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यूक्रेन और अमेरिका सरीखे, समान रूप, से वैश्विक तौर पर दक्षिण मे बन रही बहुध्रुवीयता में अवसर देखते हैं, क्योंकि तथाकथित 'ग्लोबल साउथ' खुद को एक के रूप में प्रस्तुत कर रहा है.
दुनिया भर के 40 से अधिक देशों के सरकारी और सैन्य अधिकारी यूक्रेन में चल रहे संघर्ष पर चर्चा करने के लिए सऊदी अरब के बंदरगाह शहर जेद्दा जो कि लाल सागर के तट पर बसा है, वहां पहुंचे हैं. बदलते समय के साथ लाल सागर का महत्व भी और बढ़ा ही है. इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात ये है कि इस बातचीत के ज़रिये ये कोशिश की जा रही है कि इस युद्ध को कैसे तार्किक अंत तक लाया जाए. इस सम्मेलन में रूस को नहीं बुलाया गया था, और इसे यूरोप की सीमा पर चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध पर किसी भी तरह से एक किस्म की आम सहमति बनाने का एक और प्रयास है. लेकिन रियाद और क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (एमबीएस)के लिए भी यह तेज़ी से बदलते वैश्विक ढांचे के बीच सऊदी अरब को स्थिर और मज़बूत रखने के बारे में है.
जेद्दा की इस बैठक की योजना यूक्रेन और सऊदी अरब ने मई महीने में राष्ट्रपति वोलोदीमीर ज़ेलेंस्की के अरब लीग को संबोधित करने के लिये जेद्धा आगमन के दौरान की थी.
भारत की ओर से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल ने इस बैठक में भाग लिया. डोभाल की उपस्थिति ने रियाद और नई दिल्ली के बीच सकारात्मक द्विपक्षीय संबंधों का भी संकेत था. डोभाल ने इस मौके पर कुछ महत्वपूर्ण बातें की, जो इस तरह से: उन्होंने कहा- इस बैठक में दो तरह की चुनौती हैं: पहला स्थिति का हल निकालना और दूसरा युद्ध के परिणामों को कम करना. दोनों मोर्चों पर एक-साथ मिलकर काम करने की ज़रूरत है और यह सुनिश्चित करने के लिए बहुत अधिक ज़मीनी काम करने की आवश्यकता है.” हालांकि, मुख्य बैठक बंद दरवाज़ों के पीछे हुई थी.
जेद्दा की इस बैठक की योजना यूक्रेन और सऊदी अरब ने मई महीने में राष्ट्रपति वोलोदीमीर ज़ेलेंस्की के अरब लीग को संबोधित करने के लिये जेद्धा आगमन के दौरान की थी. रियाद और एमबीएस का इस तरह के आयोजन को सहमति देना बहुत कुछ कहता है. पहला ये कि, यह सऊदी अरब और अमेरिका के संबंधों में एक तरह से दूरी बन गई थी उसे दूर करता है. दोनों देशों के संबंध इस कदर जटिलताओं से भरे हुए थे कि पिछले वर्ष राष्ट्रपति बाइडेन की व्यक्तिगत यात्रा भी इसे पूरी तरह से सुलझा नहीं पाये थे. OPEC (पेट्रोल निर्यात करने वाले देशों की संस्था) के सदस्य देश के तौर पर सऊदी अरब और रूस ने तेल की कीमत को एक निश्चित सीमा से ऊपर रखने के लिए आपूर्ति में कटौती करने के लिए मिलकर काम किया था. ऊर्जा के अलावा यूक्रेन संकट के कारण वैश्विक मुद्रास्फीति को भी धक्का लगा है, क्योंकि खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि हुई है. इन सबसे विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाएं भी बुरी तरह प्रभावित हुई हैं. अफ्रीकी नेताओं के एक समूह ने मॉस्को का भी दौरा किया, वे संघर्ष को समाप्त करने के अलावा रूस और यूक्रेन से अनाज और खाद्य सुरक्षा से संबंधित वस्तुओं की आपूर्ति पर तनाव कम करने की कोशिश करते रहे. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इस पूरी योजना या यूं कहे कि कवायद को “हंगर गेम्स“ का नाम दे दिया. ये नाम वर्ष 2008 में आयी अमेरिकी लेखक सुज़ैन कॉलिन्स के डिस्टोपियन उपन्यास से आया है. रूस के लिए भी काला सागर अनाज पहल, जो सबसे पहले संयुक्त राष्ट्र और तुर्की द्वारा मध्यस्थता के ज़रिये लायी गई थी फायदे का एक बिंदु है, जिससे संघर्षग्रस्त जलमार्ग के माध्यम से अनाज और खाद को सुचारू रूप से परिवहन की अनुमति मिलती है.
यह देखना बाकी है कि क्या इस नये रणनीतिक घटनाक्रम में किसी को भी पुतिन की भांति साथ योजना बनाने, स्थिती का फायदा उठाने की क़ाबिलियत है या नहीं.
इस बैठक से होने वाली उम्मीदें शुरू से ही कमज़ोर थीं क्योंकि यह स्पष्ट नहीं था कि इससे क्या हासिल किया जाना था,सिवाये इसके कि ये एमबीएस की ग्लोबल साउथ में इस बात पर अच्छी चर्चा होती कि उनमें कूटनीति के गुण हैं. साथ ही साथ अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (NSA) जेक सुलिवन के साथ बैठक में चीन की भागीदारी सुनिश्चित करने के अमेरिकी प्रयासों को सहायता देने के अलावा ग्लोबल साउथ में एमबीएस की पहचान एक संयोजक शक्ति रूप में करने की, और शायद अधिक थोड़ा सिकुड़ कर देखें तो यह ‘सऊदी सदी‘ का जो एक दृष्टिकोण बना है उसके हासिल करने के लक्ष्य के रूप में देखा जा सकता है. लेकिन इन क्षेत्रीय स्तर के पहलों के नीचे एक मज़बूत अंतःप्रवाह है जहां बहुध्रुवीयता का विचार, अक्सर मध्यम ताकतों के एक संगठन के नेतृत्व के भीतर देखा जाता है, वो साथ-साथ चलता है. उदाहरण के लिए, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), क़तर, तुर्की और ईरान भी बहुध्रुवीयता पर आधारित एक नए वैश्विक ढांचे के एक हिस्से के रूप में खुद को देखेंगे. इसी तरह, सऊदी और यूएई जैसे अन्य देश भी उसी दिशा में चल रहे हैं और कुछ हद तक नेतृत्व की भूमिका में दिखाने के लिए ग्लोबल साउथ निर्माणों का उपयोग कर रहे हैं. जबकि, इससे अलग भारत अधिक यथार्थवादी है, वो अपने आप को ग्लोबल साउथ जैसे शब्दावलियों का इस्तेमाल कर नेतृत्वकारी ओहदे पर दर्शाने की कोशिश करता है. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के निर्माण को चुनौती देने वाले भू–राजनीतिक बिचौलियों के लिए बाज़ार में बहुत सारे विकल्प हैं.
विदुषी महिला सिंजिया बियांको ने सही ही कहा है, कि बीजिंग किसी भी तरह से वैश्विक दक्षिण या ग्लोबल साउथ का एक आधिपत्यवादी नेता नहीं है.
इस सबके बावजूद, डेक में जोकर की भूमिका चीन ही निभायेगा. विदुषी महिला सिंजिया बियांको ने सही ही कहा है, कि बीजिंग किसी भी तरह से वैश्विक दक्षिण या ग्लोबल साउथ का एक आधिपत्यवादी नेता नहीं है. शायद इसकी वजह यह है कि चीन को अब “मध्यम शक्ति” नहीं कहा जा सकता है. लेकिन चीन की स्थिति और इस संघर्ष के प्रति उसका दृष्टिकोण महत्वपूर्ण रहेगा क्योंकि वह यूरोप के साथ रूस की टूट और मास्को की लगातार चीन की राजनीति और अर्थव्यवस्था पर बढ़ती निर्भरता से फायदा उठायेगा. साथ ही, बहुध्रुवीयता और रणनीतिक स्वायत्तता जैसे संबोधन और शब्दावलियों जो आज पश्चिम एशिया, भारत, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में काफी चलन में हैं,उन देशों के लिए ये बुरी ख़बर है, क्योंकि अगर अमेरिका और चीन के बीच एक नये शीत युद्ध की आशंका का जन्म होता है तो यह इन देशों के लिये अच्छी ख़बर नहीं है. एक कमज़ोर रूस की कमज़ोरी वैश्विक दक्षिण के हित में नहीं है, और आज की वास्तविकता मॉस्को ने बनायी है. डोमिनोज़ प्रभाव को चीन की स्थिति को मजबूत करने के लिए बहुत अधिक आत्मनिरीक्षण और बहस की जरूरत है, जो वर्तमान में विशेष रूप से पश्चिम में मिल रहा है.
जैसा कि हैप्पीमन जेक़ब ने गौर किया है,अंत में मॉस्को और कीव के बीच किसी भी प्रत्यक्ष वार्ता पर सबसे बड़ा निर्णायक कारक होगा युद्ध के मैदान की वास्तविक परिस्थितियाँ और वे कैसे बदलती हैं. जेद्दा शिखर सम्मेलन जैसे प्रयासों ने यूक्रेन को एक देश के रूप में और ज़ेलेंस्की को एक नेता के रूप में स्थापित करने के लिये अच्छे कदम है. जे़लेंस्की अपने 10 बिंदु शांति फॉर्मूले को आगे बढ़ाते हुए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पर दबाव डालना जारी रखने का अच्छा संकेत दिया है — यह एक चतुराई से बनाई गई सूची है जो यूक्रेन और विश्व समुदाय के बीच युद्ध के ख़तरे को समान रूप से साझा करती है, ताकि ये तय किया जा सके कि युद्ध की थकान हावी हो..(जैसे कि अफगानिस्तान, इराक युद्ध में देखा गया था). यूक्रेन और अमेरिका दोनों वैश्विक दक्षिण की बहुध्रुवीयता में अवसर देखते हैं, क्योंकि “वैश्विक दक्षिण“ स्वयं खुद को इस रूप में पेश कर रहा है. यह देखना बाकी है कि क्या इस नये रणनीतिक घटनाक्रम में किसी को भी पुतिन की भांति साथ योजना बनाने, स्थिति का फायदा उठाने की क़ाबिलियत है या नहीं. साथ ही ये कि कौन इस ऐतिहासिक घटनाक्रम का हिस्सा बनना चाहता है और इसपर कार्रवाई करने का इच्छुक है.
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Kabir Taneja is a Deputy Director and Fellow, Middle East, with the Strategic Studies programme. His research focuses on India’s relations with the Middle East ...
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