Author : Girish Luthra

Published on Mar 01, 2024 Updated 0 Hours ago
भारत और अमेरिका के बीच रक्षा तकनीक और औद्योगिक सहयोग: अब नतीजे देने का वक़्त आ गया है

पिछले दो दशकों में भारत और अमेरिका के रिश्ते ने कई लंबी छलांग लगाई हैं और अब दोनों के संबंध बढ़कर बहुत व्यापक सहयोग में तब्दील हो चुके हैं. इस दौरान, रक्षा और सुरक्षा के मामले में सहयोग ने दोनों देशों के बीच एक व्यापक वैश्विक सामरिक साझेदारी के विकास में अहम योगदान दिया है जिस वजह से दोनों देश कई क्षेत्रों में एक दूसरे से सहयोग कर रहे हैं. वैसे तो कभी-कभार दोनों देशों के बीच मतभेद के कई मसले भी उठे हैं. लेकिन, अब तaक तो इन मतभेदों को दोनों देशों ने बहुत समझदारी और आपसी तालमेल के साथ सुलझाया है. अमेरिका के साथ भारत के रिश्तों को उस वक़्त नई उड़ान मिली, जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने, जून 2023 में अमेरिका की राजकीय यात्रा की. इस दौरे ने दोनों देशों की साझेदारी में और अधिक ऊर्जा और मज़बूती लाने की आकांक्षाओं को और बढ़ा दिया. प्रधानमंत्री मोदी के इस दौरे में रक्षा तकनीक और औद्योगिक सहयोग पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया गया था. ये बात साझा बयान के रक्षा से जुड़े हिस्से में विशेष रूप से रेखांकित की गई थी, जिसे बहुत सही शीर्षक यानी ‘अगली पीढ़ी की रक्षा साझेदारी को ताक़त देना’ दिया गया था.

 अमेरिका के साथ भारत के रिश्तों को उस वक़्त नई उड़ान मिली, जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने, जून 2023 में अमेरिका की राजकीय यात्रा की. इस दौरे ने दोनों देशों की साझेदारी में और अधिक ऊर्जा और मज़बूती लाने की आकांक्षाओं को और बढ़ा दिया.

भारत और अमेरिका के बीच रक्षा और सुरक्षा के सहयोग को मोटे तौर पर तीन मगर आपस में जुड़े वर्गों में विभाजित किया जा सकता है. इनमें क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा एवं विकास के मामलों में सहयोग करना; दोनों देशों के सैन्य बलों के बीच संपर्क को संस्थागत तरीक़े से और बढ़ाना (जैसे कि सैनिक अभियान, सूचना का लेनदेन, प्रशिक्षण अन्य आदान-प्रदान और कार्यक्रम वग़ैरह); और, रक्षा तकनीक और उद्योग के क्षेत्र में सहयोग करना. सहयोग का ये जो तीसरा हिस्सा (तकनीक और उद्योग) है, उस मामले में कोई ख़ास प्रगति नहीं हो सकी है और ये सहयोग अब तक अर्थपूर्ण नतीजे देने में सफल नहीं हुआ है.

 

रक्षा तकनीक सहयोग

 

पिछले एक दशक के दौरान भारत और अमेरिका ने रक्षा तकनीक सहयोग को बढ़ाने के लिए कई प्रयास किए हैं. 2012-14 के बीच अमेरिका और भारत के रक्षा तकनीक औऱ व्यापार पहल (DTTI) की शुरुआत की गई थी. लेकिन, इसके तहत कोई प्रगति न होने की वजह उचित साझा रूप-रेखाओं की ग़ैरमौजूदगी और बुनियादी समझौते पूरे करने में देरी को बताया गया था. इस समस्या से निपटने के लिए प्रयास किए गए और 2015 में अमेरिका एवं भारत के रक्षा संबंधों की रूपरेखा पर दस्तख़त किए गए. इसके अलावा तीन बुनियादी (LEMOA पर 2016, COMCASA पर 2018 में और BECA पर 2020) समझौते भी दोनों देशों ने किए. दोनों देशों के DTTI के संयोजकों को हर साल दो बार मिलना था; DTTI का एजेंसियों के बीच तालमेल की टास्क फोर्स और DTTI औद्योगिक सहयोग मंच भी स्थापित किए गए; सैन्य बलों की अगुवाई वाले चार साझा वर्किंग ग्रुप (ज़मीनी सिस्टम, नौसैनिक सिस्टम, वायुसैनिक सिस्टम और एयरक्राफ्ट कैरियर तकनीकी सहयोग) का भी गठन किया गया. इसके बावजूद, तकनीकी सहयोग में कोई ख़ास प्रगति होते नहीं देखी गई.

 दोनों देशों द्वारा मिलकर तकनीक विकसित करने और आगे चल कर साझा उत्पादन के मॉडल को लेकर, अमेरिका द्वारा चलाई जाने वाली इससे मिलती जुलती सहयोगात्मक परियोजनाओं पर एक नज़र डाल लेना उपयोगी रहेगा.

इस मोर्चे पर तरक़्क़ी में नई जान डालने के लिए मई 2022 में इनिशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज (iCET) का भी ऐलान किया गया, जिसे जनवरी 2023 में लागू भी कर दिया गया. ये तकनीकी सहयोग का एक व्यापक ढांचा है और इसके दायरे में कारोबारी और रक्षा तकनीकें भी आती हैं और ये पहल भारत और अमेरिका के सामरिक व्यापार संवाद से जुड़ी है. 

 

पिछले कुछ महीनों के दौरान, रक्षा तकनीक में सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए संरचनात्मक परिचर्चाओं में काफ़ी प्रगति हुई है. लेकिन अभी भी इनके ठोस नतीजे निकलने का इंतज़ार है. इसमें आने वाली प्रमुख चुनौतियों में अमेरिका के निजी क्षेत्र में रिसर्च और विकास के प्रयासों का तालमेल भारत में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRO) के कामों से बिठाना, अमेरिका में रक्षा तकनीक साझा करने या उस पर मिलकर काम करने को लेकर सख़्त नियमों के होने, बौद्धिक संपदा के अधिकार, तकनीक के मामले में बढ़त बनाए रखने की सामरिक ज़रूरत, उच्च स्तर की तकनीकों पर विशेषाधिकार बनाए रखना और अहम तकनीकों का लाभ उठाने के कारोबारी पहलुओं पर विचार शामिल हैं. मिलकर विकास करने और इस तरह मिलकर उत्पादन करने का प्रस्ताव पहले पहल DTTI की शुरुआती बैठकों में उठाया गया था. ऐसा लगता है कि अब तक तो इस प्रस्ताव को लेकर भारत की तरफ़ से दिखाए गए उत्साह को अमेरिका की तरफ़ से उसी अनुपात में प्रतिक्रिया नहीं मिली है.

 

दोनों देशों द्वारा मिलकर तकनीक विकसित करने और आगे चल कर साझा उत्पादन के मॉडल को लेकर, अमेरिका द्वारा चलाई जाने वाली इससे मिलती जुलती सहयोगात्मक परियोजनाओं पर एक नज़र डाल लेना उपयोगी रहेगा. कई मामलों में अमेरिका के कट्टर साथी भी ऐसा लचीलापन बरक़रार नहीं रख सके हैं, जिसमें वो स्वतंत्र रूप से फ़ैसले ले सकें, बदलाव कर सकें या फिर किसी रक्षा तकनीक के सिस्टम में अपनी ज़रूरतों के हिसाब से बदलाव कर पाएं. डिज़ाइन और डेवलपमेंट के मिले जुले काम की हिस्सेदारी में कुछ अहम कल-पुर्ज़ों और सॉफ्टवेयर के मामले में ‘ब्लैक ब़ॉक्स’ व्यवस्था और सख़्त नियंत्रण से पार नहीं पाया जा सका.

 

ऐसे सहयोगात्मक कार्यक्रमों की राह में कई और चुनौतियां भी आती हैं. लेकिन, भारत और अमेरिका के लिए कुल मिलाकर जो फ़ायदे हैं- वो चाहे भू-राजनीतिक हों, आर्थिक या फिर तकनीकी- वो इन कमियों के ऊपर भारी पड़ सकते हैं. इस मॉडल पर काम आगे बढ़ाना चाहिए और दोनों ही पक्षों की ताक़त का इस्तेमाल करना चाहिए और ऐसे ही दूसरे कार्यक्रमों की कमियों से सबक़ भी लेना चाहिए. कारोबारी और नियामक चुनौतियों से निपटने में तेज़ी दिखानी होगी और 2024-25 में ऐसी कुछ परियोजनाओं की घोषणा की जानी चाहिए. इसके अतिरिक्त अगले दो वर्षों के दौरान रक्षा क्षेत्र में अनुसंधान और विकास (R&D) की कुछ साझा परियोजनाओं शुरू करने की पहल भी की जानी चाहिए.

 

रक्षा क्षेत्र में आविष्कार के क्षेत्र में सहयोग

 

भारत अमेरिका डिफेंस एक्सीलेरेशन इकोसिस्टम (INDUS-X) को जून 2023 में शुरू किया गया था, ताकि रक्षा तकनीक, सिस्टम और उत्पादों के मामले में में आविष्कार के क्षेत्र में तालमेल के प्रयास किए जा सकें. इसने दोनों देशों के राष्ट्रीय रक्षा इकोसिस्टम के आधारों- भारत के इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस (iDEX) और अमेरिका की डिफेंस इनोवेशन यूनिट (DIU) को जोड़ा था. अपनी शुरुआत से अब तक एक सीनियर एडवाइज़री ग्रुप स्थापित किया गया है; INDUS-X म्यूचुअल प्रमोशन ऑफ एडवांस्ड कोलैबोरेटिव टेक्नोलॉजीज (IMPACT) के अंतर्गत, शुरुआत में मिलकर इनोवेशन करने की चुनौतियों (समुद्र के भीतर संवाद, तेल के बिखराव की पड़ताल और एकीकरण के सिस्टम) को लॉन्च किया गया है; डिफेंस इन्वेस्टर स्टार्टअप की बैठकें भी आयोजित की गई हैं; और अकादमिक क्षेत्र और उद्योग के बीच वर्कशॉप भी आयोजित की गई हैं. इसको अमेरिका एवं भारत की बिज़नेस काउंसिल और भारत अमेरिका के स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप फोरम से भी मदद मिली है.

 

रक्षा क्षेत्र में आविष्कार के मामले में मिलकर काम करने के लिए उठाए गए शुरुआती क़दम और प्रयास अच्छे रहे हैं. लेकिन, इनको लागू करने का असली इम्तिहान तो अब शुरू हो रहा है. साझा फंडिंग के सहयोग और कामयाब आविष्कारों से कारोबारी लाभ लेने को योजनाओं का हिस्सा बनाया जाना चाहिए. INDUS-X की परिकल्पना में उस्ताद और शागिर्द का विचार शामिल है, जिसको विस्तार से बताए जाने और फिर सही तरीक़े से बढ़ावा दिए जाने की ज़रूरत है. कई मामलों में डिफेंस स्टार्टअप कंपनियों को दोनों ही देशों के कुछ अहम निर्माताओं से आपस में जोड़ना, आविष्कारों को बड़े मंच पर शामिल करने और सैन्य बलों द्वारा उन्हें प्रभावी ढंग से इस्तेमाल करना महत्वपूर्ण होगा.

 

रक्षा उद्योग में सहयोग

 

दोनों देशों के बीच रक्षा उद्योग में सहयोग में प्रगति अब ‘रोडमैप फॉर यूएस इंडिया डिफेंस इंडस्ट्रियल को-ऑपरेशन’ के अंतर्गत हो रही है, जिस पर जून 2023 में समझौता हुआ था. इस रूप-रेखा में सहयोग के कुछ सिद्धांतों को रेखांकित किया गया था, जिनमें नीतियों में बदलाव लाने, लाइसेंस देने, निर्यात पर नियंत्रण, आपूर्ति की व्यवस्थाओं की सुरक्षा, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और तकनीक के आदान-प्रदान पर काम करने की बात शामिल थी. इस रोडमैप का मक़सद दोनों देशों की सरकारी और निजी कंपनियों के बीच संवाद को बढ़ाना और भारत के रक्षा उद्योग को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं से जोड़ने को बढ़ावा देना भी शामिल है. दोनों पक्षों को सहयोगात्मक परियोजनाओं के प्रस्ताव पेश करने थे, ताकि वो इनोवेशन और सहयोग के अवसरों को बढ़ा सकें.

 एक दशक पहले की तुलना में आज दोनों देशों के इकोसिस्टम तालमेल के लिए कहीं बेहतर स्थिति में हैं, ताकि वो इन व्यवस्थाओं को औद्योगिक सहयोग के नए स्तर तक ले जा सकें.

दो बड़ी परियोजनाओं पर विशेष रूप से ध्यान दिया जा रहा है. पहला, तो जनरल इलेक्ट्रिक (GE) और हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के बीच उस सहमति पत्र (MoU) पर हस्ताक्षर है, जिसके तहत दोनों मिलकर विमानों के लिए GE-414 इंजनों का निर्माण करेंगे. इसके अंतिम सौदे पर आने वाले कुछ महीनों में हस्ताक्षर हो सकते हैं. दूसरा समझौता 31 MQ9B ड्रोन ख़रीदने का है (जिसमें इनके कलपुर्ज़े लाकर भारत में तैयार करना और वैश्विक स्तर पर रखरखाव, मरम्मत और संचालन (MRO) भी शामिल है). इस सौदे के लिए भारत ने लेटर ऑफ रिक्वेस्ट (LOR) जारी कर दिया है और बहुत जल्द लेटर ऑफ ऑफर एंड एक्सेप्टेंस (LOA) भी जारी होने की संभावना है. हालांकि, ये दोनों ही परियोजनाएं इस रोडमैप का सीधा नतीजा नहीं हैं. हालांकि, इनमें इस बात की संभावना ज़रूर है कि वो इस रोडमैप के मक़सदों में योगदान दे सकें.

 

अब भारत की कई रक्षा और अंतरिक्ष क्षेत्र की कंपनियां, डिज़ाइन तैयार करने, कल-पुर्ज़ों के निर्माण और उनकी असेंबली और अपनी वैश्विक ज़रूरतों के मुताबिक़ सिस्टम से जोड़ने के मामले में अमेरिका की बड़ी कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रही हैं. एक दशक पहले की तुलना में आज दोनों देशों के इकोसिस्टम तालमेल के लिए कहीं बेहतर स्थिति में हैं, ताकि वो इन व्यवस्थाओं को औद्योगिक सहयोग के नए स्तर तक ले जा सकें. रक्षा उद्योग में सहयोग की कार्य-योजना अपने आप में कम अवधि के दिशा निर्देश के इरादे से बनाई गई है और इसमें बहुत जल्द संशोधन का समय आने वाला है. इसके साथ साथ 2015 के फ्रेमवर्क फॉर यूएस इंडिया डिफेंस रिलेशनशिप में भी अपडेट किए जाने का प्रस्ताव है. हालांकि, रूप-रेखाओं और परिकल्पनाओं से आगे बढ़कर कार्यक्रम और परियोजनाएं शुरू करने की दिशा में बढ़ने की ज़रूरत है.

 

निष्कर्ष

 

भारत और अमेरिका के बीच रक्षा तकनीक और औद्योगिक सहयोग के लक्ष्य हासिल करने के लिए कई साल और ठोस प्रयासों की मेहनत लगाई गई है. कई मददगार समझौतों, रूप-रेखाओं, संगठनों और कार्य-योजनाओं के ज़रिए एक व्यापक नज़रिए को अंतिम रूप दिया गया है. जून 2023 में भारत के प्रधानमंत्री के अमेरिका दौरे को इन प्रयासों को आगे बढ़ाने की दिशा में एक बड़े क़दम के तौर पर प्रचारित किया गया था. दोनों देशों के रक्षा और विदेश मंत्रियों के बीच 2+2 संवाद समेत तमाम स्तरों पर समीक्षा तो उपयोगी होती है. लेकिन, अब हासिल किए जाने मक़सदों को स्पष्ट रूप से निर्धारित करने और उन्हें हासिल करने को लेकर साझा प्रतिबद्धताओं की ज़रूरत है. मौजूदा वैश्विक चुनौतियों, मतभेद के कुछ क्षेत्रों और दोनों ही पक्षों की मौजूदा और उभरती हुई रक्षा साझेदारियों और आने वाले समय में दोनों देशों में होने वाले चुनावों की वजह से आपसी सहयोग के इस अहम क्षेत्र की रफ़्तार धीमी नहीं होनी चाहिए. तमाम रूप-रेखाओं और कोर ग्रुप से आगे बढ़कर वादों को हक़ीक़त में तब्दील करने के लिहाज़ से आने वाले कुछ वर्ष बेहद अहम होने वाले हैं. ऐसे में नतीजे देने का सबसे अहम दौर जल्दी ही शुरू होना चाहिए.

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