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यह लेख “सागरमंथन एडिट 2024” निबंध श्रृंखला का हिस्सा है.
7 अक्टूबर 2023 को हमास ने इज़रायल के ख़िलाफ़ "अल अक़्सा स्टॉर्म" ऑपरेशन शुरू किया. इसके बाद दोनों तरफ से जवाबी सैन्य कार्रवाई का सिलसिला शुरू हो गया. लेबनान के हिज़्बुल्लाह और यमन के मिलिशिया (हथियारबंद लड़ाके) जैसे ईरान के समर्थित संगठन भी इस युद्ध में शामिल हो गए जिसकी वजह से संघर्ष और तेज़ हो गया. बढ़ते क्षेत्रीय तनाव और इज़रायल एवं ईरान- दोनों की सीधी भागीदारी के साथ पूरे मध्य पूर्व में अस्थिरता बढ़ गई है. ये संघर्ष क्षेत्र में आर्थिक कॉरिडोर के भविष्य को भी प्रभावित करेगा जिसमें भारत निवेश कर रहा है.
इस संदर्भ में दो महत्वपूर्ण गलियारों- अंतरराष्ट्रीय मामले उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC) और भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर (IMEC)- का भविष्य दांव पर है. यूरेशिया में एक बढ़ती ताकत के रूप में उभरते हुए भारत ने दोनों गलियारों की पहल की. INSTC का लक्ष्य ईरान के रास्ते भारत को मध्य एशिया और रूस के साथ जोड़ना है जबकि IMEC का उद्देश्य फारस की खाड़ी के देशों और इज़रायल के रास्ते भारत और यूरोप को जोड़ना है. इस तरह मध्य पूर्व में स्थिरता भारत के हितों के साथ मेल खाती है. स्थिरता हासिल करने के लिए भारत संघर्ष में शामिल पक्षों के बीच युद्धविराम शुरू करने के लिए अपने आर्थिक असर का लाभ उठा सकता है.
ईरान के चाबाहार बंदरगाह को INSTC परियोजना में जोड़ने के लिए भारत इस बंदरगाह में निवेश कर रहा है. स्वेज़ नहर तक एक वैकल्पिक और छोटे रास्ते के रूप में INSTC का लक्ष्य न केवल यूरेशिया में व्यापार की सुविधा और कनेक्टिविटी को आसान बनाना है बल्कि अमेरिका के आर्थिक प्रतिबंधों से पार पाना भी है.
रूस को मध्य एशिया, दक्षिण कॉकेशस और ईरान के रास्ते हिंद महासागर के साथ जोड़ने के लिए साल 2000 में रूस, ईरान और भारत ने INSTC की पहल की थी. विश्लेषकों ने दलील दी थी कि उत्तर-दक्षिण परिवहन संपर्क में सुधार लाने से द्विपक्षीय व्यापार की मात्रा में बढ़ोतरी होगी. इस गलियारे के ज़रिए रूस ईरान और अज़रबैजान को एक-दूसरे के करीब लाते हुए दक्षिण कॉकेशस में अपनी स्थिति मज़बूत करने का लक्ष्य रखता है. ईरान के चाबाहार बंदरगाह को INSTC परियोजना में जोड़ने के लिए भारत इस बंदरगाह में निवेश कर रहा है. स्वेज़ नहर तक एक वैकल्पिक और छोटे रास्ते के रूप में INSTC का लक्ष्य न केवल यूरेशिया में व्यापार की सुविधा और कनेक्टिविटी को आसान बनाना है बल्कि अमेरिका के आर्थिक प्रतिबंधों से पार पाना भी है. भारत का उद्देश्य मध्य एशिया में चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) परियोजना को संतुलित करने के लिए भू-आर्थिक साधन के रूप में INSTC का इस्तेमाल करना भी है. लेकिन ईरान और इज़रायल के बीच तनाव बढ़ने से ये परियोजना खटाई में पड़ सकती है क्योंकि इज़रायल के हवाई हमले का ख़तरा निवेशकों को ईरान में बुनियादी ढांचे से जुड़ी प्रमुख परियोजनाओं में निवेश करने से रोकेगा.
G20 शिखर सम्मेलन
सितंबर 2023 में दिल्ली में आयोजित G20 शिखर सम्मेलन के दौरान IMEC के निर्माण के लिए भारत, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), सऊदी अरब, जॉर्डन, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपियन यूनियन (EU) के बीच समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए गए. अमेरिका के द्वारा समर्थित MoU का लक्ष्य एक ऐसे प्रोजेक्ट को बढ़ावा देना था जो क्षेत्रीय संचार एवं परिवहन नेटवर्क को बढ़ावा देगा, साथ ही हिंद महासागर को फारस की खाड़ी, इज़रायल के बंदरगाहों और यूरोप से जोड़ेगा. कई विश्लेषकों ने IMEC की शुरुआत को मिडिल ईस्ट में चीन की BRI परियोजना के जवाब के रूप में देखा. IMEC का महत्व इस तथ्य में भी निहित है कि ये स्वेज़ नहर से गुज़रने वाले मौजूदा व्यापार रूट से प्रतिस्पर्धा करता है और ये यमन के तट एवं लाल सागर से होकर नहीं जाता है जहां यमन के हूथी उग्रवादियों ने जहाज़ों को निशाना बनाया है. अमेरिका ने इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते असर का मुकाबला करने और इज़रायल एवं अरब देशों, मुख्य रूप से सऊदी अरब, के बीच सुलह कराने के लिए इस परियोजना की शुरुआत की. तुर्किए ने इस परियोजना का विरोध किया क्योंकि ये उसके इलाके से होकर नहीं गुज़रता है. फारस की खाड़ी के अरब देशों ने इस परियोजना को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखा क्योंकि ये इस क्षेत्र में उनके भू-राजनीतिक प्रभाव को अधिकतम करने के लिए उनके व्यापक आर्थिक नज़रिए से मेल खाता है. इज़रायल ने भी इस पहल का स्वागत किया. संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 79वें सत्र के दौरान इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस कॉरिडोर को क्षेत्र के लिए "वरदान" बताया. उन्होंने इस बात का भी ज़िक्र किया कि ये परियोजना "नया मिडिल ईस्ट" बनाने की दिशा में रास्ता तैयार करेगी जो शांति और स्थिरता लेकर आएगी. हालांकि मौजूदा युद्ध की वजह से इस प्रोजेक्ट में देरी हुई है.
INSTC और IMEC- दोनों भारत के लिए भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक महत्व रखते हैं. मिडिल ईस्ट में बढ़ती अस्थिरता भारत के हित में नहीं है. अगर हालात और ज़्यादा ख़राब होते हैं तो भारत ख़ुद को अलग-थलग पाएगा क्योंकि रूस और यूरोप के साथ उसके व्यापार को यूक्रेन में जारी युद्ध की वजह से ख़तरा है. इसके अलावा इज़रायल और ईरान के बीच सीधी लड़ाई फारस की खाड़ी को अस्थिर करेगी और इससे तेल की कीमत में बढ़ोतरी होगी. ऐसा होने पर भारत मुश्किल स्थिति में होगा क्योंकि भारत दुनिया में कच्चे तेल का पांचवां सबसे बड़ा आयातक है.
संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 79वें सत्र के दौरान इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस कॉरिडोर को क्षेत्र के लिए "वरदान" बताया. उन्होंने इस बात का भी ज़िक्र किया कि ये परियोजना "नया मिडिल ईस्ट" बनाने की दिशा में रास्ता तैयार करेगी जो शांति और स्थिरता लेकर आएगी.
इस हालात को रोकने के उद्देश्य से भारत मिडिल ईस्ट में तनाव को कम करने के लिए इज़रायल और ईरान- दोनों के साथ अपने आर्थिक संबंधों का लाभ उठा सकता है और INSTC एवं IMEC परियोजनाओं को आगे बढ़ा सकता है. ईरान (आर्थिक संबंध) और इज़रायल (आर्थिक एवं सुरक्षा संबंध) के साथ तटस्थ संबंध रखते हुए संभावित सत्ता के खालीपन और अफ़ग़ानिस्तान एवं कश्मीर में बढ़ते धार्मिक कट्टरपंथ को लेकर चिंतित होने के कारण भारत इस क्षेत्र में एक विश्वसनीय मध्यस्थ के रूप में उभर सकता है. क्षेत्रीय व्यवस्था को नया रूप देने में अमेरिका की अनिच्छा या असमर्थता के कारण भारत जैसे दूसरे यूरेशियाई किरदार, जिनकी इस क्षेत्र में कोई विस्तारवादी महत्वाकांक्षा नहीं हैं, एक सेतु की भूमिका निभा सकते हैं जो युद्ध में शामिल पक्षों के बीच परोक्ष बातचीत और कूटनीतिक मंच तैयार करने में मदद करेंगे.
येघिया ताशजियान अमेरिकन यूनिवर्सिटी ऑफ बेरूत के इस्साम फारेस इंस्टीट्यूट फॉर पब्लिक पॉलिसी एंड इंटरनेशनल अफेयर्स में रीजनल और इंटरनेशनल अफेयर्स के क्लस्टर कोऑर्डिनेटर हैं.
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