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पिछले साल की शुरुआत में श्रीलंका ने दिवालियेपन की घोषणा की जिससे उसके ऋण चुकाने में नाकाम रहने की आशंका प्रबल होती गई. श्रीलंका की आर्थिक संकट की शुरुआत 2015 से हुई जब एक प्रमुख बॉन्ड घोटाले के बाद देश के सेंट्रल बैंक की विश्वसनीयता कम होती चली गई. पिछले दो दशकों से श्रीलंका अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ), चीन, भारत और जापान से देश में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की फंडिंग के नाम पर बड़ी मात्रा में उधार ले रहा था, जिससे ऋण की अस्थिरता बढ़ती चली जा रही थी और देश की अर्थव्यवस्था अनिश्चित मैक्रोइकॉनॉमिक डायनेमिक्स की ओर फिसलने लगा था. उच्च-ब्याज़ ऋण अदायगी और देश के इतिहास के सबसे तगड़े राजनीतिक झटके के बीच, 100 फ़ीसदी जैविक कृषि नीति के प्रति सरकार का दोषपूर्ण निर्णय और आयातित उर्वरकों के उपयोग पर प्रतिबंध की वज़ह से कृषि उत्पादन में 50 प्रतिशत की गिरावट दर्ज़ की गई, जिसने श्रीलंका के उम्मीदों पर एक तरह से स्थायी रूप से ग्रहण लगा दिया. जैसे-जैसे आपूर्ति घटती गई, भोजन की क़ीमतें आसमान छूती गईं. इस तरह सरकार को चावल, गेहूं और दाल जैसी आवश्यक खाद्यान्न वस्तुओं का आयात करने के लिए मज़बूर होना पड़ा.
पिछले दो दशकों से श्रीलंका अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ), चीन, भारत और जापान से देश में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की फंडिंग के नाम पर बड़ी मात्रा में उधार ले रहा था, जिससे ऋण की अस्थिरता बढ़ती चली जा रही थी और देश की अर्थव्यवस्था अनिश्चित मैक्रोइकॉनॉमिक डायनेमिक्स की ओर फिसलने लगा था.
निश्चित रूप से, वैश्विक घटनाओं ने श्रीलंका की बदकिस्मती में अपनी भूमिका निभाई. कोरोना महामारी ने देश के फलते-फूलते पर्यटन क्षेत्र पर गहरा जख़्म छोड़ा है जो देश के सकल घरेलू उत्पाद का 12.6 प्रतिशत और इसकी विदेशी आय का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत है और 2019 के ईस्टर बम विस्फोटों के बाद ज़्यादा प्रभावित हुआ है. इसके अलावा, यूक्रेन-रूस युद्ध के विनाशकारी प्रभाव ने कच्चे तेल की क़ीमत बढ़ाकर और विदेशों से आने वाले पर्यटकों की तादाद में कमी ला कर श्रीलंका जैसे देश में खाद्य और ईंधन संकट को ज़बर्दस्त तरीक़े से बढ़ा दिया. चीन, जहां से श्रीलंका में तीसरी सबसे बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं, अब स्वास्थ्य संकट से जूझ रहा है. राजकोषीय घाटे में वृद्धि, घटते विदेशी मुद्रा भंडार और डेपरिसियेटिंग करंसी यानी मुद्रा की गिरावट ने अनियंत्रित मुद्रास्फीति की स्थिति पैदा की और श्रीलंका 1948 में यूनाइटेड किंगडम (यूके) से अपनी स्वतंत्रता के बाद सबसे ख़राब आर्थिक मंदी का सामना कर रहा है. इन सभी कारणों ने ताक़तवर राजपक्षे शासन को समाप्त कर दिया.
महीनों के विचार-विमर्श के बाद, सितंबर 2022 की शुरुआत में श्रीलंका और आईएमएफ एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी (ईएफएफ) के तहत भारत और चीन सहित अपने बहुपक्षीय लेनदारों से वित्तीय समर्थन पर सशर्त लगभग 2.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर के लिए एक स्टाफ लेवल अग्रीमेंट पर पहुंचे. इसके अलावा अपने सबसे बड़े द्विपक्षीय कर्ज़दाताओं से समर्थन के लिए, बेलआउट पैकेज के लिए श्रीलंका को अपनी आर्थिक नीतियों के पुनर्गठन और अपने सभी हितधारकों के बीच अंतिम सहमति तक पहुंचने का वादा करना ज़रूरी होगा. श्रीलंका को समर्थन देने में, भारत ने डेट ससटेनिबिलिटी अनालिसिस (डीएसए) के आधार पर अपनी ऋण पुनर्गठन योजना के तहत संकटग्रस्त देश की मदद करने का संकल्प लिया. 7.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर या उसके पब्लिक एक्सटरनल डेट के लगभग पांचवे हिस्से के साथ चीन, श्रीलंका का सबसे बड़ा लेनदार है – उसने भी कथित तौर पर अपेक्षित वित्तीय आश्वासन के लिए हरी झंडी दे दी है. हालांकि, बीजिंग में अभी भी आईएमएफ के कार्यकारी बोर्ड के साथ लोन मोरेटोरियम पीरियड (ऋण अधिस्थगन अवधि) और डेट रिस्ट्रक्चरिंग (ऋण संरचना) की अन्य शर्तों को लेकर मतभेद बना हुआ है.
महीनों के विचार-विमर्श के बाद, सितंबर 2022 की शुरुआत में श्रीलंका और आईएमएफ एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी (ईएफएफ) के तहत भारत और चीन सहित अपने बहुपक्षीय लेनदारों से वित्तीय समर्थन पर सशर्त लगभग 2.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर के लिए एक स्टाफ लेवल अग्रीमेंट पर पहुंचे.
आईएमएफ को विकासशील दुनिया, विशेष रूप से दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी उधार देने वाली संस्था के रूप में धीरे-धीरे हटाकर, चीन ने श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे वित्तीय रूप से संकटग्रस्त देशों को ऋण दे कर, जिन्होंने पहले बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत चीन की शर्तों को स्वीकार किया था, जिनकी स्थिति काफी नीचे है, वैश्विक विकास में अपना स्थान बना लिया है. इसने अन्य लेनदार देशों को चीनी कर्ज़ के प्रभाव से सावधान कर दिया है जिन्होंने अपनी विवादास्पद योजनाओं के तहत चीन जैसे एशियाई जायंट के साथ भागीदारी को अंजाम दिया है.
बहुचर्चित बीआरआई के तहत, चीनी सरकार सहयोगी राष्ट्रों को ढांचागत विकास के लिए सस्ते कर्ज़ और अनुदान प्रदान करती है – यह एक ऐसी प्रतिबद्धता है जिसे श्रीलंका अब निभाने में ख़ुद को असमर्थ पाता है. 2017 में बैलेंस ऑफ पेयमेंट संकट यानी भुगतान संकट के संतुलन के बाद, श्रीलंका ने चीन से संपर्क किया लेकिन चीन ने इसे नज़रअंदाज़ कर दिया क्योंकि इसे किसी एक सहयोगी के पक्ष में नहीं देखा जा सकता था. 2023 में चीन कठिन परिस्थितियों में फंसा हुआ है, जो स्वास्थ्य संकट से जूझ रहा है और वैश्विक अर्थव्यवस्था (18 प्रतिशत जिसमें चीन शामिल है) में इस वर्ष 2.7 प्रतिशत की कम विकास दर हासिल कर सकता है. वैश्विक आर्थिक मंदी के प्रभाव और ज़ीरो-कोविड पॉलिसी के नकारात्मक असर होने से चीन के लिए राजस्व में कमी आएगी क्योंकि वायरस से निपटने के लिए चीन सभी उत्पादन और निर्माण गतिविधियों को रोक देता है. जैसा कि अनुमान लगाया गया था, करंसी स्वैप यानी मुद्रा अदला-बदली और चीन से वित्तीय सहायता के लिए श्रीलंका के अनुरोधों को नज़रअंदाज़ कर दिया गया है.
5 दिसंबर 2022 को विश्व बैंक (डब्ल्यूबीजी) ने पुष्टि की कि श्रीलंका ने रिवर्स ग्रेजुएशन किया है और इंटरनेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन (आईडीए) से फंडिंग के लिए योग्य है. डब्ल्यूबीजी ने श्रीलंका को संकट से बाहर निकालने में मदद करने और राष्ट्र को किफ़ायती फंडिंग, तकनीक़ी सहायता और नीति सलाह प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धता के बारे में विस्तार से बताया. श्रीलंका का अधिकांश ऋण पश्चिम से उधार लेने के कारण है, बकाया विदेशी ऋण के 12 प्रतिशत के साथ चीन देश का सबसे महत्वपूर्ण द्विपक्षीय लेनदार है. अगर चाइनीज़ पॉलिसी बैंक्स से लिए गए ऋणों का लेखा-जोखा रखा जाए तो चीन से कर्ज़ काफी मात्रा में लिया गया है. श्रीलंका ने चीन के एक्ज़िम बैंक से 4.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर और चीन डेवलपमेंट बैंक से 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण लिया है जो चीन के एक्जिम बैंक से लिए गए कुल बकाया विदेशी ऋण का 19.6 प्रतिशत है.
यह देखना हैरान करने वाला है कि डेट रिस्ट्रक्चरिंग वार्ताओं को निर्धारित करने के लिए एक सक्रिय प्रयास और ऋण की एक बड़ी राशि पर पश्चिम देशों के बकाए के साथ उन्होंने डेट रिस्ट्रक्चरिंग वार्ताओं को निर्धारित करने के लिए एक सक्रिय प्रयास नहीं किया और एक ऐसे देश को वित्तीय सहायता प्रदान किया जो राजनीतिक अशांति और आर्थिक अनिश्चितता में बुरी तरह से फंसा हुआ था.
दूसरी ओर, पश्चिम, उसके सहयोगियों, विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक के बकाया वित्तीय ऋण का 80 प्रतिशत अंतर्राष्ट्रीय सार्वभौम बॉन्ड के रूप में और वेस्टर्न वल्चर हेज फंड के लिए बाज़ार कर्ज़ के रूप में श्रीलंका का कर्ज़ है - ब्लैकरॉक (यूएस), एशमोर ग्रुप (ब्रिटेन), एलियांज (जर्मनी), यूबीएस (स्विट्जरलैंड), एचएसबीसी (ब्रिटेन), जेपी मॉर्गन चेस (यूएस) और प्रूडेंशियल (यूएस) इसमें अहम हैं. इसलिए यह देखना हैरान करने वाला है कि डेट रिस्ट्रक्चरिंग वार्ताओं को निर्धारित करने के लिए एक सक्रिय प्रयास और ऋण की एक बड़ी राशि पर पश्चिम देशों के बकाए के साथ उन्होंने डेट रिस्ट्रक्चरिंग वार्ताओं को निर्धारित करने के लिए एक सक्रिय प्रयास नहीं किया और एक ऐसे देश को वित्तीय सहायता प्रदान किया जो राजनीतिक अशांति और आर्थिक अनिश्चितता में बुरी तरह से फंसा हुआ था.
इस बीच श्रीलंका अपने व्यापारिक भागीदारों से प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रहा है और यह सुनिश्चित करने के लिए आईडीए जल्द से जल्द 2.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर के ऋण को सुनिश्चित करने के लिए किंक (कंडिशनल ऑस्टेरिटी मेजर्स जिसमें सरकारी इंटरप्राइजेज़ को बेचना, सरकारी नौकरियों को कम करना और करों में वृद्धि करना शामिल है) पर काम कर रहा है. इस बीच भारत इस प्रक्रिया को तेज़ करने में कम योगदान दे सकता है लेकिन यह संकट भारत के लिए श्रीलंका के रणनीतिक सदाबहार सहयोगी के रूप में अपनी स्थिति को मज़बूत करने और श्रीलंका के साथ उथल-पुथल भरे राजनयिक संबंधों को सुधारने का सही मौक़ा देता है.
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Soumya Bhowmick is a Fellow and Lead, World Economies and Sustainability at the Centre for New Economic Diplomacy (CNED) at Observer Research Foundation (ORF). He ...
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