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Published on Jan 31, 2024 Updated 0 Hours ago
हिंद-प्रशांत: स्थिरता, कनेक्टिविटी और अधिकार!

दक्षिण एशिया के लिए 2023 अपेक्षाकृत स्थिर साल रहा. आर्थिक रिकवरी, हालांकि ये धीमी रही, के साथ संपन्न हो चुके और आने वाले चुनाव से उम्मीद का भरोसा इस क्षेत्र में राजनीतिक स्थिरता का संकेत दे रहा है. लचीली अर्थव्यवस्था की आवश्यकता ने अलग-अलग देशों को मजबूर कर दिया है कि वो कनेक्टिविटी को अपनाएं और कुछ दक्षिण एशियाई देशों के बढ़ते महत्व ने वैश्विक और क्षेत्रीय ताकतों के साथ उनके अधिकार को बढ़ा दिया है.

राजनीतिक स्थिरता का भरोसेमंद संकेत

पिछले 12 महीनों में दक्षिण एशिया के देश धीरे-धीरे कोविड-19 और रूस-यूक्रेन युद्ध के झटकों से उबरे हैं. इस अवधि के दौरान कुछ देशों में राष्ट्रीय चुनाव हुए और चुनाव का आयोजन और उनके नतीजे काफी हद तक एक सकारात्मक दृष्टिकोण (पॉज़िटिव आउटलुक) की तरफ इशारा करते हैं. हालांकि, दीर्घकालिक संरचनात्मक मुद्दे बने हुए हैं.

इस बीच नेपाल में राजनीतिक स्थिरता के संकेत जनवरी से ही मिलने लगे थे क्योंकि नेपाली कांग्रेस ने प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल की सरकार को समर्थन देने का फैसला किया.

मालदीव में सितंबर में आयोजित चुनाव में मौजूदा सरकार हार गई और निवर्तमान सरकार ने सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण में अपना समर्थन दिया. हालांकि मौजूदा राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू के लिए चुनौतियां बनी हुई हैं क्योंकि संसद में उनकी पार्टी के पास बहुमत नहीं है और पार्टियों की बढ़ती संख्या के साथ राजनीतिक गुटबाज़ी भी बढ़ गई है. इसी तरह नवंबर में भूटान में आयोजित चुनाव में सत्ताधारी पार्टी चुनाव हार गई और मालदीव की तरह निवर्तमान सरकार ने लोगों के जनादेश को स्वीकार किया. इस बीच नेपाल में राजनीतिक स्थिरता के संकेत जनवरी से ही मिलने लगे थे क्योंकि नेपाली कांग्रेस ने प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल की सरकार को समर्थन देने का फैसला किया. इसके बावजूद लोग देश के शासक वर्ग से असंतुष्ट हैं और ये नवंबर में राजशाही के समर्थन में आयोजित प्रदर्शन में दिखा था.

श्रीलंका में रानिल विक्रमसिंघे प्रशासन ने एलान किया है कि देश में इस साल संसदीय और राष्ट्रपति चुनाव होंगे. 2022 में अरागालायाआंदोलन[i] के बाद श्रीलंका के उथल-पुथल भरे राजनीतिक हालात को देखते हुए ये एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है. फिर भी सरकार स्थानीय चुनावों को लेकर अनिर्णय की स्थिति में बनी हुई है. ये श्रीलंका की दो सबसे बड़ी चुनौतियों- संघवाद और विकेंद्रीकरण- को रेखांकित करती है. पाकिस्तान की बात करें तो अगस्त से सत्ता संभाल रही कार्यवाहक सरकार देश से जुड़े मामलों में कुछ हद तक सामान्य हालात बनाने में कामयाब रही है. अगली सरकार को आर्थिक स्थिरता के लिए बेहद ज़रूरी सुधारों को लागू करने पर ध्यान देना होगा. हालांकि चुनाव और बदलते राजनीतिक एवं आर्थिक हालात में सेना महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी.

बांग्लादेश में चुनाव से पहले हिंसा भड़क उठी क्योंकि मुख्य विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनल पार्टी ने सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया और जनवरी में हुए चुनाव का बहिष्कार किया. हालांकि बहुत ज़्यादा हिंसा नहीं हुई और सेना ने घरेलू सत्ता के संघर्ष में दखल नहीं दिया लेकिन चुनाव के बाद ध्रुवीकरण में बढ़ोतरी हुई है और शेख़ हसीना की वैधता कमज़ोर होने की आशंका है. अफ़ग़ानिस्तान में लोकतंत्र नहीं होने के बावजूद तालिबान ने सत्ता में बने रहने और आर्थिक शासन व्यवस्था को बढ़ावा देने की अपनी क्षमता को साबित किया है. ये स्थिति महिलाओं के अधिकारों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ भागीदारी के सवाल पर आंतरिक मतभेदों के बावजूद है.

कनेक्टिविटी को बढ़ावा

आर्थिक चुनौतियों से त्रस्त दक्षिण एशिया के देश ऊर्जा, व्यापार एवं इंफ्रास्ट्रक्चर कनेक्टिविटी के ज़रिए लचीली अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं. इस क्षेत्र में तीन व्यापक रुझान दिखाई देते हैं.

जून में नेपाल के प्रधानमंत्री और अप्रैल एवं नवंबर में भूटान के राजा के दौरों के साथ भारत ने जलशक्ति व्यापार का विस्तार किया है और नए इंटीग्रेटेड चेकपोस्ट एवं सीमा पार रेल लिंक का निर्माण किया है. 

पहला है भारत के साथ द्विपक्षीय संपर्क. जून में नेपाल के प्रधानमंत्री और अप्रैल एवं नवंबर में भूटान के राजा के दौरों के साथ भारत ने जलशक्ति व्यापार का विस्तार किया है और नए इंटीग्रेटेड चेकपोस्ट एवं सीमा पार रेल लिंक का निर्माण किया है. भारत नेपाल के साथ डिजिटल एवं वित्तीय कनेक्टिविटी और भूटान के साथ गैर-जलशक्ति नवीकरणीय ऊर्जा सहयोग का लक्ष्य भी बना रहा है. बांग्लादेश के साथ भारत ने अखौरा-अगरतला सीमा पार रेल लिंक की शुरुआत की है जो पहली बार पूर्वोत्तर भारत को रेल के ज़रिए बांग्लादेश से जोड़ रहा है. जुलाई में भारत और श्रीलंका ने समुद्री, हवाई, ऊर्जा, लोगों के बीच आपसी संपर्क, व्यापार, आर्थिक एवं वित्तीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने वाले अपने पहले विज़न डॉक्यूमेंट पर हस्ताक्षर किए. दोनों देश एक ज़मीनी पुल बनाने के लिए भी सहमत हो गए हैं, हालांकि ये लेख लिखने के समय तक इसके बारे में विस्तार से जानकारी नहीं मिल पाई है. भारत ने मालदीव के साथ द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सीधी जहाज़ सेवा भी शुरू की है.

दूसरा रुझान इस बात से संबंधित है कि कैसे दक्षिण एशियाई देश भारत के ज़रिए एकीकरण की कोशिश कर रहे हैं. 2023 में बांग्लादेश और नेपाल ने भारत के साथ बिजली व्यापार के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. इसी तरह का एक समझौता बांग्लादेश और भूटान के बीच चर्चा के अंतिम दौर में है. भारत और श्रीलंका एक उच्च क्षमता वाले पावर ग्रिड को तैयार करने के बारे में भी बात कर रहे हैं जो श्रीलंका को भारत और दूसरे पड़ोसी देशों के साथ बिजली के व्यापार में मदद करेगा. ये बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों की ऊर्जा असुरक्षा का समाधान करेगा और नेपाल एवं श्रीलंका के निर्यात और विदेशी मुद्रा भंडार में सुधार करेगा. इसके अलावा भूटान और बांग्लादेश ने एक ट्रांज़िट समझौते पर भी हस्ताक्षर किए हैं जो भूटान को इस बात की अनुमति देगा कि वो बांग्लादेश के समुद्री बंदरगाहों तक पहुंचे और 2023 में भारत इसके लिए अतिरिक्त रेल रूट पर तैयार हुआ है. भूटान के गेलेफू सिटी प्रोजेक्ट के लिए भारत की सहायता और कनेक्टिविटी भूटान को दक्षिण एशिया के बाकी देशों और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ और ज़्यादा जुड़ने में मदद करेगी.

अंत में, भारत के साथ जटिलताओं का समाधान नहीं होने की वजह से पाकिस्तान और तालिबान के शासन वाला अफ़ग़ानिस्तान मध्य एशियाई गणराज्यों (CAR) के साथ कनेक्टिविटी पर बहुत ज़्यादा ज़ोर लगा रहे हैं. अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के कार्यवाहक वाणिज्य मंत्रियों ने नवंबर में उज़्बेकिस्तान के वाणिज्य मंत्री से मुलाकात की और त्रिपक्षीय व्यापार को बेहतर बनाने के तौर-तरीकों पर चर्चा की. उन्होंने ट्रांस-अफ़ग़ानिस्तान प्रोजेक्ट और पाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान एवं अफ़ग़ानिस्तान में 2027 तक एक यात्री एवं माल ढुलाई रेल लाइन विकसित करने पर प्रतिबद्धता जताई. पाकिस्तान CASA-1000 के मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल करने की भी कोशिश कर रहा है ताकि ठंड के मौसम में मध्य एशियाई गणराज्यों को सरप्लस बिजली का निर्यात किया जा सके. 

बढ़ता अधिकार

जैसे-जैसे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का महत्व बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे दक्षिण एशियाई देश वैश्विक और क्षेत्रीय ताकतों का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं. दक्षिण एशिया के लिए नए साझेदारों की कोई कमी नहीं है, भले ही भारत और चीन क्षेत्र में एक-दूसरे से मुकाबला करते हैं और उनकी मौजूदगी का दबदबा है.

उदाहरण के लिए, अमेरिका श्रीलंका को 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर के कर्ज़ की पेशकश कर रहा है और नेपाल में उसने अपने मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (MCC) प्रोजेक्ट की शुरुआत की है. नेपाल के प्रधानमंत्री प्रचंड ने पिछले 12 महीनों के दौरान भारत, अमेरिका और चीन- तीनों देशों का दौर किया है. अमेरिका ने दिसंबर के मध्य में पाकिस्तान के सेना प्रमुख की मेज़बानी भी की जिसका मक़सद उनके स्थिर संबंध को फिर से ज़िंदा करना और सहयोग की संभावनाओं की तलाश करना है, ख़ास तौर पर पाकिस्तान की सुरक्षा में. अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान की अर्थव्यवस्था को स्थिर करने में मदद के लिए एक तकनीकी बातचीत आयोजित करने की संभावना पर भी विचार कर रहा है.

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने 2023 में श्रीलंका और बांग्लादेश का दौरा किया. ये यात्रा यूरोपियन यूनियन से अलग इन देशों के साथ संबंध बनाने की कोशिशों का हिस्सा थी

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने 2023 में श्रीलंका और बांग्लादेश का दौरा किया. ये यात्रा यूरोपियन यूनियन से अलग इन देशों के साथ संबंध बनाने की कोशिशों का हिस्सा थी. दक्षिण एशिया के साथ रूस के रिश्ते भी बेहतर हुए हैं. रूस ने बांग्लादेश के परमाणु बिजली प्लांट में सहायता जारी रखी, छूट के साथ पाकिस्तान को कच्चे तेल की पेशकश की और श्रीलंका में एक परमाणु बिजली प्लांट के निर्माण में उसके बढ़-चढ़कर भाग लेने की उम्मीद है. बांग्लादेश में जापान भी मातरबाड़ी बंदरगाह को विकसित करने पर सहमत हो गया है.

अपनी ओर से भूटान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य देशों (P-5) के साथ किसी तरह का कूटनीतिक संबंध नहीं रखने की अपनी विदेश नीति को बदलने का संकेत दे रहा है. मालदीव में राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने तुर्की के न्योते को स्वीकार कर पहले विदेश दौरे के लिए भारत को चुनने की परंपरा का उल्लंघन किया है. अंत में, तालिबान के शासन वाले अफ़ग़ानिस्तान में रूस, ईरान और मध्य एशियाई गणराज्य (ताजिकिस्तान को छोड़कर) सामरिक और सुरक्षा कारणों से तालिबान के साथ जुड़े हुए हैं.

आदित्य गोदारा शिवामूर्ति ORF में एसोसिएट फेलो हैं.

शिवम शेखावत ORF में जूनियर फेलो हैं.


[i] The aragalaya (Sinhalese for ‘struggle’) was a political movement calling for a new political system in the country. Triggered by the economic crisis and hardships in the country, the movement forced the earlier president, Gotabaya Rajapaksa, to resign and flee the country.

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Authors

Aditya Gowdara Shivamurthy

Aditya Gowdara Shivamurthy

Aditya Gowdara Shivamurthy is an Associate Fellow with ORFs Strategic Studies Programme. He focuses on broader strategic and security related-developments throughout the South Asian region ...

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Shivam Shekhawat

Shivam Shekhawat

Shivam Shekhawat is a Junior Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. Her research focuses primarily on India’s neighbourhood- particularly tracking the security, political and economic ...

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