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हैती अभी भी हिंसा के ज़हरीले और अंतहीन दुष्चक्र में फंसा हुआ है और राजधानी पोर्ट-ओ-प्रिंस में हर रोज़ गोलियों की गूंज सुनाई देती रहती है. हैती काफ़ी लंबी वक़्त से राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता से जूझ रहा है. लेकिन, हिंसक वारदातों में हाल में जो उछाल आया है, उसने हिंसा के आदी हो चुके लोगों को भी सदमे में डाल दिया है. अभी ग्रैन ग्रिफ गैंग ने पोंट सॉन्ड में 115 लोगों को जान से मार दिया, जिनमें बच्चे भी शामिल थे. ये हालिया इतिहास के सबसे भयानक हत्याकांडों में से एक था. ग्रैन ग्रिफ गिरोह, हैती के तमाम बेलगाम हथियारबंद गिरोहों में से महज़ एक है. ये गिरोह जनता पर ज़ुल्म ढाने के लिए वसूली, सामूहिक बलात्कार और अपहरण की वारदातों को हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं.
अभी ग्रैन ग्रिफ गैंग ने पोंट सॉन्ड में 115 लोगों को जान से मार दिया, जिनमें बच्चे भी शामिल थे. ये हालिया इतिहास के सबसे भयानक हत्याकांडों में से एक था.
चूंकि, हैती की राजधानी पोर्ट-ओ-प्रिंस के अस्सी प्रतिशत हिस्से पर इन गिरोहों का ही क़ब्ज़ा है. ऐसे में देश की आम जनता, हमेशा ही उथल पुथल, डर और ख़ून-ख़राबे के तबाही वाले असर को झेलते हुए जीने को मजबूर है. इस समय हैती के लोग पश्चिमी गोलार्ध में मानवता और खाद्य के सबसे भयानक संकट से जूझ रहे हैं. हैती की पुलिस या यहां की अंतरिम सरकारों ने अपनी ओर से इन चुनौतियों से निपटने की कोशिशें की हैं. लेकिन, भयंकर भ्रष्टाचार, सीमित संसाधनों और ताक़तवर गिरोहों पर बेहद कम असर होने की वजह से शांति की कोशिशें बहुत सफल नहीं हो सकी हैं. हैती में गिरोहों की हिंसा अब अराजकता से कहीं आगे बढ़ चुकी है, और आरोप है कि इन गिरोहों को सरकार के सदस्य और इसके अलग अलग गुट भी बढ़ावा देते हैं. इसके अलावा निजी हितों के चलते भी इन हथियारबंद गिरोहों को पैसे और हथियार मिलते रहते हैं. इसी साल की शुरुआत में देश के 200 गिरोहों में से एक कर्ज़े बरिये के नेता ने अमेरिकी दूतावास के बाहर सीएनएन को दिए एक इंटरव्यू में खुलेआम हथियार लहराते हुए अपने दबदबे का प्रदर्शन किया था, जिससे पता चलता है कि कूटनीतिक ठिकानों के बाहर भी ये गिरोह सक्रिय हैं. लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई क्षेत्र (LAC) के अन्य देशों की तरह हैती में भी, भ्रष्टाचार की वजह सरकार की ताक़त कमज़ोर हो गई है, जिसकी वजह से नॉन स्टेट एक्टर, सीमा पर कम चौकसी होने का लाभ उठाकर जनता पर ज़ुल्म ढाते हुए ख़ूब फल फूल रहे हैं. ये हालात, कोलंबिया और मेक्सिको से काफ़ी मिलते जुलते हैं, जहां हुकूमत और ड्रग कार्टेल के बीच आपसी फ़ायदे वाले रिश्ते देखने को मिलते हैं.
हैती में बढ़ती हिंसा ने दुनिया का ध्यान भी आकर्षित किया है, जिसकी वजह से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के समर्थन से कीनिया की अगुवाई में बहुराष्ट्रीय सुरक्षा सहयोग मिशन (MSSM) को तैनात किया गया है. मूल रूप से इसका मक़सद, स्थानीय सुरक्षा बलों को सहयोग देना था. लेकिन, फंड की कमी और पर्याप्त सुरक्षाकर्मी न होने की वजह से संयुक्त राष्ट्र लगातार मदद बढ़ाने की अपील करता रहा है. अमेरिका ने अन्य देशों के साथ सहयोग करते हुए हैती को मानवीय सहायता की मद में 30 करोड़ डॉलर देने का वादा किया है.
हैती की दुविधा: कैरेबियाई पड़ोसी बनाम ‘अमेरिकन ड्रीम’
हैती अस्थिरता का पास पड़ोस के इलाक़ों पर बहुत व्यापक असर हुआ है. हिंसा से बचने के लिए हैती के लगभग सात लाख नागरिकों ने अपना देश छोड़ दूसरे देशों में पनाह ले रखी है. इन अप्रवासियों की सबसे ज़्यादा संख्या यानी सबसे ज़्यादा लगभग पांच लाख हैतीवासी डोमिनिकन रिपब्लिक में रह रहे हैं. भौगोलिक रूप से नज़दीक होने के बावजूद डोमिनिकन गणराज्य की सरकार ने एलान किया है कि वो हर साल दस हज़ार अप्रवासियों को अपने यहां से निकालेगी. 2023 में डोमिनिकन गणराज्य ने लगभग ढाई लाख शरणार्थियों को पहले ही अपने यहां से निकाल दिया था. बड़े पैमाने पर निष्कासित किए जाने और कोई और ठिकाना न होने की वजह से हैती के इन निवासियों को हिंसा और अराजकता के उसी माहौल में वापस जाना पड़ता है, जिससे बचने के लिए उन्होंने अपना देश छोड़ा था.
‘अमेरिकन ड्रीम’ की वजह से हैती के हज़ारों अप्रवासी मेक्सिको और मध्य अमेरिका से होते हुए बहुत मुश्किल सफ़र करके अमेरिका की दक्षिणी सीमा तक पहुंचते हैं. हैती के लोग बरसों से अमेरिका में पनाह लेते रहे हैं.
वहीं दूसरी तरफ़ ‘अमेरिकन ड्रीम’ की वजह से हैती के हज़ारों अप्रवासी मेक्सिको और मध्य अमेरिका से होते हुए बहुत मुश्किल सफ़र करके अमेरिका की दक्षिणी सीमा तक पहुंचते हैं. हैती के लोग बरसों से अमेरिका में पनाह लेते रहे हैं. इसी वजह से इस चुनाव के दौरान एक बार फिर से हैती के अप्रवासी, राजनीतिक परिचर्चा का केंद्रबिंदु बन गए थे. पिछले कुछ वर्षों के दौरान हैती के अप्रवासियों ने फ्लोरिडा और ख़ास तौर से ओहायो के स्प्रिंगफील्ड में अपने समुदाय स्थापित कर लिए हैं. इसकी बड़ी वजह रहन सहन का कम ख़र्च और औद्योगिक रोज़गार के मौक़ों में बढ़ोत्तरी हैं.
हैती दुनिया का पहला अश्वेत गणराज्य था. वो लंबे समय से नस्लवाद के शिकार होते आए हैं, और ये नस्लवाद पूरे लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई क्षेत्र में रह रहे हैतीवासियों की ज़िंदगी की तल्ख़ सच्चाई बन चुकी है. अमेरिका में भी हैती के अप्रवासियों को इन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और ट्रंप ने तो एक रैली में ये दावा किया था कि हैती के अप्रवासी स्प्रिंगफील्ड के निवासियों के पालतू जानवर खा जाते हैं. आज की ऑनलाइन दुनिया में डॉनल्ड ट्रंप के इस इल्ज़ाम ने न सिर्फ़ हैती के अप्रवासियों के ख़िलाफ़ जज़्बात भड़काए बल्कि, इसका असर स्प्रिंगफील्ड में रह रहे तमाम निवासियों पर भी पड़ा.
अमेरिका की दुविधा: सुविधा बनाम समझदारी से सहयोग
अमेरिका अक्सर हैती को मदद देने और उसे एक भू-राजनीतिक मसले की तरह देखने और इसे एक मानवीय संकट समझने की दुविधा के बीच झूलता रहा है. बाइडेन प्रशासन ने बार बार हैती की मुसीबत की मारी जनता के लिए वित्तीय मदद का वादा किया है. लेकिन, नीतिगत उपाय उन समस्याओं का समाधान कर पाने में नाकाम रहे हैं, जो इनकी जड़ हैं. यानी ग़रीबी, भ्रष्टाचार और गिरोहों की हिंसा. बाइडेन प्रशासन की इस बात के लिए भी आलोचना की जाती रही है कि वो मानवीय प्रतिबद्धताओं और विपक्ष द्वारा अवैध अप्रवासियों की समस्या पर क़ाबू पाने के दबाव के बीच संतुलन बनाता रहा है. चूंकि हैती के अप्रवासियों को अस्थायी रूप से संरक्षित का दर्जा (TPS), शरण, या फिर मानवीय आधार पर परोल का दर्जा दिया गया है. इस वजह से ओहायो के स्प्रिंगफील्ड में हैती के लगभग पंद्रह हज़ार अप्रवासी रह रहे हैं. आज जब हैती के और लोग सुरक्षा की तलाश में अमेरिका का रुख़ कर रहे हैं, तो उनकी रिहाइश, नौकरियों और दूसरी स्थानीय सेवाओं को लेकर चुनौतियां शायद इन समुदायों पर सीधा असर डालें.
इसके अलावा, वैसे तो अमेरिका हमेशा मुसीबत के वक़्त हैती को वित्तीय सहायता दी है. लेकिन, बाइडेन प्रशासन कीनिया की अगुवाई वाली बहुराष्ट्रीय सेना के लिए अपने सैनिक भेजने से लगातार इनकार करता रहा है. बाइडेन इस इनकार के पीछे, अमेरिका के दूसरे देशों में दखल देने के इतिहास का हवाला देते हैं कि लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई क्षेत्र में अमेरिकी दख़लंदाज़ी को न जाने किस रूप में लिया जाए. आज जब अमेरिका में दोनों दलों के बीच टकराव बढ़ रहा है, तो इस बात पर विवाद बढ़ता जा रहा है कि आख़िर अमेरिका को अप्रवासियों की समस्या से कैसे निपटना चाहिए. डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसद आम तौर पर मानवीय सहायता पर केंद्रित नज़रिए का समर्थन करते हैं जिसके तहत शरण चाहने वाले हैती के नागरिकों को अमेरिका में पनाह दी जाती है. लेकिन, अब अमेरिका के तमाम रूढ़िवादी नेता आंतरिक सुरक्षा और अप्रवासियों की आमद पर नियंत्रण की वकालत करने लगे हैं. इसके बावजूद, अमेरिका और हैती के रिश्तों में दांव पर बहुत कुछ लगा हुआ है. क्योंकि, अगर अमेरिका कुछ नहीं करता और हैती बिखर जाता है, तो इससे अमेरिका जाने वाले अप्रवासियों की संख्या और बढ़ेगी.
हैती के अप्रवासियों में पहले ही इस बात का ख़ौफ़ है कि ट्रंप ने ओहायो के स्प्रिंगफील्ड में अपने प्रचार अभियान में उन्हें जिस तरह निशाना बनाया था, उसी तरह वो सत्ता में आकर उनके पीछे पड़ जाएंगे. हैती के अप्रवासियों को डर है कि ट्रंप उनके अस्थायी निवास के दर्जे को ख़त्म कर देंगे.
बरसों तक हैती के साथ अपनी सुविधा के मुताबिक़ संबंध रखने वाले अमेरिका को अब ये फ़ैसला करना होगा कि वो अपने आधे अधूरे क़दम जारी रखे या फिर हैती के साथ सोच समझकर बात करे, ताकि वहां दूरगामी स्थिरता और एकीकरण स्थापित किया जा सके. ट्रंप की आगामी सरकार के सत्ता संभालते ही अमेरिका नेताओं को एक बड़े सवाल का सामना करना होगा: अपने तट से महज़ 700 मील दूर एक मानवीय संकट से नई अमेरिकी सरकार किस तरह से निपटेगी. हैती के अप्रवासियों में पहले ही इस बात का ख़ौफ़ है कि ट्रंप ने ओहायो के स्प्रिंगफील्ड में अपने प्रचार अभियान में उन्हें जिस तरह निशाना बनाया था, उसी तरह वो सत्ता में आकर उनके पीछे पड़ जाएंगे. हैती के अप्रवासियों को डर है कि ट्रंप उनके अस्थायी निवास के दर्जे को ख़त्म कर देंगे. इस वजह से बहुत से लोग पहले ही अमेरिका छोड़कर भाग रहे हैं. एक अहम फ़ैसला ये होगा कि ट्रंप, संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में अमेरिका की मदद से चल रहे सुरक्षा के मिशन को जारी रखेंगे या नहीं. हैती और मध्य अमेरिका के दूसरे देशों से अवैध अप्रवासियों को रोकने के लिए ट्रंप को दो तरीक़े अपनाने होंगे. वैसे तो ट्रंप की कोशिश होगी कि वो सिर्फ़ अप्रवासियों को देश से बाहर निकाले जैसे क़दम उठाकर घरेलू स्तर पर इस समस्या से निपटें. लेकिन, संयुक्त राष्ट्र की निगरानी वाले सुरक्षा के ढांचे को समर्थन देने जैसे अंतरराष्ट्रीय क़दमों के बग़ैर अवैध अप्रवास को रोक पाना मुश्किल होगा. ट्रंप प्रशासन के ये बाहरी क़दम, उन अन्य अहम देशों के साथ अमेरिका के संबंधों की वजह से और जटिल हो जाएंगे, जिन पर ट्रंप के दूसरे कार्यकाल का प्रभाव होगा. ख़ास तौर से वो देश जो अमेरिका की दक्षिणी सीमा तक जाने वाले अप्रवासियों के रास्ते में पड़ते हैं.
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