कई दशकों के दौरान हमें ये पता चला है कि सात तरह के कोरोना वायरस इंसानों को संक्रमित करके उनमें सांस की बीमारियां पैदा कर सकते हैं. इनमें से चार से हमारे सांस लेने के सिस्टम के ऊपरी हिस्से में हल्के फुल्के संक्रमण होते हैं. मौजूदा महामारी की आमद से पहले, ऐसे दो उदाहरण देखने को मिले है, जब कोरोना वायरस से बड़े पैमाने पर लोग बीमार हुए और उनकी मौत हुई. वर्ष 2002 में हमने सार्स कोरोना वायरस (SARS-CoV) के चलते महामारी फैलती देखी. वहीं वर्ष 2012 में मर्स कोरोना वायरस (MERS-CoV) का प्रकोप देखा गया था. क़ुदरत में ज़्यादातर कोरोना वायरस के स्रोत चमगादड़ों में पाए गए हैं. हालांकि, कोरोना वायरस की कुछ क़िस्में चूहों में भी मिली हैं. ये वायरस सीधे भी इंसानों को संक्रमित कर सकते हैं, या फिर किसी अन्य जानवर जैसे कि सिवेट (सार्स के मामले में) या फिर ऊंटों (मर्स) के ज़रिए इंसानों को संक्रमित कर लेते हैं.
म्यूटेशन या बनावट में तब्दीली, किसी भी वायरस के जीवन चक्र का हिस्सा होते हैं. म्यूटेशन होने का मक़सद, वायरस के बचने की संभावना को बढ़ाना होता है, जो वायरस को इंसान के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता के हमले से बचाते हैं.
कोविड-19 की मौजूदा महामारी, वर्ष 2019 में सार्स कोरोना वायरस 2 (SARS-CoV2) की वजह से फैलनी शुरू हुई थी. ये महामारी अब तक दुनिया के लगभग हर देश को अपनी चपेट में ले चुकी है. हमने इस महामारी के कई दौर आते देख लिए हैं, जिनके चलते लोगों की जान गई है, उनमें अपंगता आई है और तमाम देशों की स्वास्थ्य व्यवस्थाएं इस महामारी से निपटने में चौपट होते देखी गईं. ये कोरोना वायरस (SARS-CoV2) सातवां हैं, जिसने इंसानों को संक्रमित किया है.
म्यूटेंट और चिंता वाले वेरिएंट (VOC)
म्यूटेशन या बनावट में तब्दीली, किसी भी वायरस के जीवन चक्र का हिस्सा होते हैं. म्यूटेशन होने का मक़सद, वायरस के बचने की संभावना को बढ़ाना होता है, जो वायरस को इंसान के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता के हमले से बचाते हैं. या फिर वायरस अपनी संक्रामकता और घातक क्षमता को बढ़ाकर जीवन चक्र का विस्तार करते हैं. क़ुदरती तौर पर वायरस में म्यूटेशन तभी होता है, जब उससे वायरस की आयु बढ़ने में मदद मिलती है. जिस वायरस में म्यूटेशन होते हैं, उसे म्यूटेंट कहा जाता है. इस लफ़्ज़ को अक्सर वेरिएंट के बदले में इस्तेमाल किया जाता है. हालांकि, अगर हम विशुद्ध वैज्ञानिक भाषा में कहें, तो ‘वेरिएंट’ किसी वायरस के भीतर के वो जीन (जीनोम) होते हैं, जिनमें म्यूटेशन होता है. अगर किसी म्यूटेशन से वायरस की बनावट, संक्रामकता और असरदार होने या इम्यून सिस्टम से बच निकलने में बड़े बदलाव आते हैं, तो उन्हें वायरस का नया ‘स्ट्रेन’ या ‘चिंताजनक वेरिएंट घोषित किया जाता है. सार्स कोरोना वायरस 2 (SARS-CoV2) अपनी जेनेटिक बनावट में 80 फ़ीसद तो सार्स कोरोना वायरस (SARS-CoV) की तरह है और 50 प्रतिशत मर्स कोरोना वायरस (MERS-CoV) से मिलता है. इसका मतलब ये है कि सार्स कोरोना वायरस 2 (SARS-CoV2), असल में कोरोना वायरस परिवार का एक नया वेरिएंट है, जो जेनेटिक बनावट में मर्स कोरोना वायरस (MERS-CoV) की तुलना में सार्स कोरोना वायरस (SARS-CoV) से ज़्यादा मिलता जुलता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अब तक सार्स कोरोना वायरस 2 के पांच वेरिएंट यानी- अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा और हालिया ओमिक्रॉन- को चिंताजनक वेरिएंट का दर्जा दिया है. हल्के फुल्के म्यूटेशन वाले बाक़ी के सारे वेरिएंट सिर्फ़ वेरिएंट ऑफ़ इंटेरेस्ट (VOI) यानी दिलचस्पी वाले वेरिएंट कहे गए हैं, और इनमें किसी और म्यूटेशन का पता लगाने के लिए इनकी लगातार निगरानी की जा रही है.
जीन सीक्वेंसिंग के तरीक़ों और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस पर आधारित मॉडलों ने दिखाया है कि ओमिक्रॉन वेरिएंट की प्रमुख S (स्पाइक) प्रोटीन में 30 से ज़्यादा म्यूटेशन या बदलाव देखने को मिले है. इनकी मदद से ये वायरस इंसान की कोशिकाओं और ग़ैर संरचनात्मक प्रोटीन कणों में घुसपैठ कर सकता है.
ओमिक्रॉन, डेलमाइक्रॉन, स्टेल्थ ओमिक्रॉन और अन्य
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा घोषित पांचवें वेरिएंट ऑफ़ कंसर्न यानी ओमिक्रॉन का पहला मरीज़ 24 नवंबर 2021 को दक्षिण अफ्रीका में मिला था. तब इसे B.1.1.529 का कहा था. इसे 26 नवंबर 2021 को ओमिक्रॉन का नाम दिया गया था और उसके बाद से ही ये दुनिया के तमाम देशों में बड़ी तेज़ी से फैला और इससे कोविड-19 महामारी की एक और लहर देखने को मिली. जीन सीक्वेंसिंग के तरीक़ों और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस पर आधारित मॉडलों ने दिखाया है कि ओमिक्रॉन वेरिएंट की प्रमुख S (स्पाइक) प्रोटीन में 30 से ज़्यादा म्यूटेशन या बदलाव देखने को मिले है. इनकी मदद से ये वायरस इंसान की कोशिकाओं और ग़ैर संरचनात्मक प्रोटीन कणों में घुसपैठ कर सकता है. इसकी बनावट वाले प्रोटीन में इतने ज़्यादा म्यूटेशन के चलते, ओमिक्रॉन वेरिएंट, अपने से पहले आए डेल्टा वेरिएंट की तुलना में काफ़ी अलग है. मूल सार्स कोरोना वायरस 2 (SARS-CoV2) की तुलना में ओमिक्रॉन वेरिएंट दस गुना ज़्यादा और डेल्टा वेरिएंट से दोगुना अधिक संक्रामक है. इस वेरिएंट का शिकार बनने के बाद किसी इंसान के फिर से वायरस का शिकार होने का ख़तरा बढ़ जाता है. यही नहीं, डेल्टा की तुलना में ओमिक्रॉन के पास वैक्सीन के सुरक्षा कवच को झटका देने की दोगुनी क्षमता है. ख़ुशक़िस्मती से नए म्यूटेशन के चलते वायरस और घातक नहीं हुआ है, जिससे भयंकर बीमारी और मौत का जोखिम कम हुआ है. रिसर्च में ओमिक्रॉन वेरिएंट की ज़्यादा संक्रामकता और वैक्सीन के कवच को गच्चा देने की क्षमता के बावजूद, इससे गंभीर बीमारी और मौत के कम ख़तरे का पता चलना, उम्मीद से कहीं अलग नतीजे थे.
ऐसा लगता है कि नए वेरिएंट से निपटने के लिए नियमित रूप से बूस्टर डोज़ लगवाने का विकल्प ही तब तक बेहतर है, जब तक ये वायरस या तो पूरी तरह ख़त्म नहीं हो जाता. या फिर इसके तमाम वेरिएंट से निपटने में कारगर कोई नई वैक्सीन ईजाद नहीं हो जाती है.
ओमिक्रॉन वेरिएंट के फैलने से उन देशों में कोविड-19 की महामारी ने दोबारा सिर उठाया, जहां डेल्टा वेरिएंट से संक्रमित लोगों की संख्या बहुत अधिक थी. दो अलग अलग वेरिएंट के इतने बड़े पैमाने पर संक्रमण फैलाने को विशेषज्ञों ने डेलमाइक्रॉन का नाम दिया है. हालांकि ये कोई अलग वेरिएंट नहीं है, बल्कि ये ओमिक्रॉन का ही एक और रूप है जिसे BA.2. का नाम दिया गया है. हाल ही में ओमिक्रॉन वेरिएंट को तीन हिस्सों में बांटा गया है. BA.1, BA.2 और BA.3. इनमें से BA.1 मूल ओमिक्रॉन वेरिएंट है, जबकि BA.2 वायरस का थोड़ा सा बदला हुआ रूप है. इसे स्टेल्थ ओमिक्रॉन भी कहा जाता है. क्योंकि कई बार ये मौजूदा RT-PCR टेस्ट में भी पकड़ में नहीं आता है. भारत में हुए अध्ययनों में पता चला है कि ओमिक्रॉन से संक्रमित जिन लोगों में लक्षण दिखते हैं, उनमें से ज़्यादातर इसी BA.2 से संक्रमित हैं. फ्रांस में एक नए वेरिएंट (B.1.640) के बारे में पता चला है, जिसे अनधिकारिक रूप से IHU का नाम दिया गया है. अभी इसे दिलचस्पी वाले वेरिएंट (VOI) का दर्जा देकर इस पर रिसर्च किया जा रहा है. बार-बार म्यूटेशन और नए वेरिएंट की मौजूदा रफ़्तार को देखते हुए, ये मानना सही होगा कि सार्स कोरोना वायरस 2 (SARS-CoV2) के अभी और नए वेरिएंट सामने आएंगे. ऐसे में सवाल यही उठता है कि क्या भविष्य में सामने आने वाले वेरिएंट ज़्यादा घातक होंगे या उनसे कोई नुक़सान नहीं होगा.
क्या ओमिक्रॉन के ख़िलाफ़ वैक्सीन असरदार है?
कोविड-19 महामारी के चलते हमने अकल्पनीय रफ़्तार से तमाम टीकों का विकास और उनका अभूतपूर्व मात्रा में उत्पादन होते देखा है. 21 जनवरी 2021 तक की जानकारी के मुताबिक़, दुनिया भर में कोरोना के 140 टीकों का क्लिनिकल ट्रायल हो रहा है, जबकि 194 वैक्सीन क्लिनिकल विकास से पहले के दौर में थीं. हालांकि, इनमें से कुछ मुट्ठी भर टीके ही इस्तेमाल किए जा रहे हैं और दुनिया भर में करोड़ों लोगों को कोरोना के टीके लगाए जा चुके हैं. हाल ही में टीकों के असर को लेकर हुए तमाम अध्ययनों के व्यापक विश्लेषण की समीक्षा में पता चला कि डेल्टा और उससे पहले के अन्य वेरिएंट की तुलना में ओमिक्रॉन वेरिएंट पर टीकों का कम असर देखने को मिल रहा है. मूल कोरोना वायरस को ख़त्म करने में वैक्सीन का असर जहां -4.3 गुने से शून्य तक था. वहीं, ओमिक्रॉन वेरिएंट के लिए इसका असर -2.1 गुने से शून्य तक दर्ज किया गया. ये भी देखा गया है कि टीके की बूस्टर ख़ुराक से वैक्सीन का असर टिकाऊ रूप से ज़्यादा (3 से 133 गुना तक) हो जाता है. यानी कोरोना वायरस के मौजूदा टीके ओमिक्रॉन वेरिएंट पर कम असरदार हैं. लेकिन, बूस्टर डोज़ लगवा लेने पर इससे लड़ने की हमारे शरीर की क्षमता बढ़ जाती है. ऐसा लगता है कि नए वेरिएंट से निपटने के लिए नियमित रूप से बूस्टर डोज़ लगवाने का विकल्प ही तब तक बेहतर है, जब तक ये वायरस या तो पूरी तरह ख़त्म नहीं हो जाता. या फिर इसके तमाम वेरिएंट से निपटने में कारगर कोई नई वैक्सीन ईजाद नहीं हो जाती है.
ओपन रीडिंग फ्रेम (ORF) की भूमिका: कोरोना वायरस की बहुत सी बातें जो पता नहीं हैं
कोरोना वायरस चार संरचनात्मक प्रोटीन (S, E, M, N) और 16 ग़ैर संरचनात्मक प्रोटीन (nsp 1-16) 11 सहयोगी प्रोटीन से मिलकर बना है, जिन्हें ORF कहा जाता है. ORF प्रोटीन का इस वायरस में क्या काम होता है, वो अभी पता नहीं है. लेकिन, ये प्रोटीन संक्रमित व्यक्ति के शरीर द्वारा वायरस से लड़ने के लिए जो रोग प्रतिरोधक क्षमता एक्टिवेट की जाती है, उसमें सेंध लगाने का काम करता है. यानी ये प्रोटीन संक्रमण के लक्षणों और उससे होने वाली दिक़्क़तों पर सीधा असर डालते हैं. कई महाद्वीरों में हाल में हुए अध्ययनों से पता चला है कि ORF प्रोटीन में म्यूटेशन बढ़ने का सीधा असर संक्रमण की शिद्दत से होता है. इस वक़्त इस्तेमाल हो रही ज़्यादातर वैक्सीन और एंटी-वायरल दवाएं इस वायरस की संरचनात्मक प्रोटीन और एंजाइम को निशाना बनाती हैं. ऐसे में सहयोगी ORF प्रोटीन को लक्ष्य बनाने वाले टीके और दवाएं विकसित करना भविष्य में एक आकर्षक लक्ष्य बन सकता है.
क्या हम ओमिक्रॉन को हरा सकते हैं? थोर नाम के मसीहा से मिलेगी मदद!
इस वक़्त भारत में उपलब्ध तमाम एंटी वायरल दवाओं में से मोलनुपिराविर (नॉर्स देवता थोर के मशहूर हथौड़े मोलनिर के नाम पर आधारित) ही ऐसी इकलौती दवा है, जो ओमिक्रॉन के ख़िलाफ़ असरदार है. मोलनुपिराविर को शुरुआत में डेल्टा वेरिएंट पर हुए तमाम अध्ययनों (MOVe-OUT) के बाद इस्तेमाल की मंज़ूरी दी गई थी. इन अध्ययनों में पता चला था कि अगर संक्रमण के लक्षण दिखने के पांच दिनों के भीतर ये दवा लेनी शुरू कर दी जाए, तो अस्पताल में भर्ती होने या मौत की आशंका में कमी आती है. अध्ययनों में ये भी देखा गया है कि मोलनुपिराविर, ओमिक्रॉन वेरिएंट के ख़िलाफ़ भी बहुत असर करती है. भारत के दवा महानियंत्रक (DCGI) ने कोविड-19 संक्रमण के इलाज के लिए मोलनुपिराविर के इस्तेमाल को मंज़ूरी दे दी है. हालांकि, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने ये चिंता जताते हुए इसका इस्तेमाल करने का सुझाव नहीं दिया है कि, एक तो इस दवा के साइड इफेक्ट अधिक हैं और दूसरे MOVe-OUT अध्ययन से मिले सबूत कमज़ोर हैं. हालांकि, अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हेल्थ ने अपने हालिया दिशा निर्देशों में मोलनुपिरावीर के इस्तेमाल का मशविरा दिया है. उन्होंने ऐसे मरीज़ों को इसके इस्तेमाल से बचने को कहा है, जो गर्भ धारण करने की योजना बना रहे हैं. अमेरिका के NIH ने इस बात का ख़ास तौर से ज़िक्र किया है कि अब तक इस दवा से प्रजनन क्षमता पर बहुत मामूली फ़र्क़ पड़ने के ही सबूत मिले हैं. अब तक उपलब्ध सुबूतों के आधार पर ये कहा जा सकता है कि कोरोना से संक्रमित गर्भवती महिलाओं को छोड़कर, वायरस से संक्रमित जो मरीज़ अस्पताल में नहीं भर्ती हैं और जिनमें संक्रमण के मामूली लक्षण हैं, उन्हें ये दवा दी जा सकती है.
हाल ही में हुए एक अध्ययन में पता चला है कि ओमिक्रॉन वेरिएंट पर इस दवा का असर नहीं होता है. ऐसे में अक़्लमंदी इसी बात में है कि इन महंगी दवाओं को ख़रीदने या इनके इस्तेमाल का सुझाव देने से पहले ये पता कर लिया जाए कि ये दवाएं किस वेरिएंट के ख़िलाफ़ असरदार होंगी.
जहां तक मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़ का सवाल है, तो ये देखा गया है कि बमलानिविमाब और रॉकफेलर यूनिवर्सिटी मॉलिक्यूल्स (C144 और C135), ओमिक्रॉन वेरिएंट के ख़िलाफ़ असरदार नहीं हैं. इस वेरिएंट अब तक सिरक्फ़ सोट्रोविमाब के ही असरदार होने के सबूत मिले हैं. हालांकि, कहा तो ये गया था कि REGN-CoV2 एंटीबॉडी कॉकटेल, ओमिक्रॉन वेरिएंट के ख़िलाफ़ प्रभावी होगा. लेकिन, हाल ही में हुए एक अध्ययन में पता चला है कि ओमिक्रॉन वेरिएंट पर इस दवा का असर नहीं होता है. ऐसे में अक़्लमंदी इसी बात में है कि इन महंगी दवाओं को ख़रीदने या इनके इस्तेमाल का सुझाव देने से पहले ये पता कर लिया जाए कि ये दवाएं किस वेरिएंट के ख़िलाफ़ असरदार होंगी.
एक वायरस की तरह सोचें- महामारी से मौसमी बीमारी की ओर
कोरोना वायरस की महामारी कब ख़त्म होगी, इसकी भविष्यवाणी करने से पहले हमें ठीक वैसे ही सोचना होगा, जैसे ये वायरस सोचता. बड़े पैमाने पर टीकाकरण, नई नई दवाओं के व्यापक इस्तेमाल और पहले से संक्रमित लोगों में वायरस से लड़ने की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होने के बढ़ते दबाव के चलते ये वायरस अपना अस्तित्व बचाने के लिए बार-बार और तेज़ी से म्यूटेट होने के लिए मजबूर होगा. नए म्यूटेशन से वायरस न सिर्फ़ अपने आपको बचा पाने में कामयाब होगा, बल्कि वो संक्रमण बढ़ाकर, लोगों के इम्यून सिस्टम पर हमला करेगा, जिससे संक्रमण के नए दौर देखने को मिलेंगे. मौजूदा महामारी के भविष्य को लेकर तीन तरह के पूर्वानुमान लगाए जा रहे हैं. सबसे चिंताजनक आकलन ये है कि वायरस में बड़े पैमाने पर म्यूटेशन होगा. इससे संक्रमण बढ़ेंगे और लोगों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ेगा और कई लोगों की जान भी जा सकती है. हालांकि, इसकी संभावना अब कम ही है. हम पूरी दुनिया में बड़े पैमाने पर टीकाकरण ऐसी स्थिति आने से रोक सकते हैं. आज जब बहुत से देश अपने नागरिकों को टीके की एक भी ख़ुराक नहीं दे पाए हैं, ऐसे में कुछ देशों द्वारा अपने यहां चौथी और पांचवीं बूस्टर डोज़ देने से वायरस को म्यूटेट होने का मौक़ा मिलेगा. सबसे अधिक संभावना इस बात की है कि ये वायरस आगे चलकर इन्फ्लुएंज़ा वायरस जैसे ही मौसमी बीमारी में तब्दील हो जाएगा, जिससे निपटने के लिए नियमित रूप से बूस्टर डोज़ लेनी पड़ेगी. महामारी के भविष्य को लेकर आख़िरी परिकल्पना ये है कि आगे चलकर वायरस अपना रूप बदलकर ऐसा हो जाए, जो संक्रमित तो करे, मगर लोगों को नुक़सान न हो. सार्स और मर्स वायरस को छोड़ दें, तो ये ठीक वैसे ही होगा, जैसे बाक़ी के कोरोना वायरस हैं.
महामारी के भविष्य को लेकर आख़िरी परिकल्पना ये है कि आगे चलकर वायरस अपना रूप बदलकर ऐसा हो जाए, जो संक्रमित तो करे, मगर लोगों को नुक़सान न हो.
पिछले दो वर्षों के दौरान जीवन पर लगे तमाम प्रतिबंधों के चलते पैदा हुए आर्थिक संकट और जनता की खीझ के चलते कई पाबंदियां हटा ली गई हैं. पूरी दुनिया में वायरस से बचने के उपाय अपनाने को लेकर जनता की तरफ़ से भी लापरवाही की जाने लगी है. जब तक हमें पक्के तौर पर ये पता न हो जाए कि वायरस आगे चलकर किस तरफ़ जाएगा, तब तक हमें कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए, मौजूदा सुझावों के अनुरूप जल्द से जल्द टीका लगवाने के विकल्प को अपनाए रहना होगा. हो सकता है कि हम इस महामारी से लड़ते लड़ते थक चुके हों. लेकिन, ऐसा लगता है कि अभी ये वायरस हमारे बीच लंबे समय तक रहने वाला है.
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