Published on Jun 04, 2021 Updated 0 Hours ago

आईएसआईएस ने मालदीव में हुई कुछ घटनाओं पर तो टीका-टिप्पणी की है लेकिन ये साफ़ नहीं है कि बाक़ी घटनाओं की वो ज़िम्मेदारी क्यों नहीं ले रहा है.

पूर्व राष्ट्रपति पर हुए हमले से मालदीव में चरमपंथी ख़तरों से जुड़ी चुनौतियां सुर्ख़ियों में आईं

मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति और मौजूदा स्पीकर मोहम्मद नशीद पर हुए जानलेवा हमले ने दक्षिण एशिय़ा के इस छोटे से द्वीप देश में चरमपंथ से जुड़ी चुनौतियों को सबके सामने ला दिया है. मालदीव के अधिकारियों ने 29 मई तक इस मामले में कुल 14 लोगों को गिरफ्तार किया है. सरकार ने चार लोगों पर आतंकवादी हमले की साज़िश रचने, विदेशी आतंकवादी संगठन की मदद करने और विदेशी ज़मीन पर आतंकवादी हमले करने के लिए लोगों की भर्तियां करने का आरोप लगाया है. 

गृह मंत्री इमरान अब्दुल्ला का कहना है कि मालदीव में कई ऐसे लोग मौजूद हैं जिन्होंने आईईडी की ट्रेनिंग ले रखी है. छोटे से देश मालदीव की आबादी काफ़ी कम है. इसके बावजूद यहां से भारी संख्या में लोग जिहादी बनकर इराक़ और सीरिया में जंग लड़ने गए हैं. इसे मालदीव का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा. ये तमाम हालात मालदीव में इस्लाम के नाम पर होने वाली हिंसा और उनसे जुड़े ख़तरे की गहराई और जटिलताओं की ओर इशारा करते हैं. हालांकि इस्लामिक चरमपंथ के इस ख़तरे की पृष्ठभूमि पुरानी है. ऐसे में इस द्वीप देश में हिंसा और उससे जुड़ी गतिविधियों को बढ़ावा देने वाले कारकों को गहराई से समझना ज़रूरी है. इस मसले पर ज़रूरत से ज़्यादा प्रतिक्रिया जताना या समस्या को नज़रअंदाज़ करना- दोनों ही ख़तरनाक हैं. जिहादी हिंसा औऱ उससे जुड़ी गतिविधियों पर संतुलित दृष्टिकोण रखना बेहद ज़रूरी है. 

मालदीव में आतंकवाद का संक्षिप्त इतिहास

दुनिया के ज़्यादातर देशों की तरह ही मालदीव की अर्थव्यवस्था भी कोविड-19 महामारी के प्रभावों के चलते सुस्ती का शिकार हो गई है. यहां की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर आधारित है. पर्यटन उद्योग मालदीव की जीडीपी में 30 प्रतिशत से भी ज़्यादा का योगदान देता है. महामारी के बाद से जारी आर्थिक सुस्ती से बाहर निकलने के लिए यहां पर्यटन क्षेत्र का पटरी पर तेज़ी से वापस लौटना बेहद ज़रूरी है. बहरहाल, सैलानियों को लुभाने वाले इस ख़ूबसूरत जज़ीरे में दहशतगर्दी से जुड़ी पेचीदगियां भी कम नहीं हैं. इसका इतिहास अफ़ग़ानिस्तान की जंग और 1990 के दशक के अंत में कश्मीर में जिहादी गतिविधियों से जुड़ता है. इन दोनों स्थानों में मालदीव के कई लोग आतंकवादी संगठनों के साथ जुड़कर हिंसा में लिप्त पाए गए थे.

इसका इतिहास अफ़ग़ानिस्तान की जंग और 1990 के दशक के अंत में कश्मीर में जिहादी गतिविधियों से जुड़ता है. इन दोनों स्थानों में मालदीव के कई लोग आतंकवादी संगठनों के साथ जुड़कर हिंसा में लिप्त पाए गए थे.

मालदीव को करीब से समझने वाले जानकारों के मुताबिक 2004 की सुनामी के बाद वहां चरमपंथी विचारों का तेज़ी से प्रसार हुआ. आंशिक तौर पर इसकी वजह लश्कर-ए-तैयबा द्वारा सुनामी से प्रभावित लोगों की मदद के नाम पर किए गए ख़ैराती कामकाज को माना जाता है. इनके ज़रिए लश्कर को यहां पैर जमाने और स्थानीय लोगों की भर्तियां करने का मौका मिल गया. हालांकि मालदीव में जिहादी भावनाओं के प्रसार के पीछे इस्लामिक दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से एक ख़ास किस्म की विचारधारा के प्रसार को भी ज़िम्मेदार माना जाता है. ख़ासतौर से सऊदी अरब के कट्टर सलाफ़ी इस्लाम से जुड़ी मान्यताओं का मालदीव में तेज़ी से प्रसार हुआ है. चौतरफ़ा फैले भ्रष्टाचार और ग़रीबी से मालदीव के लोग पहले से ही त्रस्त थे. इतना ही नहीं विदेशों से आने वाले सैलानियों की शानोशौकत देखकर उनमें हीन भावना का संचार होता रहा है. इस प्रकार अपने हालात से असंतुष्ट और नाख़ुश अवाम का एक कट्टर और असहिष्णु विचारधारा से सामना हो गया.  

कट्टरतावादी विचारधारा के इस प्रसार का नतीजा 2007 में हुई बमबारी के रूप में सामने आया. माले के सुल्तान पार्क में हुई इस बमबारी का शिकार होने वाले ज़्यादातर लोग चीन से आए सैलानी थे. इस वारदात के बाद इस्लामिक चरमपंथियों के स्थानीय नेटवर्क के ख़िलाफ़ बड़ा अभियान चलाया गया. तकरीर करने वाले कई मौलानाओं की गिरफ़्तारियां हुईं. इन कार्रवाइयों के बाद मालदीव के भीतर एक तरह की शांति का माहौल देखा गया. कोई नई आतंकी वारदात नहीं हुई. हालांकि, मालदीव से आए जिहादी लड़ाकों के दूसरे देशों की ज़मीन या दक्षिण एशिया में सक्रिय दूसरे आतंकी संगठनों के साथ मिलकर जंग लड़ने की ख़बरें लगातार आती रही हैं. 

आगे चलकर 2015 में पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को निशाना बनाने की कोशिश की गई और उनकी नाव पर बम धमाका किया गया. 2017 में जाने-माने ब्लॉगर यामीन रशीद की उनके घर के बाहर चाकू घोंपकर हत्या कर दी गई. हालांकि, इन दोनों ही घटनाओं के पीछे किसका हाथ था, ये बात साफ नहीं हो पाई थी. इन वारदातों के लिए उनके राजनीतिक विरोधियों और चरमपंथियों- दोनों पर ऊंगलियां उठाई गई थीं. मार्च 2020 में पुलिस की एक नाव को आग के हवाले कर दिया गया था. 2007 के बम धमाकों से जुड़े केस में सज़ा काट चुके मूसा इनास ने ये आग लगाई थी.

नए किरदार

सबसे ज़्यादा चिंताजनक घटनाएं 2020 में देखने को मिलीं. इस बार सैलानियों पर चाकू से हमले किए गए. इन हमलों की ज़िम्मेदारी कथित तौर पर इस्लामिक स्टेट से जुड़े मालदीव के इस्लामिक चरमपंथियों ने ली. इससे डर का माहौल और गहरा हुआ. चाकूबाज़ी के इन वाकयों से पहले अप्रैल 2020 में सरकारी स्वामित्व वाली कुछ नौकाओं को आग के हवाले करने की घटनाएं भी हुई थीं. इनकी ज़िम्मेदारी आईएसआईएस ने ली थी. 

इन तमाम वारदातों से एक भ्रामक तस्वीर सामने आती हैं. हमलों से जुड़ी वारदातों का निशाना ज़्यादातर सियासत से जुड़े किरदार या सैलानी रहे हैं. भले ही शक की सुई बार-बार इस्लामिक चरमपंथियों की ओर ही घूमती रही है, लेकिन अक्सर ये साफ़ नहीं हो पाया है कि वही इनके लिए ज़िम्मेदार हैं. 2014 में इस्लामिक स्टेट की स्थापना के बाद से मालदीव सुर्ख़ियों में रहा है. इस बात के सबूत सॉट अल-हिन्द (भारत की आवाज़) से जुड़े प्रकाशनों में देखे जा सकते हैं. विचारों के प्रचार-प्रसार से जुड़ी इस क्षेत्रीय ऑनलाइन पत्रिका का इस्तेमाल मालदीव में हुए हमलों की ज़िम्मेदारी लेने या उनकी तारीफ़ों के पुल बांधने के लिए किया जाता रहा है. 

इन तमाम वारदातों से एक भ्रामक तस्वीर सामने आती हैं. हमलों से जुड़ी वारदातों का निशाना ज़्यादातर सियासत से जुड़े किरदार या सैलानी रहे हैं. भले ही शक की सुई बार-बार इस्लामिक चरमपंथियों की ओर ही घूमती रही है

स्पीकर नशीद पर हुए हमले में अब तक किसी ने साफ़ तौर पर अपना हाथ होने का दावा नहीं किया है. आईएसआईएस ने अबतक इस घटना पर कोई टिप्पणी नहीं की है. इसके बावजूद मालदीव में आईएसआईएस या अल-क़ायदा से प्रभावित चरमपंथियों के ख़तरे को लेकर चिंताएं लगातार बढ़ती ही जा रही हैं. सरकार ने स्पीकर नशीद पर हमलों में कथित तौर पर शामिल चार लोगों पर विदेशी आतंकी संगठनों का समर्थन करने और जिहाद के नाम पर इन संगठनों के लिए लोगों की भर्तियां करने का आरोप लगाया है. ऐसे में इस बात की संभावना ज़्यादा है कि सरकार के आकलन के हिसाब से इस वारदात के पीछे इन दोनों संगठनों में से किसी एक पर ऊंगली उठाई गई है. 

स्पीकर नशीद पर हुए बम हमले के बाद मालदीव के गृह मंत्री इमरान अब्दुल्ला ने जानकारी दी कि मालदीव में 1400 से भी ज़्यादा चरमपंथी खुले घूम रहे हैं. इनमें से कई चरमपंथी आईईडी से धमाका करने के प्रशिक्षण से लैस हैं. अब्दुल्ला ने इस मौके पर ऐसे चरमपंथियों की धर-पकड़ और उनको सुधार-गृह भेजने के लिए ज़रूरी कानूनी अधिकार दिए जाने की वक़ालत भी की है. 

परेशान करने वाले सवाल (और जवाब)

हमले की इस ताज़ा घटना ने एक बड़ी समस्या को एक बार फिर से उजागर कर दिया है. इस द्वीप देश के कई लोगों के जेहन में कट्टर विचारधारा ने जड़ें जमा ली हैं. ऐसे में सवाल ये है कि तेज़ी से फैलती इस समस्या से निपटने के लिए क्या उपाय किए जाएं? मालदीव की सरकार के पास इस बारे में अब तक कोई ठोस योजना नहीं है. गृह मंत्री द्वारा 1400 चरमपंथियों की मौजूदगी का जो आंकड़ा दिया गया है वो मालदीव के सुरक्षा बल की चिंता बढ़ाने वाला है. वहां का सुरक्षा तंत्र पहले से ही अपने वरिष्ठ नेताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जद्दोजहद में लगा है. मालदीव के अधिकारी यूं तो सीरिया और इराक़ के जिहादी संघर्षों में हिस्सा ले चुके मालदीव के लोगों की वतन वापसी कराने के इच्छुक लगते हैं लेकिन ये स्पष्ट नहीं है कि उनको प्रभावी रूप से कट्टरपंथी विचारधारा से बाहर लाने के लिए उनके पास क्या योजनाएं हैं. कट्टरपंथी सोच से उन्हें मुक्त कराने जैसे उपायों के प्रबंधन के लिए आवश्यक प्रक्रियाओं को लेकर कोई स्पष्ट तस्वीर नहीं है. 

इस साल जनवरी में अधिकारियों ने 2020 में सीरिया से वापस लाए गए 34 साल के एक शख्स को रिहा कर दिया था. पुलिस ने उसे आज़ाद करते वक़्त ये बताया था कि वो उसपर सिर्फ़ निगरानी रखने का काम करेगी. मालदीव की पुलिस द्वारा अक्सर ऐसा ही किया जाता है. पुलिस कथित तौर पर आतंकी साज़िशों का भंडाफोड़ करते हुए लोगों की गिरफ़्तारियां करती है लेकिन अदालतों में इन्हीं मुक़दमों को आगे ले जाने में दिलचस्पी नहीं दिखाती. मूसा इनास का मामला मालदीव में आतंकवाद के दोषियों को कट्टरपंथी विचारधारा से दूर ले जाने से जुड़ी प्रक्रिया की कमज़ोरियों को उजागर करता है. 

आईएसआईएस ने मालदीव में हुई कुछ घटनाओं पर तो टीका-टिप्पणी की है लेकिन ये साफ़ नहीं है कि बाक़ी घटनाओं की वो ज़िम्मेदारी क्यों नहीं ले रहा है.

मालदीव की सरकार भी इस ख़तरे से निपटने को लेकर जद्दोजहद करती दिख रही है. और तो और इस ख़तरे की उसे पूरी तरह से समझ ही नहीं है. आईएसआईएस ने मालदीव में हुई कुछ घटनाओं पर तो टीका-टिप्पणी की है लेकिन ये साफ़ नहीं है कि बाक़ी घटनाओं की वो ज़िम्मेदारी क्यों नहीं ले रहा है. मालदीव की आबादी के हिसाब से वहां चरमपंथियों का अनुपात बहुत ज़्यादा है. आतंकी वारदातों का संभावित निशाना बनने वाले विदेशी सैलानी भी वहां भरपूर संख्या में मौजूद रहते हैं. वहां के रूढ़ीवादी मुसलमानों और इनमें से कुछ सैलानियों के बीच तनाव का माहौल भी अक्सर नज़र आ ही जाता है. इतना ही नहीं वहां के सुरक्षा बलों की काबिलियत पर भी सवालिया निशान हैं. इन तमाम परिस्थितियों में ये वाकई ताज्जुब की बात है कि वहां अबतक आतंकी हमलों की और घटनाएं देखने को नहीं मिलीं हैं. 

मालदीव के संदर्भ में यहीं से एक परेशान करने वाला सबब खड़ा होता है. इसपर आगे और मंथन किए जाने की ज़रूरत है. इस बात की संभावनाएं हैं कि आगे चलकर इस तरह की और घटनाएं देखने को मिल सकती हैं. बहरहाल यहां इस बात पर ध्यान देना ज़रूरी है कि न तो इनके बारे में बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाए और न ही इनपर ज़रूरत से ज़्यादा प्रतिक्रिया दिखाई जाए. इस मामले में मालदीव के समाज में साफ़ तौर से एक अदृश्य संतुलन व्याप्त है. इसी के चलते विस्फोटक हालात होने के बावजूद आतंकी घटनाओं की संख्या और दायरे सीमित रहे हैं (और इनका निशाना हमेशा ही कुछ ख़ास और चुनिंदा शख्सियतें रही हैं). चरमपंथ और आतंकवाद के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर कोई मुहिम छेड़े जाने से पहले इस गूढ़ संतुलन को समझना बेहद ज़रूरी है. अगर ऐसा नहीं किया गया और ज़रूरी एहतियात नहीं बरते गए तो एक छोटी सी चिंगारी के बहुत बुरे परिणाम देखने को मिल सकते हैं. 

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