Author : Kabir Taneja

Expert Speak Raisina Debates
Published on Dec 11, 2024 Updated 0 Hours ago

यदि क्षेत्रीय समस्याओं का क्षेत्रीय हल नहीं निकाला गया तो असद की सीरियाई सरकार के पतन और मध्य पूर्व में हो रहे व्यापक बदलाव का दूरगामी और उथल पुथल वाला असर होगा. 

असद की सत्ता का अंत: सीरिया के भविष्य की नई जंग और भू-राजनीतिक हलचल

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लंबे वक़्त से शीत निद्रा में पड़े सीरियाई गृह युद्ध ने धमाकेदार वापसी की है. लम्बे समय से सत्ता संभाल रहीं बशर अल असद की सरकार गैर नाटकीय अंदाज में ढह गई है. इसके साथ ही सीरिया पर असद परिवार का साठ वर्षों से चला आ रहा राज भी ख़त्म हो गया है. असद परिवार की अरब सोशलिस्ट बाथ पार्टी ने 1963 में सैन्य तख्तापलट के बाद सत्ता संभाली थी. इन दोनों का ही दौर अब समाप्त हो गया है. 42 वर्षीय अबू मोहम्मद अल-जोलानी के नेतृत्व वाली अल-कायदा की ही एक शाखा हयात तहरीर अल-शाम (HTS) की अगुवाई वाला विद्रोही मिलिशिया का गठबंधन वर्तमान में सीरिया का नेतृत्व कर रहा है. देश के सशस्त्र बलों में या तो बिखराव हो गया है या फिर उन्होंने हथियार डाल दिए हैं. कुछ मामलों में सेना ने सीधे-सीधे पाला बदल लिया है.

42 वर्षीय अबू मोहम्मद अल-जोलानी के नेतृत्व वाली अल-कायदा की ही एक शाखा हयात तहरीर अल-शाम (HTS) की अगुवाई वाला विद्रोही मिलिशिया का गठबंधन वर्तमान में सीरिया का नेतृत्व कर रहा है. देश के सशस्त्र बलों में या तो बिखराव हो गया है या फिर उन्होंने हथियार डाल दिए हैं. कुछ मामलों में सेना ने सीधे-सीधे पाला बदल लिया है.

HTS ने भी अपने स्तर पर एक स्तब्ध कर देने वाला आक्रामक अभियान चलाया है. इसे विडंबना ही कहा जाएगा. सीरियाई संकट विगत एक वर्ष से क्षेत्रीय अस्थिरता का सामना कर रहा था. इसकी शुरुआत अक्टूबर 2023 में इजराइल के ख़िलाफ़ हमास की ओर से किए गए आतंकी हमले के साथ हुई थी. इस हमले की वजह से ग़ाजा, यमन, लेबनान और ईरान में देखे गए भू-राजनीतिक प्रभाव ने भी सीरियाई संकट को प्रभावित किया. सीरियाई युद्ध कभी भी ख़त्म नहीं हुआ था. इस युद्ध को छुपाने, प्रबंधित करने अथवा भुला देने की ही कोशिशें की गई थी. लेकिन क्षेत्रीय स्तर पर यह हमेशा से ही स्थानीय समूहों एवं विदेशी ताकतों के बीच कब्ज़ा जमाने का क्षेत्र बना रहा. यह बात विशेष रूप से अरब देशों जैसे तुर्किए, ईरान, इजराइल, यूनाइटेड स्टेट्‌स (US) और रूस पर लागू होती है. दरअसल, सीरियाई संघर्ष को 2011 से ही तीन मुख़्य रणनीतिक परिदृश्यों के संदर्भ में देखा जा सकता है. इसमें घरेलू, क्षेत्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य शामिल हैं.

घरेलू उथल-पुथल 

पिछले कुछ सप्ताह से सीरिया के अनेक प्रमुख शहरों में HTS और इसके कथित मुखिया जोलानी ने असद की सेनाओं के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल रखा था. पिछले कुछ वर्षों में HTS ने अपना ही एक अधिकार-क्षेत्र यानी अर्ध-राज्य स्थापित करते हुए वहां अपना ही प्रशासनिक ढांचा खड़ा कर लिया था. HTS इस इलाके में कर वसूलता था, राजस्व वसूली करता था और स्वास्थ्य सेवाओं को संचालित करने लगा था. निश्चित रूप से HTS ऐसे मॉडल को अपनाने वाला पहला समूह नहीं था. सोमालिया में अल-शबाब ने भी पिछले कुछ समय से इसी प्रकार की रणनीति अपनाई हुई है. 2021 से अफ़गानिस्तान में तालिबान भी ऐसा ही कर रहा है. वह अफ़गानिस्तान में एकमात्र राजनीतिक शक्ति के रूप में ऐसा करता है. इतना ही नहीं जोलानी ने ख़ुद कहा है कि वह सांप्रदायिक अथवा जातीय संघर्षों को बढ़ावा देने में विश्वास नहीं रखता है. लेकिन साथ ही साथ जोलानी ने यह भी इशारा कर दिया है कि वह एक ‘इस्लामिक सरकार’ की स्थापना की दिशा में आगे बढ़ रहा है. जोलानी ने अपने समर्थकों को सलाह दी है कि वे मौजूदा सार्वजनिक संस्थानों (अस्पताल, स्वास्थ्य सेवा और पुलिस समेत अन्य) को नुक़सान न पहुंचाएं.

पिछले कुछ वर्षों में HTS ने अपना ही एक अधिकार-क्षेत्र यानी अर्ध-राज्य स्थापित करते हुए वहां अपना ही प्रशासनिक ढांचा खड़ा कर लिया था. HTS इस इलाके में कर वसूलता था, राजस्व वसूली करता था और स्वास्थ्य सेवाओं को संचालित करने लगा था.

लेकिन HTS तथा अन्य विद्रोही मिलिशिया जिसमें कुर्दिश-नेतृत्व वाली सीरिया डेमोक्रेटिट फोर्सेस (SDF) भी शामिल हैं, ने सीरिया के शहरों पर मनाए जाने वाले जश्नों का नेतृत्व किया है. इसकी वजह से यह साफ़ हो जाता है कि पूर्व के सरकार की प्रतिगामी व्यवस्था को लेकर दबाव बढ़ रहा है. इसके अलावा ये खबरें भी आ रही हैं कि सशस्त्र बलों ने अपनी तैनाती की जगहों को खाली कर दिया है यानी वे वहां से भाग खड़े हुए हैं. इन खबरों से यह पता चलता है कि रूस ने सीरिया से सशस्त्र बलों के लिए जो सुरक्षा ढांचा खड़ा करने का वादा किया था वह कितना खोखला साबित हुआ है. सशस्त्र बलों के अपनी तैनाती की जगह छोड़ कर चले जाने से सुरक्षा ढांचे का सामरिक, रणनीतिक और नैतिक पतन उजागर हो जाता है. दूसरी ओर HTS अच्छी तरह से तैयार था. उसके पास असद की सरकार में काम कर चुके जनरल और कमांडर्स मौजूद थे, जिनकी सहायता से उसने मिलिट्री अकादमी का उपयोग करते हुए तैयारी की. इसके अलावा उसे हाइब्रिड हथियारों के साथ-साथ आधिकारिक कमांड और कंट्रोल ढांचा मिला हुआ था.

 

अब सीरिया का राजनीतिक भविष्य अधर में है. इसी प्रकार उसकी ख़स्ता आर्थिक हालत और रसातल में चली गई है. यदि HTS सत्ता हासिल करने का दावा करता है तो जोलानी निश्चित रूप से अगला थियोक्रेट यानी धर्माधिकारी बनने की राह पर निकल पड़ेगा. इसके साथ ही पहले से ही जल रहा यह इलाका अस्थिरता के एक नए दौर में प्रवेश कर जाएगा. सीरियाई प्रधानमंत्री मोहम्मद गाजी अल-जलाली ने ख़ुले और निष्पक्ष चुनाव का आवाहन किया है. लेकिन वे इस हकीकत से भी वाकिफ़ है कि उन्हें शहर की चाबी जोलानी को सौंपनी होगी. ऐसे में देश को किस दिशा में आगे बढ़ना है यह रास्ता तय करने में घरेलू स्तर पर मतभिन्नता देखी जाएगी. जोलानी तो ख़ुले और निष्पक्ष चुनाव को स्वीकार करेगा नहीं, लेकिन SDF जैसे अन्य समूहों ने अगर प्रधानमंत्री जलाली की बात का समर्थन किया तो चुनाव करने के विचार को गति मिलेगी. ऐसा हुआ तो क्षेत्रीय और पश्चिमी ताकतों को चुनाव के परिणाम को प्रभावित करने का एक अवसर खुलता दिखाई देगा.

 

क्षेत्रीय परिदृश्य 

गृह युद्ध के आरंभ से ही ईरान ने इसमें एक अहम भूमिका अदा करते हुए यह सुनिश्चित किया है कि डमस्कस और तेहरान के बीच नज़दीकी बनी रहे. पिछले कुछ वर्षों में सीरिया ही ईरान-समर्थित प्रॉक्सीस्‌ यानी प्रातिनिधिक ईकाइयों के लिए शरणस्थली बना हुआ है. यहां से ही ईरान लेबनान में हिजबुल्लाह को हथियारों की आपूर्ति करता था. ईरानी सेना के पूर्व जनरल क़ासिम सुलेमानी को इस व्यवस्था का चीफ आर्किटेक्ट माना जाता है. सुलेमानी को 2020 में बगदाद में US ने एक ड्रोन स्ट्राइक का निशाना बनाकर मार गिराया था.

 

असद भी अपने पड़ोसी देशों के बीच बेहद अलोकप्रिय थे. असद को अपनी सत्ता बचाने के लिए ईरान तथा रूस के समक्ष चापलूसी भरे अंदाज में हाथ जोड़े खड़े रहने वाला माना जाता था. उसका यह पैंतरा समस्या तो था, लेकिन 2023 से वह अरब देशों के पाले में धीरे-धीरे जाने की कोशिश कर रहा था. नवंबर 2011 में सीरिया को अरब लीग से निलंबित कर दिया गया था. उसका निलंबन करने का कारण यह था कि वह प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ होने  वाली हिंसा को रोकने में सफ़ल नहीं हुआ था और वह इसे रोकना भी नहीं चाहता था. असद-विरोधी अभियान को उसके आरंभिक वर्षों में समर्थन देना अरब देशों की मजबूरी थी क्योंकि उसकी सुन्नी अरब बहुसंख्यक आबादी असद परिवार के दशकों पुराने शासन की ख़िलाफ़त कर रही थी. असद परिवार अल्पसंख्यक अलावी जातीय-धार्मिक समूह से आता था. अलावी समुदाय इस्लाम की शिया शाखा के नियमों का पालन करता है.

जोलानी तो ख़ुले और निष्पक्ष चुनाव को स्वीकार करेगा नहीं, लेकिन SDF जैसे अन्य समूहों ने अगर प्रधानमंत्री जलाली की बात का समर्थन किया तो चुनाव करने के विचार को गति मिलेगी. ऐसा हुआ तो क्षेत्रीय और पश्चिमी ताकतों को चुनाव के परिणाम को प्रभावित करने का एक अवसर खुलता दिखाई देगा.

अब असद तो इतिहास के पन्नों का हिस्सा बनने की नियति को पा चुका है. ऐसे में जोलानी के समक्ष एक बड़ी चुनौती है. अपने संबोधनों में HTS का नेता कहता है कि वह ईरान और रूस के हस्तक्षेपों को समाप्त करना चाहता है. उनकी ये बातें अरब देशों और इजराइल दोनों को ही रणनीतिक तौर पर पसंद आएंगी. लेकिन HTS नेता उस विचारधारा का विरोध करता है, जिसका अरब देश तथा इजराइल दोनों समर्थन करते हैं. यही बात एक प्रमुख चुनौती बनी हुई है. अरब ताकतें जैसे संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और सऊदी अरब ने मध्य पूर्व में सक्रिय होकर मुस्लिम ब्रदरहुड और उसके पारिस्थितिकी तंत्र को दबाया है, जबकि इजराइल हमास के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ रहा है. हमास का गठन शेख अहमद यासिन की अगुवाई वाले मजुमा /मुजामा अल-इस्लामिया से जुड़ा हुआ है. मजुमा /मुजामा अल-इस्लामिया भी मुस्लिम ब्रदरहुड से संबंधित चैरिटी संगठन है. यह प्रमुख रूप से ग़ाजा और वेस्ट बैंक में काम करता है. अत: दीर्घावधि/लम्बे समय में सीरिया के प्रमुख के रूप में जोलानी की उम्मीदवारी सभी के लिए सिरदर्द साबित होने वाली है. यह बात अलग है कि सभी के लिए सिरदर्द का कारण अलग-अलग होगा.

 

हालांकि शक्ति संघर्षों के माध्यम से क्षेत्रीय स्तर पर प्रबंधन की कोशिश हो रही है. रूस, तुर्किए तथा ईरान ने हाल ही में कतर में सीरिया में चल रहे घटनाक्रम पर विचार-विमर्श किया था. सीरिया में इन तीनों ही देशों के हित एक-दूसरे के साथ विभिन्न समूहों के माध्यम से जुड़े हुए हैं. उदाहरण के लिए अंकारा ने असद विरोधी संगठनों का गठबंधन सीरियन नेशनल आर्मी का समर्थन करते हुए उसे कुशल बनाया है. पूर्व में इजराइल तथा रूस ने भी एक-दूसरे से संपर्क बनाए रखा है. इसका कारण यह था कि सीरिया में मौजूद ईरान-समर्थित प्रॉक्सी पर इजराइल हवाई हमले कर रहा था. इस इलाके में विभिन्न समूह और हितों की मौजूदगी के कारण कोई भी गलत कदम अनेक लोगों और शक्तियों को प्रभावित करने वाला साबित होगा.

 

वैश्विक प्रभाव

अगर सीरिया पर HTS का शासन आ जाता है तो यह अफ़गानिस्तान के बाद दूसरा देश होगा जहां आतंकवादियों ने सत्ता पर सफ़लतापूर्वक कब्ज़ा किया है. ऐसे में यह दो दशकों से भी ज़्यादा चले आ रहे ‘आतंक के ख़िलाफ़ युद्ध’ के मुंह पर करारा तमाचा ही कहा जाएगा. काबुल पर काबिज़ तालिबान की अंतरिम सरकार में गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी की तरह ही जोलानी के सिर पर भी यूनाइटेड स्टेट्‌स ने (US) 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर का इनाम घोषित कर रखा है. दोनों ने हाल ही में पश्चिमी मीडिया में सत्ता के स्थान से साक्षात्कार भी दिए हैं.

 

अफ़गानिस्तान में तालिबान को मिली जीत की वजह से इस्लामिक समूहों पर पड़े प्रभाव को कम करके नहीं आंका जा सकता. 2021 में HTS के कब्ज़े वाले इदलिब प्रांत में विभिन्न इलाकों में मस्जिदों से प्रार्थनाएं करते हुए तालिबान की जीत पर तालिबान को बधाई दी गई थी. इसी दौरान HTS विचारक अब्द अल-रहीम अतुन्‌ ने “द तालिबान एज ए मॉडल” विषय पर लेक्चर भी दिया था. तालिबान की जीत को अन्य समूहों की आकांक्षाओं के लिए ब्लूप्रिंट के रूप में देखा गया था. अगर US जैसी शक्ति को पराजित किया जा सकता है तो फिर निश्चित रूप से असद जैसों को भी हटाया जा सकता है. ख़ुद तालिबान ने भी HTS को बधाई देकर आगे बढ़ने को लेकर मार्गदर्शन करने का प्रस्ताव दिया है.

 

सत्ता पर असद की पकड़ को बनाए रखने में रूस तथा ईरान की भूमिका को कम करके नहीं आंका जा सकता. 2015 में डमस्कस ने मॉस्को को अपने देश के कथित रूप से इस्लामिक स्टेट (जिसे इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड अश-शम (ISIS) या अरबी में दाएश भी कहा जाता है) के ख़िलाफ़ युद्ध में हस्तक्षेप करने का न्योता दिया था. मॉस्को का समर्थन अस्तित्वपरक था, लेकिन अब यूक्रेन के ख़िलाफ़ युद्ध शुरू होने के बाद इसमें बदलाव आया है. अब रूसी सेना और आर्थिक क्षमताएं यूक्रेन युद्ध में ही अटक गई हैं. रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने यह कहा था कि सीरिया को आतंकी समूहों के हाथों में जाने नहीं दिया जा सकता. लेकिन उन्होंने भी ईरान की तरह ही प्रत्यक्ष रूप में असद को नहीं के बराबर सहायता उपलब्ध करवाई थी. इन सारी बातों के बावजूद रूस का हस्तक्षेप अब भी अहम है. इसका कारण यह है कि वह यहां अपने हवाई तथा नौसैनिक ठिकानों को बनाए रखना चाहेगा. ये ठिकाने टार्टुस और लटाकिया गर्वनेट्‌स यानी प्रांतों में स्थित हैं. ये ठिकाने ही मध्य पूर्व तथा मेडिटेरेनियन में मॉस्को की रणनीतिक मौजूदगी सुनिश्चित करते हैं.

 रूस का हस्तक्षेप अब भी अहम है. इसका कारण यह है कि वह यहां अपने हवाई तथा नौसैनिक ठिकानों को बनाए रखना चाहेगा. ये ठिकाने टार्टुस और लटाकिया गर्वनेट्‌स यानी प्रांतों में स्थित हैं. ये ठिकाने ही मध्य पूर्व तथा मेडिटेरेनियन में मॉस्को की रणनीतिक मौजूदगी सुनिश्चित करते हैं.

ऊपर चर्चा की गई बारिकियों के अलावा जोलानी के अगुवाई वाला सीरिया वैश्विक आतंकवाद विरोधी महत्वाकांक्षाओं के लिए एक और आघात साबित होगा. इस्लामिक आतंकी समूहों को सोमालिया, अफ़गानिस्तान, यमन और अब संभवत: सीरिया में सफ़लता मिली है. ऐसे में ये समूह, विशेषत: अफ्रीकन साहेल में पश्चिमी अफ्रीका में मौजूद अन्य कमजोर देशों पर भी कब्ज़ा करने की कोशिश करेंगे. वैश्विक सुरक्षा संबंधी विफ़लताओं के लिए ये सारी बातें हकीकत बनकर मुंह चिढ़ा रही हैं. यह अमेरिका की सारी दुनिया का पुलिसवाला बनकर काम करने की नीति की विफ़लता भी है. अब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने साफ़ कर दिया है कि US को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. उनके इस बयान से चिंताएं और भी बढ़ गई हैं.

 

निष्कर्ष 

यह सीरिया, यमन हो या फिर ग़ाजा का संकट अथवा लेबनान, अब भविष्य का ‘नया’ मध्य पूर्व ‘पुराने’ मध्य पूर्व से ठीक उलटा है. वर्तमान की घटनाएं औचक नहीं हैं. ये पिछले दशक का परिणाम हैं. इसकी दबी हुई शुरुआत अरब स्प्रिंग दौर में हुई थी. देश की नियति से आगे भी क्षेत्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीति में हो रही उथल-पुथल के लिए ज़िम्मेदारी के साथ क्षेत्रीय समस्याओं का क्षेत्रीय हल नहीं निकाला गया तो इसका व्यापक प्रभाव होगा. मध्य पूर्व का संभावित परमाणुकरण भी अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय है. सीरिया में क्या होगा इसका भविष्य में इस क्षेत्र के बाहर भी असर पड़ेगा. आने वाले महीनों में सीरिया की राजनीतिक हकीकत उजागर हो ही जाएगी.


कबीर तनेजा, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज प्रोग्राम में डेप्युटी डायरेक्टर हैं.

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