Author : Jyoti Panday

Expert Speak Digital Frontiers
Published on Jan 15, 2025 Updated 0 Hours ago

एक स्वतंत्र देश होने के नाते भारत की डेटा संप्रभुता नीति सही है. इससे डेटा का स्थानीयकरण होगा और क्लाउड इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा मिलेगा. लेकिन इसका एक नुकसान ये है कि इससे स्थानीय छोटी और मध्यम आकार की कंपनियों के लिए बड़ी कंपनियों से मुकाबला करना मुश्किल हो जाएगा.

स्वतंत्र डेटा रणनीति: भारत में AI के लिए चुनौती या संभावना?"

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ये लेख "अमेरिका-भारत फेलोशिप प्रोग्राम" निबंध श्रृंखला का हिस्सा है


आज पूरी दुनिया एक-दूसरे से जुड़ी है, खासकर इंटरनेट का माध्यम से. इस परस्पर जुड़ी दुनिया में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, प्लेटफ़ॉर्म और इससे संबंधित सेवाएं व्यापार से लेकर संचार तक हर काम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. डिजिटल टेक्नोलॉजी की अहमियत को देखते हुए कई देशों के लिए तकनीकी संप्रभुता एक महत्वपूर्ण रणनीतिक जरूरत बन गई है. पहले ये जानना ज़रूरी है कि इस नीति के समर्थकों के क्या तर्क हैं? उनकी दलील है कि डिजिटल संपत्तियों, सिस्टम और डेटा को कंट्रोल करने से देश के आर्थिक, विकासात्मक और सुरक्षा लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है. इतना ही नहीं आज की इस डिजिटल दुनिया में अपना भू-राजनीतिक प्रभाव मज़बूत करने के लिए भी डेटा पर नियंत्रण होना महत्वपूर्ण है. डिजिटल क्षेत्र में घरेलू क्षमताओं को स्थापित करने या विकसित करने से विदेशी संस्थाओं पर निर्भरता कम या सीमित होगी. प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देकर या इसे हासिल कर खुद के "राष्ट्रीय चैंपियन" होने का दावा भी किया जा सकता है.

"मेक इन इंडिया" या "डिजिटल इंडिया" जैसी पहलों का मक़सद ही ये है कि रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माने जाने वाले उद्योगों और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता लाई जा सके. 

भारत के नीति निर्माता तकनीकी संप्रभुता को एक नई औद्योगिक क्रांति लाने की दिशा में बहुत अहम मानते हैं. इतना ही नहीं वैश्विक मंच पर भारत अपने लिए जो नेतृत्वकारी भूमिका चाहता है, उसे हासिल करने में भी डिजिटल आत्मनिर्भरता काफ़ी असरदार साबित हो सकती है. "मेक इन इंडिया" या "डिजिटल इंडिया" जैसी पहलों का मक़सद ही ये है कि रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माने जाने वाले उद्योगों और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता लाई जा सके. ये योजनाएं डिजिटल सेक्टर में विकास के लिए भारत के नीति-केंद्रित दृष्टिकोण के आकर्षक उदाहरण पेश करती हैं. तकनीकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के भारत के दृष्टिकोण का सबसे ज़रूरी हिस्सा डेटा संप्रभुता है. ये कोशिश की जा रही है कि भारतीय नागरिकों के व्यक्तिगत और गैर-व्यक्तिगत डेटा को भारत सरकार ही सुरक्षित रखे. डेटा संप्रभुता हासिल करने के लिए भारत को अपने नागरिकों के डेटा के संग्रह और उसके इस्तेमाल को नियंत्रित करने की ज़रूरत है. इस लक्ष्य को देखते हुए, भारत की डेटा संप्रभुता रणनीति के दो तत्व हैं. नियंत्रण, इसे डेटा पर प्रतिबंध लगाकर हासिल किया जा सकता है. इसका दूसरा तत्व है संचय, इसका उद्देश्य डेटा के निर्माण और उसे साझा करने की क्षमता पैदा करना है. ये निबंध भारत की डेटा संप्रभुता रणनीति की पड़ताल करता है. भारत की रणनीति डेटा तक पहुंच को प्रतिबंधित करने पर केंद्रित है. भारत की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) रणनीति अभी शुरुआती स्तर पर ही है. ये दृष्टिकोण भारत की डेटा संप्रभुता को कैसे आकार दे रहा है, इस निबंध पर आगे इसी पर बात करेंगे.

प्रतिबंध की रणनीति

"प्रतिबंध रणनीति" के तहत डेटा पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए डेटा और क्षेत्र के बीच संबंध पर ज़ोर दिया जाता है. डेटा को सबसे सुरक्षित तब माना जाता है, जब वो उसी क्षेत्र में रहे, जहां ये उत्पन्न हो रहा है. यही वजह है कि विदेशी कंपनियों और घरेलू व्यवसायों दोनों पर डेटा स्थानीय स्तर पर संग्रहित करने के लिए दबाव डाला जाता है. इस दबाव को सही ठहराने के लिए डेटा सुरक्षा, गोपनीयता, विदेशी निगरानी और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं का तर्क दिया जाता है. विदेशी संस्थाओं की डेटा तक पहुंच को प्रतिबंधित करने के लिए विभिन्न सरकारें प्लेटफ़ॉर्म या सेवाओं को ब्लॉक करती है. डेटा के स्थानीयकरण के तरीकों का इस्तेमाल करती हैं. डेटा तक पहुंच को प्रतिबंधित करके और विदेशी संस्थाओं को अपनी सेवाएं भारत में स्थानांतरित करने के लिए मज़बूर करके सरकार एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश करती है. इससे सरकार ना सिर्फ संवेदनशील डेटा पर नियंत्रण बनाए रखने का प्रयास कर रही है, बल्कि राष्ट्रीयता और स्थानीय डेटा इकोसिस्टम को भी बढ़ावा दे रही है.

2018 से ही भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने पेमेंट डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित करने और उसके स्थानीयकरण को अनिवार्य करने के लिए कई नियम बनाए हैं. जून 2020 में भारत ने टिकटॉक और वीचैट समेत चीन के स्वामित्व वाले कई ऐप्स बैन कर दिया था. इन पर प्रतिबंध लगाने की सबसे बड़ी वजह ये थी कि "ये कंपनियां डेटा का संकलन तो भारत से कर रही थी, लेकिन इनकी माइनिंग और प्रोफाइलिंग अपने हिसाब से कर रहीं थीं. भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा के लिए महत्वपूर्ण डेटा का शत्रुतापूर्ण तत्वों द्वारा इस्तेमाल किए जाने से इन्हें ब्लॉक किया गया, क्योंकि आखिर इससे भारत की संप्रभुता और अखंडता पर प्रभाव पड़ता, ऐसे में इससे निपटने के लिए आपातकालीन उपायों की ज़रूरत थी”. 2022 में सरकार ने वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (वीपीएन) प्रोवाइडर्स और क्लाउड सर्विस ऑपरेटरों के लिए नए नियम बनाए. इन नियमों के तहत इन्हें अपने ग्राहकों के नाम, पते, आईपी (इंटरनेट प्रोटोकॉल) एड्रेस और लेन-देन के इतिहास का रिकॉर्ड पांच साल तक सुरक्षित रखना अनिवार्य कर दिया. कारोबार के लिए इन कठोर शर्तों ने नॉर्डवीपीएन जैसे प्रमुख ब्रांडों को भारत से अपने सर्वर इंफ्रास्ट्रक्चर वापस लेने पर मज़बूर किया. इसके वीपीएन ऐप्स को भारत में ऐप्पल ऐप स्टोर और गूगल प्ले स्टोर से हटा दिया गया है.

 

डेटा संप्रभुता और एआई पावरहाउस बनने के बीच संतुलन कैसे बनाएं?

 

भारत खु़द को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सेक्टर में एक भरोसेमंद सहयोगी और क्षेत्रीय तकनीकी पावरहाउस के रूप में स्थापित करने का इच्छुक है. लेकिन ग्लोबल एआई सप्लाई चेन में भारत के एकीकृत होने में कुछ बाधाएं हैं. सबसे बड़ी रुकावट तो संसाधनों से जुड़ी है, खास तौर पर कंप्यूटिंग पावर और लार्ज स्केल मॉडल के क्षेत्र में. इसका मतलब ये हुआ कि संप्रभु एआई नीति के निर्माण के लिए भारत का दृष्टिकोण स्वाभाविक रूप से इसकी डेटा रणनीति से जुड़ा हुआ है.

भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा के लिए महत्वपूर्ण डेटा का शत्रुतापूर्ण तत्वों द्वारा इस्तेमाल किए जाने से इन्हें ब्लॉक किया गया, क्योंकि आखिर इससे भारत की संप्रभुता और अखंडता पर प्रभाव पड़ता

पिछले कुछ साल में ओपन एआई के चैट जीपीटी जैसे जेनरेटिव एआई का उदय हुआ है. चैट जीपीटी ने इस बात को उजागर किया है कि इसे विकसित करने के लिए एडवांस एआई सिस्टम और ट्रेनिंग ज़रूरी है. इसके लिए बड़ी मात्रा में उच्च गुणवत्ता वाला डेटा चाहिए. उच्च गुणवत्ता वाले डेटा से ना सिर्फ तकनीकी प्रदर्शन और परिणाम की सटीकता प्रभावित होती है, बल्कि एक न्यायसंगत एआई परिदृश्य के निर्माण के लिए भी ये ज़रूरी है. तभी समाज के सभी वर्गों तक लाभ पहुंचेगा. इसी ज़रूरत को स्वीकार करते हुए भारत इसके लिए एक अधिक सूक्ष्म नीति ढांचा बना रहा है. ये फ्रेमवर्क नवाचार, सहयोग और वैश्विक स्तर पर एआई क्षेत्र में हो रही प्रगति तक पहुंच को बढ़ावा देता है. इसे अनिवार्य बनाने के साथ वो डेटा संप्रभुता को भी संतुलित करता है. सरकार का फोकस एक डेटा इकोसिस्टम बनाने पर है. ये इकोसिस्टम एआई एप्लीकेशन को मितव्ययी और लागत प्रभावी तरीके से बड़े पैमाने पर बनाने और तैनात करने की सुविधा देता है. इस लिहाज से देखें तो डेटा संप्रभुता पर फोकस एक केंद्रीय नीति बन गया है. इसमें डेटा प्रतिबंध और डेटा संचय दोनों रणनीतियां शामिल हैं.

भारत में जो नियामक संस्थाएं हैं, वो डेटा के स्थानीयकरण पर ज़ोर दे रही हैं. इसका मतलब हुआ ऐसे उपाय जो स्थानीय डेटा के अंतर्राष्ट्रीय हस्तांतरण को प्रतिबंधित या बाधित करते हैं. डेटा पर प्रतिबंध लगाने की सबसे बड़ी वजह राष्ट्रीय आर्थिक नीति प्राथमिकताओं में बदलाव, बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव और डेटा गोपनीयता या उसके अनुपालन को लेकर जताई जा रही चिंताएं हैं. डेटा पर प्रतिबंध की एक और वजह ये है कि कुछ देशों को महत्वपूर्ण और संवेदनशील डेटा तक पहुंच की मंजूरी ना देने से कई फायदे हो सकते हैं. अगर डेटा तो उनकी पहुंच नहीं होगी तो वो घरेलू एआई सिस्टम में दखल नहीं दे सकेंगे या फिर उस डेटा के आधार पर अपने खुद को एआई एप्लीकेशन विकसित नहीं कर सकेंगे.

डेटा पर प्रतिबंध लगाने की सबसे बड़ी वजह राष्ट्रीय आर्थिक नीति प्राथमिकताओं में बदलाव, बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव और डेटा गोपनीयता या उसके अनुपालन को लेकर जताई जा रही चिंताएं हैं.

2023 में सरकार ने डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट (DPDPA) पारित किया. भारत में व्यक्तिगत डेटा सुरक्षा के लिए पहला क्रॉस-सेक्टोरल फ्रेमवर्क होने के बावजूद डीपीडीपीए ऐसे किसी भी मौजूदा कानून की जगह नहीं लेता, जो उच्च स्तर की सुरक्षा प्रदान करता है. हालांकि ये एक्ट किसी भी व्यक्तिगत डेटा के ट्रांसफर को प्रतिबंधित नहीं करता. यानी अगर कोई देश चाहे तो वो भारतीयों के डेटा को प्रोसेसिंग के लिए भारत से बाहर ले जा सकता है. इसमें डेटा के स्थानीयकरण के लिए भी कोई प्रावधान शामिल नहीं है, लेकिन ये कानून सरकार को व्यक्तिगत डेटा तक पहुंच को प्रतिबंधित करने का व्यापक अधिकार प्रदान करता है. डीपीडीपीए महत्वपूर्ण डेटा फ़िडुशियरीज़ (एसडीएफ) की श्रेणी भी स्थापित करता है. फ़िडुशियरीज़ यानी ऐसा व्यक्ति, फर्म या कंपनी, जो किसी दूसरे के पैसों और प्रॉपर्टी का प्रबंधन करती है. लेकिन ये काम वो उस व्यक्ति के फायदे के लिए करते हैं, ना कि व्यक्तिगत लाभ के लिए. फ़िड्यूशियरीज़ के लिए डेटा की सामान्य जिम्मेदारियों के अलावा कुछ अतिरिक्त दायित्वों का पालन करना भी आवश्यक होता है. एसडीएफ को कुछ मानदंडों के आधार पर श्रेणियों में बांटा जाता है. ये श्रेणियां होती हैं डेटा की मात्रा और संवेदनशीलता. डेटा सुरक्षा अधिकारों के लिए ज़ोखिम. देश की संप्रभुता और अखंडता पर प्रभाव. चुनावी लोकतंत्र, सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए ज़ोखिम.

 

सरकार ने पिछले हफ्ते सार्वजनिक प्रतिक्रियाएं यानी जनता की राय लेने के लिए डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) एक्ट, 2025 का मसौदा जारी किया. इसका उद्देश्य ये पता लगाना है कि डीपीडीपी अधिनियम को किस तरह क्रियान्वित किया जा सकता है. ये नियम सरकार को ये जानने का अधिकार देता है कि पर्सनल डेटा का प्रबंधन कैसा किया जा रहा है, और इसे भारत से बाहर कहां ले जाया जाता है. महत्वपूर्ण डेटा फ़िडुशियरी (एसडीएफ) की श्रेणियों का इस्तेमाल करते हुए सरकार खुद को ज़्यादा शक्ति दे रही है. अब सरकार को एसडीएफ की कुछ श्रेणियों के हस्तांतरण के लिए स्थानीयकरण या शर्तें लगाने का अधिकार मिल जाएगा. नियम 12 (4) में एसडीएफ के रूप में वर्गीकृत संस्थाओं को कुछ चीजें सुनिश्चित करनी होती हैं. उन्हें ये बताना ज़रूरी होता है कि व्यक्तिगत डेटा को लेकर सरकार ने जो कुछ विशिष्ट श्रेणियां बनाई हैं “उससे संबंधित ट्रैफ़िक डेटा को भारत के बाहर स्थानांतरित नहीं किया जाता है. इस प्रतिबंध के अधीन डेटा को यही प्रोसेस किया जाता है". सरकार द्वारा बनाई गई एक समिति की सिफारिशों के आधार पर ये तय किया जाएगा कि कौन सा व्यक्तिगत डेटा इन प्रतिबंधों के अंतर्गत आता है. नियम 14 उन सभी डेटा फ़िडुशियरीज़ पर कुछ शर्तें अनिवार्य रूप से लागू करता है, भारत के भीतर डेटा प्रोसेसिंग कर रहे हैं, या फिर भारत में व्यक्तियों को सामान या सेवाएं प्रदान कर रहे हैं. सरकार ने इन फ़िडुशियरीज़ के लिए ये अनिवार्य कर दिया है कि उस डेटा को किसी भी विदेशी राष्ट्र, उसकी एजेंसियों या उसकी संस्थाओं के साथ साझा करने से पहले भारत सरकार द्वारा तय शर्तों का पालन करना होगा. ये नियम इस बात को सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है कि व्यक्तिगत डेटा भारतीय कानूनों के मुताबिक संरक्षित रहे. इससे सरकार को संवेदनशील डेटा के देश से बाहर प्रवाह पर ज़्यादा निगरानी और नियंत्रण मिल सके.

 

एआई के विकास पर डेटा प्रतिबंधों का प्रभाव

 

स्थानीय डेटा स्टोरेज और प्रोसेसिंग की डिमांड ही भारत में एआई के विकास का आकार तय कर रही है. जेनरेटिव एआई (जेनएआई) कंपनियां अपनी मर्जी से डेटा स्थानीयकरण का काम और देश में डेटा प्रबंधन के लिए बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रही हैं. उदाहरण के लिए गूगल का जेमिनी 1.5 फ्लैश लार्ज लैंग्वेज मॉडल (एलएलएम) भारतीय संगठनों को डेटा स्टोर करने और मशीन लर्निंग मॉडल को स्थानीय स्तर पर प्रोसेस करने की मंजूरी देता है.

डेटा के स्थानीयकरण पर भारत का ज़ोर देकर भारत इससे दोहरा लाभ हासिल करना चाह रहा है. इससे डेटा सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताएं तो दूर होंगी ही, साथ ही भारत ने एआई के विकास के लिए जो महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है, उसके लिए बुनियादी ढांचा भी इससे तैयार होगा. भारत सरकार एक सॉवरेन क्लाउड इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश करने पर विचार कर रही है. इससे वो लोकल डेटा स्टोरेज और कम्युटेशन का समर्थन भी करेगी, साथ ही वो इस बात को सुनिश्चित भी कर सकती है कि इस पर देश के कानून लागू हों. सरकार ने अपने एआई मिशन के लिए 100 अरब रुपये का प्रावधान किया है. इसके ज़रिए डेटा सेंटर्स के एक नेटवर्क के निर्माण को प्राथमिकता दी जा रही है. ये डेटा सेंटर्स एआई क्षेत्र में काम करने वाले उद्योगों को उच्च कंप्यूटिंग सुविधाएं लीज़ पर देंगे, जिससे वो इनका इस्तेमाल अपने मॉडलों को प्रशिक्षित करने और विकसित करने के लिए कर सकें. इन एआई डेटा सेंटर्स में हाई परफॉर्मेंस ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट (जीपीयू), स्टोरेज सिस्टम, नेटवर्क इंफ्रास्ट्रक्चर और कुछ स्पेशल हार्डवेयर एक्सेलेरेटर शामिल होने की उम्मीद है. लीज़ की फीस और इसकी अवधि सरकार द्वारा तय की जाएगी.

 भारत सरकार एक सॉवरेन क्लाउड इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश करने पर विचार कर रही है. इससे वो लोकल डेटा स्टोरेज और कम्युटेशन का समर्थन भी करेगी, साथ ही वो इस बात को सुनिश्चित भी कर सकती है कि इस पर देश के कानून लागू हों. 

डेटा स्थानीयकरण से देश के डेटा सेंटर और क्लाउड इंडस्ट्री में भी महत्वपूर्ण अवसर पैदा हो रहे हैं. इसमें काफ़ी बढ़ोतरी दिख रही है. अमेज़ॅन वेब सर्विसेज़ (AWS) जैसे वैश्विक दिग्गज भी भारत में डेटा के स्थानीयकरण और एआई के विकास के लिए अपनी सुविधाओं का विस्तार कर रहे हैं. लेनोवो ने वादा किया है कि वो भारत में अपने प्लांट में एआई सर्वर का निर्माण करेगा. स्थानीय डेटा सेंटर ऑपरेटर भी इस काम में पीछे नहीं हैं. माइक्रोसॉफ्ट वित्तीय वर्ष 2025 में 80 अरब डॉलर निवेश करने की तैयारी कर रहा है. उसकी योजना एआई मॉडल को प्रशिक्षित करने और क्लाउड-आधारित एआई एप्लीकेशंस को तैनात करने के लिए डेटा सेंटर विकसित करने की है. रिलायंस जियो इन्फोकॉम की बागडोर संभालने के बाद से कंपनी के चेयरमैन आकाश अंबानी ने भारतीय डेटा को भारत के डेटा सेंटर्स में ही रखने की वकालत की है. इसके लिए जामनगर में रिलायंस गीगावाट-स्टोरेज क्षमता के एआई-रेडी डेटा सेंटर स्थापित कर रहा है. रिलायंस की मांग है कि एआई और मशीन लर्निंग डेटा सेंटर स्थापित करने वाली कंपनियों को सरकार की तरफ से प्रोत्साहन मिलना चाहिए. रिलायंस ने "राष्ट्रीय AI बुनियादी ढांचे" के निर्माण के लिए NVIDIA जैसी कंपनियों के साथ साझेदारी भी की है. इस बुनियादी ढांचे के उपयोग की मांग पैदा करने के लिए रिलायंस जियो ने घोषणा की है कि वो जियो के 49 करोड़ उपयोगकर्ताओं को 100 गीगाबाइट मुफ्त स्टोरेज प्रदान करेगा.

 

भारत एक आत्मनिर्भर एआई इकोसिस्टम, डेटा स्थानीयकरण और स्थानीय डेटा बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाने पर ज़ोर दे रहा है. ये इस बात का संकेत है कि भारत अब अपने तकनीकी परिदृश्य को बहुत ज़्यादा हाथों में नहीं सौंपना चाहता. डेटा प्रतिबंध रणनीतियों के बारे में आम तौर पर ये माना जाता है कि अगर डेटा संग्रहण भारत की सीमाओं के भीतर है तो स्वाभाविक रूप से इस तर पहुंच आसान होगा. ये तर्क इस वास्तविकता को नजरअंदाज़ करता है कि सिर्फ देश की सीमा के भीतर डेटा रखना उस तक आसान पहुंच की गारंटी नहीं देता है. हालांकि बड़ी कंपनियां घरेलू डेटा इंफ्रास्ट्रक्चर स्थापित करने में आने वाले भारी खर्चे को वहन कर सकती हैं, लेकिन छोटी कंपनियों के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता. स्थानीय स्तर पर डेटा स्टोरेज और प्रोसेसिंग से शायद छोटी और मध्यम आकार की कंपनियों को मुश्किल होगा. एआई मॉडल को प्रशिक्षित करने और देश के भीतर एआई-संचालित सेवाओं को तैनात करने के लिए डेटा तक पहुंचने की उनकी क्षमता में बाधा उत्पन्न होगी. इसी तरह ये मान लेना भी उतना ही गलत है कि विदेशों में स्टोर डेटा भारतीय कानूनी एजेंसियों या स्टार्टअप्स की पहुंच से हमेशा के लिए बाहर हैं. ऐसे में सिर्फ प्रतिबंधात्मक या घरेलू नीतियों पर निर्भर रहना ठीक नहीं होगा. भारत सरकार को डेटा तक विश्वसनीय पहुंच और सुरक्षित प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक सहयोग हासिल करने की कोशिश भी करनी चाहिए. दोनों तरह के तरीके अपनाना बेहतर होगा.


ज्योति पांडे जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के इंटरनेट गवर्नेंस प्रोजेक्ट में क्षेत्रीय निदेशक (एशिया) हैं.

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