Author : Gurjit Singh

Published on Aug 25, 2021 Updated 0 Hours ago

मोज़ाम्बिक में स्थिरता और सुरक्षा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिये चिंता का विषय है. 

दक्षिणी अफ्रीका का विकास समुदाय और मोज़ाम्बिक में उग्रवाद

हाल के वर्षों में दक्षिण पूर्वी अफ्रीका में मोज़ाम्बिक रणनीतिक लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण हो चुका है. मोज़ाम्बिक नहर के पास इसकी मौजूदगी और यहां के अकूत कोयला और गैस के प्राकृतिक संसाधन ने इस मुल्क को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश(एफडीआई) के लिए बेहद आकर्षक बना दिया है. मोज़ाम्बिक में स्थिरता और सुरक्षा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की चिंता का विषय है. साल 2017 से ही मोज़ाम्बिक के उत्तरी इलाके में कैबो डेलगाडो में उग्रवाद पनपने लगा है. करीब एक मिलियन से ज़्यादा लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हो चुके हैं और खाद्य पदार्थों की भारी कमी से जूझ रहे हैं. इस उग्रवाद को भड़काने में शामिल अहलुश सुन्ना वल जमाह (एएसडब्ल्यूजे) के संबंध सोमालिया के इस्लामिक कोर्ट और साहेल में इस्लामिक स्टेट (आईएस) तक से हैं. हालांकि, मार्च 2020 के बाद से आतंकवादी हमलों में तेज़ी आई है.

मौजूदा हालात

दरअसल, मोज़ाम्बिक में यह उग्रवाद आंतरिक कारणों से है,  क्योंकि स्थानीय लोग ख़ुद को हाशिए पर पाते हैं. असल में रूबी और प्राकृतिक गैस से मिलने वाले फायदे यहां के स्थानीय लोगों को नहीं मिल पाते हैं क्योंकि यह इलाक़ा मापूटो से बेहद दूर है और यह मुस्लिम बहुल इलाक़ा है. कुछ विशेषज्ञ इसे इतिहास का अवशेष बताते हैं जो नई चुनौतियों और विरोधाभासों के चलते ये आग फिर से भड़क रही है. मानवीय संकट और एएसडब्ल्यूजे की चुनौतियों के अलावा मोज़ाम्बिक प्राकृतिक गैस के क्षेत्र में निवेश को सुरक्षित करने में लगा है जो फ़िलहाल इस क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है.

मोज़ाम्बिक में यह उग्रवाद आंतरिक कारणों से है,  क्योंकि स्थानीय लोग ख़ुद को हाशिए पर पाते हैं. असल में रूबी और प्राकृतिक गैस से मिलने वाले फायदे यहां के स्थानीय लोगों को नहीं मिल पाते हैं क्योंकि यह इलाक़ा मापूटो से बेहद दूर है और यह मुस्लिम बहुल इलाक़ा है

कैबो डेलगाडो के समुद्री तट का इलाक़ा रोवुमा बेसिन में मौजूद है. अनुमान लगाया जाता है कि यहां प्राप्त करने योग्य प्राकृतिक गैस की मात्रा 100 ट्रिलियन क्यूबिक फीट है. और इस मौके को भुनाने के लिए ऊर्जा क्षेत्र की बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित करने में जुटी हैं. अमेरिकी ऊर्जा कंपनी एंडार्को और इटली की कंपनी एनी ने मोज़ाम्बिक के उत्तर पूर्वी इलाके में दो सबसे बड़े निवेश किए हैं. फ्रांस ने पहले यहां 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश(एफडीआई) किया था जिसे बाद में उसने रद्द कर दिया  हालांकि, 60 बिलियन अमेरिकी डॉलर वाले प्राकृतिक गैस क्षेत्र में भारत, जापान, अमेरिका, मलेशिया समेत चीन भी निवेश के अवसर ढूंढ रहे हैं लेकिन उग्रवाद के चलते इस पर ख़तरा मंडराने लगा है. मोज़ाम्बिक के पास 1.975 मिलियन टन (एमएमएसटी) कोयले का भंडार है जिसमें कई भारतीय और ब्राजील की कंपनी लॉजिस्टिक सेवाओं की चुनौतियों के बीच टेटे प्रांत से बाहर निकालने कोशिश में लगी हुई हैं.

क्षेत्रीय आयाम


मोज़ाम्बिक की सीमा तंजानिया, मालावी, ज़ाम्बिया, ज़िम्बाबवे, एस्वाटिनी और दक्षिण अफ्रीका से लगती है. जबकि मोज़ाम्बिक नहर के पूर्वी छोर पर कोमोरोस, मैडागास्कर और कई फ्रांसीसी द्वीप मौजूद हैं. इसके समुद्री रास्ते का इस्तेमाल विश्व के एक तिहाई टैंकर्स करते हैं यह पूरा क्षेत्र तेजी से उग्रवाद से प्रभावित हो रहा है. सीमा पार आतंकवाद की समस्या तंजानिया से चली आ रही है क्योंकि इसकी सीमा कांगो गणराज्य(डीआरसी), रवांडा और बुरुंडी से लगती है. कई विशेषज्ञों ने लेखक को बताया है कि कई उग्रवादी घटनाओं का संबंध पूर्वी कांगो गणराज्य की वजह से है और कांगो गणराज्य में तंजानिया की वजह से उग्रवाद फैला हुआ है. ये संगठन मोज़ाम्बिक और कांगो गणराज्य, दोनों ही जगहों पर उग्रवाद का समर्थन करते हैं. इसमें मोज़ाम्बिक द्वारा रवांडा की भूमिका को रेखांकित किया जाता है क्योंकि उन्हें भरोसा है कि कांगो गणराज्य में  इन मामलों समेत उग्रवाद पर अंकुश लगाने में रवांडा की ख़ास भूमिका हो सकती है. 9 जुलाई को रवांडा ने 1000 सैनिकों को कैबो डेलगाडो में मोज़ाम्बिक सेना की मदद के लिए भेजा.

रवांडा, दक्षिण अफ्रीका विकास समुदाय (एसएडीसी) का हिस्सा नहीं है. एसएडीसी के 16 सदस्य हैं. पड़ोस के मुल्कों में सुरक्षा प्रदान करने में पहले एसएडीसी की भूमिका हुआ करती थी. अपने क्षेत्र में मुद्दों से निपटने के लिए अफ्रीकी संघ,  क्षेत्रीय आर्थिक समुदाय (आरईसी) को प्रमुखता प्रदान करता है. और ऐसे मकसद के लिए आरईसी के पास मदद के लिए दूसरे संगठन भी मौजूद हैं. यह असल में एयूसी और आरईसी के बीच शांति और सुरक्षा को लेकर किए गए समझौते की वजह से है. 

त्रिपक्षीय एसडीसी में मोज़ाम्बिक, जो कि मौजूदा अध्यक्ष है, तंजानिया जिसकी अध्यक्षता ख़त्म हो रही है और मालावी जो साल 2022 का अध्यक्ष बनने जा रहा है. जबकि डिफेंस कमेटी के त्रिपक्षीय सदस्यों में बोस्तवाना जिसकी जगह ज़िम्बाववे ले रहा है, और दक्षिण अफ्रीका इसका अगला अध्यक्ष बनने जा रहा है. 

समझौते के तहत एसएडीसी को अपनी सेना की तैनाती के लिए तैयार रहना पड़ता है. हालांकि, इसकी ज़रूरत एक तकनीकी टीम द्वारा तय की जाती है जिसके लिए राजनीतिक और सैन्य स्वीकार्यता आवश्यक है. इस मामले में एसएडीसी में भी सेना की तैनाती के समय और गति को लेकर विभिन्न मत हैं यही वजह है कि मोज़ाम्बिक की शांति और सुरक्षा के लिए वक्त रहते कार्रवाई नहीं की जा सकी. मोज़ाम्बिक पहले ख़ुद ही इस बात को लेकर भ्रमित था कि अगर उसकी सेना को साजो सामान के साथ समर्थन दिया जाता तो वो ख़ुद ही ऐसी स्थिति से निपट सकते थे. 

अगस्त 2008 में एसएडीसी ब्रिगेड की घोषणा की गई जिसमें सेना, पुलिस और सदस्य देशों के नागरिक भी शामिल थे. इसकी भूमिका अवलोकन और निगरानी मिशन,  शांति सहायता मिशन; एक सदस्य राज्य के अनुरोध पर शांति और सुरक्षा की बहाली के लिए हस्तक्षेप; और पड़ोसी राज्यों में संघर्ष को फैलने से रोकना है. एसएडीसी ब्रिगेड एसएडीसी की सियासी संस्था, बचाव और सुरक्षा सहयोग के तहत काम करती है. यह एसएडीसी कमेटी ऑफ चीफ़ ऑफ़ डिफेंस के तहत कार्रवाई करती है और इसका ट्रेनिंग सेंटर ज़िम्बाबवे में है.

तीन देशों का एसडीसी 


त्रिपक्षीय एसडीसी में मोज़ाम्बिक, जो कि मौजूदा अध्यक्ष है, तंजानिया जिसकी अध्यक्षता ख़त्म हो रही है और मालावी जो साल 2022 का अध्यक्ष बनने जा रहा है. जबकि डिफेंस कमेटी के त्रिपक्षीय सदस्यों में बोस्तवाना जिसकी जगह ज़िम्बाववे ले रहा है, और दक्षिण अफ्रीका इसका अगला अध्यक्ष बनने जा रहा है. 27 मई 2021 को इसके द्विपक्षीय सदस्यों की बैठक हुई. इसमें कैबो डेलगाडो की स्थिति के बारे में चर्चा की गई. 23 जून को आयोजित सम्मेलन जिसकी अध्यक्षता मोज़ाम्बिक ने की थी उसमें आठ राष्ट्रपतियों और कई देशों के मंत्री शामिल हुए थे. इस बैठक में सुरक्षा समिति के सुझावों पर सहमति जताई गई और एसएडीसी के स्टैंडबाइ फोर्स मिशन को मोज़ाम्बिक की मदद के लिए सहमति दी गई.

15 जुलाई से तीन महीने के मिशन की शुरुआत होने वाली है.  एसएडीसी के द्वारा सैन्य हस्तक्षेप के बाद पहली बार ऐसा होने जा रहा है. लेकिन यह तब कामयाब हो सकता है जबकि यूरोपीयन यूनियन समेत दूसरे मित्र देश इसे वित्तीय और साजो सामान से सहयोग करें. यूरोपीयन यूनियन हमेशा से अफ्रीकी स्टैंडबाय ब्रिगेड को समर्थन देने के लिए तैयार रहता है लेकिन ऐसा वह शांति के दौरान करना चाहता है. लेकिन हमेशा से मदद के लिए अपील तब आती रही जबकि तैनाती की जानी होती थी. 

एसएडीसी स्टैंडबाय फोर्स के चीफ ऑफ स्टाफ के तकनीकी टीम के नेता बोस्तवाना के ब्रिगेडियर माइकल मुकोकोमानी ने इस टुकड़ी के लिए 3000 सेना के जवानों का प्रस्ताव रखा था. हालांकि इस संबंध में विवरण तो अभी उपलब्ध नहीं है लेकिन 600 सैनिकों की तीन टुकड़ी समेत ब्रिगेड की हेडक्वार्टर के लिए तैनाती की गई. इसके लिए 70 स्पेशल फोर्स और इंजीनियरों समेत सिग्नल और 100 के समूह में लॉजिस्टिक मदद के लिए जवानों की तैनाती का प्रस्ताव रखा गया. इसके लिए दो पेट्रोल जहाज, दो सबमरीन, एक हेलिकॉप्टर के साथ ट्रांसपोर्ट और सर्विलांस एयरक्राफ्ट के साथ साथ ड्रोन की भी ज़रूरत बताई गई. अफ्रीका में ज़्यादातर सैन्य ऑपरेशन के मुक़ाबले यह सबसे दूर तक फैला हुआ बहुआयामी सैन्य ऑपरेशन था. ऐसे में एसएडीसी ब्रिगेड कमांडरों की नियुक्ति के लिए प्रतिद्वंद्वी महत्वाकांक्षाओं के साथ संघर्ष कर रहा है. इसे लेकर प्राकृतिक विकल्प तो यह होना चाहिए कि सबसे बड़ी सेना को इसका नेतृत्व सौंप देना चाहिए.

अंतर्राष्ट्रीय सहयोगी


अमेरिकी ने मोज़ाम्बिक के स्पेशल फोर्स को ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया है. पुर्तगाल जिसका मोज़ाम्बिक से पुराना औपनिवेशिक ताल्लुक रहा है, वह साजो सामान के साथ ख़ुफ़िया मदद कर रहा है. हालांकि मोज़ाम्बिक को रूस और दक्षिण अफ्रीका के हथियारबंद निजी कांट्रैक्टरों की सहायता मिली लेकिन यह नाकाम साबित हुआ. इस क्षेत्र को लेकर बड़ी चिंता यह है कि यहां एक से ज़्यादा मुल्क अव्यवस्थित तरीक़े से शामिल हैं जिनके बीच आपसी तालमेल भी नहीं है. सामान्य तौर पर एक एसएडीसी ब्रिगेड को मित्र देशों की मदद मिलने का विकल्प होना चाहिए.

भारत और फ्रांस के लिए वे साझा तौर पर  निवेश और मोज़ाम्बिक की स्थिरता की  सुरक्षा करने पर विचार कर रहे हैं, जो एक महत्वपूर्ण साझेदार हैं. मोज़ाम्बिक की सहायता स्वीकार करने से भारत को आतंकवाद का मुकाबला करने,  निवेशों की रक्षा करने, एचएडीआर और समुद्री सुरक्षा प्रदान करने के लिए विकल्प मिलेगा


आगे मोज़ाम्बिक सैन्य जवानों को उग्रवाद के ख़िलाफ़ मदद के अलावा उनका मनोबल बढ़ाने के लिए उन्हें साजो सामान मुहैया कराना ज़रूरी है. हालांकि इसे लेकर एक आशंका है, ख़ास कर सहयोगी देशों का मानना है कि कई बार सेना उग्रवादियों को पैसे लेकर या फिर उनसे सहमत होने की स्थिति में हथियार मुहैया करा देते हैं.  विदेशी सहयोगियों का मानना है कि जमीन पर मोज़ाम्बिक की सेना ही रहेगी, एसएडीसी या फिर रवांडा की भूमिका अगर कम होती है तो इससे उग्रवादियों की फिर से भर्ती शुरू हो जाएगी जिसे हर कीमत पर दरकिनार किया जाना चाहिए. मोज़ाम्बिक की अस्थिरता का भारतीय प्रायद्वीप पर भी असर पडेगा, जो इंडो पैसिफ़िक क्षेत्र की अवधारणा का अब हिस्सा है जिसमें भारत, जापान और फ्रांस भी शामिल हैं.  मोज़ाम्बिक नहर में एक विस्तृत मैरीटाइम सुरक्षा – जो कि रणनीति के लिहाज से टैंकरों के लिए बेहद अहम रास्ता  है – उग्रवाद बढ़ने से प्रभावित होगा और इसे लेकर समन्वय की आवश्यकता है. इस तरह मोज़ाम्बिक की सहायता करने वाले देश , ख़ास कर भारत और फ्रांस, की पश्चिमी हिंदमहासागर में बड़ी भूमिका है और ये देश मोज़ाम्बिक नहर की समस्या को करीब से देख रहे हैं. इतना ही नहीं फ्रांस और भारत इस मैरीटाइम जोन को ट्रैफिक और ऑफशोर निवेश के लिए सुरक्षित बनाने के लिए ठोस कदम उठा सकते हैं.

मोज़ाम्बिक में कोयला और प्राकृतिक गैस के क्षेत्र में भारत का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश है. वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल 1996 से लेकर मार्च 2021 के बीच भारत ने सबसे ज़्यादा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मोज़ाम्बिक में किया था. मोज़ाम्बिक को करीब 234 मिलियन अमेरिकी डॉलर – जो कि अफ्रीका में गैर मॉरिशस मुल्क में भारतीय विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का 37 फ़ीसदी है. इतना ही नहीं मोज़ाम्बिक को 727 मिलियन अमेरिकी डॉलर का कनसेशनल लाइंस ऑफ़ क्रेडिट प्राप्त है. जाहिर है अगले तीन वर्षों में मोज़ाम्बिक में भारतीय कंपनियों की गतिविधियां बढ़ने वाली हैं.  भारत के करीब एक बड़ा प्राकृतिक गैस स्रोत, जिसमें कोई भू-रणनीतिक चोकपॉइंट नहीं है, जो पश्चिम एशियाई राजनीतिक अनियमितताओं से अलग है और अंतरराष्ट्रीय निवेश के लिए खुला है, और यही बात  मोज़ाम्बिक को एक अहम साझेदार बनाता है. चीन, जापान और कोरिया को भी अब यही तर्क समझ में आने लगा है. 

और यही वजह है कि भारत और फ्रांस के लिए वे साझा तौर पर  निवेश और मोज़ाम्बिक की स्थिरता की  सुरक्षा करने पर विचार कर रहे हैं, जो एक महत्वपूर्ण साझेदार हैं. मोज़ाम्बिक की सहायता स्वीकार करने से भारत को आतंकवाद का मुकाबला करने,  निवेशों की रक्षा करने, एचएडीआर और समुद्री सुरक्षा प्रदान करने के लिए विकल्प मिलेगा. कैबो डेलगाडो की समस्या दूर नहीं हो रही है और इसके लिए विकास के प्रयासों के साथ साथ सैन्य हस्तक्षेप भी ज़रूरी है. उत्तर के एकीकृत विकास (एडीआईएन)  के लिए पहले से ही विश्व बैंक से सहायता मिलना शुरू हो चुका है. भारत भी सालों से विकास और सुरक्षा में सहयोग दे रहा है.

प्राकृतिक गैस और कोयले की जरूरत भारत के लिए समाप्त नहीं होने वाली है. इस लिहाज़ से मोज़ाम्बिक के साथ काम करना अनिवार्य है जिसे भारत ने कुछ वर्षों तक अधिक उत्साह के साथ अंजाम दिया है. फ्रांस, यूरोपीयन यूनियन और अमेरिका के साथ काम कर भारत अपने मित्र देश की रणनीतिक सुरक्षा कर सकता है. इसका नतीजा यह होगा कि मोज़ाम्बिक की रक्षा तैयारी भी उग्रवादियों और मोज़ाम्बिक में भारत के निवेश के बीच प्रतिरोधक के तौर पर काम करेगी.

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