Published on Jul 12, 2022 Updated 0 Hours ago

बिटकॉइन आने वाले वर्षों में सोना और अमेरिकी डॉलर के  ग्लोबल रिज़र्व कॉमोडिटी की जगह ले सकता है, लिहाज़ा भारत के लिए बिटकॉइन को अपने रणनीतिक वित्तीय रिज़र्व के हिस्से के रूप में अपनाना ही समझदारी होगी.

बिटकॉइन व्यवसाय: भारत के रणनीतिक हितों की सुरक्षा

मई 2022 के मध्य में, 44 विकासशील देशों के केंद्रीय बैंकरों की मौज़ूदगी में अल सल्वाडोर के राष्ट्रपति नायब बुकेले ने एक ऐसे आयोजन की मेजबानी की  जिसे पहला “बिटकॉइन का दावोस” कहा गया. अलग-अलग देखे जाने पर यह घटना बेवजह और महत्वहीन लग सकती है लेकिन जब डॉलर के वर्चस्व में आ रही कमी, उच्च वैश्विक मुद्रास्फीति दर, दुनिया भर में जारी शक्ति संघर्ष और बदलती विश्व व्यवस्था के संदर्भ में इसे देखा जाता है, तो इस आयोजन में बिटकॉइन के लिए ग्लोबल रिज़र्व करेंसी के दावेदार के तौर पर उभरती हुई दिलचस्पी का इशारा मिलता है.

ग्लोबल रिज़र्व का ताज पहनने के लिए अमेरिकी डॉलर, चीनी युआन और ओपन-सोर्स बिटकॉइन के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा इस दशक का एक दिलचस्प भू-राजनीतिक प्रकरण हो सकता है. 

ग्लोबल रिज़र्व का ताज पहनने के लिए अमेरिकी डॉलर, चीनी युआन और ओपन-सोर्स बिटकॉइन के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा इस दशक का एक दिलचस्प भू-राजनीतिक प्रकरण हो सकता है. बिटकॉइन के पास करेंसी के क्षेत्र के दिग्गजों को मात देने से पहले उम्मीद बची हुई है लेकिन एक बात तय है कि यह दुनिया के लिए कुछ अनोखा पेश करने की हालत में हैं : विकेंद्रीकृत वैश्वीकरण के साथ व्यक्तिगत संप्रभुता और राष्ट्रों की सामूहिक सुरक्षा. संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) और चीन को छोड़कर हर देश के पास वैश्विक व्यापार के लिए तटस्थ बिटकॉइन नेटवर्क का उपयोग करने के लिए एक तर्कसंगत प्रोत्साहन मौज़ूद है और हो सकता है कि जब यह सुविधा उनके आसपास कम होने लगे, तो बिटकॉइन अमेरिका और चीन के लिए भी एक तर्कसंगत समझौता बन सकता है.

चित्र 1: ग्लोबल रिज़र्व करेंसी (वैश्विक आरक्षित मुद्रा) के खेल में तर्कसंगत रणनीतियां


बिटकॉइन को लेकर मौज़ूदा प्रोत्साहन ढांचा गुटनिरपेक्ष विकासशील देशों के लिए वित्तीय क्षेत्र में नवीनता लाने और दुनिया की महाशक्तियों से आगे निकलने का एक शानदार मौक़ा है जो हार्डर मॉनिट्री स्टैंडर्ड (कठिन मौद्रिक मानक) को अपनाने में पहल कर सकते हैं लेकिन कई विकासशील देश इस अवसर से चूक जाएंगे, कुछ ग़लत सूचनाओं की से तैयार की गई तर्कहीन रणनीतियों के कारण; कुछ सख़्त केंद्रीय बैंकों के कारण जो मौद्रिक नीति पर नियंत्रण बनाए रखना चाहते हैं; और दूसरे अमेरिका या चीन द्वारा बढ़ावा दिए जा रहे ब्रेटन वुड्स संस्थानों के कारण. एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में, जिसके हित एक तटस्थ रिज़र्व करेंसी द्वारा बेहतर पूरी होती है, भारत के पास बिटकॉइन अपनाने को लेकर शुरुआती प्रस्तावक बनने के लिए तर्कसंगत प्रोत्साहन मौज़ूद है लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था में कुछ घरेलू और विदेशी हितधारकों के बीच हितों के टकराव से रेग्युलेटरी माहौल काफी जटिल है. इसलिए कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका को भारत के क्रिप्टोकरेंसी नियमों को अपने राष्ट्रीय हित और संवैधानिक मूल्यों के साथ शामिल करने में मज़बूत निगरानी की भूमिका निभानी होगी.

बिटकॉइन को लेकर मौज़ूदा प्रोत्साहन ढांचा गुटनिरपेक्ष विकासशील देशों के लिए वित्तीय क्षेत्र में नवीनता लाने और दुनिया की महाशक्तियों से आगे निकलने का एक शानदार मौक़ा है जो हार्डर मॉनिट्री स्टैंडर्ड (कठिन मौद्रिक मानक) को अपनाने में पहल कर सकते हैं 

बिटकॉइन में फंसने की दुविधा

बिटकॉइन में फंसने को लेकर जो दुविधा है उसका इस्तेमाल इससे जुड़े हितधारकों के बीच तर्कसंगत रणनीतियों और अपेक्षाओं के आधार पर संभावित परिणामों का आकलन करने के लिए किया जा सकता है. एक शुद्ध मौद्रिक वस्तु के रूप में जिसकी अभी कोई दूसरी उपयोगिता नहीं है, बिटकॉइन को अपनाना और इसकी क़ीमत की तलाश करना बाज़ार के सहभागियों के बीच गेम-थ्योरी की अवधारणा से जुड़ा है.

चित्र 2: भारत के लिए बिटकॉइन में फंसने की दुविधा


दुनिया का हर देश बिटकॉइन को लेकर एक जैसी दुविधा का ही सामना कर रहा है. लिहाज़ा चित्र 2 में जो गेम मैट्रिक्स बताया गया है वह कई हितधारकों के बीच दोहराया जाता है जिसके निम्नलिखित परिणाम हैं :

चित्र 3: कई हितधारकों के बीच दोहराए गए खेल के नतीजे


अब विचार करें कि आख़िर क्या होता है जब ऑउटकम मैट्रिक्स समय के साथ हितधारकों के लिए ज़्यादा स्पष्ट होता है : अधिक से अधिक देशों को बिलकुल ज़रूरी को अपनाने में तर्कसंगत प्रोत्साहन समझ में आने लगेगा, जिससे संभावित रूप से अचानक कई देश इसे लेकर कदम बढ़ाने शुरू कर देंगे. इसलिए राष्ट्रों के बीच बिटकॉइन अपनाने की स्थिति धीरे-धीरे बढ़ती है (ज़्यादातर देश इसे प्रतिबंधित करना चाहते हैं), फिर अचानक इस दशक में तेज़ होती है (कुछ देशों ने इसे अपनाया)और अब इसकी गति और तेज़ होती जा रही है(कई देश इसे अपना रहे हैं). 2010 के दशक में शुरुआती व्यक्तिगत और संस्थागत निवेशकों ने बिटकॉइन के साथ असीमित रिटर्न पाया. 2020 के दशक में, शुरुआती जियोपॉलिटिकल निवेशक इसके साथ ज़्यादा समृद्ध और मज़बूत बने, जबकि जिन्होंने इसमें बाद में निवेश किया वो इसमें से पूंजी निकालने और रणनीतिक कमज़ोरी की वज़ह से घाटे में रहे.

बिटकॉइन का रणनीतिक कद “क्रिप्टो” की शोर में छोटा पड़ गया
21 वीं सदी में भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, वित्तीय संप्रभुता और ऊर्जा स्वतंत्रता के लिए केवल बिटकॉइन (अन्य क्रिप्टोकरेंसी में विफलता की एक वज़ह है) महत्वपूर्ण हैं. बिटकॉइन नेटवर्क एंटी फ्रेजाइल है, सैन्य-ग्रेड क्रिप्टोग्राफी द्वारा सुरक्षित है और इसे अपनाने के लिए जो प्रोत्साहन दिया जा रहा है वह परमाणु प्रौद्योगिकी को लागू करने जैसा ही है, जिसके तहत शुरुआती देशों को दूसरे भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के मुक़ाबले ज़्यादा फायदा होने की उम्मीद होती है.

19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में, दुनिया के अधिकांश हिस्से में सख़्त गोल्ड स्टैंडर्ड को अपनाया गया, जबकि भारत और चीन चांदी के मानक को ही मानते रहे. इसने धीरे-धीरे उनके व्यापार की शर्तों को ख़त्म कर दिया 

हम इतिहास से सबक सीख सकते हैं ; 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में, दुनिया के अधिकांश हिस्से में सख़्त गोल्ड स्टैंडर्ड को अपनाया गया, जबकि भारत और चीन चांदी के मानक को ही मानते रहे. इसने धीरे-धीरे उनके व्यापार की शर्तों को ख़त्म कर दिया जिससे दशकों तक रणनीतिक कमजोरी बनी रही और इसने गंभीर आर्थिक पिछड़ापन को जन्म दिया. आज बिटकॉइन को नहीं अपना कर, भारत (और चीन) अपने भविष्य के लिए इसी तरह की ग़लती दोहरा रहा है जिसका गंभीर असर हो सकता है. बिटकॉइन अपनी गणितीय कमियों के कारण अब तक का सबसे हार्डेस्ट मनी है और अन्य देशों को इसे अपनाने से नहीं रोका जा सकता है. इसलिए इसे जल्दी अपनाने वाला होना भारत की तर्कसंगत रणनीति होनी चाहिए जो राष्ट्रीय हित में भी है.

वर्तमान डॉलर-आधारित वैश्विक वित्तीय प्रणाली भारत के लिए बहुत लाभदायक नहीं है. इसके विपरीत, भारत को अमेरिकी मौद्रिक नीति के ख़राब प्रभावों को वहन करना पड़ता है : उदाहरण के लिए उच्च मुद्रास्फीति की वर्तमान स्थिति. इसके अलावा, जैसा कि रूस के अनुभव ने हमें बताया है कि एक संप्रभु राष्ट्र की विदेशी संपत्ति वास्तव में उसकी नहीं होती है; और अंतरराष्ट्रीय  भुगतान वास्तव में तटस्थ नहीं होता है. नतीज़तन डॉलर की वैश्विक शक्ति अब घट रही है – हाल की भू-राजनीतिक घटनाएं, रिज़र्व करेंसी का इतिहास और डॉलर के प्रभुत्व से अमेरिकी प्रोत्साहन में आती कमी – ये सभी बातें इस ओर इशारा कर रही हैं कि वैश्विक वित्त में एक महत्वपूर्ण बदलाव अपेक्षित है. जैसा कि डॉलर-आधारित व्यवस्था में कमी आती है या मुद्रा संकट की समस्या में फंस जाता है, तब बिटकॉइन को अपनाने वाले देश विकेंद्रीकृत वैश्वीकरण के नए युग में भी ख़ुद को बेहतर स्थिति में पा सकते हैं.

इसलिए यह महत्वपूर्ण था कि 4 मार्च 2020 को भारतीय रिज़र्व बैंक के क्रिप्टोकरेंसी पर प्रतिबंध के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया, यह देखते हुए कि शीर्ष अदालत का सर्कुलर “स्पष्ट रूप से मनमाना, गैर-उचित वर्गीकरण पर आधारित था और यह तर्क संगत प्रतिबंध नहीं लगता है”. न्यायालय ने स्वीकार किया कि प्रतिबंध भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) में निहित किसी भी पेशे को जारी रखने, या किसी भी  व्यापार या व्यवसाय को करने के अधिकार पर पाबंदी था, और कोर्ट ने यह विचार किया कि क्या यह अनुच्छेद 19(6) के तहत “आम जनता के हित” में पर्याप्त रूप से लगाया गया था.

भारत सरकार अब “क्रिप्टो उद्योग” को विनियमित करने के लिए एक विधेयक पर काम कर रही है, जिसे इस साल के अंत में संसद में पेश किया जाएगा. जबकि अधिकांश “क्रिप्टो इंडस्ट्री” इस वक़्त पर कयास लगाए जाने वाले तकनीक हैं, ऐसे में बिटकॉइन को बाकी मुद्रा के साथ जोड़ना भारत के लिए गंभीर नीतिगत त्रुटि होगी जो भारत को दशकों तक पीछे धकेल सकती है.

प्रमुख तर्क

वर्गीकरण : बिटकॉइन तकनीकी, वित्तीय, भू-राजनीतिक और कानूनी स्तरों पर हर दूसरी डिजिटल मुद्रा या परिसंपत्ति से मौलिक रूप से अलग है. बिटकॉइन एक “डिजिटल सिंथेटिक कमोडिटी” है जो सोने के समान (लेकिन बेहतर) है. हर दूसरा डिजिटल टोकन एक कंपनी की शेयर की तरह है जिस पर अनुमान लगाए जा सकते हैं.

वित्तीय संप्रभुता : राष्ट्र और व्यक्ति दोनों के लिए, बिटकॉइन वित्तीय बिचौलियों की आवश्यकता को दूर करता है, जिसके लिए कोई अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है. व्यक्तिगत स्वतंत्रता वाले एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में बिटकॉइन हमारे संवैधानिक मूल्यों और लोकतांत्रिक लोकाचार के साथ संरेखित होता है.

हार्ड मनी : भारत का राष्ट्रीय हित अपने रणनीतिक वित्तीय रिज़र्व के हिस्से के रूप में बिटकॉइन को अपनाने में है. “डिजिटल गोल्ड” द्वारा समर्थित डिजिटल रुपया भारत को एक हार्ड मनी स्टैंडर्ड की तरफ ले जाएगा, जो बढ़ती मुद्रास्फीति दर पर लगाम लगा सकता है और पूंजी संचय, आर्थिक विकास और समृद्धि की नई शुरुआत कर सकता है.

ग्लोबल रिजर्व : अगले 10-15 वर्षों में बिटकॉइन ग्लोबल रिज़र्व कॉमोडिटी और मुद्रा के रूप में सोना और अमेरिकी डॉलर की जगह ले सकता है. राष्ट्र-राज्य गेम थ्योरी, करेंसी का इतिहास, तकनीक के नेटवर्क का असर और वर्तमान भू-राजनीतिक घटनाएं सभी उस अपरिहार्य नतीजे की ओर इशारा कर रही हैं.

भू-राजनीतिक रणनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा : बिटकॉइन मानक के लिए भारत का कदम चीनी युआन की गति को रोक देगा, जो अमेरिकी डॉलर को ग्लोबल रिज़र्व करेंसी के रूप में बदलने की कोशिश में है. अगर चीन का युआन इस कोशिश में सफल हो जाता है तो यह भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और वित्तीय संप्रभुता के लिए एक बड़ा ख़तरा होगा. बिटकॉइन के साथ भारत इस परिणाम तक पहुंचने से पहले विचार कर सकता है और इसे रोक भी सकता है.

ऊर्जा स्वतंत्रता : बिटकॉइन माइनिंग इन्सेन्टिव ग्रिड इन्फ्रास्ट्रक्चर के ज़रिए बिजली उत्पादन को प्रोत्साहित किया जा सकता है और यह फ्लेक्सिबल लोड प्लेयर के तौर पर काम कर सकता है. सस्ता लेकिन रुक-रुक कर अक्षय ऊर्जा को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जाता है और यह भारत को लिए एक अक्षय ऊर्जा महाशक्ति के रूप में एक नए युग की शुरुआत कर सकता है.

रेमिटेंस : भारत साल 2021 में 87 बिलियन अमेरिकी डॉलर के विदेश से भेजे गए धन का दुनिया का सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता था. बिटकॉइन की बिजली सी गति वाली नेटवर्क दुनिया में कहीं से भी लगभग शून्य शुल्क पर तत्काल धन भेजने में सक्षम है.

नियामक सैंडबॉक्स: भारत सरकार को एक विशेष ज़िले की पहचान करनी चाहिए जहां बिटकॉइन डेवलपर्स, व्यापारी और उपयोगकर्ता निषेधात्मक करों का भुगतान किए बिना तकनीक के साथ प्रयोग कर सकते हैं.

अधिकांश “क्रिप्टो इंडस्ट्री” इस वक़्त पर कयास लगाए जाने वाले तकनीक हैं, ऐसे में बिटकॉइन को बाकी मुद्रा के साथ जोड़ना भारत के लिए गंभीर नीतिगत त्रुटि होगी जो भारत को दशकों तक पीछे धकेल सकती है.

चेतावनी


अस्थिरता : बमुश्किल समझे जाने वाले इंटरनेट शेयरों की तरह व्यापक क्रिप्टोकरेंसी बाज़ार, मौज़ूदा समय में अपने शुरुआती चरण में है, जिसमें क़ीमतों में भारी उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है और यह असफल प्रयोगों और अस्पष्ट योजनाओं के साथ हमारे सामने है. 2000 के दशक की शुरुआत में नैशदैक की तरह ही बिटकॉइन का प्रचार स्वयं हो रहा है. इसका मौज़ूदा ट्रेडिंग पैटर्न उच्च-विकास प्रौद्योगिकी शेयरों से मज़बूती से जुड़ा हुआ है, जो यह दिखाता है कि बाज़ार अभी भी इसे एक जोख़िम वाली संपत्ति के रूप में मानता है, ना कि सोने की तरह सुरक्षित. एक शुरुआती प्रस्तावक होने के बावज़ूद ख़ुद को अस्थिरता से बचाने के लिए, एक भू-राजनीतिक निवेशक को बिटकॉइन के मूल सिद्धांतों के आधार पर एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाने की ज़रूरत है, जो लागत-औसत रणनीति के साथ मिलाकर बना हो.

कम तरलता : साल 2021 में, बिटकॉइन अस्तित्व के केवल 12 सालों में ही यूएस 1 ट्रिलियन डॉलर के पूंजी बाज़ार तक पहुंच गया – जो किसी भी संपत्ति या मुद्रा के इतिहास में सबसे तेज़ विकास था लेकिन ग्लोबल रिज़र्व के लिए यह अभी भी कम तरलता है, क्योंकि विदेशी मुद्रा बाज़ार में साल 2019 में 6.6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की दैनिक ट्रेडिंग मात्रा थी. अगर मध्यम या बड़े आकार के राष्ट्र को पहले से बिटकॉइन अधिग्रहण की घोषणा करनी थी तो यह तुरंत एक प्रचार चक्र को ट्रिगर कर सकता था जिससे क़ीमतों और अधिग्रहण की लागत को बढ़ाना संभव है. किसी भी देश के लिए यह विवेकपूर्ण रणनीति होगी कि बाज़ार की तेज़ी (जैसे हम वर्तमान में हैं) के दौरान ख़रीदारी करे और अधिग्रहण का पूरा दौर पूरा होने के बाद ही इसे सार्वजनिक करे.

ऊर्जा की तीव्रता: निकट भविष्य में बिटकॉइन माइनिंग भारत की साइबर सुरक्षा और वित्तीय संप्रभुता की कुंजी हो सकती है लेकिन खनन एक ऊर्जा-आधारित और ज़्यादा प्रतिस्पर्द्धी वैश्विक उद्योग है, जिसमें खनिक स्वाभाविक रूप से सबसे सस्ती और ज़्यादा बिजली आपूर्ति वाले क्षेत्रों की ओर बढ़ते हैं. भारत की पावर इन्फ्रास्ट्रक्चर और मूल्य निर्धारण मौज़ूदा समय में बड़े पैमाने पर बिटकॉइन खनन कार्यों को बनाए रखने के लिए अनुकूल नहीं है लेकिन यह सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के ऊर्जा दिग्गजों के साथ-साथ अक्षय ऊर्जा में स्टार्ट-अप के लिए एक अच्छा मौक़ा पेश करता है जिसमें विश्व स्तर पर सफल मॉडलों का अध्ययन किया जा सकता है और फिर उसे भारतीय परिस्थितियों के लिए तैयार किया जा सकता है : अमेरिका में ऊर्जा समृद्ध टेक्सास और व्योमिंग, कनाडा में

मनी लॉन्ड्रिंग और आपराधिक वित्तपोषण : चैनालिसिस की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2021 में सभी क्रिप्टोकरेंसी लेनदेन की मात्रा का 0.05 प्रतिशत हिस्सा मनी लॉन्ड्रिंग का था. बिटकॉइन ब्लॉकचेन की पारदर्शिता ऐसी है कि यह हर लेन-देन का सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डिजिटल रिकॉर्ड रखता है, जिसके कारण साइबर आपराधिक प्रवृत्ति के लोग इससे दूरी बनाए रखना पसंद करते हैं और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए यह बेहद मददगार होता है. जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है कि ज़्यादातर साइबर अपराध अब अधिक गुमनाम और रहस्यमयी “विकेंद्रीकृत वित्त” (डीएफआई) प्लेटफार्मों पर ही होते हैं.

एक शुरुआती प्रस्तावक होने के बावज़ूद ख़ुद को अस्थिरता से बचाने के लिए, एक भू-राजनीतिक निवेशक को बिटकॉइन के मूल सिद्धांतों के आधार पर एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाने की ज़रूरत है, जो लागत-औसत रणनीति के साथ मिलाकर बना हो.

शिक्षा: भारत में बिटकॉइन से संबंधित सार्वजनिक और एलीट एजुकेशन दोनों अभी भी शुरुआती स्टेज में हैं. बिटकॉइन सिर्फ एक नई तकनीक नहीं है, यह पैसे को देखने का एक नया तरीक़ा भी है. एक अंतर-अनुशासनात्मक बिटकॉइन पाठ्यक्रम में निम्नलिखित विषयों को शामिल किया जाना चाहिए : इंजीनियरिंग, वित्त, अकांउटिंग, कंप्यूटर विज्ञान, क्रिप्टोग्राफी, आदि. जैसे ही हम पैसे के एक नए रूप को अपनाते हैं, हमें एकेडमिक इन्फ्रास्ट्रक्चर को बनाने की ज़रूरत पड़ती है जो आर्थिक और सामाजिक बदलावों के लिए हमारा मार्गदर्शन कर सके.

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