ये लेख ‘समान’ लेकिन ‘विभिन्न’ उत्तरदायित्व निभाने का लक्ष्य: COP27 ने दिखाई दिशा! श्रृंखला का हिस्सा है.
G20 में इंडोनेशिया की अध्यक्षता नेताओं के शिखर सम्मेलन और उनकी बाली घोषणा के साथ समाप्त हुई. G20 का ये साझा बयान इंडोनेशिया की तारीफ़ के क़ाबिल उपलब्धि इसलिए है, क्योंकि दुनिया के तमाम भू-राजनीतिक संकटों ने 2022 में G20 के देशों के बीच अलगाव बनाए रखा था. यूक्रेन में युद्ध, ऊर्जा और खाद्य पदार्थों का वैश्विक संकट, आर्थिक सुस्ती का डर, कोविड-19 के बाद दुनिया में असमान विकास दर के साथ साथ, जलवायु परिवर्तन से निपटने को लेकर विकसित और विकासशील देशों के दिल में एक दूसरे के प्रति भरोसे की कमी, तो बस गिने चुने मुद्दे हैं, जिनका सामना इंडोनेशिया को अपनी अध्यक्षता के दौरान करना पड़ा.
बाली घोषणा से निकले संकेतों का पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए हो रहे प्रयासों पर गहरा असर पड़ने वाला है. इस साल G20 नेताओं का शिखर सम्मेलन उस वक़्त हुआ, जब शर्म अल शेख़ में जलवायु परिवर्तन पर सम्मेलन (COP27) हो रहा था.
बाली घोषणा में उत्साह बढ़ाने वाली बात ये रही कि इसमें जलवायु परिवर्तन से निपटने के कई मुद्दों पर साफ़ तौर से ध्यान केंद्रित किया गया है. G20 देश दुनिया में ऊर्जा की 77 प्रतिशत खपत करते हैं और इससे होने वाले कार्बन डाई ऑक्साइड के 81 फ़ीसद उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार हैं. इसीलिए G20 से ये अपेक्षा बढ़ती जा रही है कि वो जलवायु परिवर्तन के मामले में दुनिया को राह दिखाए. बाली घोषणा से निकले संकेतों का पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए हो रहे प्रयासों पर गहरा असर पड़ने वाला है. इस साल G20 नेताओं का शिखर सम्मेलन उस वक़्त हुआ, जब शर्म अल शेख़ में जलवायु परिवर्तन पर सम्मेलन (COP27) हो रहा था. G20 की घोषणा के दो दिनों बाद ही जलवायु सम्मेलन का बयान भी जारी किया गया. ज़ाहिर है, G20 नेताओं की घोषणा का असर, इस साल के जलवायु परिवर्तन पर सम्मेलन (COP27) की वार्ताओं और आने वाले वक़्त में उनके निष्कर्षों पर भी पड़ा है. ऐसे में G20 नेताओं की घोषणा पर एक बारीक़ नज़र डालना और इस बयान की कुछ अहम बातों की समीक्षा करनी ज़रूरी हो जाती है.
ऊर्जा तक पहुंच और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने को G20 ने अपने दो अहम मक़सद बताए हैं, जो हरित ऊर्जा की ओर क़दम बढ़ाने में बहुत कारगर होंगे. बयान में संयुक्त राष्ट्र के स्थायी विकास के लक्ष्यों (SDG7) को लेकर G20 देशों की प्रतिबद्धता दोहराई गई है. इसका लक्ष्य ‘दुनिया में सभी के लिए उचित क़ीमत पर भरोसेमंद, टिकाऊ और ऊर्जा के आधुनिक संसाधन उपलब्ध कराना है.’ ख़ास तौर से ज़ोर इस बात पर दिया गया है कि सभी देशों को सस्ती दरों पर ऊर्जा की आपूर्ति होती रहे. यूक्रेन युद्ध और G7 देशों द्वारा रूस के तेल के दाम सीमित रखने के प्रयासों के चलते पैदा हुए, दुनिया के मौजूदा ऊर्जा संकट को देखते हुए ये बात बहुत अहम हो जाती है. क्योंकि इन कारणों से आने वाले समय में विकसशील देशों पर ऊर्जा की क़ीमतों का बोझ बहुत बढ़ जाने की आशंका है. ऊर्जा के मामले में समानता से जुड़े सवाल G20 की अगली तीन अध्यक्षताओं पर हावी रहने की संभावना है. क्योंकि आने वाले तीन वर्षों तक G20 की अध्यक्षता विकासशील देशों यानी भारत, ब्राज़ील और फिर दक्षिण अफ्रीका के पास रहने वाली है. G20 की ये घोषणा, विकासशील देशों द्वारा मौजूदा वैश्विक कार्बन बजट में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की कोशिशों में काफ़ी मददगार होगी और इससे विकास के अन्य लक्ष्यों का तालमेल जलवायु परिवर्तन से निपटने की कोशिशों से मिलाया जा सकेगा.
हरित उर्जा की तरफ क़दम
बाली घोषणा की एक और बड़ी उपलब्धि ये रही कि, G20 देशों ने दुनिया का तापमान बढ़ने को पेरिस में तय हुए लक्ष्य के मुताबिक़ 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की बात दोहराई. इस लक्ष्य को बढ़ाकर 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की बात नहीं कही. ये बयान बहुत अहम है, क्योंकि आशंका इस बात की थी कि मौजूदा ऊर्जा संकट को देखते हुए G20 के कुछ देश पहले किए गए वादों से मुकर सकते हैं. इस साल जारी हुआ बयान G20 के सभी देशों द्वारा भविष्य में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए और ठोस क़दम उठाने की राह दिखा सकता है. जलवायु परिवर्तन पर IPCC की ताज़ा रिपोर्ट के मताबिक़, 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य हासिल करने के लिए 2050 तक नेट ज़ीरो का लक्ष्य हासिल करना ही होगा. जबकि दो डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य हासिल करने के लिए कार्बन उत्सर्जन में 63 फ़ीसद की कमी लानी होगी. इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि मौजूदा और भविष्य में बनने वाले जीवाश्म ईंधन वाले बिजली के कारखाने, पहले ही 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य हासिल करने के लिए उपलब्ध कार्बन बजट से 63 प्रतिशत ज़्यादा हैं. कुल मिलाकर, G20 की प्रतिबद्धता को असली कार्रवाई में तब्दील करने के लिए जीवाश्म ईंधन के क्षेत्र में सारे निवेश को तुरंत बंद करना होगा और हरित ऊर्जा की ओर तेज़ी से क़दम बढ़ाने होंगे. हालांकि, बाली घोषणा में ये बात साफ़ नहीं की गई है कि 1.5डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रत्येक देश कौन से क़दम उठाएगा. ये एक ऐसा मसला है, जिस पर आगे चलकर भारत की अध्यक्षता में और स्पष्ट नज़रिया बनाना होगा.
जलवायु परिवर्तन पर IPCC की ताज़ा रिपोर्ट के मताबिक़, 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य हासिल करने के लिए 2050 तक नेट ज़ीरो का लक्ष्य हासिल करना ही होगा. जबकि दो डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य हासिल करने के लिए कार्बन उत्सर्जन में 63 फ़ीसद की कमी लानी होगी.
इस बात का, शर्म अल शेख़ (COP27) में हुई वार्ताओं में शामिल एक अहम मुद्दे पर भी असर पड़ने वाला है. इस जलवायु सम्मेलन (COP27) में भारत ने तेल और प्राकृतिक गैस समेत सभी जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल धीरे-धीरे बंद करने के एक वैश्विक समझौते का प्रस्ताव रखा था. हक़ीक़त तो ये है कि ये प्रस्ताव, ग्लासगो में हुए जलवायु सम्मेलन (COP26)से आगे का ही एक क़दम है, जहां विकसित देशों ने सिर्फ़ कोयले का इस्तेमाल बंद करने से जुड़ा एक समझौता विकासशील देशों पर थोपने की कोशिश की थी. ये एक विवादित मुद्दा है. क्योंकि विकासशील देशों की तुलना में बहुत से विकसित पश्चिमी देश, तेल और गैस पर कहीं ज़्यादा निर्भर हैं. G20 की ताज़ा घोषणा को ऐसा वैश्विक समझौता होने की राह में क़दम बढ़ाने का प्रोत्साहन माना जाना चाहिए. क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए, ये एक ज़रूरत है. इस साल के जलवायु सम्मेलन की वार्ता में ऐसे समझौते पर सहमति न बन पाने की सूरत में ये सवाल भी उठेगा कि G20 में शामिल विकसित देश, बाली घोषणा में शामिल इस वादे को पूरा करने को लेकर कितने गंभीर हैं.
बाली घोषणा में विकासशील देशों के कुछ ज्वलंत मुद्दों से निपटने की कोशिश भी की गई है. ये मुद्दे वित्तीय मदद बढ़ाने और तकनीक मुहैया कराने से जुड़े हैं. इस संदर्भ में विकसित देशों से अपील की गई है कि वो विकासशील देशों को 100 अरब की पूंजी उपलब्ध कराने का अपना वादा पूरा करें और इस रक़म में और इज़ाफ़ा करें. वैसे तो ये बात हौसला बढ़ाने वाली है. लेकिन ये G20 में शामिल विकसित देशों की ये स्वीकारोक्तिक वाली आलोचना भी है कि वो अपने द्वारा तय किया गया लक्ष्य भी पूरा नहीं कर रहे हैं.
बाली घोषणा में जलवायु परिवर्तन के हिसाब से बदलाव लाने के लिए ज़रूरी पूंजी और इसके साथ नुक़सान और क्षति का भी ज़िक्र किया गया है. शर्म अल शेख़ के जलवायु सम्मेलन में ये एक अहम मुद्दा था, जिस पर सभी देशों में आख़िरकार सहमति बन गई. ये इस बात की मिसाल है कि उभरते हुए एजेंडे के हिसाब से बदलाव लाने को लेकर G20 के भीतर आम सहमति है. हालांकि, कोई ठोस नतीजा हासिल करने के लिए अभी बहुत लंबा सफ़र तय करना है. विकासशील देशों को पूंजी मुहैया कराने में बहुपक्षीय विकास बैंकों (MDBs) की भूमिका का भी बाली घोषणा में ज़िक्र किया गया है. लेकिन, ये हवाला सिर्फ़ स्थायी विकास के लक्ष्य हासिल करने के लिए पूंजी उपलब्ध कराने के संदर्भ में दिया गया है. जलवायु परिवर्तन से जुड़े मामलों में इन बैंकों द्वारा पूंजी उपलब्ध कराने का ज़िक्र बाली घोषणा में नहीं है. इस बात पर आम सहमति में इज़ाफ़ा हो रहा है कि जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में पूंजी का प्रवाह बढ़ाने के लिहाज़ से बहुपक्षीय विकास बैंकों की भूमिका बेहद अहम हो सकती है. हालांकि, जलवायु संबंधी निवेश की अनूठी चुनौती से निपटने में सक्षम बनाने के लिए बहुपक्षीय विकास बैंकों के मौजूदा ढांचे में व्यापक बदलाव लाने की ज़रूर होगी. G20 में शामिल विकासशील देशों को इस बात का डर है कि जलवायु परिवर्तन से जुड़े क्षेत्र को पूंजी उपलब्ध कराने पर अधिक ध्यान केंद्रित करने से स्थायी विकास के लक्ष्य (SDG) पाने के लिए ज़रूरी पूंजी का प्रवाह कम हो जाएगा. ये एक ऐसा मुद्दा है, जिससे भारत को अपनी अध्यक्षता में निपटना होगा. जलवायु परिवर्तन और स्थायी विकास के लक्ष्यों को पूंजी उपलब्ध कराने के लिए इनकी परिभाषा स्पष्ट करनी होगी और इन दोनों लक्ष्यों को एक दूसरे से तालमेल के साथ हासिल करने में बहुपक्षीय विकास बैंकों की भूमिका को और स्पष्ट बनाना होगा.
G7 देश बहुत से विकासशील देशों को ऐसी साझेदारियां करने के लिए प्रोत्साहित करते रहे हैं. लेकिन, भारत अब तक ऐसा करने को लेकर अनिच्छा दिखाता रहा है. हालांकि, अगर सही तरीक़े से तैयार किया जाए, तो ऐसा समझौता बहुत बड़ा बदलाव लाने वाला हो सकता है.
बाली एनर्जी ट्रांज़िशन रोड मैप
बाली घोषणा में न्यायोचित और समावेशी ऊर्जा परिवर्तन की ज़रूरत पर भी काफ़ी ध्यान दिया गया है. इसके लिए बाली एनर्जी ट्रांज़िशन रोडमैप भी तय किया गया है. मोटे तौर पर इसमें ऊर्जा की ग़रीबी दूर करने, हरित क्षेत्र में रोज़गार पैदा करने, जीवाश्म ईंधन के उद्योग में काम करने वालों के रोज़गार में बदलाव लाने और नई हरित ऊर्जा व्यवस्थाओं लैंगिक समानाता सुनिश्चित करने पर ज़ोर दिया गया है. ये सिद्धांत भी G20 में भारत की अध्यक्षता के अहम मुद्दे होंगे.
इंडोनेशिया ने नेताओं के शिखर सम्मेलन का इस्तेमाल कुछ विकसित देशों के साथ मिलककर एक न्यायोचित ऊर्जा परिवर्तन साझेदारी (JET-P) का एलान करने के लिए भी किया. इस साझेदारी का इरादा, 20 निजी और सार्वजनिक क्षेत्र से 20 अरब डॉलर की पूंजी जुटाना है, ताकि इंडोनेशिया को 2050 तक नेट ज़ीरो का लक्ष्य हासिल करने में मदद मिल सके और जीवाश्म ईंधन सेक्टर के कामगारों को दूसरे क्षेत्र में रोज़गार मुहैया कराया जा सके. G7 देश बहुत से विकासशील देशों को ऐसी साझेदारियां करने के लिए प्रोत्साहित करते रहे हैं. लेकिन, भारत अब तक ऐसा करने को लेकर अनिच्छा दिखाता रहा है. हालांकि, अगर सही तरीक़े से तैयार किया जाए, तो ऐसा समझौता बहुत बड़ा बदलाव लाने वाला हो सकता है. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि भारत अपनी अध्यक्षता में इस मुद्दे से कैसे निपटता है. अगर भारत ऐसी किसी साझेदारी (JET-P) का हिस्सा नहीं भी बनता है, तो उसे अपने G20 एजेंडे के तहत दूसरे विकासशील देशों के लिए ऐसे मुद्दों पर बातचीत के लिए जगह बनानी चाहिए.
कुल मिलाकर ज़बरदस्त वैश्विक भू-राजनीतिक उठापटक के इस दौर में बाली घोषणा ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के मामले में एक महत्वाकांक्षी नज़रिया सामने रखा है. ख़ास तौर से इसमें विकासशील देशों के नज़रिए से कई मुद्दों से निपटने की कोशिश की गई है. जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए G20 से विकासशील देशों के एक समेकित और एकजुट रवैया पेश करने की ये बहुत अच्छी पहल है.
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