चीन में आख़िर हो क्या रहा है? पिछले अक्टूबर से सीपीसी की अगुवाई वाली सरकार चीनी अर्थव्यवस्था में तेज़ी से विकास करने वाले कुछ चुनिंदा सेक्टरों के ख़िलाफ़ ताबड़तोड़ कार्रवाइयां कर रही है. इनमें टेक्नोलॉजी और शिक्षा समेत उसकी कई विश्वस्तरीय कंपनियां शामिल हैं.
26 जुलाई को सरकार ने इंटरनेट उद्योग को नियमित करने के लिए 6 महीने का विशेष अभियान शुरू करने की घोषणा की. चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक इस अभियान के तहत “बाज़ार व्यवस्था में रुकावटें खड़ी कर सकने वाली समस्याओं, उपभोक्ता अधिकारों को नुकसान पहुंचाने वाले या डेटा सुरक्षा को ख़तरा पहुंचाने वाले कारकों को निशाना बनाया गया है.” हाल ही में विशाल इंटरनेट कंपनी टेंशेंट ने घोषणा की कि उसके लोकप्रिय वीचैट सोशल नेटवर्क ने फ़िलहाल रजिस्ट्रेशन बंद कर दिए हैं ताकि कंपनी “तमाम प्रासंगिक कानूनों और नियमनों के साथ” तालमेल बिठा सके. इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि इसके बाद हॉन्ग कॉन्ग के बाज़ार में इसके शेयर धराशायी हो गए. चीन में विदेशी कंपनियों पर लगाम लगाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले हथकंडे आज डीडी, टेंशेंट, अलीबाबा, मिटुआन जैसी घरेलू कंपनियों के ख़िलाफ़ भी खुल्लमखुल्ला आज़माए जा रहे हैं. ब्लूमबर्ग के मुताबिक, फ़रवरी के बाद से चीन की टेक्नोलॉजी और शिक्षा क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों के स्टॉक्स का घाटा 1 खरब अमेरिकी डॉलर से भी आगे निकल गया है.
हाल ही में विशाल इंटरनेट कंपनी टेंशेंट ने घोषणा की कि उसके लोकप्रिय वीचैट सोशल नेटवर्क ने फ़िलहाल रजिस्ट्रेशन बंद कर दिए हैं ताकि कंपनी “तमाम प्रासंगिक कानूनों और नियमनों के साथ” तालमेल बिठा सके. इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि इसके बाद हॉन्ग कॉन्ग के बाज़ार में इसके शेयर धराशायी हो गए.
पिछले महीने चीन के बाज़ार नियंत्रक ने टेंशेंट को ऑनलाइन म्यूज़िक के क्षेत्र में हासिल एक्सक्लूसिव राइट्स पर रोक लगा दी. इतना ही नहीं कंपनी पर बाज़ार में ग़ैर-मुनासिब हथकंडे अपनाने के चलते जुर्माना भी लगाया गया. 22 जुलाई को चीन के मानव संसाधन और सामाजिक सुरक्षा मंत्रालय और 8 दूसरे विभागों ने “नए रोज़गारों से जुड़े कामगारों” (तथाकथित गिग वर्कर्स) के श्रमिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए दिशानिर्देश जारी किए. इसके तहत फ़ूड डिलिवरी और राइड-हेलिंग कंपनियों को अपने कामगारों को पेंशन, स्वास्थ्य सुविधा, औद्योगिक चोटों से बचाव जैसे सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी सुविधाएं मुहैया कराने के लिए सक्रिय प्रयास करने होंगे.
इन दिशानिर्देशों का पहला निशाना फ़ूड डिलिवरी के क्षेत्र में चीन का सबसे बड़ा प्लैटफ़ॉर्म मिटुआन है. कंपनी को ये सुनिश्चित करने का आदेश दिया गया है कि उसके कामगारों को कम से कम स्थानीय स्तर पर तय न्यूनतम मज़दूरी हासिल हो. हालांकि, इसके अलावा भी इस कंपनी के दूसरे कामकाजों पर सरकारी जांच-पड़ताल जारी है. लिहाज़ा कंपनी के स्टॉक में 50 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है.
अली बाबा के संस्थापक पर कार्रवाई
चीन में निजी क्षेत्र के ख़िलाफ़ इस तरह की कानूनी कार्रवाइयों की शुरुआत पिछले साल अक्टूबर में अलीबाबा के सह-संस्थापक जैक मा से जुड़े मामले के साथ हुई थी. अलीबाबा दुनिया की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों में से एक है. दरअसल, जैक मा ने चीनी नियामकों की आलोचना की थी. इसके बाद दुनिया की सबसे बड़ी फ़िनटेक कंपनी ऐंट ग्रुप के 34 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर के आईपीओ (इनिशियल पब्लिक ऑफ़रिंग) को रद्द कर दिया गया था. इस साल अप्रैल में कंपनी पर 2.8 अरब अमेरिकी डॉलर का जुर्माना भी लगाया गया था. ये कार्रवाई कंपनी द्वारा अपने ई-कॉमर्स मर्चेंट पार्टनरों को सिर्फ़ अपने साथ काम करने के लिए मजबूर करने के चलते की गई. कंपनी पर आरोप लगे कि ऐसे हथकंडे अपनाकर वो जेडी डॉट कॉम या पिनडोउडुओ जैसे प्रतिद्वंदी कंपनियों के साथ अपने ई-कॉमर्स पॉर्टनरों के काम करने पर प्रभावी तौर पर बंदिशें लगा रही है. बहरहाल, ये बात अब-तक साफ़ नहीं है कि अलीबाबा के साथ क्या हो रहा है या फिर जैक मा कहां हैं.
पिछले महीने ऐसी ख़बरें आईं कि चीन के बाज़ार नियामक, राइड-हेलिंग के कारोबार से जुड़ी विशाल कंपनी डीडी पर जुर्माना लगाने पर विचार कर रहे हैं. यूज़र्स के डेटा जुटाने के उसके तौर-तरीक़ों के चलते ऐसी कार्रवाई पर विचार चल रहा है. कंपनी ने चीन के साइबरस्पेस एडिमिनिस्ट्रेशन की आपत्तियों के बावजूद न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज से 4.4 अरब अमेरिकी डॉलर की पूंजी जुटाई थी. अब कंपनी को आशंका है कि उसपर जुर्माना लगाया जा सकता है. हो सकता है कि उसे अलीबाबा को मिली सज़ा से भी कठोर परिणाम भुगतने पड़ें. इससे पहले जुलाई में चीन की साइबरस्पेस एडमिस्ट्रेशन ने ऑनलाइन स्टोर्स को डीडी ऐप मुहैया नहीं कराने का आदेश दिया था. उसका कहना था कि कंपनी अवैध तरीके से यूज़र्स के निजी डेटा जुटा रही है.
अलीबाबा दुनिया की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों में से एक है. दरअसल, जैक मा ने चीनी नियामकों की आलोचना की थी. इसके बाद दुनिया की सबसे बड़ी फ़िनटेक कंपनी ऐंट ग्रुप के 34 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर के आईपीओ (इनिशियल पब्लिक ऑफ़रिंग) को रद्द कर दिया गया था.
इस कड़ी में सबसे नाटकीय कानूनी कार्रवाई चीन में 100 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर का रुतबा रखने वाले निजी शिक्षा उद्योग पर हुई है. इन कार्रवाइयों के चलते इस उद्योग को भारी नुकसान झेलना पड़ा है. ब्लैकरॉक, सेकुऑइया जैसे पश्चिमी निवेशकों के साथ-साथ टेंशेंट जैसे घरेलू निवेशकों को भी अरबों डॉलर की हानि हुई है. चीनी सरकार ने तय किया है कि निजी ट्यूशन का काम अब आगे “लाभ कमाने” वाला धंधा नहीं रहेगा और वो सार्वजनिक बाज़ार से वित्त नहीं जुटा सकते. अधिकारियों का कहना है कि ये ये कार्रवाई छात्रों पर बोझ कम करने के मकसद से की गई है. इन छात्रों को 9 साल तक मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा से गुज़रना होता है. इसमें 6 साल तक प्राथमिक और तीन साल तक मध्य विद्यालय में शिक्षा लेनी होती है.
“नियामक एकाधिकारवाद” का उदय
ऐसा लगता है जैसे हम एक ऐसे युग की शुरुआत होते देख रहे हैं जिसे द इकोनॉमिस्ट ने “नियामक एकाधिकारवाद” की संज्ञा दी है. हालांकि किसी को भी ये पता नहीं है कि ऐसा क्यों हो रहा है. चीन की टॉप फ़ाइव इंटरनेट कंपनियों के बाज़ार मूल्य में अनुमानित तौर पर 153 अरब डॉलर तक की गिरावट आ चुकी है. निश्चित तौर पर कंपनियों को अपने ऊपर लगाए गए जुर्माने के चलते भारी नुकसान होता है. हालांकि, इससे भी बड़ी चोट उन मुद्दों के उठने से पहुंचती है जो इनमें से कई कंपनियों के बिज़नेस मॉडल को ही धराशायी कर सकती है.
इस तरह के कई बदलाव पिछले महीने ही सामने आने शुरू हुए हैं. इनके चलते उन अफ़वाहों को बल मिला है कि अमेरिकी फंड्स चीन और हॉन्ग कॉन्ग की परिसंपत्तियों से अपना निवेश निकाल रहे हैं. नतीजतन जुलाई के दूसरे पखवाड़े में हॉन्ग कॉन्ग के बाज़ार में बड़ी गिरावट देखने को मिली है. निवेशकों का भरोसा साफ़ तौर पर डगमगा रहा है. हो सकता है कि आने वाले समय में चीन के स्टॉक और बॉन्ड मार्केट से विदेशी पूंजी का भारी तादाद में पलायन शुरू हो जाए. इससे चीन में राजनीतिक अस्थिरता का दौर भी शुरू हो सकता है. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को हमेशा से ही ऐसी हालातों का डर सताता रहा है. हालांकि, अभी तो साफ़ तौर पर यही लग रहा है कि चीन को मौजूदा हालात पर काबू पा लेने की अपनी काबिलियत पर भरोसा है. या शायद उसे ये लग रहा है कि उसके पास और कोई विकल्प भी नहीं है.
चीन की टॉप फ़ाइव इंटरनेट कंपनियों के बाज़ार मूल्य में अनुमानित तौर पर 153 अरब डॉलर तक की गिरावट आ चुकी है. निश्चित तौर पर कंपनियों को अपने ऊपर लगाए गए जुर्माने के चलते भारी नुकसान होता है.
सीपीसी की गतिविधियों के पीछे “राजनीति को कमांड” में रखने की माओवादी कहावत ही मुख्य निर्धारक रही है. इसी के पालन के ज़रिए चीनी नागरिकों के जीवन में सीपीसी की भूमिका को मज़बूत बनाया जाता रहा है. पार्टी को लगता है कि वो मार्क्सवादी-लेनिनवादी सिद्धांतों पर काम कर रही है. इसके ज़रिए उसने “एक तरफ़ असंतुलित और अपर्याप्त विकास और दूसरी ओर बेहतर ज़िदगी के लिए लोगों की लगातार बढ़ती ज़रूरतों” के बीच मौजूदा हालात को सबसे प्रधान विरोधाभास माना है. एक स्तर पर यही विचार अनुमानित तौर पर 8.4 करोड़ गिग वर्कर्स का जीवन स्तर सुधारने के लिए उठाए जाने वाले क़दमों के प्रेरक के तौर पर काम कर रहा है. इसी नीति के तहत राज्यसत्ता युवाओं के लिए शैक्षणिक अवसरों की समानता पर बल दे रही है. चीन में एक विश्वास ज़ोर पकड़ रहा है कि निजी क्षेत्र ने असमानता की समस्या को और विकराल बना दिया है और वो चीन के समाजवादी लक्ष्यों को कमज़ोर कर रहा है.
व्यापार पर विचारधारा लागू करने की कोशिश
बहरहाल इन तमाम जद्दोजहद का कहीं बड़ा लक्ष्य है राजनीतिक नियंत्रण. सीपीसी ने 2013 में स्वीकार किया था कि संसाधनों के आवंटन में बाज़ार की निर्णायक भूमिका होती है. इसके बावजूद हम देख रहे हैं कि बाज़ार से जुड़ी ताक़त पर लगातार हमले हो रहे हैं. दरअसल, ये सारी क़वायद इस समझ पर आधारित है कि बाज़ार को बड़ी भूमिका दिए जाने पर आर्थिक तौर पर भले ही दक्षता आए लेकिन इससे सीपीसी की राजनीतिक लगाम ढीली पड़ती है. राष्ट्रपति शी ने सीपीसी के नेता के तौर पर अपने लिए एक ख़ास मुकाम तय कर रखा है. उन्होंने बार-बार चीनी जीवन के हरेक पहलू में पार्टी की ज़्यादा से ज़्यादा भूमिका पर ज़ोर दिया है.
ये सारी क़वायद इस समझ पर आधारित है कि बाज़ार को बड़ी भूमिका दिए जाने पर आर्थिक तौर पर भले ही दक्षता आए लेकिन इससे सीपीसी की राजनीतिक लगाम ढीली पड़ती है. राष्ट्रपति शी ने सीपीसी के नेता के तौर पर अपने लिए एक ख़ास मुकाम तय कर रखा है. उन्होंने बार-बार चीनी जीवन के हरेक पहलू में पार्टी की ज़्यादा से ज़्यादा भूमिका पर ज़ोर दिया है.
चीन नवाचार या नई-नई खोजों के सहारे टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में दुनिया की महाशक्ति बनना चाहता है. तकनीकी कंपनियों पर कानूनी कार्रवाइयों का चीन की इस महत्वाकांक्षा पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है. चीन के जीडीपी में निजी क्षेत्र का योगदान 60 प्रतिशत है जबकि वहां कुल नौकरियों का 80 प्रतिशत हिस्सा निजी क्षेत्र में ही है. तकनीकी क्षेत्र में नई खोजों में निजी क्षेत्र का योगदान 70 प्रतिशत से भी ज़्यादा है. राज्यसत्ता द्वारा बाज़ारीकरण से जुड़े सुधारों को आगे बढ़ाने से इनकार किए जाने का चीनी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर हुआ है. एक आकलन के मुताबिक 2012 में राष्ट्रपति शी के सत्ता में आने के बाद से चीनी अर्थव्यवस्था की कार्यकुशलता में गिरावट आई है. इस कालखंड के दौरान चीन में आर्थिक विकास की एक इकाई हासिल करने के लिए आवश्यक पूंजी की मात्रा करीब-करीब दोगुनी हो गई है.
इन तमाम बदलावों के साथ-साथ निजी क्षेत्र में सीपीसी की मौजूदगी स्थापित करने की कोशिशें भी चल रही है. शी के सत्ता संभालने के बाद से सीपीसी की इकाइयों की मौजूदगी वाली कंपनियों की तादाद तेज़ी से बढ़ी है. इन प्रयासों का मकसद कंपनियों के मालिकों और कर्मचारियों को सीपीसी की विचारधारा के हिसाब से तैयार करना है. चूंकि सीपीसी सत्ताधारी पार्टी है लिहाज़ा स्वाभाविक तौर पर इसका नतीजा ये होता है कि इन क़वायदों से निजी और सरकारी क्षेत्र के बीच का अंतर मद्धिम पड़ने लगता है. बहरहाल, ऐसा लगता है जैसे सौ बातों की एक बात यही है कि राष्ट्रपति शी के मातहत सीपीसी का निजी क्षेत्र पर भरोसा ही नहीं है. वो इसपर लगाम लगाए रखना चाहती है. ऐसा लगता है कि राजकीय योजनाओं और केंद्रीकृत दिशानिर्देशों की मदद से कोविड महामारी पर काबू पाने में चीन की कामयाबी से इस भरोसे को और बल मिला है.
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