Author : Sauradeep Bag

Published on Oct 07, 2023 Updated 19 Days ago

यूरोप का बिटकॉइन ETF क्रिप्टोकरेंसी के क्षेत्र में रेगुलेटरी प्रगति का एक उदाहरण पेश करता है. लेकिन डिजिटल एसेट को पारंपरिक वित्तीय सिस्टम में जोड़ना अभी भी एक समस्या बनी हुई है.

क्रिप्टोकरेंसी की बदलती तस्वीर: आदर्श से मुनाफे तक?

वैसे तो अमेरिका के क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (EFT) से जुड़े घटनाक्रम ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है लेकिन यूरोप ने पहला बिटकॉइन ETF लॉन्च करके बाज़ी मार ली है. यूरोप का ETF इस तरह से तैयार है कि संस्थागत निवेशकों की स्थिरता (सस्टेनेबिलिटी) से जुड़ी ज़रूरतों को पूरा करते हुए बिटकॉइन तक पहुंचने का एक स्पष्ट, सुरक्षित और पारदर्शी तरीका पेश करता है. 

बिटकॉइन ETF एक वित्तीय उत्पाद (फाइनेंशियल प्रोडक्ट) है जो बिटकॉइन की कीमत पर नज़र रखता है, निवेशकों को असल में बिना मालिकाना हक के क्रिप्टोकरेंसी तक पहुंच मुहैया कराता है.

बिटकॉइन ETF एक वित्तीय उत्पाद (फाइनेंशियल प्रोडक्ट) है जो बिटकॉइन की कीमत पर नज़र रखता है, निवेशकों को असल में बिना मालिकाना हक के क्रिप्टोकरेंसी तक पहुंच मुहैया कराता है. ये पारंपरिक ETF की तरह ही काम करता है जो कि स्टॉक एक्सचेंज में ट्रेड होने वाले इन्वेस्टमेंट फंड हैं. बिटकॉइन ETF में बिटकॉइन इसका एसेट होता है और ये शेयर जारी करता है जिसे शेयर बाज़ार में शेयर की तरह ख़रीदा-बेचा जा सकता है. क्रिप्टोकरेंसी मार्केट में भागीदार बनने की निवेशकों की इच्छा के कारण बिटकॉइन ETF का उदय हुआ है लेकिन ज़रूरी नहीं है कि उनकी प्राथमिक चिंता डिसेंट्रलाइज़ेशन या ट्रस्टलेस सिस्टम की स्थापना है. इसके बदले ऐसा लगता है कि उनकी दिलचस्पी क्रिप्टोकरेंसी की कीमत में होने वाले महत्वपूर्ण उतार-चढ़ाव का फायदा उठाने में है.  

शुरुआती मंज़ूरी के बाद काफी देरी से लॉन्च यूरोप का बिटकॉइन ETF क्रिप्टोकरेंसी के क्षेत्र में रेगुलेटरी विकास का एक वैश्विक उदाहरण पेश करता है. लेकिन चुनौतियां अभी भी बरकरार हैं क्योंकि रेगुलेटर और वित्तीय संस्थान डिजिटल एसेट को पारंपरिक वित्तीय प्रणाली के साथ जोड़ने की मुश्किलों से जूझ रहे हैं. 

काम-काज के पहलू को समझिए

बिटकॉइन ETF के निवेशक सीधे तौर पर बिटकॉइन नहीं ख़रीदते हैं बल्कि ETF का शेयर लेते हैं जो कि फंड की बिटकॉइन होल्डिंग के मालिकाना हक के बारे में बताता है. ये निवेशकों को इस बात की इजाज़त देता है कि वो सीधे क्रिप्टोकरेंसी को ख़रीदे बिना और उसको सुरक्षित रखने से जुड़ी दिक्कतों की परवाह किए बगैर बिटकॉइन की कीमत के उतार-चढ़ाव को लेकर अटकल लगा सकें. बिटकॉइन ETF को इस तरह पेश किया गया है कि ये निवेशकों के लिए बिटकॉइन में निवेश को आसान बना सके. लेकिन इसको मंज़ूरी और लॉन्च करने में पिछले दिनों मिली कामयाबी के साथ अलग-अलग अधिकार क्षेत्रों में रेगुलेटरी और बाज़ार से जुड़ी चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा है. इस समय अमेरिका के सिक्युरिटीज़ एंड एक्सचेंज कमीशन (SEC) ने बिटकॉइन ETF के लिए हर आवेदन को खारिज कर दिया है. इसके पीछे ये वजह बताई गई है कि आवेदन करने वाले मार्केट के हेर-फेर से निवेशकों को सुरक्षित रखने का सबूत नहीं दे पाए हैं. इसके अलावा, बिटकॉइन की कीमत की बराबरी के लक्ष्य के साथ अलग-अलग ETF की कीमत में फर्क है. सीधे बिटकॉइन रखने से अलग ETF का मालिकाना हक होल्डिंग पर कोई नियंत्रण नहीं देता है जो कि क्रिप्टोकरेंसी की मूलभूत विशेषताओं के विपरीत है. 

दूसरी तरफ बिटकॉइन ETF ख़ास फायदे की पेशकश करता है. ये रिटेल निवेशकों के लिए बेहद आसान सुविधा देता है जो अपने मौजूदा ब्रोकरेज खाते के ज़रिए ख़रीद सकते हैं और इस तरह क्रिप्टो अकाउंट और वॉलेट बनाने की ज़रूरत को ख़त्म करते हैं. इसके अलावा, टैक्स का हिसाब-किताब रखना भी आसान होता है क्योंकि ETF लेन-देन आसानी से टैक्स सॉफ्टवेयर में जुड़ सकता है. भरोसेमंद प्लैटफॉर्म पर ट्रेडिंग को लेकर स्थापित विश्वास का फैक्टर क्रिप्टो को लेकर बदलते हालात के बीच एक सुरक्षा की भावना मुहैया कराता है. 

बिटकॉइन के डिजिटल स्वरूप, असाधारण पोर्टेबिलिटी और ग्लोबल लिक्विडिटी को देखते हुए इसकी हेराफेरी, चोरी और बदइंतज़ामी की ख़ास तौर पर आशंका है. बिटकॉइन की असली ओनरशिप ‘की’ कंट्रोल को ज़रूरी बनाती है.

अमेरिका के SEC के द्वारा बिटकॉइन ETF को संभावित मंज़ूरी बिटकॉइन की कीमत को लेकर सोचने के बारे में संस्थागत निवेशकों (इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स) की क्षमता में सुधार कर सकती है. ये कार्रवाई वास्तव में बिटकॉइन को वॉल स्ट्रीट के दायरे में ला सकती है जहां बिटकॉइन ETF का कारोबार जाने-पहचाने ट्रेडिंग प्लैटफॉर्म के ढांचे के भीतर पहले से स्थापित एसेट्स जैसे कि स्टॉक, बॉन्ड, गोल्ड और ऑयल के साथ किया जाएगा. ये विस्तार वित्तीय परिदृश्य के आपस में जुड़ने को लेकर एक मूलभूत बदलाव का संकेत हो सकता है और उन नये मौकों एवं चुनौतियों की पेशकश करता है जिनके असर को लेकर सावधानी से पड़ताल की ज़रूरत है. 

मामले की जड़

मूल मुद्दा यहां है: लोग जाने-पहचाने वित्तीय तरीकों के ज़रिए क्रिप्टो पर मुनाफ़ा चाहते हैं, अपने पोर्टफोलियो में बिटकॉइन को सुव्यवस्थित ढंग से जोड़ने की इच्छा रखते हैं. लेकिन ये सोच गुमराह करने वाली है. जटिल टेक्नोलॉजी, बहस के लायक आंतरिक वैल्यू और अनियंत्रित अवैध इस्तेमाल की वजह से बिटकॉइन एक सामान्य वित्तीय उत्पाद से काफी अलग है. इन बारीकियों में गए बिना कोई इसके साथ जुड़े जोख़िमों को नहीं समझ सकता है. इस तरह बिटकॉइन को रखना शायद बुद्धिमानी नहीं है. 

क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज चलाने वाले FTX के दिवालिया होने और उसकी वजह से बाज़ार में आई उथल-पुथल के दौरान देखा गया था कि सेंट्रलाइज़्ड एक्सचेंज बिटकॉइन के वादे के साथ भागीदारी की इच्छा रखने वाले रोज़ाना के निवेशकों के लिए नाकाफी साबित हुए हैं. बुनियादी एसेट, जो कि वास्तविक बिटकॉइन हैं, को निकालने की मूलभूत अक्षमता की वजह से बिटकॉइन के साथ जुड़े ETF सेंट्रलाइज़्ड एक्सचेंज की तुलना में ज़्यादा दिक्कत वाले हो सकते हैं. ये कमी होल्डर्स को बिटकॉइन के मुख्य फायदे यानी भरोसा किए बिना अपने एसेट पर पूरी तरह नियंत्रण रखने की क्षमता से दूर रखती है. 

पूरे बाज़ार पर सोच-विचार के लिए और भी व्यापक चिंताएं हैं. “पेपर बिटकॉइन” की सोच, जिसमें बिना वास्तविक समर्थन के बिटकॉइन के दावे शामिल हैं, एक दिलचस्प और विचारोत्तेजक (थॉट प्रोवोकिंग) पहलू पेश करती है. ऐसे एक्सचेंज जिन्होंने इस तरह के दावे किए हैं और फिर उनका नतीजा भुगता है, उनसे हटकर शायद ETF को उस तरह के नतीजों का सामना नहीं करना पड़ सकता है. ये देखते हुए कि बुनियादी एसेट को निकाला नहीं जा सकता है, ऐसे में पेपर बिटकॉइन का निर्माण बिना किसी निगरानी के जारी रह सकता है. अगर निवेश के परिदृश्य में बिटकॉइन ETF का दबदबा हो जाता है तो इस बात का काफी जोखिम है कि बाज़ार में अनगिनत जाली बिटकॉइन यूनिट की बाढ़ आ जाए. इस तरह बिटकॉइन की कीमत पर असर पड़ सकता है. 

सरकार के परस्पर-विरोधी और अस्पष्ट रेगुलेटरी रवैये ने भारत में एक बिटकॉइन ETF की संभावना को अनिश्चित बना दिया, भारतीय शेयर बाज़ारों में इसमें निवेश का कोई सीधा विकल्प मौजूद नहीं है.

बिटकॉइन की ओनरशिप ख़ास बिटकॉइन एड्रेस से संबंधित क्रिप्टोग्राफिक की (कुंजी) के नियंत्रण से जटिल रूप से जुड़ी है. वैसे तो कानूनी तौर पर बिना डायरेक्ट ‘की’ कंट्रोल के बिटकॉइन को रखना संभव है जैसे कि एक एक्सचेंज अकाउंट या ETF शेयर रखना लेकिन बिटकॉइन के इकोसिस्टम में ये एक समझदारी भरा नज़रिया नहीं है. बिटकॉइन के डिजिटल स्वरूप, असाधारण पोर्टेबिलिटी और ग्लोबल लिक्विडिटी को देखते हुए इसकी हेराफेरी, चोरी और बदइंतज़ामी की ख़ास तौर पर आशंका है. बिटकॉइन की असली ओनरशिप ‘की’ कंट्रोल को ज़रूरी बनाती है. 

वैसे तो कुछ लोग शुरुआत में एक बड़े बिटकॉइन ETF की मंज़ूरी, जैसे कि ब्लैकरॉक से एक ETF की मंज़ूरी, के बाद अस्थायी रूप से दाम में तेज़ी की संभावना का स्वागत कर सकते हैं लेकिन इसका बिटकॉइन को अपनाने पर दीर्घकालीन असर, जिसमें इसकी आगे की राह शामिल है, साफ नहीं है. विश्वसनीय ढंग से इसे अपनाना सेल्फ-कस्टडी के इर्द-गिर्द केंद्रित है क्योंकि दूसरा कोई भी तरीका वास्तव में एक फंसने का जाल है. 

बदलती प्राथमिकता? 

क्रिप्टो की दुनिया में मुनाफ़ा एक प्रमुख प्रेरक बन गया है जिसने गुमनामी, वैकल्पिक वित्तीय लेन-देन और डिसेंट्रलाइज़ेशन जैसे मूल विचारों को बदल दिया है जो कि बिटकॉइन और दूसरी क्रिप्टोकरेंसी का मक़सद था. मुनाफ़ा चाहने की तरफ ये बदलाव बुनियादी तौर पर नकारात्मक नहीं है बल्कि ये क्रिप्टोकरेंसी की आंतरिक संभावना में तेज़ विकास को दिखाता है. वैसे तो कुछ शुद्धतावादी डिसेंट्रलाइज़ेशन और सेल्फ-कस्टडी को महत्व देते हैं लेकिन निवेशक मुनाफे को तरजीह देते हैं. क्रिप्टोकरेंसी की पिछले दिनों की राह में दोनों तरह की गुंजाइश है. 

लोगों को जोख़िमों से बचाने में सरकार की एक भूमिका है जो रेगुलेटरी उपायों को ज़रूरी बनाती है. निवेश के एक तरीके के रूप में ETF को जल्द मिलने वाली मंज़ूरी इस उद्योग के मुख्यधारा में आने को रेखांकित करती है जो व्यापक रूप से लोगों की भागीदारी को सक्षम बनाती है. क्रिप्टोकरेंसी का लचीलापन स्पष्ट है, ये लंबे समय तक रहने वाली है. क्रिप्टोकरेंसी इकोसिस्टम का लगातार विस्तार इसकी बुनियाद पर किए गए अलग-अलग प्रयोगों के ज़रिए साफ है. अंत में, जैसे-जैसे ये परिदृश्य मुनाफे के मक़सद को तकनीकी इनोवेशन के साथ संतुलित करने के लिए बदलता है, क्रिप्टोकरेंसी और ETF की सफलता इसके परिवर्तनकारी सिद्धांतों और इसके बदलते इस्तेमाल के बीच संतुलन पर निर्भर होती है.

भारत के क्रिप्टोकरेंसी मार्केट ने सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की तरफ से विरोधी संकेतों की वजह से काफी अनिश्चितता और उथल-पुथल देखी है. 2018 में RBI ने क्रिप्टो के लेन-देन पर पाबंदी लगा दी. इस तरह वास्तव में क्रिप्टोकरेंसी को पारंपरिक वित्तीय प्रणाली से अलग कर दिया गया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के द्वारा 2020 में पाबंदी को हटाने के फैसले से भारत के क्रिप्टो सेक्टर में विकास और इनोवेशन का एक दौर आया जिसने अनगिनत स्टार्टअप्स को आगे बढ़ने का मौका दिया. फिर 1 अप्रैल 2022 से इन्वेस्टर्स और ट्रेडर्स को क्रिप्टो एसेट के ट्रांसफर से होने वाले मुनाफे पर 30 प्रतिशत टैक्स लगा दिया गया. सरकार के परस्पर-विरोधी और अस्पष्ट रेगुलेटरी रवैये ने भारत में एक बिटकॉइन ETF की संभावना को अनिश्चित बना दिया, भारतीय शेयर बाज़ारों में इसमें निवेश का कोई सीधा विकल्प मौजूद नहीं है. लेकिन तेज़ी से बदलते इस परिदृश्य में भविष्य हमेशा अप्रत्याशित बना हुआ है.


सौरादीप बाग ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.

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