बढ़ने से रोक दिया था. कमर्शियल ड्रोन ने रूसी सेना की तैयारियों पर नज़र रखी और वक्त़ रहते लोगों को सूचना देकर उन्हें सुरक्षित स्थानों तक शेल्टर में पहुंचाया गया. बायरक्तार टीबी 2 ड्रोन ने रूसी टैंक, आर्टिलरी, एसएएम लॉन्चर्स और लॉजिस्टिक कॉलम्स को निशाना बनाने में अहम भूमिका अदा की है. स्विचब्लेड-पूमा (रेकी ड्रोन) वाली दो लोगों की संयुक्त टीम ने पांच-छह किलोमीटर तक की सुरक्षित दूरी से रूसी टैंक पर निशाना साधने में सहायता की. टैंक के भीतर मौजूद चार लोगों की टीम इस ड्रोन के हमलों के सामने असहाय थी. उभरती तकनीक मसलन, लॉइटर, ड्रोन, जेवलिन्स, स्टिंगर्स, ईडब्ल्यू और जैमर्स के सामने टैंक, भारी तोपखाना और हवाई हथियारों के उपकरण निष्प्रभावी साबित हुए हैं.


टैंक युद्ध  को इसी वजह से एक बार फिर चुनौती मिली है. यह चुनौती दी है एक घातक जोड़ी ने जो एंटी टैंक सिस्टम्स और विभिन्न प्रकार के ड्रोन हैं. यूक्रेन संकट हमें इस बात का स्पष्ट संकेत देता है कि टैंक अब बीसवीं सदी में उपयोग किया जाने वाला एक ऐसा हथियार है, जो 21वीं सदी की लड़ाई में अपना स्थान बनाने की कोशिश कर रहा है. तकनीकी विकास के बग़ैर इसकी मुश्किलों में वृद्धि होना तय है.

मुख्य बातें 


रूसी सेना का प्रदर्शन भारतीय सेना के लिए काफी मायने रखता है, क्योंकि हमारी सेना के पास अधिकांश हथियार रूस से ही आते हैं. ऐसे में बेहतर यह होगा कि हम भी अपने ऑपरेशनल तक़नीक और प्रक्रियाओं का एक संपूर्ण अंकेक्षण करवाए. इसके साथ ही उपकरणों के परफार्मेस का भी ऑडिट होना चाहिए. भारत के लिए काफी सबक तो हम ऑपरेशन के प्रवाह से प्राकृतिक तौर पर ही सीख सकते हैं. जिन सबक को हम ज्य़ादा महत्वपूर्ण मानते हैं उनके ऊपर दोबारा गहन चिंता और एक बार पुन: नजर डाली जा सकती है. हमें हमारे रक्षा खर्च में वृद्धि करने की भी ज़रूरत है. संगठनात्मक फेरबदल (सीडीएस/डीएमए), हमारे रणनीतिक दृष्टिकोण को एक नया सामान्य प्रदर्शन (बालाकोट/कैलाश रेंज) भी हमारे अधिग्रहण प्रक्रिया (मिलिट्री- एकैडेमिक सहयोग, स्टार्ट-अप आदि) को पुनर्जीवित करने की दिशा में अहम कदम माना जाएगा. हमारे रक्षा खर्च पर भी पुनर्विचार की ज़रूरत है. ऐसा करते हुए हम प्राथमिकता के साथ उभरती तकनीक को देख सकते हैं, ताकि वह पुरानी पीढ़ी के हथियारों की जगह ले सकें.

साथ-साथ ही हमें हमारी शक्ति के मूल्य की पहचान करने की दिशा में भी काम करना होगा. आखिर ऐसा क्यों है कि अमेरिका से असंयमित रूप से हमारी तरह बजट के मामले में असुविधाजनक स्थिति (1:3) होने के बावजूद चीन को लेकर पेंटागन में अधिक बेचैनी दिखाई देती है. भारत को लेकर पेंटागन इतना सक्रिय या बेचैन कभी क्यों नहीं होता? शायद इसका जवाब रणनीति और सैन्य व्यवस्था में कल्पनाशीलता की कमी और उन सभी सुधारों को लागू करने से इनकार में है, जिन्हें हमें मुख्यत: एकीकृत होने वाले क्षेत्र में चाहे फिर वह संज्ञानात्मक क्षेत्र हो या फिर संरचनात्मक क्षेत्र में लागू करना है. हमें हमारे टैंक फ्लीट का लाभ उठाने  और उसे समर्थ बनाने के बारे में एक बार नए से विचार करना पड़ेगा. यंत्रीकृत युद्ध को अपग्रेड करना, मसलन सेंसर्स, ड्रोन इंटीग्रेशन, एक्टिव प्रोटेक्शन सिस्टम्स और परिष्कृत स्थितिजन्य जागरूकता जैसे कदम को भी हमें तत्काल गले लगाना होगा. पुरानी पीढ़ी के टैंकों की उपयोगिता अब कम हो गई है, जिन्हें हमें अब बाहर का रास्ता दिखाना ही होगा.


वेस्टर्न थिएटर कमांड में मौजूद चीनी एडी अम्ब्रेला को भेदने की हमारे एयर पॉवर की क्षमता का वास्तविक आकलन भी बेहद आवश्यक हो गया है. आधुनिक संघर्ष के दौर में अब ड्रोन में ही भविष्य दिखाई दे रहा है. डीएमए को तीनों सेनाओं में ड्रोन की संकल्पना करते हुए इनके समावेश की बात करनी चाहिए, ताकि हम एकीकृत संगठन और सोची समझी रणनीति बना सके. इसके साथ ही जिस डिजिटल कॉम्बैट की दिशा में जाने में भारतीय सेना पहले ही देर कर चुकी है, उसे अब गति प्रदान किए जाने की ज़रूरत है. इसके लिए क्लाउड्स और डाटा एंटरप्राइज़ सिस्टम तत्काल विकसित करना बेहद आवश्यक हो गया है. इसी प्रकार निजी क्षेत्र  की प्रतिभा, तत्परता और तकनीकी क्षमता का उपयोग हमारी हथियारों की क्षमता बढ़ाने और उनका अधिग्रहण करने के लिए बेहद ज़रूरी हो गया है. उनका उपयोग हमारे युद्धक संरचनाए में भी किया जा सकता है. हालिया संघर्षो में जो सबसे खटकने वाली बात दिखाई दी है, वह यह कि राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व के बीच वैचारिक अंतर होना है. हमारे लिए सभी पहलुओं को लेकर विचारों की एकजुटता और युद्ध की तैयारियों की एक समग्र समीक्षा सेना के आला अफ़सरों के बीच होने के बाद तीनों सेनाओं के वॉर गेमिंग अभ्यास करना बेहद आवश्यक हो गया है. डिजीटाइज़्ड थिएटर कमांड का गठन तत्काल होना चाहिए. इसी प्रकार कमान और एकीकृत संचालन को भी संस्थागत करने की आवश्यकता है. हमें अब रेत से बने रूम में प्रदर्शन/ परिचालन होने वाली चर्चा से अलग होकर बड़ी संरचनाओं और सैनिकों के साथ लाइव एक्सरसाइज़ की दिशा में बढ़ना होगा. बड़े पैमाने पर सेना को जमा करने और उसका संचालन करना एक मुश्किल चुनौती होता है, लेकिन यूक्रेन ने यदि हमें कुछ सिखाया है तो यही बात सिखाई है. तय सीमा में अपने युद्ध की तैयारी करना अब आगे की लड़ाई के लिए काफ़ी अहम हो गया है.

हालिया संघर्षो में जो सबसे खटकने वाली बात दिखाई दी है, वह यह कि राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व के बीच वैचारिक अंतर होना है. हमारे लिए सभी पहलुओं को लेकर विचारों की एकजुटता और युद्ध की तैयारियों की एक समग्र समीक्षा सेना के आला अफ़सरों के बीच होने के बाद तीनों सेनाओं के वॉर गेमिंग अभ्यास करना बेहद आवश्यक हो गया है.


सैद्धांतिक मुद्दों को लेकर भारतीय सेना को आख़िर क्या करना चाहिए? क्या उसे सामरिक प्रतियोगिता पर केन्द्रित करना चाहिए, ग्रे ज़ोन, सीमित युद्ध या चौतरफ़ा संघर्ष? इसका सीधा और सरल जवाब यह है कि हमें स्पर्धा और संघर्ष दोनो में ही समान रूप से कुशल रहना होगा. हां, हम विरोधियों और ख़तरों को लेकर चालाकी के साथ असंयमित रूप से संतुलित रह सकते हैं. इसके लिए हमें अनुकूलन, संगठनात्मक, पुनर्गठन, बजटीय प्राथमिकता, प्रोद्यौगिकी उत्तोलन आदि करना होगा. लेकिन, बहुआयामी तैयारियां करना अब बेहद अनिवार्य हो गया है. 

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