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तकनीक से लेकर रक्षा तक, तमाम क्षेत्रों में बढ़ते सहयोग के चलते तकनीक के दो महारथी देशों, भारत और इज़राइल के बीच संभावित साझेदारी के नए अवसर खुल रहे हैं.
इज़राइल के रक्षा मंत्री बेंजामिन गैंट्ज ने हाल ही में अपना भारत दौरा पूरा किया, जिसका लंबे समय से इंतज़ार हो रहा था. इज़राइल के रक्षा मंत्री के भारत दौरे के दौरान, दोनों देशों ने अपने रक्षा सहयोग का दायरा बढ़ाने का फ़ैसला किया है. अब दोनों देश उभरती हुई तकनीकों पर ध्यान केंद्रित करेंगे. बेनी गैंट्ज और भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ‘भारत- इज़राइल रक्षा सहयोग के दृष्टिकोण पत्र’ पर दस्तख़त किए. इसके ज़रिए आने वाले दस वर्षों में आपसी तालमेल के दस नए क्षेत्रों की पहचान करने की व्यापक रूपरेखा तैयार की जाएगी. दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों ने भविष्य की रक्षा तकनीकों में सहयोग को बढ़ाने के ‘लेटर ऑफ़ इंटेंट’ पर भी हस्ताक्षर किए.
इस लेख में हम भारत और इज़राइल के बीच द्विपक्षीय रक्षा संबंध का मोटे तौर पर आकलन करने के साथ साथ दोनों देशों के लिए रक्षा तकनीक के क्षेत्र में सहयोग की राह सुझाएंगे
भारत और इज़राइल के तकनीकी सहयोग पर ध्यान केंद्रित करने की इस पहल से पहले ही दोनों देश रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में काफ़ी सहयोग कर रहे हैं. इसके तहत हथियारों की ख़रीद- फ़रोख़्त, सेनाओं के बीच तालमेल और आतंकवाद से मुक़ाबले में सहयोग शामिल है. इस लेख में हम भारत और इज़राइल के बीच द्विपक्षीय रक्षा संबंध का मोटे तौर पर आकलन करने के साथ साथ दोनों देशों के लिए रक्षा तकनीक के क्षेत्र में सहयोग की राह सुझाएंगे.
1992 में औपचारिक रूप से कूटनीतिक संबंध स्थापित करने के बाद से भारत और इज़राइल ने आपनी रिश्तों की राह में लंबा सफ़र तय किया है. दुश्मन देशों से घिरे होने के चलते, अपने अपने सामने खड़े ख़तरों को लेकर साझा नज़रिया होने के कारण, भारत और इज़राइल ने कई क्षेत्रों में आपसी तालमेल को बढ़ाया है. इसमें दोनों देशों की जनता के बीच व्यापक संपर्क भी शामिल है. इस मज़बूत रिश्ते की बुनियाद रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में साझेदारी बनी है. 1999 के कारगिल युद्ध ने भारत और इज़राइल के बीच रक्षा सहयोग को मज़बूती दी थी, तब इज़राइल उन गिने चुने देशों में शामिल था, जिन्होंने भारत को सीधे तौर पर सैन्य मदद उपलब्ध कराई थी. अहम बात ये है कि भारत और इज़राइल के ये मज़बूत रिश्ते, भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग बढ़ने से पहले की बात है, जिसकी शुरुआत बहुत बाद में हुई थी.
उसके बाद से ही भारत ने अपनी सीमा की सुरक्षा और आतंकवाद से मुक़ाबले के लिए इज़राइल की तकनीक और हथियारों पर ज़्यादा भरोसा दिखाया है. इसके चलते, पिछले एक दशक के दौरान भारत, इज़राइल में बने हथियारों का सबसे बड़ा ग्राहक बन गया है और इस मामले में उसने अमेरिका को भी पीछे छोड़ दिया है, जो पश्चिमी एशिया में इज़राइल का मुख्य सहयोगी है.
इज़राइल के सेंसर, हेरोन ड्रोन, हाथ में पकड़कर चलाए जा सकते वाले थर्मल इमेजिंग के उपकरणों और रात में देखने में मदद करने वाले औज़ारों ने भारत को नियंत्रण रेखा के उस पार से घुसपैठ रोकने और कश्मीर घाटी में आतंकवाद के ख़िलाफ़ अभियानों में काफ़ी मदद दी है.
Figure 1: भारत को इज़राइल के हथियारों के निर्यात के व्यापार का मूल्य सूचकांक (2011-2021, आंकड़े दस लाख डॉलर में)
भारत के हथियार ख़रीदने से इज़राइल के रक्षा उद्योग को हथियारों के एक बड़े बाज़ार तक पहुंच बनाने में काफ़ी मदद मिली है. भारत के रक्षा बाज़ार तक पहुंच, इज़राइल के रक्षा उद्योग के लिए तब और भी अहम हो जाती है, जब हम ये देखते हैं कि चीन की सेना की बढ़ती ताक़त को देखते हुए अमेरिका ने 1990 के आख़िरी वर्षों से लेकर 2000 के दशक के शुरुआती वर्षों में इज़राइल द्वारा चीन को अपने हथियार बेचने को बार बार वीटो कर दिया था.
भारत, इज़राइल से जो हथियार ख़रीदता है, उनमें मानवरहित विमान, मिसाइलें और रडार सिस्टम का दबदबा है. भारत ने अब तक इज़राइल से (2001-2021) 4.2 अरब डॉलर में ये हथियार ख़रीदे हैं (देखें Figure 1 और Table 1).
Figure 2: इज़राइल से भारत द्वारा आयातित हथियार (2001- 2021, आंकड़े दस लाख अमेरिकी डॉलर में)
Tabile 1: भारत द्वारा इज़राइल से ख़रीदे गए अहम रक्षा उपकरण
स्रोत: SIPRI Arms Transfers Database and IISS Military Balance 2022
इसमें कोई शक नहीं कि इन हथियारों ने भारत की निगरानी और अभियान चलाने की क्षमता को काफ़ी मज़बूत बनाया है, ख़ास तौर से कश्मीर घाटी और सीमावर्ती इलाक़ों में. मिसाल के तौर पर, इज़राइल के सेंसर, हेरोन ड्रोन, हाथ में पकड़कर चलाए जा सकते वाले थर्मल इमेजिंग के उपकरणों और रात में देखने में मदद करने वाले औज़ारों ने भारत को नियंत्रण रेखा के उस पार से घुसपैठ रोकने और कश्मीर घाटी में आतंकवाद के ख़िलाफ़ अभियानों में काफ़ी मदद दी है. इसी तरह पिछले साल मार्च में भारत ने इज़राइल के हवाई उद्योग (IAI) से चार हेरोन ड्रोन पट्टे पर लिए थे, ताकि चीन के साथ सीमा पर तनातनी के दौरान, उन्हें वास्तविक नियंत्रण रेखा की व्यापक निगरानी के लिए तैनात किया जा सके.
रक्षा व्यापार से इतर, भारत और इज़राइल, रक्षा तकनीक के क्षेत्र में भी सहयोग बढ़ा रहे हैं. उनकी कामयाबी का प्रतीक, बराक-8 हवाई और मिसाइल डिफेंस सिस्टम है. इसे इज़राइल के एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज़ (IAI) और भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने मिलकर विकसित किया है. बराक-8 डिफेंस सिस्टम के ज़मीन और समुद्र में तैनात किए जाने विकल्प उपलब्ध हैं. ये मिसाइल डिफेंस सिस्टम, सीमा की तरफ़ आ रहे लड़ाकू विमान, ड्रोन, बैलिस्टिक और क्रूज़ मिसाइलों जैसे लक्ष्यों का 150 किलोमीटर दूर से पता लगा सकता है. इसके अलावा IAI इस वक़्त हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के साथ मिलकर सेकेंड हैंड बोईंग-767 नागरिक विमानों को भारतीय वायुसेना के लिए हवा में ईंधन भरने वाले विमानों में तब्दील कर रही है.
बराक-8 हवाई और मिसाइल डिफेंस सिस्टम है. इसे इज़राइल के एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज़ (IAI) और भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने मिलकर विकसित किया है.
बराक-8 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की कामयाबी के बाद भारत और इज़राइल ने रक्षा उद्योग में सहयोग के लिए एक द्विपक्षीय उप-कार्यकारी समूह स्थापित किया है. उम्मीद की जा रही है कि इस समूह के ज़रिए, द्विपक्षीय इज़राइल से और रक्षा तकनीकें भी भारत को हासिल होंगी. दोनों देश आपसी संसाधनों का उपयोग बढ़ाएंगे और अपनी औद्योगिक क्षमताएं साझा करेंगे.
भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय रक्षा उद्योग क्षमताएं विकसित करने की कोशिशों में मदद करते हुए इज़राइली कंपनियों ने भारत के निजी क्षेत्र से कई गठबंधन किए हैं. ये ठीक उसी तरह है, जैसे अमेरिका की कई बड़ी एयरोस्पेस कंपनियों ने किया है. अमेरिकी कंपनियों ने भी भारत के निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ कामयाब कारोबारी गठबंधन कायम किए हैं.
इज़राइल की IAI, एलबिट सिस्टम और राफेल एडवांस डिफेंस सिस्टम कंपनियों ने भारत फ़ोर्ज, टेक महिंद्रा, अडानी समूह और टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स के साथ साझा कंपनियां बनाई हैं, ताकि ख़ास उपकरण और घरेलू सुरक्षा के औज़ार का निर्माण कर सकें. मिसाल के तौर पर IAI की सहयोगी कंपनी ELTA सिस्टम ने टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स के साथ मिलकर हेला सिस्टम्स कंपनी बनाई है जो संचार, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध और अंदरूनी सुरक्षा के उपकरण बनाती है. एल्बिट सिस्टम्स और भारत फ़ोर्ज के बीच एक और साझा प्रयास, BF एल्बिड एडवांस्ड सिस्टम्स के ज़रिए भारतीय सेना को तोप, गाइडेड हथियार और मोर्टार सिस्टम उपलब्ध कराए जाते हैं. ध्यान देने वाली बात ये है कि इज़राइल की कंपनियों ने बड़ी फ़ुर्ती से उन ख़ास तकनीकों की पहचान करके भारतीय कंपनियों के साथ साझेदारियां क़ायम कर ली हैं, जो ख़ुद ऐसे उपकरण बनाने में जुटी हैं. मिसाल के तौर पर बेंगलुरु स्थित टोनबो इमेजिंग, इलेक्ट्रो ऑप्टिक्स तकनीक में महारत रखती है. ये कंपनी लंबे समय से इज़राइल के सटीक निशाना लगाने वाले बमों को लंबे समय से ताक़त देने का काम कर रही है.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि इन कंपनियों के सामने भारत द्वारा रक्षा ख़रीद में की जाने वाली असामान्य देर से पैदा होने वाली अनिश्चितता की चुनौती है. मिसाल के तौर पर 2019 में भारत द्वारा खींचकर ले जाई जाने वाली तोप की ख़रीद प्रक्रिया में एल्बिट सिस्टम को सबसे कम बोली लगाने वाली कंपनी (L-1) घोषित किया गया था. फिर भी, क़ीमतों को लेकर लंबे समय तक चली बातचीत के बाद सरकार ने इस सौदे को ठंडे बस्ते में डाल दिया था और स्वदेशी तोपखाने को तरज़ीह देने का फ़ैसला किया. इसी तरह फाल्कन एयरबॉर्न वार्निंग और कंट्रोल सिस्टम से लैस विमानों की ख़रीद की योजना लंबे समय से अधर में लटकी हुई है.
लेकिन, इन चुनौतियों से आगे बढ़कर भारत और इज़राइल के पास एक असली मौक़ा भी है. भविष्य की उभर रही अहम रक्षा तकनीकों में साझेदारी बढ़ाने का समझौता, एक सही दिशा में उठा क़दम है. चूंकि इज़राइल रिसर्च और विकास पर काफ़ी ज़ोर देता है. ऐसे में दोनों देश, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, ब्लॉकचेन, और रोबोटिक्स के साथ-साथ, एडिटिव मैन्यूफैक्चरिंग और एडवांस्ड बैटरी टेक्नोलॉजी ऐंड पावर स्रोसेज़ जैसी तकनीकों के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ा सकते हैं.
इस साझेदारी की वास्तविक संभावना को हक़ीक़त में तब्दील करने आज ज़रूरत, दोनों देशों के लिए फ़ायदेमंद तकनीकों की पहचान की है. जिसके बाद इज़राइल के रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग (Maf’at) और भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के बीच औपचारिक रूप से सहयोग शुरू हो सके, जिससे दोनों देशों के अपने अपने इकोसिस्टम के बीच तालमेल बेहतर हो सके. इससे तकनीक के महारथी दो लोकतांत्रिक देशों के बीच सहयोग की टिकाऊ राह का निर्माण हो सकेगा.
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Dr Sameer Patil is Director, Centre for Security, Strategy and Technology at the Observer Research Foundation. His work focuses on the intersection of technology and national ...
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