2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने समावेशी वैश्विक विकास को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वाकांक्षी प्रस्ताव 2030 एजेंडा के ज़रिए सतत विकास लक्ष्य (SDG) को सामने रखा. 169 परिभाषित टारगेट के साथ 17 लक्ष्य हैं जो स्थान (समानता) और समय (स्थिरता) के पहलुओं पर विचार करते हुए समावेशी और टिकाऊ- दोनों के हिसाब से विकास को मापने के लिए एक व्यापक रूप-रेखा मुहैया कराते हैं. लेकिन महामारी के बाद की दुनिया में SDG को प्राथमिकता देना रणनीतिक दृष्टिकोण से अनिवार्य है, विशेष रूप से मौजूदा स्थिति को देखते हुए जो बताती है कि सभी 17 SDG को हासिल करने में दुनिया पीछे दिख रही है.
सतत व्यावसायिक पद्धतियां इन SDG को हासिल करने के लिए अनिवार्य बनी हुई हैं और हाल के वर्षों में इन्होंने ज़्यादा महत्व हासिल किया है.
सतत व्यावसायिक पद्धतियां इन SDG को हासिल करने के लिए अनिवार्य बनी हुई हैं और हाल के वर्षों में इन्होंने ज़्यादा महत्व हासिल किया है. लंबे समय से अस्तित्व में रहीं इन पद्धतियों को अब हमारी धरती पर ख़राब असर को कम करने और मानवता के भविष्य को सुरक्षित रखने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए स्वीकार किया जाता है. ये उन रणनीतियों के बारे में बताती हैं जो कंपनियों को लाभ बढ़ाने और स्थिरता के तीन आधारों– आर्थिक, पर्यावरणीय एवं सामाजिक- पर ध्यान देने में कंपनियों की मदद करती हैं.
इस तरह व्यवसाय के प्रदर्शन और सतत विकास के बीच दो-तरफा संबंध हैं. प्राइवेट सेक्टर और मल्टीलेटरल्स (बहुपक्षीय) वैश्विक SDG के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और कम समय के लिए लाभ को अधिक-से-अधिक करने के एकमात्र लक्ष्य से ध्यान हटाना एक महत्वपूर्ण बदलाव है. इसके बदले व्यवसाय दीर्घकालीन रणनीति तैयार करने के लिए तेज़ी से स्थिरता के मानदंडों को प्राथमिकता दे रहे हैं.
ये बदलाव कई कारकों (फैक्टर) से प्रेरित होता है. सबसे पहले, SDG पर ध्यान देने से पर्यावरणीय, राजनीतिक एवं सामाजिक पहलुओं से पैदा होने वाले दीर्घकालिक जोखिमों को कम करने में मदद मिलती है और नियामक नीतियों (रेगुलेटरी पॉलिसी) को लागू करने से पहले बाज़ार की प्रतिस्पर्धा की रक्षा होती है. दूसरा, SDG को हासिल करने से स्थिरता के जोखिमों एवं प्रभावों में पारदर्शिता को बढ़ावा मिलता है, सूचना से जुड़ी विषमता कम होती है और गवर्नेंस की प्रक्रिया बढ़ती है. इसके अलावा, व्यवसाय के समाधानों को SDG के साथ मिलाने पर रणनीतिक साझेदारी के माध्यम से बाज़ार के विस्तार, राजस्व को अधिकतम करने और नई नौकरी के लिए अवसरों का निर्माण होता है. अंत में, राष्ट्रीय और कॉरपोरेट बजट में जोड़कर SDG के लिए साझेदारी को गहरा करने पर व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा, बाज़ार के लचीलेपन और कंपनी की संपूर्ण सद्भावना में बढ़ोतरी होती है.
सप्लाई चेन को डिजिटाइज़ करना
वैसे तो कई अध्ययनों में सप्लाई चेन पद्धति के अलग-अलग पहलुओं की छानबीन की गई है लेकिन इसके बावजूद एक स्पष्ट अंतर मौजूद है जिनमें अलग-अलग उद्योगों में लागू होने वाली व्यापक रूप-रेखा की गैर-मौजूदगी शामिल है. आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था उत्पादों और सेवाओं को पहुंचाने के लिए बुनियाद के रूप में जटिल सप्लाई चेन नेटवर्क पर निर्भर करती है. सप्लाई चेन मैनेजमेंट (SCM) बिना किसी बाधा के सामानों और सेवाओं को व्यवस्थित करता है और उत्पादकों, बिचौलियों एवं इस्तेमाल करने वाले लोगों के बीच संबंधों को देखता है. जैसे-जैसे ये सप्लाई चेन जटिल और अस्पष्ट नेटवर्क में फैलती हैं, वैसे-वैसे चुनौतियां बढ़ती हैं. संसाधनों की कमी की पहचान, आबादी में बढ़ोतरी, शहरीकरण के रुझान, बाज़ार की गतिशीलता, अंतर्राष्ट्रीयकरण, उपभोक्ता की प्राथमिकता में बदलाव, तकनीकी प्रगति और जोखिम बड़ी बाधाएं हैं. ये चुनौतियां असरदार सप्लाई चेन मैनेजमेंट के लिए नए तरह के समाधान को ज़रूरी बनाती हैं.
वैसे तो कई अध्ययनों में सप्लाई चेन पद्धति के अलग-अलग पहलुओं की छानबीन की गई है लेकिन इसके बावजूद एक स्पष्ट अंतर मौजूद है जिनमें अलग-अलग उद्योगों में लागू होने वाली व्यापक रूप-रेखा की गैर-मौजूदगी शामिल है.
डिजिटाइज़ेशन एक परिवर्तनकारी शक्ति है जिसने संगठनों को अपनी सप्लाई चेन का एक व्यापक, रियल टाइम व्यू मुहैया कराया है. ये SDG 12 (सतत खपत और उत्पादन) के मुताबिक संगठनों को अधिकार मुहैया कराता है कि वो अपनी इन्वेंटरी ठीक कर सकें, डिलीवरी आसान बना सकें और बर्बादी कम-से-कम करें. इसके अलावा, ये डिजिटल तकनीकों के ज़रिए सप्लाई चेन के एकीकरण को अपनाने और लागू करने के लिए एक तरीका है. डिजिटल तकनीकें, जिनमें ऑटोमेशन, डेटा एनेलिटिक्स और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) शामिल हैं, व्यापक सप्लाई चेन के प्रदर्शन को बेहतर बनाने और कार्यकुशलता बढ़ाने में मददगार हैं.
तकनीकों को इस तरह अपनाने से रियल टाइम में डेटा हासिल करने, बिना किसी दिक्कत के संचार और सुव्यवस्थित प्रक्रियाओं में आसानी होती है. इसके नतीजतन उपभोक्ताओं की मांग को प्रभावी ढंग से पूरा करके प्रतिस्पर्धा में बढ़ोतरी होती है और व्यापक व्यावहारिकता में सुधार होता है. पश्चिमी बाल्कन रीजन में की गई रिसर्च से पता चला है कि हिस्सेदारों के बीच सटीक जानकारी का समय पर आदान-प्रदान होने से सामान ख़राब होने में कमी आती है और इस तरह नष्ट होने वाली सप्लाई चेन की स्थिरता में बढ़ोतरी होती है. सप्लाई चेन के ज़रिए सामानों के फ्लो के समय में 11 प्रतिशत की कमी आई और उत्पादकों के लिए इन्वेंटरी लागत में 8.69 प्रतिशत की कमी आई जबकि रिटेल सेक्टर के लिए 20.60 प्रतिशत.
पिछले दिनों की रिसर्च सप्लाई चेन के भीतर स्थिरता के प्रदर्शन को बढ़ाने में डिजिटल तकनीकों की क्षमता का संकेत देती है. ये मार्गदर्शन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित तकनीकों पर विचार करते हुए संगठनों के लिए ख़ास तौर पर कीमती हो जाता है. डिजिटाइज़ेशन ने नए व्यवसाय के मॉडल का रास्ता भी तैयार कर दिया है जैसे कि सर्कुलर इकोनॉमी. इस तरह वेस्ट (नुकसान) में कमी, संसाधन संरक्षण और सतत वैल्यू के निर्माण पर ध्यान दिया जाता है.
पिछले दिनों की रिसर्च सप्लाई चेन के भीतर स्थिरता के प्रदर्शन को बढ़ाने में डिजिटल तकनीकों की क्षमता का संकेत देती है. ये मार्गदर्शन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित तकनीकों पर विचार करते हुए संगठनों के लिए ख़ास तौर पर कीमती हो जाता है.
दो मौजूदा डिजिटल तकनीकें- IoT और बिग डेटा एनालिटिक्स (BDA)- आज के समय के व्यावसायिक परिदृश्य में हटकर हैं. IoT, जो कि एक-दूसरे से जुड़ी डिवाइस का नेटवर्क है जो डेटा जमा करते और भेजते हैं, रियल टाइम में काम-काज के बारे में जानकारी मुहैया कराता है. एक्सेंचर और वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के द्वारा की गई एक समीक्षा बताती है कि जब अलग-अलग सेक्टर में डिजिटल तकनीकों का विस्तार किया जाता है तो उनमें 2050 तक उत्सर्जन में आवश्यक कमी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा- 20 प्रतिशत तक- योगदान करने की क्षमता होती है ताकि अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की तरफ से ऊर्जा, सामग्री और मोबिलिटी सेक्टर में शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य के साथ जुड़ सकें. इन क्षेत्रों में डिजिटल टेक्नोलॉजी को तेज़ी से अपनाने से उत्सर्जन में 4 से 10 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है.
इसके साथ ही, पारदर्शिता और डेटा शेयरिंग के ज़रिए सप्लाई चेन मैनेजमेंट में क्रांतिकारी बदलाव लाने की अपनी क्षमता के कारण ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी ध्यान खींचती है. जैसे-जैसे डिजिटाइज़ेशन सप्लाई चेन के भीतर सहयोग को बदलता है, स्थिरता केंद्र में आ जाती है. सप्लाई चेन मैनजमेंट में इंडस्ट्री 4.0 की भूमिका की पड़ताल की जा रही है. व्यवसायों को उम्मीद है कि डिजिटाइज़ेशन सप्लाई चेन के भीतर ऊर्जा प्रबंधन (एनर्जी मैनेजमेंट) और जानकारी के हस्तांतरण (नॉलेज ट्रांसफर) के लिए बिग डेटा एनेलिटिक्स के ज़रिए स्थिरता को बढ़ाएगा.
सप्लाई चेन मैनेजमेंट की पद्धतियों को बदलना
परंपरागत तौर पर सप्लाई चेन मैनेजमेंट कार्यकुशलता और लाभ को प्राथमिकता देता है. लेकिन अब इसका ध्यान पर्यावरणीय, सामाजिक एवं आर्थिक पहलुओं को अपनाते हुए स्थिरता की तरफ चला गया है. ये बदलाव विशेष रूप से उभरती अर्थव्यवस्थाओं जैसे कि भारत, चीन और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में साफ तौर पर दिखता है जहां सप्लाई चेन के प्रदर्शन को मापना व्यापक काम-काज के विश्लेषण और उसे बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण हो गया है. व्यवस्थात्मक समीक्षा से पता चलता है कि प्रदर्शन को बढ़ाने के लिए माप (मेज़रमेंट) मैट्रिक्स और प्रबंधन रूप-रेखा (मैनेजमेंट फ्रेमवर्क) की आवश्यकता है, ये स्थिरता के लिए बढ़ती चिंता पर ज़ोर देता है.
स्थिर सप्लाई चेन तीन महत्वपूर्ण खंभों पर बनी हुई है जो सामूहिक रूप से एक संतुलित और लचीली सप्लाई चेन के नेटवर्क की बुनियाद हैं: ए) आर्थिक स्थिरता जो जोखिमों के प्रबंधन, पर्यावरणीय एवं सामाजिक कारकों से रुकावटों को कम करके और प्रतिष्ठा की रक्षा के द्वारा दीर्घकालीन लाभ को सुनिश्चित करती है; बी) पर्यावरण स्थिरता जो कार्बन फुटप्रिंट को कम करती है और व्यवसाय की पद्धतियों को सकारात्मक पर्यावरणीय योगदान में बदलती है; और सी) सामाजिक स्थिरता जो मानवाधिकार को कायम रखकर, उचित श्रम पद्धतियों को बढ़ावा देकर और सामाजिक ज़िम्मेदारी पर ज़ोर देकर सामाजिक कल्याण में योगदान देती है.
आंकड़ा 1: स्थिरता पर सप्लाई चेन के असर की एक रूप-रेखा
स्रोत: सलिनास-नवारो और अन्य
निष्कर्ष ये है कि स्थिर संचालन और सप्लाई चेन मैनेजमेंट केवल परोपकारी प्रयास नहीं हैं बल्कि एक ज़िम्मेदार और आगे की तरफ सोचने वाली व्यावसायिक रणनीति के मूलभूत घटक हैं. उत्पादन, लॉजिस्टिक, ख़रीद (प्रोक्यूरमेंट) और संसाधनों को हासिल करने (सोर्सिंग) में स्थिरता को अपनाना एक अधिक लचीली और नैतिक व्यावसायिक दुनिया की तरफ बुनियादी कदम है. ये रणनीतिक अनिवार्यता न केवल लाभ, लचीलेपन और प्रतिस्पर्धा को बढ़ाती है बल्कि व्यापक रूप से धरती और समाज पर भी सकारात्मक असर डालती है. जैसे-जैसे व्यवसाय 21वीं सदी की चुनौतियों का सामना करते हैं, वैसे-वैसे स्थिरता न केवल एक विकल्प है बल्कि आगे का रास्ता है.
सौम्य भौमिक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी में एसोसिएट फेलो हैं.
इंद्राणी मुखर्जी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं.
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