Author : Abhishek Sharma

Expert Speak Raisina Debates
Published on Aug 05, 2024 Updated 2 Days ago

महत्वपूर्ण खनिजों के मामले में दीर्घकालिक आर्थिक सुरक्षा हासिल करने के लिए दक्षिण कोरिया ने दो तरह की संसाधन कूटनीति को अपनाया है. पहली कूटनीति है किसी एक देश पर निर्भरता को कम से कम करना और दूसरी है, दुर्लभ खनिजों से जुड़ी आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाना

दक्षिण कोरिया की संसाधन कूटनीति: जोखिम प्रबंधन और विविधीकरण

वैश्विक स्तर पर अमेरिका और चीन के बीच मची ज़बरदस्त होड़ के बीच क्रिटिकल मिनरल्स यानी महत्वपूर्ण खनिजों तक पहुंच का मुद्दा बेहद अहम हो गया है. इसके साथ ही दुनिया के तमाम देश अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए इन महत्वपूर्ण खनिजों के महत्व को बखूबी समझ रहे हैं, साथ ही अपनी कमज़ोरियों को भी परख रहे हैं. ऐसे देशों में दक्षिण कोरिया भी शामिल है, जो प्रमुख खनिजों के मामले में एक ऐसी स्थिति में में पहुंच गया है, जहां पारंपरिक तरीक़ों से काम नहीं चलने वाला है, बल्कि कुछ नया करके ही वह इन खनिजों की आपूर्ति सुनिश्चित कर सकता है. ज़ाहिर है कि दक्षिण कोरिया एक ऐसा देश है, जहां खनिज संसाधनों का अभाव है, साथ ही उसकी अर्थव्यवस्था निर्यात पर आधारित है. इसके अलावा दक्षिण कोरिया खनिजों के लिए चीन पर बहुत ज़्यादा निर्भर है. जिस प्रकार से अमेरिका में आर्थिक राष्ट्रवाद ज़ोर पकड़ रहा है, उससे भी दक्षिण कोरिया प्रभावित हो रहा है. ऐसी तमाम व्यापक और गंभीर चुनौतियों का सामना करने के बावज़ूद दक्षिण कोरिया ने अमेरिका के साथ अपने रिश्तों को मज़बूत करने का विकल्प चुना है. हालांकि, एक अहम बात यह भी है कि दक्षिण कोरिया की चीनी आपूर्ति श्रृंखला पर निर्भरता भी लगातार बनी हुई है, इस वजह से अमेरिका के साथ प्रगाढ़ रिश्तों के बावज़ूद उसके साथ द्विपक्षीय व्यापार में कोई इज़ाफा नहीं हुआ है. लेकिन अमेरिका की ओर झुकाव से चीन के साथ दक्षिण कोरिया के संबंधों पर असर ज़रूर पड़ा है. दक्षिण कोरिया ने इन सारे मसलों का समाधान तलाशने और आर्थिक सुरक्षा पाने के मकसद से दो तरह की खनिज संसाधन कूटनीति की रणनीति अपनाई है: 1) चीनी आपूर्ति श्रृंखला पर अत्यधिक निर्भरता से संबंधित ख़तरों में कमी लाना और 2) भविष्य में अपनी आर्थिक सुरक्षा को लंबे समय तक सशक्त करने के लिए वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखला के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना.

 दक्षिण कोरिया ने इन सारे मसलों का समाधान तलाशने और आर्थिक सुरक्षा पाने के मकसद से दो तरह की खनिज संसाधन कूटनीति की रणनीति अपनाई है

महत्वपूर्ण खनिज और दक्षिण कोरिया की आर्थिक सुरक्षा

गौरतलब है कि मौज़ूदा हालातों में दक्षिण कोरिया के लिए दुर्लभ खनिजों की एक टिकाऊ एवं सुरक्षित आपूर्ति श्रृंखला बहुत ज़रूरी है. ऐसा इसलिए है क्योंकि सेमीकंडक्टर, सेकेंडरी बैटरी और इलेक्ट्रिक गाड़ियों जैसे तेज़ी से आगे बढ़ते सेक्टरों की आर्थिक क्षमता का फायदा उठाने के लिए महत्वपूर्ण खनिजों की टिकाऊ आपूर्ति श्रृंखला का होना आवश्यक है. इसी के मद्देनज़र दक्षिण कोरिया की सरकार की ओर से तमाम नीतिगत क़दम उठाए गए हैं और वहां की साइंस एवं आईसीटी मिनिस्ट्री ने 12 महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों की घोषणा की है. इनमें 12 सेक्टरों में 50 प्रमुख टेक्नोलॉजी एवं विकसित परिवहन बैटरी और सेकेंडरी बैटरी शामिल हैं. ज़ाहिर है कि वैश्विक स्तर पर चल रही तकनीक़ी होड़ में आगे निकलने के लिए इन प्रौद्योगिकियों में महारत हासिल करना बेहद अहम है.

 

दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक योल की सरकार ने एक दूरगामी आर्थिक योजना का खाका पेश किया है, जिसमें हरित प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रिक गाड़ियों, सेकेंडरी बैटरी और सेमीकंडक्टर जैसे अहम और तेज़ी से उभरते तकनीक़ी सेक्टरों पर ध्यान केंद्रित किया गया है. राष्ट्रपति यून ने नेशल स्ट्रेटजी से संबंधित बैठक की अध्यक्षता करते हुए अलग-अलग आपूर्ति श्रृंखलाओं का निर्माण करने के महत्व और आवश्यकता पर ज़ोर दिया, ताकि बैटरियों को बनाने में इस्तेमाल किए जाने वाले खनिजों और विभिन्न सामग्रियों की कमी को दूर किया जा सके. दक्षिण कोरिया ने अपनी इस रणनीति के तहत 33 प्रमुख खनिजों में से 10 रणनीतिक खनिजों के लिए चीन पर निर्भरता को कम करने की योजना बनाई है. इस योजना के अंतर्गत प्रमुख खनिजों को लेकर चीन पर जो निर्भरता वर्ष 2023 में 80 प्रतिशत थी, उसे वर्ष 2030 तक 50 प्रतिशत पहुंचाने की रणनीति तैयार की गई है. मौज़ूदा वक़्त में दक्षिण कोरिया महत्वपूर्ण खनिजों के मामले में चीन पर बहुत अधिक निर्भर है. आंकड़ों पर नज़र डालें तो वर्ष 2023 में दक्षिण कोरिया ने अपने 95 प्रतिशत खनिजों का आयात चीन से किया था, इनमें लिथियम हाइड्रोक्साइड का 84 प्रतिशत आयात और कोबाल्ट हाइड्रोक्साइड का 69 प्रतिशत आयात शामिल था. दक्षिण कोरिया में घरेलू उत्पादन क्षमताओं को बढ़ाने और उनका सहयोग करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर आत्मनिर्भरता से संबंधित नीतियों को क्रियान्वित किया गया है. ये नीतियों आर्थिक लाभ के लिहाज़ से भले ही फायदेमंद नहीं हों, लेकिन इनसे एक ओर जहां अनुसंधान और विकास को बढ़ावा मिलता है, वहीं दूसरी ओर रणनीतिक विदेशी निवेश में वृद्धि होती है और दूसरे देशों की कंपनियों को दक्षिण कोरिया में अपनी इकाइयां स्थापित करने में मदद मिलती है. इस प्रकार से दक्षिण कोरिया की ये नीतियां किसी देश की आपूर्ति श्रृंखला पर निर्भरता के जोख़िमों को कम करने में भी सहायक साबित होती हैं. इसी क्रम में राष्ट्रपति यून की सरकार ने प्रमुख आपूर्ति श्रृंखला वस्तुओं के लिए अनुसंधान एवं विकास बजट को भी बढ़ा दिया है. दक्षिण कोरिया में वर्ष 2023 में रिसर्च का जो बजट सिर्फ़ 17.6 बिलियन वॉन का था, उसे वर्ष 2024 में बढ़ाकर 73.9 बिलियन वॉन कर दिया गया है.

 इस योजना के अंतर्गत प्रमुख खनिजों को लेकर चीन पर जो निर्भरता वर्ष 2023 में 80 प्रतिशत थी, उसे वर्ष 2030 तक 50 प्रतिशत पहुंचाने की रणनीति तैयार की गई है.

दक्षिण कोरिया द्वारा दुर्लभ खनिजों के मामले में चीन पर अपनी निर्भरता को कम करने का फैसला किया गया है. लेकिन सियोल के आर्थिक सुरक्षा से जुड़े इस अहम फैसले में सबसे बड़ी रुकावट विदेश नीति से संबंधित चुनौतियां हैं. दक्षिण कोरिया द्वारा जिस तरह से अमेरिका और चीन के साथ अपने व्यापारिक रिश्तों को आगे बढ़ाने के लिए रणनीति अपनाई गई है, देखा जाए तो उसका असर मिलाजुला रहा है. यानी दक्षिण कोरिया द्वारा की गई दो नावों की सवारी का उसे लाभ भी हुआ है और नुक़सान भी हुआ है. पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के शासन के वक़्त की अमेरिकी व्यापार नीतियों की बात करें, तो दक्षिण कोरिया को कहीं कहीं नुक़सान ही उठाना पड़ा है. ऐसा इसलिए हैं, क्योंकि दक्षिण कोरिया को अपने सहयोगी और सुरक्षा देने वाले देश यानी अमेरिका एवं अपने सबसे प्रमुख निर्यात बाज़ार यानी चीन में से किसी एक देश को चुनने के लिए बाध्य होना पड़ा. अमेरिका और चीन से जुड़ी इस चुनौती के मद्देनज़र दक्षिण कोरिया के पूर्व राष्ट्रपति मून जे इन ने आर्थिक ख़तरों को कम करने के लिए दो अहम निर्णय लिए थे. पहला निर्णय था, न्यू साउदर्न पॉलिसी यानी नई दक्षिण नीति (NSP) को कार्यान्वित करना. यह एक ऐसी आर्थिक नीति थी जिसका उद्देश्य आसियान और भारत के साथ अपने आर्थिक संबंधों में विविधता लाना था, साथ ही विभिन्न देशों के साथ रिश्तों के दौरान सुरक्षा और आर्थिक हितों को अलग-अलग करना था. हालांकि, राष्ट्रपति यून के शासन में सियोल ने अपनी पुरानी नीति में बदलाव किया है और चीन के स्थान पर अमेरिका को प्रमुखता दी जाने लगी है. कहने का मतलब है कि दक्षिण कोरिया ने अपने सबसे बड़े आर्थिक भागीदार राष्ट्र चीन को तवज्जो देना कम कर दिया है और सुरक्षा सहयोगी राष्ट्र अमेरिका की तरफ उसका झुकाव बढ़ गया है. एक अमह बात यह भी है कि सियोल को अमेरिका के साथ अपने आर्थिक रिश्तों को मज़बूत करने के वैसे नतीज़े हासिल नहीं हो पाए हैं, जिसकी उसको उम्मीद थी. इसकी वजह प्रमुख वजह अमेरिका का इन्फ्लेशन रिडक्शन एक्ट यानी मुद्रास्फ़ीति न्यूनीकरण अधिनियम (IRA) और टैरिफ यानी शुल्क से जुड़ी विभिन्न व्यापारिक नीतियां हैं. इन्हीं अमेरिकी नीतियों के अंतर्गत अमेरिका में दक्षिण कोरिया के इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग पर प्रतिबंध लगा दिए गए, क्योंकि दक्षिण कोरिया में निर्मित EV में चीन में बनी बैटरियों का इस्तेमाल किया जाता था. इस वजह से IRA के तहत दक्षिण कोरिया के ईवी उद्योग को सब्सिडी का लाभ मिलना भी बंद हो गया. इन हालातों में इसकी प्रबल संभावना है कि अगर अमेरिका में चुनाव के बाद ट्रम्प की सत्ता में वापसी होती है, तो दक्षिण कोरिया की ईवी इंडस्ट्री के लिए अमेरिका में दिक़्क़तें और बढ़ सकती हैं. ज़ाहिर है कि ट्रम्प ने चुनाव अभियान के दौरान वादा किया है कि वह 'चीनी इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी कंपनियों को सब्सिडी देने में ख़र्च होने वाले अमेरिकी डॉलरों पर लगाम लगाएंगे.' दक्षिण कोरिया ने हाल-फिलहाल में तमाम आर्थिक चुनौतियों से जूझने के बावज़ूद, प्रमुख खनिजों के मामले में सभी बाधाओं को दूर करने और इनकी समुचित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए दो तरह की रणनीति अपनाई है.

 

दक्षिण कोरिया की संसाधन कूटतीति के दो स्तंभ: जोख़िम को कम करना और आपूर्ति श्रृंखला में विविधता लाना

दक्षिण कोरिया ने आपूर्ति श्रृंखला को लेकर लगातार गहरी होती जा रही अनिश्चितताओं के वर्तमान माहौल में महत्वपूर्ण खनिज की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए व्यापक स्तर पर विशेष कूटनीतिक क़दम उठाए हैं. सियोल ने अमेरिका और चीन की ओर से बढ़ते दबाव के बीच अपनी संसाधन कूटनीति को काफ़ी सोच-समझ कर तैयार किया है और इसके अंतर्गत जो भी नीतियां बनाई जा रही हैं और क़दम उठाए जा रहे हैं, उनमें संतुलन बैठाने की कोशिश की गई है. कहने का मतलब है कि दक्षिण कोरिया की जो संसाधन कूटनीति है, वो कहीं कहीं उसकी व्यापक क्रिटिकल मिनरल्स स्ट्रैटेजी यानी महत्वपूर्ण खनिज रणनीति के मुताबिक़ है. इतना ही नहीं, दक्षिण कोरिया की यह कूटनीति देखा जाए तो चीन की ओर से आने वाले ख़तरों का सामना करने में कारगर साबित हुई है. इसके अलावा दक्षिण कोरिया की यह संसाधन कूटनीति बीजिंग को नाराज़ किए बगैर दुर्लभ खनिजों से संबंधित अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने में कामयाब रही है. ज़ाहिर है कि वर्तमान समय में और आने वाले वक़्त में आपूर्ति श्रृंखलाओं की ज़मीनी हक़ीक़त के मद्देनज़र सियोल का लक्ष्य चीन पर पूर्ण निर्भरता को कम से कम करना है. इसके अलावा, सियोल ने वैश्विक स्तर पर क्रिटिकल मिनिरल्स से समृद्ध राष्ट्रों, ख़ास तौर पर अफ्रीका, मध्य एशियाई गणराज्यों (CAR) और लैटिन अमेरिकी देशों के साथ सहयोग को सशक्त करने के लिए प्रयास किए हैं. दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून ने अफ्रीका समिट में अपने संबोधन के दौरान केवल आपूर्ति श्रृंखला से जुड़े ख़तरों को माना, बल्कि एक लचीली आपूर्ति श्रृंखला स्थापित करने के लिए अपनी तरफ से साझेदारी का भी प्रस्ताव दिया. अपने संबोधन में राष्ट्रपति यून ने कहा कि, जिस प्रकार से वर्तमान में वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं डांवाडोल हालात में हैं, ऐसे में इनमें विविधता लाना आवश्यक है. उन्होंने आगे कहा कि इलेक्ट्रिक गाड़ियों, बैटरी उद्योगों जैसे भविष्य के उभरते उद्योगों के अलावा नवीकरणीय ऊर्जा के विकास के लिए ज़रूरी खनिज संसाधनों का महत्व बहुत बढ़ गया है और इस पर ध्यान देने की ज़रूरत है.

 वर्तमान समय में और आने वाले वक़्त में आपूर्ति श्रृंखलाओं की ज़मीनी हक़ीक़त के मद्देनज़र सियोल का लक्ष्य चीन पर पूर्ण निर्भरता को कम से कम करना है.

निसंदेह तौर पर दक्षिण कोरिया की संसाधन कूटनीति में दो बातें सबसे अहम हैं. पहली किसी एक राष्ट्र पर निर्भरता से जुड़े ख़तरे को कम से कम करना और महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति में विविधता लाना. डि-रिस्किंग यानी जोख़िम को करने की रणनीति के अंतर्गत दक्षिण कोरिया ने अमेरिका और उसके सहयोगी देशों (तालिका 1 देखें) एवं खनिज सुरक्षा साझेदारी और इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क जैसे बहुपक्षीय समूहों के महत्वपूर्ण खनिज डायलॉग के साथ नज़दीकी सहयोग स्थापित किया है. आपूर्ति श्रृंखला से जुड़े ख़तरों को कम करने के लिए सियोल का लक्ष्य अपने सबसे सशक्त सहयोगी राष्ट्र और तकनीक़ी महाशक्ति अमेरिका के साथ गठजोड़ को बढ़ावा देना है, साथ ही क्वाड एवं AUKUS के अन्य साझेदारों जैसे कि भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और यूके के साथ संबंधों को पुख्ता करना है. ज़ाहिर है कि सियोल अपनी इलेक्ट्रिक गाड़ियों के निर्यात एवं ग्रीन टेक्नोलॉजी से जुड़े उत्पादों का निर्यात बढ़ाना चाहता है और उसे इन विकसित एवं विकासशील देशों में इसके लिए व्यापक स्तर पर बाज़ार नज़र रहा है. इसकी वजह यह है कि इन देशों में ईवी एवं हरित तकनीक़ों के लिए व्यापक संभावनाएं मौज़ूद हैं, क्योंकि वहां इनका उपयोग लगातार बढ़ रहा है. जिस प्रकार से विभिन्न देशों में दक्षिण कोरिया में निर्मित इलेक्ट्रिक गाड़ियों एवं हरित टेक्नोलॉजी उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है, उससे सियोल को उम्मीद है कि आने वाले दिनों वह इन सेक्टरों में चीन को टक्कर देने लगेगा.

 

तालिका 1: सहयोगी और साझेदार देशों के साथ समझौते

 

देश

महत्वपूर्ण खनिज

प्रमुख क्षेत्र

दक्षिण कोरिया - अमेरिका

लिथियम, कोबाल्ट, रेयर अर्थ एलिमेंट्स, ग्रैफाइट, गैलियम, जर्मेनियम

दोनों देशों के लिए दुर्लभ खनिजों की आपूर्ति श्रृंखला को स्थिर करना

दक्षिण कोरिया - ऑस्ट्रेलिया

महत्वपूर्ण खनिज

अनुसंधान, विकास और उत्पादन से लेकर रिफाइनिंग, स्मेल्टिंग और प्रसंस्करण जैसे क्षेत्र

दक्षिण कोरिया - कनाडा

निकल, लिथियम, ग्रैफाइट, कोबाल्ट एवं रेयर अर्थ

महत्वपूर्ण खनिज आपूर्ति श्रृंखला, स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण और ऊर्जा सुरक्षा

 

स्रोत: लेखक द्वारा संकलित

 

दक्षिण कोरिया की संसाधन कूटनीति की दूसरी अहम बात आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाना है. इसके तहत दक्षिण कोरिया द्वारा अमेरिका और उसके सहयोगियों के अलावा अन्य देशों के साथ पारस्परिक सहयोग को बढ़ाया जा रहा है. सियोल ने अपनी इस कूटनीति के अंतर्गत खनिज संसाधनों से संपन्न देशों के साथ रणनीतिक सहयोग और साझेदारी बढ़ाने का काम किया है. (तालिका 2 देखें) आपूर्ति श्रृंखला में विविधता लाने की इस कूटनीति पर अमल करते हुए ही पिछले महीनों के दौरान दक्षिण कोरिया ने कुछ अहम पहलों को अंजाम दिया है. जैसे कि दक्षिण कोरिया द्वारा अफ्रीकी देशों के साथ एक समिट का आयोजन किया गया, वहीं दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ने मध्य एशिया के तीन देशों- कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान का दौरा किया.

 

गौरतलब है कि सियोल ने इसी साल जून में 2024 कोरिया-अफ्रीका समिट का आयोजन किया था. इस अहम सम्मेलन के बाद कोरिया-अफ्रीका क्रिटिकल मिनरल डायलॉग की स्थापना की गई. यह डायलॉग प्रमुख मेटल्स के क्षेत्र में कोरिया और अफ्रीकी देशों के बीच सहयोग को मज़बूत करने के लिए एक प्रमुख मंच के तौर पर कार्य करेगा. इसी तरह, मध्य एशियाई देशों की यात्रा के दौरान दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ने के-सिल्क रोड इनीशिएटिव की शुरुआत की. इंडो-पैसिफिक एवं कोरिया-आसियान एकजुटता पहल (KASI) के बाद राष्ट्रपति युन सुक ओल की अगुवाई में यह ऐसी तीसरी पहल है, जो महत्वपूर्ण खनिजों पर आधारित है. इतना ही नहीं, के-सिल्क रोड इनीशिएटिव महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति श्रृंखला में विविधता लाने से जुड़ी चार साझेदारी पहलों में से एक है. इसके अलावा, दक्षिण कोरिया के-सिल्क रोड इनीशिएटिव को और अधिक सशक्त करने की दिशा में भी कार्य कर रहा है. दक्षिण कोरिया का लक्ष्य अपनी इस पहल को पांचों मध्य एशियाई गणराज्यों के साथ जोड़ना है, साथ ही अगले साल सभी पांचों राष्ट्रों के साथ पहली साझा बैठक को आयोजित करना है और इस प्रकार से अपने इस क़दम को मज़बूती के साथ संस्थागत स्वरूप प्रदान करना है

 

तालिका 2: तीसरे देशों के साथ समझौते

 

देश

महत्वपूर्ण खनिज

फोकस का क्षेत्र

दक्षिण कोरिया - मंगोलिया

मोलिब्डेनम एवं टिन

महत्वपूर्ण खनिज और दुर्लभ अर्थ मेटल सहयोग

दक्षिण कोरियाइक्वाडोर

कॉपर, जिंक और गोल्ड

आपूर्ति श्रृंखला का स्थायीकरण

दक्षिण कोरिया - इंडोनेशिया

निकल

EVs, बैटरी और बैटरी आपूर्ति श्रृंखला जैसे अन्य विकसित क्षेत्र

दक्षिण कोरिया - वियतनाम

टंगस्टर एवं रेयर अर्थ मिनरल्स

प्रमुख खनिज आपूर्ति श्रृंखला पर साझा रिसर्च से संबंधित समझौते पर हस्ताक्षर

दक्षिण कोरिया - चिली

कॉपर आपूर्ति

महत्वपूर्ण खनिज सहयोग

दक्षिण कोरिया- तंज़ानिया

निकल, लिथियम, ग्रेफाइट और कोबाल्ट

प्रमुख खनिज

दक्षिण कोरिया-उज़्बेकिस्तान

मोलिब्डेनम

और टंगस्टन

दुर्लभ खनिज आपूर्ति श्रृंखला

दक्षिण कोरिया- जांबिया

कॉपर और कोबाल्ट

जाम्बिया के खान एवं खनिज विकास मंत्रालय और कोरिया खान पुनर्वास एवं खनिज संसाधन कॉर्पोरेशन के बीच समझौता

दक्षिण कोरिया-कजाकिस्तान

यूरेनियम और रेयर अर्थ

महत्वपूर्ण खनिज सहयोग

दक्षिण कोरिया- अफ्रीकी देश

क्रोम, कोबाल्ट एवं मैंगनीज

दुर्लभ खनिज सेक्टर में आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित करना और साझेदारी का विस्तार

दक्षिण कोरिया- अर्जेंटीना

लिथियम

दक्षिण कोरिया के लिए लिथियम की स्थिर आपूर्ति

स्रोत: लेखक द्वारा संकलित

 

ज़ाहिर है कि दक्षिण कोरिया द्वारा की जा रही इन सभी क़वायदों का मकसद यानी शिखर सम्मेलनों के आयोजन एवं इनमें महत्वपूर्ण खनिजों के अपने एजेंडे को शामिल करने का उद्देश्य भविष्य में अपनी खनिजों की आपूर्ति को मज़बूती प्रदान करना है और आखिरकार इस प्रकार से अपनी आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करना है. कहने का मतलब है कि दक्षिण कोरिया ऐसा करके भविष्य में प्रमुख खनिजों की निर्बाध आपूर्ति बनाए रखना चाहता है और इसलिए वह दुनिया भर के उन देशों के साथ अपने रणनीतिक रिश्तों को सशक्त कर रहा है, जो खनिज संपदा से समृद्ध हैं और इससे संबंधित आपूर्ति श्रृंखलाओं में अहम भूमिका निभाते हैं. इसके अलावा, सियोल खुद को महाशक्तियों की होड़ यानी चीन और अमेरिका की तनातनी से भी दूर रखना चाहता है और साथ ही इन ताक़तवर देशों से अलग हटकर दुर्लभ खनिजों के क्षेत्र में अन्य राष्ट्रों के साथ अपनी वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखला का निर्माण करना चाहता है. यानी कि दक्षिण कोरिया अन्य देशों के साथ अपनी अपनी साझेदारी का फायदा उठाकर, इन देशों की महत्वपूर्ण खनिज आपूर्ति श्रृंखला में अपनी पहुंच को बढ़ाना चाहता है और ऐसा करके कहीं कहीं अपनी आर्थिक प्रगति सुनिश्चित करना चाहता है.


अभिषेक शर्मा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च असिस्टेंट हैं.

आंकड़ों को जुटाने में मदद करने के लिए लेखक रिसर्च इंटर्न अंकिता ब्रिजेश के प्रयासों की सराहना करना चाहते हैं.

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