तटीय देश होने की वजह से बांग्लादेश और थाईलैंड अपनी आर्थिक समृद्धि के लिए बेहतर और अच्छे रूप से जुड़े बंदरगाहों पर निर्भर हैं. बांग्लादेश बंगाल की खाड़ी के उत्तर में स्थित है, जबकि थाईलैंड उसी के पास के अंडमान सागर के पूर्वी तट पर स्थित है. इसलिए दोनों देशों के पास ये अवसर है कि वो साझा समुद्री क्षेत्र का इस्तेमाल अपने द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने के लिए करें. हाल ही में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना छह दिनों के बैंकॉक दौरे पर गई थीं. उनकी इस यात्रा के दौरान व्यापार बढ़ाने के लिए इस क्षमता का पूरा इस्तेमाल करने के तरीकों पर चर्चा हुई. दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों के बीच बांग्लादेश के चटगांव बंदरगाह से थाईलैंड के रानोंग पोर्ट के बीच सीधी शिपिंग सेवा शुरू करने पर बात की गई. इसे लेकर दोनों देशों के बीच दिसंबर 2021 में एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर दस्तख़त हो चुके थे.
चटगांव बंदरगाह बंगाल की खाड़ी का सबसे व्यस्त पोर्ट है. ये इस क्षेत्र का इकलौता बंदरगाह है, जो लॉयड की दुनिया के 100 सबसे व्यस्त पोर्ट की सूची में शामिल है.
बांग्लादेश के दक्षिणपूर्वी तट पर स्थापित चटगांव पोर्ट देश का सबसे बड़ा बंदरगाह है. बांग्लादेश का 90 प्रतिशत समुद्री व्यापार इसी बंदरगाह की ज़रिए होता है. चटगांव बंदरगाह बंगाल की खाड़ी का सबसे व्यस्त पोर्ट है. ये इस क्षेत्र का इकलौता बंदरगाह है, जो लॉयड की दुनिया के 100 सबसे व्यस्त पोर्ट की सूची में शामिल है. रानोंग पोर्ट अंडमान सागर में थाईलैंड का इकलौता बंदरगाह है, जो इसे बंगाल की खाड़ी से जोड़ता है. थाईलैंड रानोंग पोर्ट को इसलिए विकसित कर रहा है, जिससे वो दूसरे तटीय देशों, खासकर भारत के अंडमान निकोबार द्वीप समूह से सीधे जुड़ सके. अभी अगर बांग्लादेश से थाईलैंड को सामान निर्यात करना है तो ये सिंगापुर, मलेशिया के केलांग बंदरगाह और श्रीलंका के कोलंबो बंदरगाह के माध्यम से भेजा जाता है. इसमें करीब दस दिन लग जाते हैं. ऐसे में अगर चटगांव और रानोंग बंदरगाह के बीचे सीधे शिपिंग सेवा शुरू हो जाती है तो परिवहन में सिर्फ तीन दिन लगेंगे और परिवहन लागत में 30 प्रतिशत की कमी आ जाएगी. स्थानीय निजी कंपनियां इस रूट पर बड़े आकार के और सात मीटर ड्रॉट (समुद्र के जल स्तर के नीचे का जहाज का हिस्सा) वाले कंटेनर शिप का संचालन कर सकती हैं, जिनकी क्षमता दस हज़ार टन या 20 फीट की समकक्ष ईकाई की हो सकती है.
सीधे शिपिंग रूट के फायदे
सीधी शिपिंग सेवा से बांग्लादेश और थाईलैंड के बीच सिर्फ़ व्यापार ही नहीं बल्कि पर्यटन भी बढ़ने की संभावना है. दोनों देश अपना व्यापारिक विनियमन बढ़ाने के इच्छुक हैं. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना इस साल अप्रैल में जब थाईलैंड के दौरे पर गईं थी तब दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर बातचीत के लिए एक आशय पत्र पर हस्ताक्षर हुए थे. मुक्त व्यापार समझौते से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार तो बढ़ेगा ही, साथ ही ये बांग्लादेश को व्यापार घाटे से उबरने में भी मदद कर सकता है, क्योंकि फिलहाल बांग्लादेश से थाईलैंड को निर्यात कम है, जबकि वो आयात ज़्यादा करता है. उदाहरण के लिए बांग्लादेश ने 2022 में थाईलैंड को 83 मिलियन डॉलर का निर्यात किया, जबकि थाईलैंड से उसका आयात 1.17 अरब डॉलर का था.
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना इस साल अप्रैल में जब थाईलैंड के दौरे पर गईं थी तब दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर बातचीत के लिए एक आशय पत्र पर हस्ताक्षर हुए थे.
शुरू में तो इस सीधी शिपिंग सेवा का इस्तेमाल दोनों देशों के बीच व्यापार की सुविधा बढ़ाने में किया जाएगा लेकिन भविष्य में इसे यात्री सेवा के लिए भी खोला जाएगा. इससे पर्यटन क्षेत्र को काफी लाभ मिलेगा, जो दोनों देशों के बीच सहयोग का एक मुख्य क्षेत्र है. बांग्लादेश से हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक थाईलैंड जाते हैं. इसके साथ ही ये स्वास्थ्य पर्यटन का पसंदीदा स्थल है. 2019 में 1,40,000 बांग्लादेशी पर्यटक थाईलैंड गए, इनमें से 4,300 लोग इलाज कराने थाईलैंड गए. थाईलैंड की अर्थव्यवस्था में इसका योगदान करीब 182 मिलियन डॉलर का था. दोनों देश इस क्षेत्र में सहयोग बढ़ाना चाहते हैं. यही वजह है कि शेख हसीना की थाईलैंड यात्रा क दौरान इसे लेकर तीन समझौता ज्ञापनों पर दस्तख़त किए गए. पहला समझौता पर्यटन को लेकर था. दूसरा, आधिकारिक पासपोर्ट रखने वालों को वीज़ा से छूट देने का और तीसरा, कस्टम के मामलों में सहयोग और पारस्परिक सहायता का है. भविष्य में बुद्धा सर्किट को बढ़ावा देने की साझा पहल कर पर्यटन को और बढ़ाया जा सकता है.
रणनीतिक लाभ
व्यापार और लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने के साथ-साथ चटगांव और रानोंग के बीच सीधी शिपिंग सेवा दोनों देशों के लिए रणनीतिक रूप से भी फायदेमंद हो सकती है. थाईलैंड के लिए चटगांव बंदरगाह से सीधे जुड़ाव का मतलब ये हुआ कि वो नेपाल, भूटान और पूर्वोत्तर भारत के साथ अपने व्यापार को सुधार सकता है. दूसरी तरफ बांग्लादेश दक्षिणपूर्व एशिया के साथ अपने संबंध मज़बूत करने के लिए थाईलैंड से मदद की उम्मीद कर रहा है. बांग्लादेश मेकोंग-गंगा सहयोग मंच में शामिल होना चाहता है. इसके साथ ही वो रोहिंग्या मुद्दे के समाधान में मदद के लिए एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस (ASEAN) में क्षेत्रीय साझेदारी का दर्जा भी हासिल करना चाहता है. इस सबके लिए उसे थाइलैंड की मदद चाहिए.
पहले सरकार का विचार दक्षिण थाईलैंड में क्रा इस्तुमस में एक नहर बनाने का था, जहां हाईवे और रेलवे के माध्यम से एक परिवहन गलियारा बनाया जाना था, जो अंडमान सागर को थाईलैंड की खाड़ी से जोड़ता. लेकिन अब उसकी जगह लैंडब्रिज पहल ने ले ली है.
इसके अलावा ये सीधा शिपिंग रूट ‘लैंडब्रिज’ परियोजना के माध्यम से बांग्लादेश को प्रशांत महासागर तक संभावित पहुंच दे सकता है. लैंडब्रिज थाईलैंड के प्रधानमंत्री की एक प्रमुख परियोजना है और रानोंग पोर्ट इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. पहले सरकार का विचार दक्षिण थाईलैंड में क्रा इस्तुमस में एक नहर बनाने का था, जहां हाईवे और रेलवे के माध्यम से एक परिवहन गलियारा बनाया जाना था, जो अंडमान सागर को थाईलैंड की खाड़ी से जोड़ता. लेकिन अब उसकी जगह लैंडब्रिज पहल ने ले ली है. इस कॉरिडोर के बनने का फायदा ये होगा कि हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच सामान और लोगों का आना-जाना आसान होगा. उन्हें भीड़भाड़ वाले और रणनीतिक रूप से संवेदनशील माने जाने वाले मलक्का जलसंधि से होकर नहीं गुज़रना पड़ेगा. अगर लैंडब्रिज परियोजना पूरी हो जाती है तो चटगांव और रानोंग बंदरगाह के बीच सीधी शिपिंग सेवा के अलावा इससे बंगाल की खाड़ी के देशों में व्यापारिक गतिविधियों को भी बढ़ावा मिलेगा. ऐसा इसलिए संभव होगा क्योंकि भारत और बांग्लादेश के बीच पहले ही एक शिपिंग समझौता हो चुका है, जिसके मुताबिक चटगांव बंदरगाह सीधे कोलकाता और चेन्नई पोर्ट के साथ व्यापार करता है. बिम्सटेक ने जो कनेक्टिविटी मास्टर प्लान (2022) बनाया है, उसमें भी इस बात की परिकल्पना की गई है कि थाईलैंड के रानोंग पोर्ट से चेन्नई और कोलंबो बंदरगाह तक सीधी शिपिंग सुविधा होगी.
राजनयिक समस्याएं
हालांकि, इस सीधी शिपिंग सेवा से कई फायदे होंगे लेकिन इस परियोजना के सफल क्रियान्वयन के लिए बांग्लादेश और थाईलैंड को कई संवेदनशील राजनयिक मुद्दों को सुलझाना होगा. सबसे बड़ी समस्या म्यांमार में जारी राजनीतिक अस्थिरता है. म्यांमार के तटीय इलाके रखाइन में जातीय समुदायों और सत्तारूढ़ मिलिट्री जुंटा के बीच संघर्ष चल रहा है. ये इलाका चटगांव और रानोंग के बीच स्थित है. इसी मुद्दे की वजह से बांग्लादेश-थाईलैंड के बीच सीधी शिपिंग सेवा में इतनी देर हुई क्योंकि इस परियोजना को लेकर बातचीत तो 2016 में ही शुरू हो चुकी थी. अगर इस सेवा को शुरू करना है तो म्यांमार की समस्या का कोई राजनयिक हल तलाशना होगा.
कुल मिलाकर बात ये है कि बांग्लादेश का लक्ष्य 2026 तक खुद को कम विकसित देश (LDC) वाले दर्जे से बाहर लाकर 2031 तक मध्यम आय वाला देश बनना है. बांग्लादेश की आर्थिक समृद्धि में समुद्री व्यापार महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा.
दूसरी चुनौती बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में चीन की बढ़ती सक्रियता है. हाल के वर्षों में बांग्लादेश में चीन का निवेश तेज़ी से बढ़ा है. और अगर थाईलैंड की लैंडब्रिज परियोजना को देखें तो ये चीन की मलक्का दुविधा को दूर करने के लिए आदर्श है. फरवरी 2024 में एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट बैंक ने लैंडब्रिज परियोजना को विकसित करने में रुचि दिखाई थी. इस बैंक का मुख्यालय चीन में ही है. चटगांव बंदरगाह को विकसित करने में चीन ने बड़े पैमाने पर निवेश किया है. ऐसे में लैंडब्रिज परियोजना के निर्माण में चीन के सहयोग की कोशिश और चटगांव-रानोंग के बीच सीधी शिपिंग सेवा चीन की बेल्ट एंड रोड (BRI) इनीशिएटिव का एक महत्वपूर्ण घटक हो जाएगी. बांग्लादेश और थाईलैंड भी (BRI) के सदस्य हैं. लेकिन इस क्षेत्र में चीन का प्रभाव बढ़ना भारत और प्रशांत महासागर इलाके के उन देशों को चिंतित करेगा, जो खाड़ी में शक्ति समीकरणों में यथास्थिति बनाए रखना चाहते हैं. अतीत में बांग्लादेश और थाईलैंड के भारत और चीन के साथ मज़बूत संबंध रहे हैं. ऐसे में इस सीधी शिपिंग सेवा शुरू करने की कोशिशों में इन दोनों देशों के राजनयिक कौशल का भी परीक्षण हो जाएगा.
कुल मिलाकर बात ये है कि बांग्लादेश का लक्ष्य 2026 तक खुद को कम विकसित देश (LDC) वाले दर्जे से बाहर लाकर 2031 तक मध्यम आय वाला देश बनना है. बांग्लादेश की आर्थिक समृद्धि में समुद्री व्यापार महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा. जहां तक थाईलैंड के सवाल है तो ये समुद्री मार्ग उसके लिए दक्षिण एशिया के दूसरे देशों के साथ व्यापार का रास्ता बनाएगा. इसके साथ ही वो अपने व्यापार में विविधिता लाएगा, जो फिलहाल काफी हद तक चीन पर निर्भर है. ऐसे में अगर इस समुद्री मार्ग को अपने उच्चतम स्तर पर संचालन करना है तो इसे बंगाल की खाड़ी के क्षेत्रीय व्यापार नेटवर्क की आर्थिक आकांक्षाओं और राजनयिक संवेदनशीलता के बीच संतुलन बनाना होगा.
(सोहिनी बोस ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं)
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.