Published on Jul 09, 2022 Updated 0 Hours ago

समुद्री क्षेत्र में जागरूकता के महत्त्व को महसूस किया जा रहा है, क्योंकि बंगाल की खाड़ी सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों का सामना कर रही है.

BIMSTEC में सुरक्षा सहयोग का अहम मुद्दा: समुद्री क्षेत्र में जागरूकता की अहमियत!

इसी वर्ष 6 जून को बे ऑफ़ बंगाल मल्टी-सेक्टोरियल टेक्निकल एंड इकोनोमिक कोऑपरेशन (BIMSTEC) ने अपना 25वां स्थापना दिवस मनाया. यह संगठन विशेष तौर पर बंगाल की खाड़ी से जुड़े मुद्दों को संबोधित करने के लिए बना है. पिछले महीनों में बिम्स्टेक काफी सक्रिय रहा है और इसके द्वारा कई महत्त्वपूर्ण कदमों को उठाया गया है, जैसे इसने अपनी पांचवीं शिखर बैठक में पहली बार एक चार्टर को अपनाया और साथ ही बेहतर कार्यक्षमता के लिए सहयोग के अपने 14 सेक्टरों का सात व्यापक क्षेत्रों में पुनर्गठन किया. इन सात क्षेत्रों में से एक ‘सुरक्षा’ है, जिसमें भारत के नेतृत्व में ‘काउंटर-टेररिज्म एवं ट्रांस-नेशनल क्राइम’, ‘आपदा प्रबंधन’ और ‘ऊर्जा’ जैसे पहले के स्वतंत्र क्षेत्र शामिल हैं. हालांकि, किसी भी सुरक्षा तंत्र के काम करने के लिए, उस ख़ास क्षेत्र में चल रही गतिविधियों की जानकारी और समझ की ज़रूरत होती है. ज़ाहिर है कि बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग का प्रमुख केंद्र एक हिसाब से खाड़ी ही है, ऐसे में मैरिटाइम डोमेन अवेयरनेस यानी समुद्री क्षेत्र जागरूकता (एमडीए) बिम्सटेक के लिए आज के समय की मुख्य आवश्यकता है.

पिछले महीनों में बिम्स्टेक काफी सक्रिय रहा है और इसके द्वारा कई महत्त्वपूर्ण कदमों को उठाया गया है, जैसे इसने अपनी पांचवीं शिखर बैठक में पहली बार एक चार्टर को अपनाया और साथ ही बेहतर कार्यक्षमता के लिए सहयोग के अपने 14 सेक्टरों का सात व्यापक क्षेत्रों में पुनर्गठन किया.

अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) के अनुसार, एमडीए का मतलब है “समुद्री पर्यावरण से जुड़ी किसी भी गतिविधि की प्रभावी समझ, जो सुरक्षा, संरक्षा, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण पर असर डाल सकती है.” एक प्रकार से समुद्री क्षेत्र के भीतर होने वाली हर प्रकार की हलचल के बारे में जानकारी, जिसका प्रभाव चाहे किसी भी रूप में पड़ रहा हो. यानी कि “समुद्र,  महासागर या जहाज के परिवहन योग्य जलमार्ग के ऊपर, उनके भीतर, उनसे संबंधित और उनके तटों से जुड़ी हर गतिविधि, जिसमें समुद्र से जुड़े सभी क्रियाकलाप, इन्फ्रास्ट्रक्चर, लोग, कार्गो, जहाज और परिवहन को दूसरे साधन भी शामिल हैं.” भारतीय नौसेना के मुताबिक एमडीए वास्तव में एक सूचना-निर्णय-क्रिया चक्र है. यह किसी भी देश को अपने समुद्री क्षेत्रों में अपनी सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण के लिए उत्पन्न होने वाले ख़तरों या दुष्प्रभावों का आकलन करने की अनुमति देता है. कुल मिलाकर बंगाल की खाड़ी में होने वाली गतिविधियों की जानकारी न सिर्फ बिम्सटेक देशों के लिए ज़रूरी है, बल्कि क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए भी बहुत आवश्यक है.

बंगाल की खाड़ी में चुनौतियां

बंगाल की खाड़ी में सुरक्षा चुनौतियों को अगर बांटा जाए तो एक हैं पारंपरिक ख़तरे, यानी वो चुनौतियां जो देशों की तरफ से होती हैं और दूसरे हैं गैर-पारंपरिक ख़तरे, यानी कि वो जो गैर-राज्य-केंद्रित स्रोतों से उत्पन्न होते हैं. ऊर्जा संसाधनों को लेकर प्रतिस्पर्धा से भरपूर भविष्य के बीच बंगाल की खाड़ी अपने रणनीतिक महत्त्व को लेकर चर्चा में है. उल्लेखनीय है कि बंगाल की खाड़ी एक बहुत की अहम शिपिंग जल मार्ग है और यह उर्जा व्यापार एवं हाइड्रोकार्बन भंडार के लिहाज से बहुत महत्त्वपूर्ण है. पारंपरिक सुरक्षा चिंताओं को बढ़ाते हुए, चीन की ऊर्जा के लिए लालसा ने बंगाल की खाड़ी में उसकी मौज़ूदगी को बढ़ाया है, जिससे यहां के शिपिंग मार्गों के साथ ही निर्बाध नेविगेशन पर आशंका के बादल मंडराने लगे हैं. अन्य हिस्सेदार देश जैसे ही इस एकाधिकार की आशंका का मुकाबला करने और शिपिंग मार्गों की स्वायत्तता को बरक़रार रखने के साथ-साथ अपने हितों की रक्षा करने के लिए एक साथ आते हैं, खाड़ी में जियोपॉलिटकल महात्वाकांक्षाओं और संसाधनों की सुरक्षा की राजनीति आमने-सामने आ जाती है. और यह परिस्थियां बंगाल की खाड़ी को राणनीतिक सहयोग, आपसी स्पर्धा और बड़े संघर्ष का प्रमुख केंद्र बिंदु बना देती हैं.

देखा जाए तो सभी बिम्सटेक देश या तो आतंकवादी हमलों से शिकार हैं या फिर आतंकवाद को पनपने और उसे बढ़ाने की भूमि हैं. आतंकवादियों के नेटवर्क स्वाभाविक तौर पर अंदर से आपस में मनी लॉन्ड्रिंग, नशीली दवाओं और अवैध हथियारों के व्यापार से जुड़े हुए हैं.

बंगाल की खाड़ी में कई गैर-पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियां भी हैं, जो पूरे मामले को और भी जटिल बना रही हैं. इन्हें मानव निर्मित और पर्यावरण से संबंधी चुनौतियों में बांटा जा सकता है. खाड़ी में गैरकानूनी गतिविधियों में आतंकवाद, मादक पदार्थों का व्यापार, समुद्री डकैत, मानव तस्करी एवं अवैध व बिना दस्तावेज़ों के माइग्रेशन शामिल हैं. देखा जाए तो सभी बिम्सटेक देश या तो आतंकवादी हमलों से शिकार हैं या फिर आतंकवाद को पनपने और उसे बढ़ाने की भूमि हैं. आतंकवादियों के नेटवर्क स्वाभाविक तौर पर अंदर से आपस में मनी लॉन्ड्रिंग, नशीली दवाओं और अवैध हथियारों के व्यापार से जुड़े हुए हैं2022 के वैश्विक आतंकवाद सूचकांक के मुताबिक़ सभी बिम्सटेक सदस्य देशों की रैंक 100 के अंदर है. यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान की भूमि भारत के साथ मिलती है, जबकि इंडोनेशिया भारत और थाईलैंड के साथ समुद्री सीमा साझा करता है. जैसा कि ये देश आतंकवादी सूचकांक में शीर्ष रैंक पर हैं, इससे यह स्पष्ट होता है कि इन बिम्सटेक सदस्य देशों में आतंकवादी हमलों की प्रबल आशंका है या ये अतंकी हमलों को लेकर बेहद संवेदनशील हैं. इस बीच, खाड़ी के कुछ क्षेत्रों, जैसे बांग्लादेश के चटगांव बंदरगाह और सुंदरबन मैंग्रोव्स इलाकों में समुद्री डकैती, सशस्त्र डकैती और फिरौती के लिए मछुआरों का अपहरण जैसी घटनाएं होती रहती हैं.

बंगाल की खाड़ी की बात करें तो यहां अवैध, अनियंत्रित और गैर-रिपोर्टेड (IUU) मछली पकड़ना, विशेष रूप से पाक जलडमरूमध्य में एक बढ़ती ही चुनौती है, जो भारत और श्रीलंका के मध्य द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित कर रही है. यह सब अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (ANI) के आसपास भी काफी होता है और खाड़ी के बंगाल तट के साथ, भारत-बांग्लादेश संबंधों में एक बड़ी बाधा है. गैर क़ानूनी माइग्रेशन की समस्या भी एक गंभीर चिंता का मुद्दा है, क्योंकि रोहिंग्या मुसलमान शासन के उत्पीड़न से बचने के लिए म्यांमार से भाग जाते हैं. हालांकि उनमें से कुछ ने बांग्लादेश की सीमा पार की, जबकि अन्य ने खाड़ी के उस पार यात्रा की और घातक बीमारियों के साथ-साथ मानव तस्करी के भी शिकार हुए. इनकी बढ़ी हुई संख्या, विशेष तौर पर महिलाएं और बच्चे, बिम्सटेक देशों के लिए एक तत्काल चिंता का बड़ा मुद्दा है. जहां तक पर्यावरणीय से जुड़ी चिंताओं की बात है तो, बांगाल की खाड़ी अपनी उथलपुथल के लिए बदनाम है. खाड़ी में लगातार आने वाले चक्रवातों और थोड़े-थोड़े दिनों के बाद आने वाली सूनामी की वजह से तटों पर रहने और काम करने वाले लोगों के जीवन पर बुरा असर पड़ा है. वर्ष 1891 से 2018 के मध्य बंगाल की खाड़ी क्षेत्र को 41 बड़े चक्रवाती तूफ़ानों और 21 चक्रवातों का सामना करना पड़ा। अकेले वर्ष 1996 से 2015 तक, खाड़ी के तटवर्ती इलाकों में आपदाओं के कारण 3,17,000 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी.

इन सारी चिंताओं के बावज़ूद  बिम्सटेक का “आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने” का मूलभूत सिद्धांत और इसके सदस्य देशों की व्यापार के लिए चीन पर भारी निर्भरता की वजह से, इसे नेविगेशन की स्वतंत्रता के लिए पारंपरिक सुरक्षा ख़तरे की जानबूझकर अनदेखी करने के लिए मज़बूर करती है. यही वजह है कि यह ‘सुरक्षा’ के अपने दायरे के तहत गैर-पारंपरिक चिंताओं पर ध्यान केंद्रित करता है. चूंकि ये ख़तरे अंतरराष्ट्रीय  हैं, यानी दूसरे देशों से संबंधित हैं, इसलिए उनके समाधान और प्रबंधन के लिए सहयोगात्मक कार्रवाई की आवश्यकता है. अपनी भौगोलिक संरचना के कारण बंगाल की खाड़ी जैसे समुद्री क्षेत्र में इस तरह के सहयोग विशेष रूप से आवश्यक हैं. इसी वजह से खाड़ी के किनारे स्थित देश समीप में स्थित और कभी-कभी तो एक-दूसरे की क्षेत्र में पड़ने वाले विशेष इकोनॉमिक जोन (EEZs) का भी उपयोग करते हैं. इसलिए, खाड़ी का लगभग 80 प्रतिशत इलाका EEZs है, जबकि केवल 20 प्रतिशत क्षेत्र उंची समुद्री लहरों वाला है. समुद्र तटीय क्षेत्रों में इतने अहम EEZs होने के बावज़ूद, इसकी तुलना में तटीय देशों के पास निगरानी की क्षमता बेहद सीमित है. एक बेहतर और सहयोगात्मक एमडीए, जहां निरंतर निगरानी की सुविधा प्रदान करेगा, वहीं मौजूदा ख़तरों और चुनौतियों को पहचानने में सहायता करेगा. इसलिए यह स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि एक समग्र और विस्तृत एमडीए की बेहद ज़रूरत है.

अग्रणी देश का सामर्थ्य और क्षेत्रीय क्षमता

बिम्सटेक के अंतर्गत ‘सुरक्षा’ के लिए अग्रणी देश के रूप में भारत क्षेत्रीय स्तर पर एमडीए को विकसित करने और क्षमतावान बनाने के लिए पूरी तरह से तैयार है. 26/11 को हुए आतंकवादी हमलों के बाद से ही भारत नेशनल मैरिटाइम डोमेन अवेयरनेस जैसी परियोजनाओं के माध्यम से अपनी एमडीए क्षमताओं को विकसित करने की कोशिश कर रहा है. यह सभी समुद्री एजेंसियों, तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक नेटवर्क में जोड़ने का प्रयास है, साथ ही साथ “शिपिंग और मत्स्य पालन जैसे क्षेत्रों के अतिरिक्त डेटा स्रोतों को इंटरफेस” के माध्यम से आंकड़े भी साझा करता है. बंगाल की खाड़ी में एमडीए को विकसित करने में भारत को अंडमान निकोबार द्वीप समूह का भी लाभ मिला है. महत्त्वपूर्ण SLOCs यानी संचार के लिए फैलाए गए समुद्री केबल से बनाए गए चोकप्वाइंट्स की श्रृंखला की वजह से और मलक्का जलडमरूमध्य से इसकी निकटता के कारण अंडमान निकोबार द्वीप समूह (ANI) को विश्व की सबसे रणनीतिक तौर पर स्थित द्वीप श्रृंखलाओं में से एक माना जाता है और जो इस क्षेत्र की निगरानी और सुरक्षा क्षमताओं को बढ़ाने की काबिलियत रखता है.

भारत के बांग्लादेश, म्यांमार और श्रीलंका के साथ द्विपक्षीय व्हाइट शिपिंग समझौते हैं, जो बेहतर सतर्कता और निगरानी के लिए कॉमर्शियल शिपिंग से जुड़ी सूचनाओं के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करते हैं. थाईलैंड के साथ भी भारत का इसी तरह का समझौता है. एक उन्नत नेविगेशन प्रणाली स्थापित करने में भारत, थाईलैंड की मदद भी कर रहा है. इतना ही नहीं भारत रडार और सोनार उपकरणों के साथ उन्नत निगरानी क्षमताओं के लिए म्यांमार की भी सहायता कर रहा है. निगरानी के लिए भारत, श्रीलंका को छोड़कर बाकी सभी बिम्सटेक देशों के साथ समन्वित पहरेदारी में जुटा हुआ है. श्रीलंका के साथ भारत नौसैना अभ्यास करता है. दूसरे बिम्सटेक देशों ने अभी तक इस तरह की कोई पहल नहीं की है. वर्ष 2018 में भारतीय नौसेना ने चुनिंदा देशों के साथ एक सहयोगात्म तंत्र के अंतर्गत शिपिंग ट्रैफिक और महत्त्वपूर्ण विकास पर नज़र रख के लिए क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए इन्फॉर्मेशन फ्यूज़न सेंटर-इंडियन ओसीन रीजन की भी स्थापना की थी. यह जानना दिलचस्प है कि सभी बिम्सटेक देशों के हिंद महासागर क्षेत्र का हिस्सा होने के बावज़ूद सिर्फ म्यांमार ही इस समूह का सदस्य है.

इन सारी चिंताओं के बावज़ूद  बिम्सटेक का “आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने” का मूलभूत सिद्धांत और इसके सदस्य देशों की व्यापार के लिए चीन पर भारी निर्भरता की वजह से, इसे नेविगेशन की स्वतंत्रता के लिए पारंपरिक सुरक्षा ख़तरे की जानबूझकर अनदेखी करने के लिए मज़बूर करती है.

अगर देखा जाए तो बिम्सटेक की संस्थागत निष्क्रियता, कम फंडिंग और इसके सदस्य देशों द्वारा पहलों की कमी के बीच हाल फिलहाल में एमडीए को विकसित करने की आवश्यकता पर कोई चर्चा तक नहीं हुई है. बंगाल की खाड़ी में रणनीतिक हलचलों ने तटवर्ती देशों को अपने हितों की रक्षा के लिए एक-दूसरे के साथ फिर से जुड़ने की वजह दे दी है और इस बहुपक्षीय फोरम ने विशेष रूप से सुरक्षा के मुद्दे पर ध्यान आकर्षित किया है. इसी का परिणाम है कि पिछले एक दशक में बिम्सटेक ने ज़्यादा सक्रियता के साथ कार्य करना शुरू कर दिया है और यह सुरक्षा सहयोग को लेकर समझौतों पर हस्ताक्षर करने से आगे बढ़ने का प्रयास कर रहा है. वर्ष 2014 में बिम्सटेक ने रिसर्च के लिए सेंटर फॉर वेदर एंड क्लाइमेट चेंज की स्थापना की. हाल ही में इसने संयुक्त आपदा प्रबंधन अभ्यास का आयोजन शुरू किया है. इसके साथ ही यह अपने ‘सुरक्षा’ सेक्टर के अंतर्गत कई उप-समूहों का गठन भी कर रहा है, इनमें से हर उप-समूह को विशेष मुद्दे या विषय को देखने के लिए विशेष रूप से बनाया गया है. हालांकि एमडीए का इन उप-समूहों में कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है. यह भी दिलचस्प है कि इनमें से एक उप-समूह ख़ुफिया जानकारी साझा करने को लेकर है, जिसका प्रमुख श्रीलंका है, इसकी अब तक चार बैठकें हो चुकी हैं. सहयोग को और मज़बूत करने के लिए  BIMSTEC इन्फॉर्मेशन शेयरिंग सेंटर के कार्यान्वयन में तेज़ी लाने के लिए यह बिम्सटेक के एजेंडे में भी है. यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि बिम्सटेक के सदस्य देशों को उन ख़तरों के मद्देनज़र, जिन्हें वो संबोधित करना चाहते हैं, एमडीए की महत्ता का एहसास तो है. ज़ाहिर है कि ऐसे में इसे लागू करने के उनके प्रयासों में तेज़ी लाई जानी चाहिए, क्योंकि सूचना के आदान-प्रदान और ख़तरे के आकलन के बुनियादी आधार के बिना सार्थक और प्रभावी सुरक्षा सहयोग आगे नहीं बढ़ सकता है. कुल मिलाकर इस सभी बातों से यह स्पष्ट है कि बंगाल की खाड़ी के प्रमुख चरण के रूप में बिम्सटेक के उद्देश्य और उसके कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए एमडीए बहुत ज़रूरी है, न सिर्फ सुरक्षा के लिहाज से, बल्कि विकास के लिहाज से भी. 

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