9 मार्च 2023 को स्वीडन, फ़िनलैंड और तुर्किए ने ब्रसेल्स में नॉर्डिक देशों के नेटो में शामिल होने को लेकर त्रिपक्षीय वार्ता का दूसरा दौर आयोजित किया था. हालांकि यह बातचीत बिना किसी ठोस नतीजे के समाप्त हो गई लेकिन तुर्किए ने स्वीकार किया कि स्वीडन और फ़िनलैंड ने अपनी तरफ से कई कदम उठाए हैं, लेकिन नेटो में शामिल होने के लिए अंकारा से समर्थन प्राप्त करने के लिए यह पर्याप्त नहीं है. हालांकि वे आगे की बैठकें आयोजित करने पर सहमत हो गए लेकिन जनवरी 2023 में, स्टॉकहोम में तुर्किए दूतावास के पास विरोध प्रदर्शन के कारण तुर्किए ने त्रिपक्षीय वार्ता को स्थगित कर दिया, तब इस दौरान एक दक्षिणपंथी राजनेता द्वारा कुरान की एक प्रति जलाई गई थी. यह लेख दो नॉर्डिक देशों की परिग्रहण प्रक्रिया, इसमें हुई प्रगति और तुर्किए द्वारा उठाए गए सवालों की पृष्ठभूमि को उजागर करता है.
यह लेख दो नॉर्डिक देशों की परिग्रहण प्रक्रिया, इसमें हुई प्रगति और तुर्किए द्वारा उठाए गए सवालों की पृष्ठभूमि को उजागर करता है.
नेटो में स्वीडन के शामिल होने की कोशिश
यूक्रेन संकट के चलते यूरोपीय महाद्वीप के भीतर तटस्थ देशों के बीच सामरिक सुरक्षा के पुनर्मूल्यांकन का सवाल तेजी से पैदा हुआ है. यह सबसे ज़्यादा तब स्पष्ट हुआ जब स्वीडन और फिनलैंड ने अपनी-अपनी तटस्थता को छोड़ कर नेटो की सदस्यता लेने का विकल्प चुना. 1949 से आइसलैंड, डेनमार्क और नॉर्वे इस गठबंधन का हिस्सा रहे है जबकि स्वीडन और फ़िनलैंड ने तभी तटस्थ रहने का विकल्प चुना था. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि जब वे आधिकारिक तौर पर गठबंधन का हिस्सा नहीं थे, तब वे यूरोपीय संघ की सुरक्षा संबंधी पहल में सक्रिय भागीदार रहे और उस क्षेत्र की गतिशीलता को देखते हुए, उन्होंने "प्रादेशिक रक्षा की नीति विकसित की, जो सेना और रक्षा के उच्च स्तर के बज़ट पर आधारित है”. यूक्रेन संकट के बाद दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने अप्रैल 2022 में अपनी बैठक में दोहराया कि "यूक्रेन पर रूस के हमले से यूरोप के पूरे सुरक्षा माहौल में बदलाव आया है और नॉर्डिक देशों की मानसिकता में नाटकीय रूप से परिवर्तन आया है" और इस प्रकार दोनों देशों ने औपचारिक रूप से मई 2022 में नेटो में शामिल होने के लिए आवेदन किया.
हालांकि नेटो में शामिल होने की उनकी प्रक्रिया का तुर्की द्वारा इस आधार पर विरोध किया गया था कि दोनों नॉर्डिक देश कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (पीकेके) जैसे कुर्द सशस्त्र समूहों का समर्थन करना बंद कर दें और अंकारा को हथियारों की बिक्री करने पर प्रतिबंध ख़त्म कर दें. ऐसे विवादों के निपटारे के लिए तीनों देशों ने 28 जून 2022 को एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए. इसके तहत स्वीडन और फिनलैंड तीन अहम मुद्दों पर सहमत हुए: “पहला, तुर्किए को उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर पैदा होने वाले ख़तरों के ख़िलाफ़ समर्थन देना. इसके लिए फ़िनलैंड और स्वीडन ने पीपुल्स डिफेंस यूनिट्स/डेमोक्रेटिक9 यूनियन पार्टी (वाईपीजी/पीवायडी) को किसी तरह का समर्थन नहीं देने और तुर्किए में जिसे फतुल्लाह गुलेन मूवमेंट (एफईटीओ) संगठन के रूप में जाना जाता है उसके साथ कुर्दिश वर्कर्स पार्टी (पीकेके) को प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन के रूप में पहचान करना शामिल है; दूसरा, तुर्की द्वारा संदिग्ध आतंकियों के लंबे समय से निर्वासन और प्रत्यर्पण अनुरोध पर ज़ल्द से ज़ल्द एक्शन लेना; और तीसरा, इस बात की पुष्टि करना कि अब उनके बीच हथियारों को बेचने के मामले में किसी तरह का राष्ट्रीय प्रतिबंध नहीं है”. इस एमओयू पर हस्ताक्षर करने के साथ तुर्किए ने नॉर्डिक देशों की नेटो सदस्यता के आवेदन पर अपना विरोध वापस ले लिया और इस तरह नेटो के लिए औपचारिक रूप से उन्हें गठबंधन में शामिल होने के लिए आमंत्रित करने का रास्ता साफ हो गया.
फ़िनलैंड को लेकर तुर्किए की चिंताएं सहयोग से कुछ ज़्यादा हैं क्योंकि हेलसिंकी ने बहुत कम कुर्द आबादी को अपने यहां शरण दे रखा है. फिनलैंड को लेकर तुर्किए की चिंता सिर्फ इतनी है कि फिनलैंड ने यूरोपीय संघ के देशों के साथ मिलकर अंकारा पर हथियारों का प्रतिबंध लगाने में साथ दिया है.
जून 2022 में हुए समझौते के बाद बनी सहमति के बावज़ूद तुर्किए ने अभी तक इन देशों के नेटो में शामिल होने की प्रक्रिया पर आख़िरी मुहर नहीं लगाई है. इस लेख का नीचे का हिस्सा तुर्किए की उन चिंताओं का विश्लेषण करता है.
तुर्किए की चिंताएं
तुर्किए की ज़्यादातर चिंताएं पीकेके जैसे आतंकवादी संगठन के नेटवर्क के लिए एक सुरक्षित ठिकाने के रूप में स्वीडन और फिनलैंड की धरती के इस्तेमाल करने से उपजी है. अतीत में स्वीडन ने काफी संख्या में कुर्द शरणार्थियों को अपने यहां शरण दिया है जिसे तुर्किए ने तुर्की विरोधी गतिविधियों के लिए आधार और फंडिंग प्रदान करने के रूप में पहचाना है, हालांकि स्वीडन इससे हमेशा से इंकार करता रहा है. पीकेके को यूरोपीय संघ और अमेरिका द्वारा एक आतंकवादी संगठन घोषित किया गया है. इसके अलावा एक और मुद्दा जो तुर्किए ने उठाया है वह है हथियारों पर प्रतिबंध, जो साल 2019 में सीरिया में तुर्किए की कार्रवाई के बाद लगाया गया था. हालांकि तीनों नॉर्डिक देश जून 2022 में एक सहमति पर पहुंचे जिसके परिणामस्वरूप हथियारों पर लगी पाबंदियों को हटा लिया गया, हालांकि दूसरे पहलुओं पर, जैसे 130 'आतंकवादियों' के तुर्किए में प्रत्यर्पण सहित कई तरह की रियायतों पर अंकारा लगातार ज़ोर बनाए हुए है. फ़िनलैंड को लेकर तुर्किए की चिंताएं सहयोग से कुछ ज़्यादा हैं क्योंकि हेलसिंकी ने बहुत कम कुर्द आबादी को अपने यहां शरण दे रखा है. फिनलैंड को लेकर तुर्किए की चिंता सिर्फ इतनी है कि फिनलैंड ने यूरोपीय संघ के देशों के साथ मिलकर अंकारा पर हथियारों का प्रतिबंध लगाने में साथ दिया है.
वैसे स्वीडन और फ़िनलैंड दोनों ने त्रिपक्षीय एमओयू समझौते का पालन करने की दिशा में काम किया है और "पीकेके और दूसरे सभी आतंकवादी संगठनों की गतिविधियों को रोकने के साथ-साथ उनसे संबंधित और प्रेरित समूहों या नेटवर्क को रोकने के लिए" प्रतिबद्धता जाहिर की है. स्वीडन की संसद ने नवंबर 2022 में संवैधानिक संशोधन पारित किए, जो "आतंकवाद में संलग्न या समर्थन करने वाले समूहों की बात आने पर उसकी स्वतंत्रता को सीमित करने के लिए नए कानूनों को लागू करना" मुमकिन बनाते हैं और कुर्द समूहों से जुड़ी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानूनों को और सख़्त बनाते हैं. स्वीडन के प्रधान मंत्री उल्फ क्रिस्टरसन ने प्रस्तावित कानून को 'त्रिपक्षीय समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने' में एक अहम कदम बताया है. जबकि तुर्किए का कहना है कि यह पहले से उठाए गए कदमों को अपने साथ शामिल करता है. हालांकि नेटो में शामिल होने के स्वीडन के आवेदन के समर्थन में अंकारा का सामने आना फिलहाल दूर की कौड़ी नज़र आती है. स्वीडन कह चुका है कि कानूनन जो भी संभव था उसने वो सब कुछ किया है लेकिन अब तुर्किए वो मांग कर रहा है जो स्वीडन स्वीकार नहीं कर सकता है.
फ़िनलैंड के आवेदन के समर्थन को तुर्किए के राष्ट्रपति ने 17 मार्च 2023 को हरी झंडी दे दी, जिससे स्टॉकहोम से पहले हेलसिंकी के नेटो गठबंधन में शामिल होने का रास्ता साफ हो गया. उम्मीद है कि यह प्रक्रिया मई 2023 में तुर्किए में होने वाले चुनाव से पहले पूरी कर ली जाए.
नेटो के विस्तार में तुर्किए के विरोध ने नेटो गठबंधन के भीतर अंकारा की अपनी स्थिति से संबंधित सवालों को भी ला खड़ा किया है. अंकारा के पास नेटो में दूसरी सबसे बड़ी सेना है और यूरोप और एशिया के बीच इसकी ऐसी भौगोलिक स्थिति है जो इसे महत्वपूर्ण साझेदार बनाती है लेकिन यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि तुर्किए, नेटो का ऐसा सदस्य है जिसके हित संगठन के दूसरे सदस्य देशों के साथ संरेखित नहीं होते हैं. यह यूक्रेन संकट के दौरान तुर्किए के स्टैंड से साफ हो गया क्योंकि राष्ट्रपति एर्दोगन नेटो सदस्य देशों के उन कुछ नेताओं में से एक हैं जिन्होंने मॉस्को और कीव दोनों के साथ बातचीत का द्वार खुला रखा है. तुर्किए ने दोनों देशों के बीच अनाज की डील में भी अहम भूमिका निभाई. हालांकि तुर्किए ने रूस पर प्रतिबंधों को लागू नहीं करके नेटो गठबंधन के स्टैंड से ख़ुद को अलग कर लिया है और मॉस्को के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को जारी रखा है. इसके साथ ही तुर्किए ने यूक्रेन को ड्रोन जैसे महत्वपूर्ण हथियार भी बेचे और साथ ही ब्लैक सी रूट को बंद करने की निंदा कर अपनी स्थिति को संतुलित करने की कोशिश भी की है.
अब आगे क्या?
एक आशावादी शुरुआत के बावज़ूद, स्वीडन और फ़िनलैंड की नेटो सदस्यता दूर की कौड़ी नज़र आती है. क्योंकि आवेदन देने के नौ महीने बाद भी उनकी सदस्यता को हंगरी और तुर्किए से अनुमोदित किया जाना अभी बाकी है. जबकि बुडापेस्ट ने इन दोनों देशों के आवेदन के समर्थन का संकेत दिया हैलेकिन अंकारा ऐसा करने से अब तक इनकार करता रहा है. चूंकि नेटो में शामिल होने की प्रक्रिया के लिए किसी भी नए सदस्य को गठबंधन के सभी सदस्यों की सहमति लेना ज़रूरी है, लिहाज़ा स्वीडन और तुर्किए के बीच बढ़ती कड़वाहट इस पूरी प्रक्रिया में व्यवधान पैदा करने का जोख़िम बढ़ा रहा है, साथ ही फिनलैंड की एंट्री, जिसकी सदस्यता के तार स्टॉकहोम से जुड़े हैं, उसे भी अटका रहा है.
जबकि अंकारा ने पहले सुझाव दिया था कि वह फिनलैंड के आवेदन को अलग से आगे बढ़ा सकता है लेकिन इसे नॉर्डिक देशों और नेटो के महासचिव दोनों ने ख़ारिज़ कर दिया था. हालांकि पिछले एक महीने में फिनलैंड भी अब इस प्रक्रिया में अकेले आगे बढ़ने पर विचार कर रहा है. फ़िनलैंड में जनता की राय भी हेलसिंकी के नेटो सदस्यता प्रक्रिया में अकेले बढ़ने के पक्ष में है - 53 प्रतिशत लोग इस बात के पक्ष में हैं कि फ़िनलैंड का आवेदन स्वीडन की सदस्यता की समयरेखा पर निर्भर नहीं होना चाहिए और केवल 28 प्रतिशत लोग ही ऐसे हैं जो स्वीडन और फिनलैंड के साथ-साथ सदस्यता हासिल करने के पक्ष में हैं. 1 मार्च 2023 को फिनलैंड की संसद ने भारी बहुमत से नेटो विधेयक पारित किया, जिसने नेटो सदस्यता के लिए हेलसिंकी के दावे को और मज़बूत किया है. फ़िनलैंड के आवेदन के समर्थन को तुर्किए के राष्ट्रपति ने 17 मार्च 2023 को हरी झंडी दे दी, जिससे स्टॉकहोम से पहले हेलसिंकी के नेटो गठबंधन में शामिल होने का रास्ता साफ हो गया. उम्मीद है कि यह प्रक्रिया मई 2023 में तुर्किए में होने वाले चुनाव से पहले पूरी कर ली जाए.
हालांकि जब स्वीडन की सदस्यता की बात आती है तो तुर्किए का विरोध हथियारों के प्रतिबंध से लेकर दूसरे जटिल कारणों पर टिका नज़र आता है. हालांकि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि स्वीडिश समर्थन को तुर्किए में आतंकवादी समूहों को समर्थन देने के रूप में देखा जाता है. इसके अलावा, स्टॉकहोम में तुर्की दूतावास के सामने दक्षिणपंथी ताक़तों के प्रदर्शनों या फिर राष्ट्रपति एर्दोगन या कुरान के पुतले जलाने से इस मामले में मदद नहीं मिल सकती है. ऐसी गतिविधियों की अंकारा द्वारा कड़ी निंदा की गई है और इससे एक ओर जहां दोनों देशों के बीच बातचीत को रद्द करने की नौबत आई वहीं दूसरी ओर तुर्किए को अपनी चिंताओं के लिए स्वीडन के दृष्टिकोण के प्रति अधिक आलोचनात्मक रुख़ अपनाने पर मज़बूर किया है. स्वीडन के प्रधान मंत्री ने ऐसे प्रदर्शनों को स्टॉकहोम की नेटो सदस्यता के ख़िलाफ़ “व्यवधान पैदा करने वाली कार्रवाई” बताया और सरकार ने ख़ुद को ऐसी घटनाओं से अलग कर लिया लेकिन स्वीडन के अधिकारियों ने कहा कि ऐसे विरोध प्रदर्शन देश के फ्री स्पीच कानूनों के तहत गैरकानूनी नहीं कहे जा सकते. इस स्टैंड ने दोनों देशों के बीच गतिरोध को और बढ़ा दिया. यह स्वीडन या तुर्किए दोनों के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि अंकारा के लिए विरोध की अनुमति देने का स्वीडिश सरकार का निर्णय पूरी तरह से अस्वीकार्य था. हालांकि यह स्टॉकहोम और गठबंधन के अन्य सदस्यों के बीच, यूरोप में बदलती भू-राजनीतिक पृष्ठभूमि में नेटो का हिस्सा बनने के लिए नॉर्डिक देशों की इस ऐतिहासिक कोशिश के रास्ते में दीवार के रूप में खड़े अंकारा की नकारात्मक छवि पेश करता है. भले ही, मई '23 के आगामी तुर्किए चुनाव में राष्ट्रपति एर्दोगन को देश में आए हाल के भूकंप और दिक्कतों से जूझती अर्थव्यवस्था को लेकर कठिन चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, ऐसे में यह संभावना बेहद कम है कि तुर्किए जल्द ही स्वीडन के नेटो सदस्यता के आवेदन को हरी झंडी देगा.
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