श्रीलंका जैसे-जैसे आर्थिक रूप से बेहतर स्थिति में आ रहा है यह अपनी रक्षा और सुरक्षा स्थिति को फिर से परख रहा है. अपने गृहयुद्ध के बाद श्रीलंका अपने रक्षा बलों और सुरक्षा पर बहुत धन खर्च करता रहा है. हालांकि, आर्थिक संकट की शुरुआत के साथ ही यह भी समझ भी बढ़ी है कि अधिक सैन्य खर्च की वजह से निवेश और आर्थिक विकास कम हुआ है. यह ज़ोरदार मांग हो रही है कि सैन्य आकार को कम किया जाये, ख़रीदारी और क्षमता निर्माण को प्रोत्साहित किया जाए और भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिए तक़नीकी और सामरिक रूप से सुसज्जित सेना बनाई जाए. ऐसा माना जा रहा है कि सेना में संख्या बल को कम कर 2024 तक 1,35,000 और 2030 तक 1,00,000 कर दिया जाएगा. इन सुधारों का श्रीलंका के रक्षा संबंधों पर असर पड़ेगा और हो सकता है कि भारत को उससे अपनी साझेदारी बढ़ाने का मौका मिले.
अपने गृहयुद्ध के बाद श्रीलंका अपने रक्षा बलों और सुरक्षा पर बहुत धन खर्च करता रहा है. हालांकि, आर्थिक संकट की शुरुआत के साथ ही यह भी समझ भी बढ़ी है कि अधिक सैन्य खर्च की वजह से निवेश और आर्थिक विकास कम हुआ है.
खर्च को समझें
ईलम युद्ध के आखिरी चरण के बाद, श्रीलंकाई सशस्त्र बलों ने देश में रक्षात्मक और शांति स्थापना की (या शांति लागू करने वाली) भूमिका अपनाई. गृहयुद्ध ख़त्म होने के बाद से कुल सैन्यकर्मियों की संख्या बढ़ी है (टेबल-1) और बजट आवंटन और रक्षा खर्च (जीडीपी का प्रतिशत) में कोई उल्लेखनीय गिरावट नहीं दिखी है. गृह युद्ध के समय सुरक्षा पर बजट का आवंटन ज़्यादा ही रहता था और मामूली फेरबदल के साथ 2022 के आर्थिक संकट तक यह ऐसा ही रहा. 2015 से इसके रक्षा खर्च में 2 प्रतिशत का उतार-चढ़ाव आया और इस पर सरकार का खर्च उल्लेखनीय रूप से ज़्यादा रहा. साल 2017 में ही सरकार के कुल खर्च में से रक्षा पर खर्च 11 प्रतिशत तक पहुंच गया था.
टेबल 1. श्री लंका का रक्षा बजट, खर्च और सैन्य कर्मचारी
साल |
रक्षा पर बजट आवंटन (अमेरिकी डॉलर बिलियन में) |
रक्षा पर खर्च जीडीपी का प्रतिशत |
कुल सैन्य कर्मचारी |
2008 |
1.54 |
4.15% |
1,50,900 |
2010 |
1.86 |
2.85% |
1,60,900 |
2013 |
1.82 |
2.79% |
1,60,900 |
2015 |
1.85 |
2.33% |
1,60,900 |
2016 |
1.96 |
2.38% |
2,43,000 |
2017 |
1.70 |
2.04% |
2,43,000 |
2018 |
1.74 |
1.88% |
2,43,000 |
2019 |
1.67 |
1.93% |
2,55,000 |
2020 |
1.59 |
1.96% |
2,55,000 |
2021 |
1.53 |
1.89% |
2,55,000 |
2022 |
1.15 |
1.97% |
2,55,000 |
स्रोत:आईआईएसएस
इस निरंतर खर्च और व्यय की वजहें कई सारी हैं. सैन्य बलों की लोकप्रियता और राष्ट्रवाद, बेरोज़गारी के साथ ही आर्थिक और सम्पूर्ण सुरक्षा की आवश्यकता की वजह से सैन्यकर्मियों की संख्या में बढ़ोत्तरी जारी रहती है. इसके अलावा राष्ट्रीय सुरक्षा स्थिति की समीक्षा करने में सरकार की अनिच्छा, रणनीतिक साधनों और परिणामों की समझ की कमी, भारी भ्रष्टाचार और सेना की व्यावसायिक उपक्रमों, निर्माण और विकास गतिविधियों में संलिप्तता इस अवहनीय आवंटन और ख़र्च की वजह बनती हैं. इन कारकों को और भी जटिल बनाती है देश की राष्ट्रवादी राजनीति, सेना की लोकप्रियता और स्वीकार्यता के साथ ही सेना और राजनीति का एक-दूसरे के क्षेत्र में दखल. सेना के पास देश के नागरिक प्रशासन में महत्वपूर्ण पदों की ज़िम्मेदारी रहती है और संकट के समय इसको अतिरिक्त शक्तियां भी दी जाती हैं, जैसा कि कोविड-19 महामारी और आर्थिक संकट के दौरान देखा गया.
हालांकि, इस तरह खर्च किए जाने का एक महत्वपूर्ण कारण देश का निरंतर सैन्यीकरण है. गृहयुद्ध के समापन के बाद भी तमिलों की आपत्तियों और समाधान पर विचार नहीं किया गया है. सिंहल राष्ट्रवादियों को देश में शांति बनाए रखने का एकमात्र समाधान तमिल क्षेत्रों का सैन्यीकरण ही लगता है. उधर वे (तमिल) सैन्यीकरण को लेकर सशंकित रहते हैं. आज भी सेना की 21 डिवीजनों में से 14 डिवीजन देश के तमिल-बहुल उत्तरी क्षेत्रों में तैनात हैं. स्थिति यह है कि कुछ जिलों में यह अनुपात, हर दो नागरिकों पर एक सैनिक, भी हो सकता है. अक्सर इन क्षेत्रों में सेना ज़मीन पर कब्ज़ा कर लेती है, व्यापार करती है और ऐसे मामलों में नागरिक प्रशासन की परवाह नहीं करती.
रक्षा साझेदारी को पोषित करना
श्रीलंका का यह सैन्यीकरण अक्सर भारत के हितों के खिलाफ चला जाता है. भारत ने कई बार श्रीलंका में समानता, शांति, सुलह और लोकतंत्र को प्रोत्साहन देने का काम किया है. इसके अलावा, भारत ने 13वें संशोधन का भी उत्साह के साथ समर्थन किया है- इसका मतलब यह है कि कोलंबो को प्रांतों को ज़्यादा ज़मीन और पुलिस के अधिकार देने होंगे. यह एक ऐसी मांग है जिसे लागू करने में श्रीलंका हिचकिचाहट दिखाता है, उसे डर है कि ज़मीन और कानून व्यवस्था पर नियंत्रण ढीला करने से अलगाववादी प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिलेगा. हाल ही में, राष्ट्रपति विक्रमसिंघे भी 13वें संशोधन को लागू करने की समयसीमा को चूक गए हैं.
तमिल क्षेत्रों के सैन्यीकरण ने भारत को इस द्वीपीय राष्ट्र को मज़बूती के साथ रक्षा क्षेत्र में निर्यात से रोके रखा है. चीन और अन्य देशों की तुलना में श्रीलंका को भारत का रक्षा क्षेत्र में निर्यात बेहद कम है (टेबल 2). उपकरणों की बात की जाए तो भारत श्रीलंका को हमलावर विनाशकारी हथियारों देने से बचा है और उसे गाड़ियों के इंजन, गश्त करने वाले वाहन और आकाश में नज़र रखने वाले रडार ही उपलब्ध करवाए हैं.
2021 में, भारत ने फिर से श्रीलंका के लिए 308 से अधिक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए. औपनिवेशिक विरासत और संस्थागत समानताओं की वजह से श्रीलंकाई कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण की पहली पसंद भारत बनता है.
हालांकि, इसके बाद भी भारत और श्रीलंका के बीच रक्षा साझेदारी निरंतरता के साथ बढ़ रही है. दोनों देश थल सेना के लिए ‘मित्र शक्ति’, नौसेना के लिए ‘स्लाइनेक्स’ (SLINEX) और जैसे द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास और मालदीव के साथ एक त्रिपक्षीय कोस्टगार्ड अभ्यास ‘दोस्ती’ करते हैं. रक्षा सहयोग में भारत का मजबूत पक्ष इसका क्षमता निर्माण और सैन्य प्रशिक्षण है. 2019 में, इसने श्रीलंकाई सेना के लिए 344 प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जबकि चीन ने केवल 86. 2021 में, भारत ने फिर से श्रीलंका के लिए 308 से अधिक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए. औपनिवेशिक विरासत और संस्थागत समानताओं की वजह से श्रीलंकाई कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण की पहली पसंद भारत बनता है. 60 प्रतिशत से ज़्यादा श्रीलंकाई सैन्यकर्मी शुरुआती, कनिष्ठ और वरिष्ठ कमान पाठ्यक्रमों को भारत में करना चाहते हैं. तमिलनाडु से इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों को रद्द करने के लिए राजनीतिक दबाव के बावजूद नई दिल्ली ने इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों को जारी रखा है.
टेबल 2. श्रीलंका को हथियारों का निर्यात
देश |
हथियारों का कुल निर्यात, मिलियन डॉलर में (1950-2023) |
चीन |
756 |
इज़्राइल |
490 |
अमेरिका |
304 |
यूक्रेन |
214 |
रूस |
190 |
यूके |
145 |
भारत |
140 |
स्रोत: सिपरी
दूसरी ओर, श्रीलंका के गृहयुद्ध के अंतिम चरण के दौरान चीन का श्रीलंका से रक्षा सहयोग बढ़ा. 1970 के दशक में, चीन ने श्रीलंका को यातायात और गश्ती जहाज़, सशस्त्र पैदल सैनिकों के वाहन और कैरियर और तोप उपलब्ध करवाई थीं. लेकिन, युद्ध के अंतिम चरण के दौरान, इसने आकाश में नज़र रखने वाली राडार प्रणाली और लड़ाकू जेट और हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल जैसे हमलावर हथियार भी देना शुरू किया. इसके अलावा चीन ने श्रीलंका को तब 35 मिलियन अमेरिकी डॉलर की सैन्य सहायता दी जब अधिकांश देश उसका समर्थन करने में संकोच कर रहे थे. यह रक्षा सहयोग दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को और मज़बूत बनाता है. आज श्रीलंका का सबसे बड़ा हथियार निर्यातक चीन है (टेबल 2), जो उसके साथ 756 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक के सौदे करता है.
गृहयुद्ध के बाद, चीन और श्रीलंका के रक्षा सहयोग का विस्तार विभिन्न क्षेत्रों में हुआ. चीनी युद्धपोत और पनडुब्बियां उसके बंदरगाहों पर पहुंचने लगे थे और और 2012 में पहली बार- एक चीनी रक्षा मंत्री ने श्रीलंका का दौरा किया. दोनों देशों ने संयुक्त रूप से मानवीय और आपदा प्रतिक्रिया अभियान, संयुक्त आतंकवाद-विरोधी प्रशिक्षण और कोरमोरेंट स्ट्राइक जैसे संयुक्त अभ्यास भी आयोजित किए. उन्होंने सैन्य सहायता प्रोटोकॉल समझौते और रणनीतिक सहयोग साझेदारी समझौते पर भी हस्ताक्षर किए हैं. चीन के श्रीलंका में निवेश और भारत समेत बाकी क्वॉड (QUAD) सदस्यों के साथ प्रतिस्पर्धा ने भी उसकी (श्रीलंका के साथ) रक्षा साझेदारी में रुचि को बढ़ाया है.
सुधार और भारत के लिए मौके
अब तक, भारत और चीन को श्रीलंका के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाने की कोशिशों के दौरान अलग-अलग तरह के फ़ायदे मिले हैं और चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. हालांकि, श्रीलंका की अपनी सेना को सही आकार देने और भविष्य की चुनौतियों के लिए एक सुसज्जित बल बनाने की कोशिशों में भारत को अपने पड़ोसी देश के साथ साझेदारी को और विस्तार देने करने के लिए मौके मिलते हैं. ऐसे में भारत के निम्न कारणों से फ़ायदे की स्थिति में है: पहला, श्रीलंका के संदर्भ में यह पहले ही आगे है और दूसरा ये सुधार कुछ हद तक इसके इसके रक्षा निर्यात को लेकर धर्मसंकट को ख़त्म कर देंगे.
आर्थिक संकट शुरू होने के साथ ही चीन के श्रीलंका की रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लिए प्रयास बंद हो गए. आखिरी बार बीजिंग ने 2019 में कोलंबो को एक युद्धपोत का प्रस्ताव दिया था. लेकिन भारत ने श्रीलंका की नौसैन्य क्षमताओं को बढ़ाने में आगे बढ़कर रुचि दिखाई. यह दो डॉरनियर सर्विलेंस विमान, एक तैरते बंदरगाह के निर्माण और श्रीलंका में एक समुद्री रक्षा समन्वय केंद्र स्थापित करने को तैयार हो गया है. भारत ने श्रीलंका को भी सूचना विलय केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र (IFC-IOR) में भी शामिल कर लिया है. इसके अलावा, जैसे ही श्रीलंका का सुधारों को लेकर नज़रिया साफ़ हुआ, भारत ने सेना के क्षमता निर्माण और पूंजीगत खर्च को बढ़ावा देने का प्रयास किया. दरअसल, नई दिल्ली ने प्रशिक्षण सहयोग को बढ़ाने और श्रीलंका में एक छोटा निर्माण प्लांट स्थापित करने के लिए बातचीत शुरू कर दी है. जून 2023 में भारत ने अब तक की अपनी पहला रक्षा प्रदर्शनी भी आयोजित की है. ऐसी उम्मीद की जा रही है कि इन पहलों से रक्षा आयात के लिए श्रीलंका की दूसरों पर निर्भरता कम होगी और भारत के साथ ज़्यादा नज़दीकी संबंधों को बढ़ावा मिलेगा.
आर्थिक संकट शुरू होने के साथ ही चीन के श्रीलंका की रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लिए प्रयास बंद हो गए. आखिरी बार बीजिंग ने 2019 में कोलंबो को एक युद्धपोत का प्रस्ताव दिया था. लेकिन भारत ने श्रीलंका की नौसैन्य क्षमताओं को बढ़ाने में आगे बढ़कर रुचि दिखाई.
दूसरे, सैन्य बलों की संख्या में कमी से, कुछ हद तक, नई दिल्ली को रक्षा क्षेत्र में निर्यात को लेकर धर्मसंकट को ख़त्म करने में मदद मिलेगी. जैसे ही श्रीलंका अपनी सेना के आकार को दुरुस्त करेगा, यह इससे देश में सैन्यीकरण और विकास और प्रशासनिक कार्यों में सेना की भूमिका पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा. इस तरह यह लोकतंत्र, नागरिक प्रशासन और सुलह के मार्गों को खोले जाने का मार्ग प्रशस्त करेगा. दूसरे शब्दों में इन सुधारों से श्रीलंका को लेकर भारत की कुछ चिंताओं पर ध्यान जाएगा. ऐसे सुधारों से भारत के प्रमुख साझीदार अमेरिका को श्रीलंका के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाने का मौका मिलेगा क्योंकि जवाबदेही और सुधार की मांगों के चलते अक्सर इस तरह के पारस्परिक व्यवहार सीमित रह जाते थे.
इसलिए सेना के संख्या बलों को कम करने को एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा जा रहा है. भारत पहले से ही रक्षा सहयोग बढ़ाने को लेकर श्रीलंका में एक बेहतर स्थिति में है. अपने हित, पहले से मौजूद रक्षा संबंध और क्षमता निर्माण की पहलों के साथ ही संयुक्त राज्य अमेरिका की रक्षा प्रौद्योगिकी के चलते भारत श्रीलंका को एक तकनीकी और सामरिक रूप से सुसज्जित ताकत बनाने में मदद कर सकता है.
आदित्य गौदारा शिवमूर्ति ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के रणनीतिक अध्ययन कार्यक्रम में एक कनिष्ठ अध्येता हैं
ऊपर व्यक्त किए गये विचार लेखक के हैं.
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